जी हां,हम किन्नर मतदाता है...! pushpa gidvani kinnar mahamndleshwer politics

 

पॉलिटिक्स




                                                                         

यह किन्नरों की सपनों की दुनिया के साकार होने जैसा है,जहां उनका नाम,उनकी पहचान और उनके अधिकारों को निर्वाचन आयोग ने वैधानिक मान्यता दी हैउन्हें अब पहचान पत्र के लिए दर दर भटकने की जरूरत नहीं पड़ेगी,उन्हें अब पहचान छुपाने की जरूरत भी नहीं पड़ेगी अब वे गर्व से कह सकते है कि हम भी इंसान है,जी हां,हम किन्नर है

 




किन्नरों को तीसरी दुनिया के नहीं,तीसरे लिंग वाले लोग अवश्य कहा जाता हैराजस्थान की सरकार ने ट्रांसजेंडर को मतदान से जोड़ने के लिए नया अभियान शुरू किया है जिसमें किन्नर महामंडलेश्वर पुष्पा माई के नाम से विख्यात जयपुर की पुष्पा गिडवानी को राजस्थान सरकार की ट्रांसजेंडर स्टेट इलेक्शन आइकॉन गया हैट्रांसजेंडर को जो मतदाता परिचय पत्र दिए जा रहे है उसमें माता पिता की जगह गुरु का नाम लिखा गया है इस साल राजस्थान में विधानसभा चुनाव होने वाले है और इसमें ट्रांसजेंडर समुदाय की शत प्रतिशत भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए राजस्थान के मुख्य निर्वाचन अधिकारी ने राज्य के समस्त जिला कलेक्टर को पत्र लिखकर यह कहा है कि तृतीय लिंग मतदाताओं की संख्या 70 हजार के लगभग या इससे अधिक हो सकती है अत: उनकी पहचान कर मतदाता सूची में उनका नाम जोड़ा जाएं। निर्वाचन आयोग ने ट्रांसजेंडर समुदाय की पहचान की कठिनाई को ध्यान में रखते हुए नवीन फॉर्म-6 जारी किया है जिसमें संरक्षक के रूप में गुरु का नाम लिखने पर सहमति प्रदान की गई है। राजस्थान के सभी जिलों में कैम्प लगाकर ट्रांसजेंडर का पंजीयन कराया जा रहा है और इसमें स्वयंसेवी संस्था नई भौर की मदद ली जा रही है।


 

पुष्पा माई की किन्नर सम्मान की लड़ाई

देखो देखो हिजड़ा जा रहा है ...! तोहमते ,लानते और अपमान का घूंट पीते पीते भी पुष्पा माई किन्नर समुदाय की बेहतरी के लिए काम करने को  दृढ़ प्रतिज्ञ हैपुष्पा कहती है कि मैं दोहरी जिंदगी से परेशान हो गई थी,क्योंकि अपनी पहचान छिपा कर मैंने एजूकेशन तो पूरी की लेकिन साल 2005 में मैंने  तय  कर लिया की अब और नहीं,मैं जैसी हूं वैसी ही दुनिया के सामने रहूंगी। पहली बार दुनिया के सामने खुलकर एक किन्नर के रुप में आई। कई एनजीओ के साथ काम किया उन्होंने  स्वयं की संस्था नई भोर की 2007 में शुरुआत की। पुष्पा माई ने किन्नर समुदाय के स्वास्थ्य पर भी काम किया। 2011 में सरकार के पहचान प्रोजेक्ट से जुड़ी औऱ खुलकर काम किया। नई भोर ने राजस्थान में लगातार बेहतर काम किये है


 

नई भौर ने एलजीबीटी प्राइड वॉक से बदल दी दुनिया

संस्थान नई भौर साल 2007 से राजस्थान में समलैंगिक और किन्नर समाज के अधिकारों की रक्षा के लिए निरंतर काम कर रहा हैनेशनल एड्स कंट्रोल सोसायटी से मिलकर नई भौर निरंतर स्वास्थ्य जागरूकता के लिए काम कर रहा हैइसके सकारात्मक परिणाम आए है और कुछ लोग अपनी झिझक छोडकर इस संस्था से जुड़ रहे हैजयपुर में साल 2015 से हर साल एलजीबीटी प्राइड वॉक आयोजित की जाती है जिसमें लेस्बियन, गे,बाईसेक्सुअल और ट्रांसजेंडर लोग अपनी एकता दिखाते हुए प्राइड वॉक करते है। यह आत्मविश्वास और जागरूकता का प्रतीक है।


 

किन्नर समाज के साथ ही समूचे ट्रांसजेंडर कल्याण के लिए प्रतिबद्द पुष्पा माई ने अपने समुदाय के अधिकारों के लिए लगातार प्रयास करते हुए  4 मई 2015 को  राजस्थान सरकार से ट्रांसजेंडर के मानव अधिकारों की रक्षा और उनके कल्याण के लिए एक बोर्ड बनाने की मांग रखी थीउनका प्रयास रंग लाया और 18 महीने के लगातार प्रयास के बाद अंततः सरकार ने इसे हरी झंडी दे दीराजस्थान में गठित बोर्ड ट्रांसजेंडर्स के स्वास्थ्य,शिक्षा और रोजगार के लिए काम करता हैराजस्थान सरकार ने उच्च शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश  आवेदन पत्रों में ट्रांसजेडर्स के लिए अलग कॉलम का प्रावधान किया है और उनके लिए सीटें भी आरक्षित की गई है।


वोटिंग बेमिसाल है,मैं अवश्य वोट देता हूँ

2023 के राष्ट्रीय मतदाता दिवस की थीम है,वोटिंग बेमिसाल है,मैं अवश्य वोट देता हूँ। यह गर्व अब किन्नर भी महसूस कर रहे है। रघुनाथपूरी जयपुर की रहने वाली शालू किन्नर का मतदाता परिचय पत्र उनकी  गुरु मनीषा किन्नर के नाम से बाकायदा जारी किया गया है। शालू को अब अपनी पहचान बताने में कोई शर्म महसूस नहीं होती। सिमरन और मुस्कान भी उन लोगों में शुमार है जो खुद को किन्नर बताते हुए कभी संकोच नहीं करते।


 

भारतीय लोकतंत्र में सभी लोगों की भागीदारी सुनिश्चित होनी चाहिए। किन्नरों ने इस भागीदारी के अधिकारों को पाने का आधा सफर तय कर लिया है लेकिन रोजगार का उनका संघर्ष बदस्तूर जारी है। पुष्पा माई किन्नर समुदाय का आत्मविश्वास बनकर उनकी बेहतरी के लिए लगातार प्रयत्नशील है।

 

 

हमें धर्म की जरूरत क्यों है hme dharm ki jturt kyo hai subah svere

 

    सुबह सवेरे   


                       
                                                                 

धर्म,आस्था,आध्यात्म मनुष्य के संस्कारों से विचारों में प्रवेश करता है और फिर व्यवहार में वह जीवनपर्यंत प्रतिबिम्बित होता रहता है। स्वामी विवेकानन्द ने धर्म के गूढ़ रहस्यों पर गहरी मीमांसा प्रस्तुत की है।   लेकिन इन सबके साथ स्वामी विवेकानन्द ने धर्म को आलौकिक समझने और कहने पर सवाल भी उठाएं है।    दरअसल  आलौकिकता मनुष्य की सीमाओं से परे है। इसे इस बात से समझा जा सकता है कि अब तक  जितने भी प्राचीन धर्म हुए है उनके बारे में यह दावा किया जाता है कि वे सब आलौकिक है अर्थात् उनका जन्म मानव मस्तिष्क से नहीं बल्कि उस स्रोत से हुआ है,जो उसके बाहर है।


 

स्वामी विवेकानन्द के भाषणों पर आधारित है एक किताब ज्ञान योग। इसमें स्वामी ने धर्म को लेकर अपनी दृष्टि को तर्क के आधार पर स्पष्ट किया है।  दुनिया की प्रमुख और प्राचीन सभ्यताओं में चीन,बेबीलोन,मिस्र,सिंधु घाटी और मेसोपोटामिया की सभ्यता को शामिल किया जाता हैकुछ साल पहले ब्रिटेन के वैज्ञानिकों के एक दल का शोध,प्रोसीडिंग्स ऑफ़ द रॉयल सोसाइटी में प्रकाशित हुआ था जिससे मिस्र की प्राचीन सभ्यता के काल के बारे में कुछ नए तथ्य सामने आए शोध से यह साफ हुआ कि करीब छत्तीस सैंतीस ईसा पूर्व में लोग नील नदी के किनारे बसने लगे थे और खेती शुरू हो चुकी थीयह भी दिलचस्प है कि एक और प्राचीन सभ्यता मेसोपोटामिया हज़ारों साल तक एक कृषि प्रधान समाज था उसके बाद ही वो एक आधुनिक राज्य के रूप में उभराचीनी,बेबीलोन या सिंधु घाटी की सभ्यता का विकास भी नदी के किनारे हुआ कुल मिलाकर दुनिया की प्राचीनतम सभ्यताओं का निर्माण नदी के किनारे हुआ


 

चीन एक साम्यवादी देश है,यहां हान समुदाय की आबादी सबसे ज्यादा हैचीन में लोग नास्तिक है या बुद्ध को मानने वालेप्राचीन सभ्यता में लोग जिस शक्ति की पूजा करते थे उसे वे लोग शंगति के नाम से पुकारते थेशंगति का अर्थ होता है स्वर्ग का देवताशंगति को स्वर्ग का पिता भी कहते थेचित्रकला के साथ साथ चीन के निवासी मूर्तिकला के क्षेत्र में भी अग्रणी थेचीन में मूर्तिकला का समुचित विकास हुआ थामूर्तियां,मिट्टी पत्थर तथा हाथी दांत की बनाई जाती थीमूर्तियां पशुओं,शिकार,रथ सवार इत्यादि विषयों से संबंधित होती थी


 

यदि भारत की सिंधु या हडप्पा सभ्यता की बात की जाएं तो चीनी सभ्यता से इसकी समानता मिल सकती हैहड़प्पावासी मूर्ति पूजक थेमोहनजोदड़ो की खुदाई से एक पशुपति शिव की मूर्ति मिली है,जो सिंधु सभ्यता में शिव पूजा को प्रमाणित करती है। यदि भारतीय आस्था की बात की जाएं तो शिव कैलाश पर्वत में रहते है और हम उसे स्वर्ग का द्वार समझते हैखुदाई में प्राप्त हुई मूर्तियों वक ताबीजों पर अंकित पशुओं के चित्रों से पता चलता है कि हड़प्पावासी पशुओं की भी पूजा करते थेसिंधु सभ्यता के निवासी पशु की पूजा करते थे और  यह पूजन देवताओं का वाहन मानकर किया जाता था

 


मेसोपोटामिया की सभ्यता का जन्म इराक की दजला एवं फरात नदियों के मध्य क्षेत्र में हुआ थाइस सभ्यता के दो प्रमुख देवताओं के नाम शमाश एवं अनु  थे मेसोपोटामिया की सभ्यता  का धार्मिक जीवन बहुत ही उच्च कोटि का था और इस समाज के लोगों का अनेक देवी देवताओं में विश्वास थामेसोपोटामिया की सभ्यता के प्रमुख देवता शमाश या सूर्य देवता,एनलिल या वायु देवता,नन्नार या  चंद्र देवता तथा अनु या आकाश देवता थेमेसोपोटामिया के लोग अपने देवी देवताओं को प्रसन्न करने के लिए पशुओं की बलि चढ़ाते थेमेसोपोटामिया सभ्यता के अंतर्गत प्रत्येक नगर में एक प्रधान मंदिर हुआ करता था,उस मंदिर का देवता नगर का संरक्षक माना जाता थाइस सभ्यता के लोग अंधविश्वासी होते थे इस सभ्यता के लोग भूत प्रेत,जादू टोना,ज्योतिष एवं भविष्यवाणियों पर विश्वास रखते थेइस सभ्यता में नगर के संरक्षक देवता के लिए नगर में किसी ऊंचे स्थान परंतु के बने चबूतरे पर मंदिर का निर्माण करवाया जाता था इस मंदिर को जिगुरत कहा जाता था मेसोपोटामिया में बसने वाली विभिन्न सभ्यताओं के लोग अपने-अपने देवता पर विश्वास रखते थेएक सामान्य पहलू यह था कि सभी धर्म बहुदेववादी थे अर्थात सभी धर्मों में एक से ज्यादा देवताओं को माना जाता थाइसका मतलब है कि वे विभिन्न प्रकार के देवताओं की पूजा करते थेभारत और चीन का समाज  मेसोपोटामिया के जीवन जीने के तरीकों से किसी भी तरीके से भिन्न नजर नहीं आता

 


बेबीलोनिया के लोग अरब के रेगिस्तान के घुमक्कड़ लोग थे और यह विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक थीयह सभ्यता बहुत ही उन्नत एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सक्षम थीइसी सभ्यता के कारण विश्व में ज्योतिष का प्रसार भी हुआ और ऐसा माना जाता है कि इस सभ्यता ने ही ग्रहों,नक्षत्रों आदि का नामकरण कियाइस सभ्यता के लोगों को मीनारें,गुंबदे,मस्जिदे आदि बनाने का ज्ञान प्राप्त था,उन्होंने यह ज्ञान पूरे विश्व को प्रदान किया  यह समानताएं सिंधु,चीनी और मेसोपोटामिया में भी दिखाई पड़ती है।


 

प्राचीन मिस्र,नील नदी के निचले हिस्से के किनारे केन्द्रित पूर्व उत्तरी अफ्रीका की एक प्राचीन सभ्यता थी,जो अब आधुनिक देश मिस्र हैमिस्रवासियों के प्रमुख देवता रा या सूर्य,ओसरिम या नील नदी तथा सिन या चन्द्रमा थे। उनके देवता प्राकृतिक शक्तियों के प्रतीक थे





सभ्यता के प्रारम्भिक काल में मिस्रवासी बहुदेववादी थे,किंतु साम्राज्यवादी युग में अखनाटन नामक फराओ ने एकेश्वरवाद की विचारधारा को महत्व दिया तथा सूर्य की उपासना आरम्भ की मिस्रवासियों का विश्वास था कि मृत्यु के बाद शव में आत्मा निवास करती हैअत: वे शव पर एक विशेष तेल का लेप करते थे। इससे सैकड़ों वर्षों तक शव सड़ता नहीं था। शवों की सुरक्षा के लिए समाधियां बनाई जाती थी जिन्हें वे लोग पिरामिड़ कहते थेपिरामिड़ों में रखे शवों को  ममी कहा जाता था

 

ये बहुत रोचक है की दुनिया की प्राचीनतम सभ्यताओं का अध्ययन किया जाएं तो उनमे ज्यादा अंतर नजर नहीं आताजहां तक धार्मिक मान्यताओं का सवाल है तो हजारों साल पहले के जनजीवन की तौर तरीकों को अपनाकर ही उसे आवश्यक मान लिया गया है


 

बेबीलोन और मेसोपोटामिया अब अरब के अंतर्गत आते है,जहां इस्लाम धर्म है। मिस्र एक अंतरमहाद्वीपीय देश है तथा अफ्रीका,भूमध्य क्षेत्र,मध्य पूर्व और इस्लामी दुनिया की यह एक प्रमुख शक्ति हैयहां ईसाई भी बहुतायत में रहते है चीनी सभ्यता का प्रसार चीन,कम्बोडिया से लेकर वियतनाम तक है और सिंधु घाटी की सभ्यता पूरे भारतीय महाद्वीप को जोड़ती हैहजारों सालों से विकास की प्रक्रिया के साथ सभ्यताओं में भिन्नता जरुर नजर आती है लेकिन इनकी मूल मान्यताओं में समानता समाप्त नहीं हो सकीयह रहन सहन से लेकर आस्थाओं में भी नजर आती है


 

जाहिर है धर्म का संबंध सभ्यताओं के विकास से ही रहा है और यह मानव मस्तिष्क से ही हजारों वर्षों से समृद्द होता रहाऐसे में धर्म को आलौकिकता से जोड़ना,कल्पनातीत तो हो सकता है लेकिन इसका ज्ञान और तर्क से कोई संबंध नहीं हैदुनियाभर में घूम कर विवेकानन्द ने सभी धर्मों के मूल को समझा और इस शाश्वत एकत्व को देखास्वामी विवेकानन्द धर्म को इसीलिए जरूरी बताते थे क्योंकि यह मनुष्य की उन्नति या विकास का वह नियम है जिससे सभ्यताएं समृद्ध और प्रतिबिम्बित होती हैइसीलिए वे कहते थे कि प्रत्येक धर्म को स्वतंत्रता और वैशिष्ट्य को बनाएं रखकर दूसरे धर्मों का भाव ग्रहण करते रहना चाहिए  अंततः विभिन्न धर्मों का यही सामीप्य मानवीय सभ्यताओं का आधार है तथा इससे ही प्रगति का मार्ग प्रशस्त होता है

प्रवासी कूटनीति-भारत को जानो और भारत को मानो, pravasi kutniti bharat ko janon politics

 



वे प्रवासी है,अनिवासी है,समुद्रपारीय है लेकिन भारतीय मूल के है और दुनिया में भारत की सफलता की गाथाओं के प्रतीक हैप्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के लिए वे भारत माता की गौरवशाली संतान है तो पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने उन्हें भारत के विदेशों में असल दूत कहा थाभारत के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहनसिंह ने इन्हीं भारतीयों के बूते अमेरिका से 2006 में परमाणु समझौता करके दुनिया के कूटनीतिज्ञों को चमत्कृत कर दिया था। वे नासा में भी है,गूगल में भी है,पेप्सी से लेकर कई बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के बड़े ओहदों पर विराजित है। कई देशों के राष्ट्राध्यक्ष है तो कई देशों की अर्थव्यवस्था को चलाने वाले पूंजीपति। ब्रिटेन,अमेरिका हो या खाड़ी के देश,भारतीय तकनीक,व्यापार से लेकर स्वास्थ्य तक का बेहतर संचालन और प्रबंधन करते है। वे जहां भी रहे पर यह कहते है कि,सारे जहां से अच्छा हिन्दोस्तां हमारा।

 

 


1998 में भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अप्रवासी भारतीयों और भारतीय मूल के लोगों को भारत का विस्तारित परिवार कहा था और प्रवासी से भारत को जोड़ने के लिए ब्रिटिश भारतीय लक्ष्मीमल सिंघल की अध्यक्षता में एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया गया थाजिसके बाद भारत में प्रवासी दिवस मनाने की शुरुआत 9 जनवरी 2003 से की गई9 जनवरी 1915 को महात्मा गांधी दक्षिण अफ्रीका से लौटे थे और यहां से भारत की आज़ादी के आंदोलन को एक नई दिशा मिली थीअत: 9 जनवरी का दिन प्रवासी भारतीयों के गौरव और निष्ठा की पहचान बन गया

 

 


 

दुनिया के 110 देशों में तकरीबन ढाई करोड़ भारतीय रहते हैहालांकि अधिकारिक रूप से इसे दो करोड़ ही बताया जाता हैयूरोप के कई विकसित देश इस जनसंख्या से अभी बहुत पीछे हैमसलन पूर्वी यूरोप के रोमानिया की कुल आबादी अभी 1 करोड़ 90 लाख है हीयही हाल नीदरलैंड,बेल्जियम,ग्रीस,स्वीडन,हंगरी,बेलारूस, स्विट्जरलैंड और आस्ट्रिया का भी हैहाँ,लेकिन इन सभी देशों में एक समानता यह है कि हर एक देश में भारतीय मिलते है,15 अगस्त को तिरंगा फहराते है और दीपावली की धूम भी यहां देखने को मिल जाती है

 


ब्रिटेन को यूरोप का प्रवेश द्वार कहा जाता है और भारतीय व्यापारियों के लिए तो यह व्यापार का घर भी हैभारत के पूर्व प्रधानमंत्री प्रसिद्ध अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह ने एक बार कहा था कि 1700 में भारत अकेला दुनिया की साढ़े बाईस फ़ीसद दौलत पैदा करता था,जो तमाम यूरोप के समग्र हिस्से के तक़रीबन बराबर थी एक बार लेकिन यही हिस्सा 1952 में घिर कर चार फ़ीसद से भी नीचे गिर गया20वीं शताब्दी के आगाज़ पर ताज-ए-ब्रितानिया का सबसे नायाब हीरा हक़ीक़त में प्रति व्यक्ति आय के हिसाब से दुनिया का सबसे गरीब देश बन गया था। दरअसल यह माना जाता है कि ब्रिटिश भारत से करीब 30 खरब डॉलर सम्पत्ति लूटकर ले गए थे

 


कभी ब्रिटेन में भारत के नागरिकों से गुलाम जैसा व्यवहार किया जाता है लेकिन इस स्थिति को बदला है वहां रहने वाले प्रवासी भारतीयों नेअब तो ब्रिटेन के प्रधानमंत्री ही भारतीय मूल के ऋषि सुनक हैब्रिटेन में बसने वाले अप्रवासियों में सबसे बड़ी तादाद भारतीयों की ही है जिनकी आबादी तकरीबन 16 लाख है भारतीय ब्रिटेन के कारोबार का अहम हिस्सा तो है ही,सांस्कृतिक,तकनीकी और राजनीतिक रूप से भी उनकी भागीदारी बेहद महत्वपूर्ण मानी जाती है। ब्रिटेन में विभिन्न स्तरों पर अनेक नई परियोजनाएं शुरू करने के मामले में भारत अग्रणी देशों में शुमार हैब्रिटेन की अर्थव्यवस्था में भारत की कंपनियों की अहम भूमिका हैभारतीयों की 800 से ज़्यादा कंपनियों ने ब्रिटेन में 1 लाख से ज़्यादा लोगों को रोज़गार दिया हैभारत के 21 हज़ार से ज़्यादा छात्र ब्रिटेन में पढ़ाई कर रहे हैं  ब्रिटेन के लिए शिक्षा आय बढ़ाने का  बड़ा माध्यम है। ब्रिटेन को पीछे छोड़कर भारत दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है और  ब्रेग्जिट के बाद भारत के साथ कारोबारी समझौता करना ब्रिटेन सरकार की सबसे महत्वाकांक्षी नीतियों में से एक है

 


अमेरिकी सरकार तो भारत से बहुत अच्छे सम्बंध चाहती है। बाइडेन का कहना है कि अमेरिका में 40 लाख भारतीय-अमेरिकी रहते हैं,जो अब अमेरिका को अपना घर मानते हैंवो अपने समाज और देश की गर्व से सेवा करते हैंभारतीय मूल के लोगों की कामयाबी करोड़ों भारत के लोगों को कितनी गदगद करती है इसे भारत के मशहूर उद्योगपति आनन्द महिंदा के ट्विट से समझा जा सकता है जो उन्होंने ऋषि सुनक के ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बनने के दौरान किया थाबकौल आनंद महिंद्रा,विंस्टन चर्चिल ने 1947 में भारतीय स्वतंत्रता के मौक़े पर कहा था कि भारतीय नेता कम क्षमताओं वाले लोग होंगे आज हमारी आज़ादी के 75 वें वर्ष में हम भारतीय मूल के एक शख़्स को ब्रिटेन का प्रधानमंत्री बनते देख रहे हैं,ज़िंदगी ख़ूबसूरत है


 

यूरोप में भारतीय मूल के नेताओं में एंटोनियो कोस्टा का नाम प्रमुखता से लिया जाता है,वह पुर्तगाल के प्रधानमंत्री हैंकोस्टा भारत के ओसीआई कार्ड धारकों में शामिल हैंमॉरिशस के प्रधानमंत्री प्रविंद जगन्नाथ,मॉरिशस के मौजूदा राष्ट्रपति पृथ्वीराजसिंह रूपन,सिंगापुर की राष्ट्रपति हलीमा याक़ूब,लैटिन अमेरिकी देश सूरीनाम के राष्ट्रपति चंद्रिका प्रसाद संतोखी ऐसे राजनेता हैं,जिनके तार भारत से जुड़े हुए हैंचंद्रिका प्रसाद संतोखी ने राष्ट्रपति पद की शपथ संस्कृत भाषा में ली थीकैरिबियाई देश गुयाना के राष्ट्रपति इरफ़ान अली के पूर्वजों की जड़ें भी भारत से जुड़ी हैंसेशेल के राष्ट्रपति वावेल रामकलावन भी भारतीय मूल के नेता हैं वहीं भारतीय मूल के शीर्ष नेताओं में अमेरिकी उप-राष्ट्रपति कमला हैरिस भी हैं

 

 


 

 

 

प्रवासी भारतीयों के लाभ .....

 

1.विदेशों में भारत की बेहतर छवि का निर्माण करते है।

 

2.पंजाब की अर्थव्यवस्था का मजबूत आधार कनाडा है तो केरल की कमाई पश्चिम एशिया से होती है।

 

3.कश्मीर को  लेकर पाकिस्तान के विष वमन को रोकने में प्रवासी भारतीयों की प्रमुख भूमिका रही हैयही कारण है कि अमेरिका और ब्रिटेन की कोई भी सरकार भारत विरोधी बयान देने से परहेज करने  लगी है

 

4.प्रवासियों से विदेशी मुद्रा प्राप्त करने वाला सबसे बड़ा देश भारत है।

 

5.दुनिया में व्यापार करने के लिए सबसे अनुकूल देश होने की छवि बनाने में भारतीय मूल के लोगों की बड़ी भूमिका है।


 

 

अस्थिरता की ओर बढ़ता पाकिस्तान pak janstta

 जनसत्ता


                      

                                                                              

राष्ट्रीय शक्ति को मूल रूप से सैनिक शक्ति समझने की मध्ययुगीन और प्राचीन अवधारणा को पीछे छोड़कर दुनिया के अधिकांश देश भूगोल,प्राकृतिक साधन,औद्योगिक क्षमता,जनसंख्या,राष्ट्रीय चरित्र,राष्ट्रीय मनोबल,कूटनीति और सरकार की नीति के नूतन और दीर्घकालीन उपायों के आधार पर आगे बढ़ रहे हैवहीं इस्लामिक गणराज्य पाकिस्तान की सरकारों की नीतियां सैन्य प्रभावों से इतनी अभिशिप्त है कि लोक कल्याण की मूल मान्यताएं धराशाई हो गई है और यहीं कारण है कि देश के आंतरिक और प्रशासनिक ढांचें को आम जनता संदेह की दृष्टि से देखती हैइस समस्या को बढ़ाने में पाकिस्तान के धार्मिक और राजनीतिक संस्थाओं ने प्रमुख भूमिका अदा की हैफ़िलहाल पाकिस्तान गहरे आर्थिक और लोकतांत्रिक संकट से गुजर रहा है,जिससे भारत के इस पड़ोसी देश में अस्थिरता एक बार फिर बढ़ सकती है


 

पाकिस्तान में डॉलर की किल्लत हो गई है रुपया बहुत कमजोर स्थिति में है। कृषि प्रधान देश होने के बाद भी गेंहूं को विदेशों से आयात करना पड़ रहा है। महंगाई अभूतपूर्व बढ़ी है और इससे जनजीवन अस्त व्यस्त हो गया है। पिछले आठ महीने से जारी राजनीतिक अस्थिरता और इस साल की बाढ़ ने देश को आर्थिक तौर पर बहुत नुकसान पहुंचाया हैडॉलर के मूल्य में वृद्धि के कारण वाणिज्यिक और आर्थिक घाटा बढ़ रहा है,वहीं देश के मुद्रा विनिमय के कोष में भी काफ़ी कमी आई हैपाकिस्तान को अगले कुछ महीनों के दौरान विदेशी क़र्ज़ के मद में अरबों डॉलर की अदायगी करनी है जबकि उसके केंद्रीय बैंक में फॉरेन एक्सचेंज के कोष में सिर्फ़ छह अरब डॉलर के क़रीब हैं यह पाकिस्तान की अपनी सम्पत्ति नहीं है बल्कि चीन,संयुक्त अरब अमीरात और सऊदी अरब जैसे मित्र देशों की मदद से प्राप्त धनराशि है। वैदेशिक संबंधों को लेकर भी पाकिस्तान की कूटनीति विवादों में नजर आती है। पाकिस्तान के विदेश मंत्री बिलावल भुट्टों का भारतीय प्रधानमंत्री को लेकर असंयमित बयान हो या अफगानिस्तान की तालिबान सरकार को हद में रहने की नसीहत,पाकिस्तान के पड़ोसियों से संबंध बद से बदतर स्थिति में पहुंच गए है। बलूचिस्तान और खैबर पख्तुन्वा में आतंकी हमलों में भारी वृद्धि हुई है और इससे पाकिस्तान का आंतरिक सुरक्षा संकट गहरा गया है।


इमरान खान की सरकार को हटाकर सत्ता में आई आठ महीने पुरानी शाहबाज़ शरीफ की सरकार देश में सरकार के खिलाफ अभूतपूर्व प्रदर्शनों से परेशान हैइमरान खान ने लांग मार्च को हथियार बनाकर जनता का भरपूर समर्थन हासिल कर लिया हैइमरान ने धर्म के साथ राष्ट्रवाद का घालमेल कर लोगों की भावनाओं को आक्रामक तरीके से उभारा है,यहीं कारण है कि शाहबाज़ शरीफ और उनकी सरकार के  सहयोगियों को देश और बाहर चोर चोर के नारों का विरोध झेलना पड़ रहा है


 

पाकिस्तान के पूर्व सेना अध्यक्ष जनरल बाजवा की सेवानिवृत्ति की घोषणा के साथ ही आतंकी संगठन तहरीक-ए-तालिबान का युद्द विराम से हटने की घोषणा कोई संयोग नहीं है बल्कि इसे लोकतांत्रिक सरकार को अस्थिर करने की कोशिश के तौर पर भी देखा जाना चाहिएयह भी दिलचस्प है कि तहरीक-ए-तालिबान खैबर-पख्तुन्वा सूबे में बहुत मजबूत है और यह इलाका इमरान खान की पार्टी तहरीक-ए-इंसाफ का गढ़ माना जाता हैइमरान खान के सत्ता में रहते तहरीक-ए-तालिबान ने ख़ामोशी बनाएं रखी और शहबाज़ शरीफ के सत्ता में आते ही देश के कई इलाकों में आतंकी हमलें शुरू हो गए 


 

पाकिस्तान इसके लिए अफगानिस्तान को जिम्मेदार ठहरा रहा है जबकि अफ़ग़ान तालिबान का कहना है कि पाकिस्तान में जो कुछ हो रहा है वह पाकिस्तान की अपनी आंतरिक समस्या है तालिबान के सत्ता में आने के बाद

पाक-अफ़ग़ानिस्तान सीमा पर हालात तनावपूर्ण रहे है। तालिबान और पाकिस्तान के प्रतिबंधित आतंकी संगठन तहरीक-ए-तालिबान के मजबूत संबंध रहे है।  अफगान पाकिस्तान सीमा पर बाड़ को उखाड़ फेंकने और  सीमा पार से पाकिस्तान के विभिन्न क्षेत्रों में हमले  को लेकर पाकिस्तान अफगानिस्तान पर निशाना साधता रहा है। पाकिस्तान में कट्टरपंथी इस्लामिक शासन की मांग करने वाले आतंकी संगठन तहरीक-ए-तालिबान से पाकिस्तान की सरकार के साथ मध्यस्थता करवाने में तालिबान ने ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, लेकिन  युद्ध विराम की समाप्ति के बाद पाकिस्तान में हालात एक बार फिर तनावपूर्ण हो गए है


 

तालिबान और भारत के बीच सामान्य होते रिश्तों को लेकर भी पाकिस्तान असहज है। पिछले वर्ष अफगानिस्तान के वरिष्ठ राजनीतिज्ञ अब्दुल्लाह अब्दुल्लाह,भारत की मध्यस्थता के बाद नईदिल्ली से काबुल लौटे थे और इसे तालिबान के साथ भारत के मजबूत होते संबंधों के रूप में देखा गया थातालिबान चाहता है कि भारत की कम्पनियां अफगानिस्तान में वापस लौटकर उन विकास कार्यों को पूरा करें जिन्हें वह  अधूरा छोड़कर चली गई थी अब तालिबान ने आश्वासन दिया है कि अगर भारत अफ़ग़ानिस्तान में प्रोजेक्ट्स शुरू करता है तो भारतीयों की सुरक्षा की ज़िम्मेदारी उसकी होगी

 


पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच डूरंड रेखा को लेकर विवाद है ही लेकिन अफगानिस्तान की तालिबान सरकार का रुख इस पर इतना कड़ा होगा,इसकी कल्पना पाकिस्तान की सेना और सरकार ने नहीं की होगी दोनों देशों की सीमा पर इस समय गहरा तनाव है और पाकिस्तान के कई सैनिक तालिबान के हमलों में हताहत भी हुए है  दरअसल अफगानिस्तान की अस्थिरता में पाकिस्तान का बड़ा हाथ रहा है1990 के दशक में अफगानिस्तान की सत्ता में तालिबान की दस्तक पाकिस्तान की सैन्य और आर्थिक मदद से ही संभव हो सकी थी तालिबान,पाकिस्तान  की राजनीतिक और वैश्विक महत्वाकांक्षाओं को भली भांति जानता है और उसे पाकिस्तान का सामरिक साधन बनने में कोई दिलचस्पी नहीं हैवहीं अफगानिस्तान  की आम जनता तो पाकिस्तान के मंसूबों  को लेकर आशंकित रहती ही है दूसरी तरफ अफगानिस्तान का एक बड़ा तबका शरणार्थी के रूप में पाकिस्तान में रहता है जो सस्ता मजदूर बनकर गरीब पाकिस्तानियों के रोजगार को हड़प रहा हैपाकिस्तान के आम शहरी में इसे लेकर बड़ा आक्रोश है और यह सरकार की मुश्किलें बढ़ाता है



पाकिस्तान में डॉलर की सरकारी दर 224 से 225 रुपये तक पहुंच चुकी है और इस दावे को बल मिला है कि  पाकिस्तान डिफ़ॉल्ट करने के क़रीब है देश में डॉलर लाने वाले तीन महत्वपूर्ण स्रोत निर्यात,विदेशों से भेजी गयी मुद्रा और विदेशी पूंजी निवेश पिछले कुछ महीनों में नकारात्मक वृद्धि दर्ज कर रहे हैंऐसी स्थिति में अर्थव्यवस्था का पहिया और धीमा घूमेगा और औद्योगिक क्षेत्र में गतिविधियों में सुस्ती आने की वजह से कर्मचारियों की छंटनी हो सकती है जिससे बेरोजगारी का संकट और ज्यादा गहरा संकट है डॉलर की अनुपलब्धता और सुरक्षा के खतरों के चलते कई बहुराष्ट्रीय कम्पनियां पाकिस्तान को छोड़कर जाने की तैयारी में है और इससे पाकिस्तान का पढ़ा लिखा तबका गुस्से में है  गरीबों का जीवन कठिन हो गया है,आटे की क़ीमत में इज़ाफ़े के अलावा बिजली, गैस और दूसरे ज़रूरी सामान का दाम भी बढ़ गया है


ख़ैबर पख़्तूनख़्वा,पंजाब और बलूचिस्तान में तहरीक-ए-इंसाफ़ की सरकार है। शाहबाज़ शरीफ की सरकार गेहूं का संकट पैदा  करने के लिए इमरान खान को जिम्मेदार ठहरा रहे है इन सबके बीच वैश्विक बाजार में तेल की बढ़ती क़ीमतों के चलते पाकिस्तान के विदेशी मुद्रा भंडार पर भारी दबाव है जो उसे संकट की कगार पर धकेल रहा है



पाकिस्तान सीपेक को देश के भविष्य की योजना बताता है लेकिन उसका बलूचिस्तान में जिस प्रकार विरोध हो रहा है उससे यह योजना खटाई में पड़ती नजर आ रही है। चाइना-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर या सीपेक चीन के महत्वाकांक्षी बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव के तहत बनाए जा रहे व्यापारिक नेटवर्क का हिस्सा है,जिसमें सड़कों,बिजली संयंत्रो,रेलवे लाइनों और औद्योगिक क्षेत्रों का निर्माण शामिल हैबलूच लोगो इसे प्राकृतिक संसाधनों पर क़ब्ज़े की योजना के रूप में देखते है और इसीलिए वह इन इलाकों में तैनात चीनी और पाकिस्तानी सुरक्षा बलों पर हमलें करते रहे हैपाकिस्तान की सरकारें यह दावा करती है कि सीपीईसी के ज़रिए बलूचिस्तान सहित देश के बहुत से पिछड़े इलाक़ों में तरक्की दी जा सकेगी,जिससे विकास से वंचित उन इलाक़ो में ख़ुशहाली आएगी। लेकिन स्थिति इससे उलट नजर आती है। बलूचिस्तान में आने वाले ग्वादर बंदरगाह में नई मशीनरी लग रही है,सड़कों,नई इमारतों और कॉलोनियों का निर्माण हो रहा है जबकि ग्वादर के रहने वाले पीने के पानी की बूंद बूंद को तरस रहे है। चीन की कर्ज पर आधारित कूटनीति के जाल में पाकिस्तान बूरी तरह फंस चूका है। चाइना इंडेक्स के जारी किए हुए हालिया आंकड़ों अनुसार,चीन का पाकिस्तान में विभिन्न क्षेत्रों पर प्रभाव दुनिया में सबसे ज्यादा  हैयह तकनीक,शिक्षा,अर्थव्यवस्था,स्थानीय राजनीति और मीडिया समेत आम आदमी को भी प्रभावित कर रहा है। चीनी कर्ज के जाल में फंसने के बाद श्रीलंका की मुश्किलों से पाकिस्तान की जनता आशंकित है. पाकिस्तान का पढ़ा लिखा तबका सरकार को चीन पर अधिक निर्भरता के खतरों से आगाह करता रहा है।

   


पाकिस्तान में पिछला आम चुनाव जुलाई 2018 में हुआ था और पाकिस्तान की वर्तमान नेशनल असेंबली का कार्यकाल अक्टूबर 2023 तक है। वहीं इमरान खान  देश में तुरंत आम चुनाव कराने की मांग करते रहे है।  पाकिस्तान में जिस प्रकार  विभिन्न मोर्चो पर शहबाज़ शरीफ की सरकार विरोध को झेल रही है उससे आने वाले आम चुनावों में उसकी स्थिति बहुत खराब हो सकती है। पाकिस्तान में इमरान खान की राजनीतिक स्थिति लगातार मजबूत हो रही है और इस बात की पूरी संभावना है कि उनकी सरकार केंद्र में पूरे बहुमत से वापसी करेगी। इमरान खान शरीफ और भुट्टों परिवार पर तो भ्रष्टाचार को लेकर निशाना साधते ही रहे है लेकिन वे सेना की भूमिका पर भी सवाल खड़ा करते रहे है।  देश में पहली बार यह देखा गया है कि आम जनता ने सेना के खिलाफ व्यापक प्रदर्शनों में भाग लिया है। जाहिर है यह वर्ष पाकिस्तान के लिए निर्णायक हो सकता है। इमरान खान को सत्ता में आने से रोकने की सत्तारूढ़ दल,अमेरिका और सेना की कोशिशें पाकिस्तान में गृहयुद्द को भड़का सकती है। बढ़ती महंगाई और बेरोजगारी से परेशान आम आदमी बदलाव चाहता है और वह इमरान खान पर ज्यादा भरोसा दिखा रहा है।  बहरहाल पाकिस्तान में स्थितियां बेहद विकट है और इस देश को संतुलित रखने के ईमानदार प्रयास न तो सेना कर रही है,न ही सत्तारूढ़ दल। यहां तक की जनता की आशाओं के केंद्र बने इमरान खान के इरादों पर भी पूर्ण भरोसा नहीं किया जा सकता है।

 

brahmadeep alune

पुरुष के लिए स्त्री है वैसे ही ट्रांस वुमन के लिए भगवान ने ट्रांस मेन बनाया है

  #एनजीओ #ट्रांसजेंडर #किन्नर #valentines दिल्ली की शामें तो रंगीन होती ही है। कहते है #दिल्ली दिलवालों की है और जिंदगी की अनन्त संभावना...