मानवाधिकारों पर गांधी की धर्म को चुनौती,manvadhikar,gandhi

 

सुबह सवेरे 

10 दिसम्बर 2020     

                                                                                     

                               

                             

महात्मा गांधी से एक प्रार्थना सभा में यह पूछा गया कि क्या इस्लाम और ईसाई प्रगतिशील धर्म है जबकि हिन्दू धर्म स्थिर या प्रतिगामी। इस पर गांधी ने कहा कि,”नहीं मुझे किसी धर्म में स्पष्ट प्रगति देखने को नहीं मिली,अगर संसार के धर्म प्रगतिशील होते तो आज विश्व जो लड़खड़ा रहा है वह नहीं होता।“ दरअसल धर्म को लेकर क्या दृष्टि होना चाहिए और इसे दिशा कौन दे,इसे लेकर आधुनिक समाज अंतर्द्वंद से घिरा नजर आता है और इस विरोधाभास में राजनीतिक हित मानवीय संकट को व्यापक स्तर तक बढ़ा रहे है। धर्म यदि व्यक्तिगत आस्था तक सीमित है और इसकी सुरक्षा को लेकर व्यक्तिगत चिंताएं व्यक्ति महसूस करता है तो इससे धार्मिक विद्वेष बढ्ने की आशंका बनी रहती है। दुनिया के सामने व्यक्तिगत आस्था से उठा यह मानवीय संकट यूरोप के प्रगतिशील समाज से लेकर भारत,पाकिस्तान,श्रीलंका और अफगानिस्तान जैसे पिछड़े देशों तक दिखाई भी देता है।

संयुक्त राष्ट्र संघ ने 10 दिसम्बर 1948 को मानव अधिकार की सार्वभौम घोषणा अंगीकार कर मानव अस्मिता और सम्मान को सुनिश्चित करने का प्रयास किया था,इसके साथ ही वैश्विक समुदाय से यह अपेक्षा भी की गई थी की वह मानव अधिकारों का पालन व्यवस्था की दृष्टि से भी करेंगे। इस घोषणा में समाहित किया गया की जाति, वर्ण, लिंग, भाषा, धर्म, राजनीतिक या अन्य विचार-प्रणाली, किसी देश या समाज विशेष में जन्म, संपत्ति या किसी अन्य मर्यादा आदि के कारण भेदभाव का विचार न किया जाएगा। इसके अतिरिक्त, चाहे कोई देश या प्रदेश स्वतंत्र हो, संरक्षित हो, या स्वशासन रहित हो, या परिमित प्रभुसत्ता वाला हो, उस देश या प्रदेश की राजनैतिक क्षेत्रीय या अंतर्राष्ट्रीय स्थिति के आधार पर वहां के निवासियों के प्रति कोई  फर्क न रखा जाएगा।”

मानव अधिकारों की गरिमा को लेकर संयुक्त राष्ट्र की अपेक्षाओं के विपरीत समाज,सरकारों और राष्ट्रों में राजनीतिक हितों को लेकर विरोधाभास है,इसके परिणाम दुनिया भर में दिखाई पड़ रहे है। अभिव्यक्ति को लेकर फ्रांसीसी समाज में मत विभिन्नता आई और अंतत: एक धर्मांध नवयुवक द्वारा एक शिक्षक का गला रेत कर हत्या कर दी गई। इसकी प्रतिक्रिया जिस प्रकार से सामने आई वह मानवीय अस्तित्व के लिए संकट पैदा करने वाली है। आरोप था कि टीचर ने अपनी क्लास में पैगंबर मोहम्मद का कार्टून दिखाया था। मलेशिया के पूर्व प्रधानमंत्री महातिर मोहम्मद ने इस  हत्या को न्यायोचित ठहराते हुए कहा की, मुस्लिमों को गुस्सा करने का और लाखों फ्रांसीसी लोगों को मारने का पूरा हक है। फ्रांस में पैंगबर मोहम्मद के कार्टून को लेकर छिड़ी बहस के बीच ही नाइस शहर में एक और हमला हुआ। जहां हमलावर ने अल्लाह हू अकबर के नारे लगाते हुए स्थानीय चर्च पर हमला किया, इसमें तीन लोगों की मौत हो गई एक महिला का गला काट कर निर्मम हत्या कर दी गई।

2019 में श्रीलंका में ईस्टर पर एक मुस्लिम अतिवादी संगठन द्वारा भयंकर आतंकवादी हमला हुआ और इसमे सैंकड़ों लोग मारे गए थे। इसकी कड़ी प्रतिक्रिया वहां के मुसलमानों ने झेली।

मस्जिदों पर हमले हुए। मुसलमानों की दुकानों का बहिष्कार किया गया, इस प्रकार मुसलमानों के प्रति घृणा का वातावरण तैयार हो गया। सोशल मीडिया पर उन दुकानों और व्यापारों का नाम शेयर किया गया जिनके मालिक मुसलमान थे। लोगों से यह अपील की गई की वो उनका बॉयकॉट करें। श्रीलंका में 10 फ़ीसदी आबादी मुसलमानों की है। बौद्ध बाहुल्य इस देश में इससे राजनीतिक तनाव भी बढ़ा। एक प्रभावशाली बौद्ध भिक्षु ने एक मुस्लिम सरकारी मंत्री और दो प्रांतीय राज्यपालों को हटाए जाने तक उपवास करने की धमकी दी,इसके बाद सभी मुस्लिम मंत्रियों ने इस्तीफ़ा दिया और आठ अन्य मंत्रियों को भी कैबिनेट से हटा दिया गया।



कुछ चरमपंथियों के हमलों की क़ीमत यहां के उस मुस्लिम समुदाय को  चुकानी पड़ी जो हाशिए पर  होकर दो जून रोटी की चुनौती से रोज जूझता है। यहां के मुसलमानों ने कई स्थानों पर श्रीलंका के प्रति अपनी देशभक्ति साबित करने के लिए अपनी मस्जिदों को गिरा दिया। विकासशील समाज में देश भक्ति को साबित करने के लिए अपने धार्मिक स्थल को तोड़ने को मजबूर होना शर्मसार करता है।

ब्रिटेन  के डर्बी शहर का  अर्जन देव गुरुद्वारा सेवा भाव को लेकर विख्यात है। इस साल यह गुरुद्वारा जब लॉकडाउन से प्रभावित लोगों के लिए खाना बनाने मे जुटा था,तब इस पर हमला किया गया। पाकिस्तान और अफगानिस्तान में मंदिरों और गुरुद्वारों पर हमले आम है। लेकिन भारत भी जातीय और धार्मिक विद्वेष से बुरी तरह प्रभावित है। यहां धार्मिक आतंकवाद से ज्यादा एक अलग और कही खतरनाक किस्म का जातीय आतंकवाद है जो मंदिरों में जाने से किसी को रोक देता है और उस पर ईश्वर को अशुद्ध करने का आरोप लगाकर निशाना भी बना देता है,यहां तक की इस कारण कई लोगों को मार भी डाला जाता है। 


 ऐसी घटनाएँ सभ्य समाज की धार्मिक समझ को कलंकित करती रही है। द्वितीय विश्व युद्द के बाद यह अपेक्षा की गई थी की आधुनिक दुनिया मध्यकालीन धार्मिक द्वंद को पीछे छोड़कर समूची मानव जाति के विकास पर ध्यान देगी। लेकिन ऐसा हुआ नहीं और दुनिया भर में आस्था को अंधविश्वास से तथा धार्मिक हितों को व्यक्तिगत सम्मान से जोड़ने की राजनीतिक विचारधाराएँ बढ़ गई,इसके साथ ही सत्ता प्राप्त करने का इसे साधन भी बना लिया गया। महात्मा गांधी इसे लेकर आशंकित तो थे ही।  

गांधी मानवता की रक्षा और विश्व शांति के ऐसे महान पथ प्रदर्शक है जिनके विचारों और कार्यों में प्रेम,त्याग,सहिष्णुता,शांति,सर्वधर्म समभाव और सहअस्तित्व के असंख्य संदेश है इस समय दुनिया भर में जातीय,धर्म और सभ्यताओं  का द्वंद बढ़ता जा रहा है ऐसे में  गांधी के सार्वभौमिक विचारों पर चलकर आपसी संघर्ष और घृणा को  समाप्त किया जा सकता है असमानता के खिलाफ प्यार से संघर्ष करने और निराश हुए बिना संघर्ष करने की महात्मा गांधी की समूची मानव जाति को दिखाई गई राह से दुनिया के कई देशों में सामाजिक न्याय की स्थापना करने में बड़ी मदद मिलीमहात्मा  गांधी के लिए धर्म पथप्रदर्शक था लेकिन वह कभी भेद का कारण नहीं बना। उनका भजन ईश्वर अल्लाह तेरो नाम,सार्वभौमिक धार्मिक समभाव को प्रतिबिम्बित करता है। दक्षिण अफ्रीका के फिनिक्स आश्रम में बहुधर्मी प्रार्थना सभाओं का आयोजन कर बापू ने मानवता के लक्ष्यों को समन्वयकारी तरीके से हासिल करने के संदेश दिए।

उनकी धर्म को लेकर स्पष्ट दृष्टि रही जिसमें मानवता का कल्याण समाहित है। महात्मा गांधी का धर्म अहिंसा,शांति,सहिष्णुता और सदाचार से प्रगति को प्राप्त करना चाहता है, उसमें विद्वेष,अशांति,कटुता और हिंसा का विरोध हैधार्मिक विद्वेष और कट्टरपंथी ताकतों के प्रभाव से वैश्विक शांति संकट में है,और ऐसे समय में धर्म के प्रगतिशील होने के दावे पस्त  दिखाई पड़ते है।

गांधी के सहयोगी विनोबा भावे ने कहा था कि गांधी के विचारों में सदैव ऐसा मनुष्य और समाज रहा जहां वह करुणा मूलक,साम्य पर आश्रित स्वतंत्र लोक शक्ति के रूप में वह आगे बढ़े। यदि हम उसके योग्य नहीं बनते तो आज ही नष्ट हो जाने की नौबत है।

हिन्द स्वराज में महात्मा गांधी ने अपना दृष्टिकोण स्पष्ट करते हुए कहा कि,कोई भी मुल्क तभी एक राष्ट्र माना जाएगा जब उसमे दूसरे धर्मों के समावेश करने का गुण आना चाहिएएक राष्ट्र होकर रहने वाले लोग एक दूसरे के धर्मों में दखल नहीं देते,अगर देते है तो समझना चाहिए कि वे एक राष्ट्र होने लायक नहीं है

दुनिया को धर्म से ज्यादा गांधी की जरूरत है। अंतत: धर्म का अर्थ सदाचार,शांति,सहिष्णुता और संयम है। गांधी के विचारों में भटकाव नहीं है जबकि धर्म को लेकर भटकाव फैलाने को राजनीतिक बना दिये गए है। बेहतर है गांधी को चुने,गांधी को जाने और गांधी को माने,मानव अस्मिता की भी रक्षा होगी और मानव अस्तित्व पर मँडराते संकट भी दूर होंगे।

 

गांधी के बहाने किसान आंदोलन को याद किया जाएँ,mahatma gandhi,kisan,champaran

 हम समवेत

          

https://www.humsamvet.com/opinion-feature/remembering-farmers-movement-through-gandhi-8999                                                    

कभी कभी परिस्थितियां ऐसी बन जाती है और ऐसा लगता है जैसे वर्तमान अतीत से आगे निकलने की होड़ में सब कुछ सरेआम कर देना चाहता है वह जो हमारी पीढ़ियों के न तो जेहन में है और न ही जुबां पर और सब कुछ काल चक्र के धुंधलके में खो चूका हो दरअसल किसान आंदोलन की आहें लोकतांत्रिक भारत में चीखों में बदलने को मजबूर हो तब बरबस ही हमारी निगाहें चंपारण आंदोलन के उस मोहनदास को तलाशने लगती है जो यहीं की किसान पाठशाला से सीखकर महात्मा गांधी बन सके

हिंदुस्तान की तारीख के चंपारण आंदोलन के इन 103 सालों में बहुत कुछ बदला है। अब अंग्रेज नहीं है और इसे यूँ समझिये की हम उपनिवेश भी नहीं है गैर बराबरी को खत्म करने की आशा लिए संविधानिक प्रावधान कसमसाते रहते है अपने अस्तित्व को लेकर इनकी चर्चा चुनावी रैलियों में अक्सर जनता जनार्दन को उद्देलित और उत्साहित करने के लिए होती रहती हैयह इसलिए भी जरूरी हो जाता है क्योंकि भारत में एक व्यक्ति एक मत का सिद्धांत है और अधिकतम वोट पाने की होड़ में जन अस्मिता को अल्प समय के लिए उभारना होता है

भारत में दो समुदाय रहते है एक किसान जो बहुसंख्यक है और दूसरे जो किसान नहीं हैउनकी संख्या बहुत कम है लेकिन सत्ता,शासन,प्रशासन में उन्हीं का दम है,इन्हें पूंजीपति हितों का संवर्धन करने वाला प्रभावी समूह भी कहा जा सकता है



चंपारण में जाने के लिए मोहनदास ने गुजरात से रेल के तीसरे दर्जे में बैठकर  तकरीबन  दौ हजार किलोमीटर का सफर तय किया था चम्पारण में किसान नील की खेती का विरोध करने के लिए जमा थे मोहनदास दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों के हितों के लिए इतना संघर्ष कर चुके थे की भारत के लोग भी इस दुबले पतले व्यक्ति से अपरिचित नहीं रहे थेअंग्रेजों के उपनिवेशिक और अमानुषिक शासन में भी आचार्य कृपलानी का यह मन था की वे मोहनदास का स्वागत आरती उतार कर करें और आचार्य ने ऐसा किया भी

नील की खेती नकदी फसल थी और उसे आकर्षक फायदों से जोड़ा भी गया था, अंग्रेज सरकार को मिल रहे मुनाफे ने नये भूमि कानूनों के निर्माण को मजबूर कर दिया जो कि नील की खेती को अधिकतम करने पर केंद्रित थाअंग्रेज सरकार को लगता था की किसान बहुत खुश होंगे जबकि भारत के किसानों को लगता था की इसमें किसानों के कल्याण पर कोई विचार नहीं किया गया था।

मोहनदास के द्वारा भारत में सत्याग्रह का यह पहला प्रयोग था हजारों किसान चम्पारण में जमा थे और उनका मोहनदास पर पूरा भरोसा थाअंग्रेज भी यह सब देख रहे थे और वे जानते थे की किसान अलगाववादी या पृथकतावादी नहीं होतेअत: नाम मात्र के लिए एक दरोगा वहां तैनात कर दिया था। हजारों किसानों से घिरे हुए मोहनदास ने सभा के पास ही उनकी कुर्सी लगा दी थी

इस आंदोलन में मोहनदास ने अपने प्रथम सत्याग्रह आंदोलन का सफल नेतृत्त्व किया अब उनका पहला उदेश्य लोगों को 'सत्याग्रह' के मूल सिद्धातों से परिचय कराना था। सरकार ने मजबूर होकर एक जाँच आयोग नियुक्त किया एवं मोहनदास को भी इसका सदस्य बनाया गया। परिणाम सामने था। कानून बनाकर सभी गलत प्रथाओं को समाप्त कर दिया गया। जमींदारों  के लाभ के लिए नील की खेती करने वाले किसान अब अपने जमीन के मालिक बन गए।  इस प्रकार मोहनदास ने भारत में सत्याग्रह की पहली विजय का शंख फूँका। चम्पारण ही भारत में सत्याग्रह की जन्म स्थली बना। 

उनका सत्याग्रह का उद्देश्य भी यही था की अपने निष्क्रिय प्रतिरोध से विरोधी का  हृदय परिवर्तन किया जा सके,यह प्रयोग उपनिवेशिक काल में भी सफल रहा ब्रिटिश सरकार ने गांधी और किसान नेताओं का मार्गदर्शन स्वीकार किया,इस क्षेत्र के गरीब किसानों के लिए खेती पर अधिक मुआवजा और नियंत्रण प्रदान करने के समझौते पर हस्ताक्षर किए और अकाल समाप्त होने तक राजस्व वृद्धि और संग्रह रद्द कर दिया। 

भारत में हमारी ग्रामीण अर्थव्यवस्था है,किसानों की मेहनत से ही यह देश आबाद है और किसान यदि संतुष्ट और खुशहाल है तो देश के खुशहाल होने की संभावना बढ़ जाती है।  किसानों के लिए कोई कानून बने तो किसानों से बात तो की ही जानी चाहिए। किसानों को विश्वास में लिए बिना कोई कानून बहुमत के बल पर कैसे लागू किया जा सकता है।


कोरोना काल के असहनीय और अकस्मात प्रहार से मजदूर किसान हताश और निराश है इस समय वह अपने हितों को लेकर ज्यादा प्रतिबद्ध नजर आ रहा है,उसे अपना अस्तित्व बनाएं और बचाएं रखने के लिए कोशिश तो करना ही होगीदिल्ली में किसानों का आंदोलन भावावेश में उठाया गया या राजनीतिक षड्यंत्र से ग्रस्त नहीं माना जाना चाहिए  इसमें पंजाब और हरियाणा के किसानों का बहुतायत में होना संयोग नहीं है बल्कि उनकी जागरूकता का प्रमाण है किसान सबसे ज्यादा चिंतित इस बात से है की वे बाज़ार में पूंजीपतियों के एकाधिकार का शिकार न हो जाएँ किसानों का चिंतित होना लाजिमी है देश ने निजीकरण और विकास के नाम पर बीएसएनएल की बलि और उसकी लाश पर जिओ के महल को बनते और बढ़ते देखा है कोरोना काल में जब लोग भूखे मरने को मजबूर हो गये हो, रोजगार का बड़ा संकट हो तब कुछेक नामी पूंजीपतियों की सम्पत्ति में बेतहाशा वृद्धि भी देखी है  यह संयोग नहीं  अंततः शीर्ष सत्ता के प्रयोग से ही तो संभव हुआ है 

चंपारण के किसान औपनिवेशिक कानून के कारण अपनी जमीन पर नील उगाने के लिए मजबूर थे। यह नील उनसे अंग्रेज ले लिया करते थे। इस समय भारत के किसान यह सोचकर आशंकित है की उनकी जमीन पर क्या उत्पादन करें इसके लिए आने वाले समय में कहीं निजी कम्पनियां उन्हें मजबूर न करने लगे और ऐसे में इसका फायदा भी उन कम्पनियों को ज्यादा न मिलने लगे 

चंपारण आंदोलन के 100 साल पूरे होने पर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी चम्पारण गये थे और उन्होंने  सफाई के लिए सत्याग्रह का आह्वान किया था प्रधानमंत्री के आह्वान पर देश में जनता ने स्वच्छता अभियान खूब चलाये हैं  लेकिन अब जनता के मांगने की बारी है किसान और आम जनता पूंजीपतियों के प्रभाव की सत्ता से सफाई चाहती है  किसान पूंजीपतियों से ही तो आशंकित है और यह आशंका समाजवादी भारत में पहले कभी नहीं देखी गई 

मोहनदास कहा करते थे की,हम स्वयं अपने भाग्य के निर्माता है,हम अपने वर्तमान को स्वयं ही सुधार या बिगाड़ सकते है.उस पर हमारा भविष्य निर्भर है  उन्होंने किसान आंदोलन के सफर को देश के भविष्य से जोड़कर आज़ादी की मंजिल तक पहुँचाने में सफलता पाई थी,इसीलिए वे जन नायक कहलाते है  आखिर जन नायक बनने के लिए स्वहित और राजनीतिक हितों को बलिदान करना होता है  मोहनदास के बहाने ही उनकी इस सीख को याद रखने की जरूरत जो उन्होंने बंगाल में 15 अगस्त 1947 को उनसे मिलने आये नेताओं से कही थी मोहनदास करमचंद गांधी ने उनसे कहा था,विनम्र बनो,सत्ता से सावधान रहो  सत्ता भ्रष्ट करती है याद रखिए,आप  भारत  के गरीब गांवों की सेवा करने के लिए पदासीन हैं।” 

मोसाद का मिशन ईरान,mosad,iran

 

राष्ट्रीय सहारा


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जर्मनी के सेनानायक तथा मशहूर सैन्य रणनीतिकार कार्ल वॉन क्लॉजविट्ज़ ने अपनी किताब ऑन वॉर' में लिखा है की,शत्रु को अपनी इच्छा पूर्ति हेतु बाध्य कर देना युद्ध का प्रमुख उद्देश्य है,इस उद्देश्य को प्राप्त करने के लिए शक्ति एवं हिंसा एक साधन है तथा शत्रु को शस्त्र विहीन कर देना ही इस शक्ति एवं हिंसा का एक मात्र लक्ष्य होता है।” मध्यपूर्व की शक्ति को नियंत्रित और केंद्रित करने की ईरान की आर्थिक तथा सामरिक कोशिशों पर सख्ती से लगाम लगाने की अमेरिकी हसरतों को कामयाब बनाने में इस्राइल की खुफिया एजेंसी मोसाद अहम किरदार अदा कर रही है। दो साल पहले इसराइल के प्रधानमंत्री नेतन्याहू ने ईरानी नागरिक मोहसिन फ़ख़रीज़ादेह को ईरान के परमाणु कार्यक्रम का प्रमुख वैज्ञानिक क़रार देते  हुए कहा था कि "इस नाम को याद रखें।” फ़ख़रीज़ादेह की हाल ही में ईरान की राजधानी तेहरान के पास अज्ञात बंदूकधारियों ने हत्या कर दी। ईरान में जहां फ़ख़रीज़ादेह की हत्या की गई है, वहां से परमाणु और मिलिट्री साइट्स पास ही हैं फ़ख़रीज़ादेह बेहद कड़ी सुरक्षा घेरे में रहते थे,देश की मीडिया समेत कहीं भी उनका जिक्र नहीं था और उनकी तस्वीर भी सिर्फ एक बार तभी छपी थी जब उन्होंने एक बार ईरान के सुप्रीम लीडर से मुलाक़ात की थी। जाहिर है फ़ख़रीज़ादेह कि हत्या बेहद गोपनीय मिशन के तहत सुनियोजित रणनीति से की गई और ऐसे सनसनीखेज काम करने के लिए मोसाद कुख्यात रही है।


इसके पहले इस साल की शुरुआत में बगदाद में एक अमेरिकी ड्रोन हमलें में ईरान के टॉप मिलिटरी कमांडर जनरल कासिम सुलेमानी मारे गए थे। सुलेमानी

ईरान के रिवोल्यूशनरी गार्ड की कुद्स फोर्स के प्रमुख थे जो दुनिया भर में ईरान विरोधी ताकतों को निशाना बनाती रही हैसुलेमानी को पश्चिम एशिया में ईरानी गतिविधियों को चलाने का प्रमुख रणनीतिकार माना जाता रहा था,वे 1998 से ईरान की क़ुद्स फ़ोर्स का नेतृत्व कर रहे  थेईरान की रिवॉल्यूशनरी गार्ड्स की स्पेशल आर्मी क़ुद्स फ़ोर्स विदेशों में संवेदनशील मिशन को अंजाम देती  थी और इसे दुनिया में  शिया प्रभाव कायम करने का बड़ा  माध्यम माना जाता था। इसके लड़ाके सीरिया और ईरान में कट्टरपंथी सुन्नी एकाधिकार को चुनौती दे रहे है,यमन के हुती विद्रोही शिया प्रभाव को उस इलाके में काबिज रखे हुए है,वहीं लेबनान का हिजबुल्ला आतंकी संगठन इन्हीं के द्वारा नियंत्रित माना जाता है जो  इस्राइल को सीमा पर परेशान करता रहा है। 


 दरअसल पश्चिम एशिया से अरब राष्ट्रवाद और इस्लामिक दुनिया के नेतृत्व का द्वार खुलता है,इसके साथ ही तेल के भरपूर प्राकृतिक संसाधनों से युक्त इस क्षेत्र पर समूची दुनिया की निगाहें गढ़ी होती है। महाशक्तियों के नियंत्रण और संतुलन की रणनीति में ईरान की भूमिका आक्रामक होकर चुनौतीपूर्ण रही है,इसीलिए शिया बाहुल्य यह देश अमेरिका और सऊदी अरब के निशाने पर रहा है। वहीं ईरान को अस्थिर करने में महत्वपूर्ण भूमिका इस्राइल निभा रहा है। अमेरिका और सऊदी अरब ईरान पर आर्थिक और सामरिक दबाव की कूटनीति पर काम कर रहे है वहीं इस्राइल की खुफिया एजेंसी मोसाद ईरान के प्रमुख सामरिक ठिकानों और अति महत्वपूर्ण लोगों को निशाना बना कर ईरान पर मनौवैज्ञानिक दबाव बनाने की रणनीति पर काम कर रही है।



2015 में ओबामा प्रशासन द्वारा ईरान के परमाणु कार्यक्रम को लेकर हुए समझौते की इस्राइल और सऊदी अरब ने कड़ी आलोचना की थी। इसके बाद 2018 में इस्राइल के प्रधानमंत्री बेंजमिन नेतन्याहू ने यह दावा कर सनसनी फैला दी की उनके पास तेहरान  के एक गुप्त स्टोरेज से इस्राइली ख़ुफ़िया विभाग को मिली डेटा की "कॉपियां" हैंइस डेटा में 55 हज़ार पन्नों के सबूत के साथ 183 सीडी और 55 हज़ार फाइलें हैंनेतन्याहू ने इस डेटा को ईरान के गुप्त परमाणु हथियार कार्यक्रम "प्रोजेक्ट अमाद"से संबंधित  बताते हुए कहा की ईरान परमाणु समझौते को ठेंगा दिखाकर गुपचुप तरीके से परमाणु हथियारों का जखीरा बनाने की और अग्रसर है ट्रंप प्रशासन ने इसके बाद ईरान से समझौता तोड़ दिया और उस पर कड़े प्रतिबंध लगा दिये। इस साल में ये समझौता पूरी तरह टूट गयाक़ासिम सुलेमानी  के अमेरिकी हवाई हमले में  मारे जाने के बाद ईरान ने परमाणु समझौते से अपने को पूरी तरह अलग कर लिया था ईरान ने इसके जवाब में अपने परमाणु कार्यक्रम को आगे बढ़ाने की धमकी थी और यह स्थिति इस्राइल और सऊदी अरब की मंशा के अनुरूप ही थी। इस साल जुलाई में ईरान के भूमिगत परमाणु स्थल नतांज पर रहस्यमय आग  लग गई थी जिससे एक नया सेंट्रीफ्यूज असेंबली सेंटर तबाह हो गया था। इसके साथ ही ईरान के भूमिगत केमिकल वेपन रिसर्च सेंटर और एक सैन्‍य उत्‍पादन केंद्र में विस्फोट की घटनाएँ भी हुई। अंतर्राष्ट्रीय हलक़ों में  इसे मोसाद का काम बताया गया वहीं मोसाद ने ईरान पर यह आरोप लगाकर दबाव बनाने की कोशिश की,कि इस्राइली दूतावासों पर ईरानी हमलें  की साजिश को विफल कर दिया गया है।



दूसरी और सऊदी अरब और ईरान की प्रतिद्वंदिता से मध्य पूर्व सुलग रहा है। यमन गृहयुद्ध से जूझ रहा है और वहां पर सऊदी अरब के नेतृत्व में एक अंतरराष्ट्रीय गठबंधन की सेना है जो हूथी विद्रोहियों से मुकाब़ला कर रही हैसऊदी नेतृत्व को ये लगता है कि हूथी विद्रोहियों को ईरान से हथियारों की मदद मिल रही है, 2016 में अमरीकी सेना ने बताया था कि ईरान से यमन भेजे गए हथियारों का बेड़ा दो महीने में तीसरी बार पकड़ा गया थासीरिया में जारी गृहयुद्ध में ईरान राष्ट्रपति बशर अल-असद का समर्थन कर रहा है। पश्चिम एशिया के एक और देश लेबनान में अस्थिरता है और यहां पर ईरान समर्थित शिया मिलिशिया समूह हिजबुल्लाह का प्रभाव सऊदी अरब के लिए जानलेवा हैपिछले दिनों यमन में ईरानी समर्थन वाले हूथी विद्रोहियों ने जेद्दाह में सऊदी ऑइल कंपनी आरामको की इकाई पर हमला किया तो इसने ईरान ने सऊदी अरब का मज़ाक उड़ाते हुए हूथी विद्रोहियों के बैलिस्टिक मिसाइल हमले" की जमकर तारीफ की थी।

सऊदी अरब के प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान बेहद आक्रामक होकर ईरान के प्रमुख नेता अयोतुल्लाह अली ख़मेनई को "मध्य पूर्व का नया हिटलर" कह चुके है। वहीं  इस्राइल के सैन्य अधिकारी जनरल गडी आइजेनकोट कह चूके है कि मध्य-पूर्व में सऊदी अरब और उनके देश के साझा हित हैं और वे ईरान के ख़िलाफ़ सऊदी से ख़ुफ़िया सूचना साझा करने के साथ साथ मिलकर लड़ने को तैयार है इस्राइल की कुख्यात खुफिया एजेंसी मोसाद ने न केवल अमेरिका के ईरान से हुए समझौते को तोड़ने में भूमिका निभाई है बल्कि सऊदी अरब के साथ इस्राइल के मजबूत संबंध स्थापित करके अरब-इस्राइल संघर्ष को शिया सुन्नी संघर्ष में बदलने में भी बड़ी भूमिका निभाई है।
इस्रायल और ईरान के बीच कड़ी दुश्मनी है और ईरान को कमजोर करना इस्रायल
की नीति रहा है।



बहरहाल अमेरिका,सऊदी अरब और इस्राइल की आक्रामक रणनीति से ईरान में अस्थिरता की आशंका बढ़ गई है। इससे भारत को नई सामरिक और आर्थिक चुनौती से जूझना पड़ सकता है। ईरान,यूरेशिया और हिन्द महासागर के मध्य एक प्राकृतिक प्रवेश द्वार है,जिससें भारत रूस और यूरोप के बाजारों तक आसानी से पहुंच सकता है भारत,ईरान और रूस के मध्य 16 मई 2002 को इस सम्बन्ध में एक समझौता हुआ था जिसके द्वारा ईरान होकर मध्य एशियाई राज्यों तक निर्यात करने के लिए एक उत्तर दक्षिण कॉरिडोर का निर्माण किया जा सके पाकिस्तान पर दबाव बढ़ाने के लिए भी ईरान भारत का मददगार है


 पाकिस्तान की भारत के साथ सबसे लंबी सीमा रेखा है वहीं इसके बाद अफगानिस्तान और ईरान है। ये तीनों राष्ट्र पाकिस्तान की सामरिक घेराबंदी कर भारत के पारंपरिक शत्रु पर दबाव डाल सकते है। जाहिर है इस्राइल भारत का महत्वपूर्ण  और विश्वसनीय साथी है वहीं सामरिक और आर्थिक रूप से ईरान का स्थिर और सुरक्षित रहना भी भारत के लिए जरूरी है। आने वाले समय में मध्य पूर्व को लेकर भारत को बेहद सतर्क रहने और नियंत्रण और संतुलन की नीति अपनाने की जरूरत होगी।  

 

 

लव जिहाद के सामाजिक पहलू को कैसे नजर अंदाज करें,LOVE ZIHAD

सुबह सवेरे

          


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जब तक आप सामाजिक स्वतंत्रता हासिल नहीं कर लेते तब तक आपको कानून चाहे जो भी स्वतंत्रता देता है,वह आपके किसी काम की नहीं है  भारत के संविधान निर्माता के ये विचार भारतीय समाज की गहराई तक जड़ें जमा चूकी असमानता की सामाजिक चुनौती को वैधानिक न्याय की अवधारणा के सामने लाकर खड़ा कर देता है। दरअसल  आज़ादी के आठवें दशक में मजबूती से आगे बढ़ता भारत आबाद तो है लेकिन सामाजिक परिवर्तन को लेकर उसकी संकुचित दृष्टि बदस्तूर जारी है। आर्थिक और सामाजिक असमानता से हम उबर नहीं पाये है। हमारे कड़े संवैधानिक प्रावधानों के बाद भी भारत का पारम्परिक और सामाजिक ढांचा मजबूत है और  बदलने को बिल्कुल तैयार नहीं है। 

आधुनिक दुनिया का नेतृत्व का सपना देखने वाले भारत की सामाजिक सच्चाई स्त्री स्वतंत्र्य और विवाह की गुंजाइशों को सीमित करके उसे स्वीकारने को मजबूर करने की रही है। खास कर हिंदू धर्म को मानने  वाले लोगों के समाचार पत्रों में छपने वाले वैवाहिक विज्ञापनों में वह असमान सोच साफ नजर आती है जिसका विरोध आर्य समाज से लेकर वर्तमान तक बदस्तूर जारी है। भारत का सामाजिक न्याय अधिकारिता मंत्रालय अंतर्जातीय विवाह करने वालों को पुरस्कार तो देता है लेकिन उसकी सफलता अंगुलियों पर गिनी जा सकती है। जबकि हिंदू धर्म की असमानता,कुरीतियों और रूढ़िवाद को समाप्त करने में अंतर्जातीय विवाह की बड़ी महत्वपूर्ण भूमिका हो सकती है,लेकिन ऐसे सामाजिक प्रयास  करने वाले लोग बहुत कम होते है,राजनीतिक प्रयास तो होते ही नहीं क्योंकि इससे राजनीतिक अपेक्षाएं धूमिल हो सकती है। वहीं कानून को ठेंगा दिखाकर खाप पंचायतें जातीय असमानता को बनाएँ रखने के लिए खून भी बहाने से गुरेज नहीं करती। इन सबके बीच हिंदू धर्म के कथित देवकीनन्दन खत्री जैसे धर्मगुरु सामाजिक एकता कायम करने से ज्यादा उसे अनेकता में विभाजित करने को ज्यादा तैयार दिखते है और फिर रही सही कसर सामाजिक-जातीय  प्रतिनिधित्व करने वाली कथित सेनाएं और आर्मी पूरा कर देती है।  

भारतीय समाज के बंद दरवाजे को लेकर दयानंद सरस्वती जीवन भर जूझते रहे,आर्य समाज की स्थापना को लेकर उनकी स्पष्ट सोच थी की जातीय दूरियाँ पाटने के लिए अंतर्जातीय विवाह सामाजिक क्रांति का कारण बन सकते है। स्वामी विवेकानंद तो आडंबर को भारत के विकास को बाधित करने वाला सबसे बड़ा कारण समझते थे।

विवेकानन्द हिन्दू धर्म में उभर आई बुराइयों को लेकर बेहद मुखर थे और इस और वे तेजी से सुधार करना चाहते थे। उनके अनुसार देश के कमजोर होने का कारण यहीं कमियां रही जिससें विदेशी शक्तियों को लाभ पहुंचा। उन्होनें हिंदू धर्म की ऐतिहासिक कारणों से उत्त्पन्न बुराइयों पर कड़ा प्रहार कर देश के विकास के लिए उसे अतिशीघ्र दूर करने की जरूरत बताई। उन्होनें कहा की धर्म का सही स्वरूप सार्वभौम,आध्यात्मिक ,सर्जनात्मक एवम् कल्याणकारी है,किन्तु हिन्दू धर्म में उसके रुढ़िवादी तत्वों के संकीर्ण स्वार्थो के कारण इसे कलंकित कर दिया है। स्वामी विवेकानन्द के सपनों के भारत में मानवतावादी अपेक्षाएं रहीं और उसकी स्थापना के लिए वे सदैव प्रयत्नशील रहें।

गांधी हिंदू जन मानस की उस चेतना को जगाने के लिए आजीवन प्रतिबद्ध रहे जिससे मानवीयता के ऊंचे आदर्शों को व्यवहार में लाया जा सके,वहीं डॉ. आंबेडकर ने तो यह कहने से भी गुरेज नहीं किया की हिंदू धर्म में जन्म लेने वाला व्यक्ति मजबूती से खींची गई सामाजिक रेखाओं का पार करने की लाख  कोशिशों के बाद भी नाकाम रहता है।

\हिंदू धर्म के करोड़ों लोगों के बीच संबंधों को जातीय आधार पर सीमित करने से अंतर धार्मिक विवाह के बढ्ने की संभावनाओं को खारिज नहीं किया जा सकता। आखिर हिंदुओं की सामाजिक असमानता और आर्थिक विषमता को पाटने के लिए जातीय बंधन तोड़कर विवाह को प्रोत्साहित करने की भी तो जरूरत है। इसका लाभ  करोड़ों परिवारों को मिल सकता है और बेटियों के विवाह की संभावनाएं भी बढ़ सकती है। हिंदू धर्म के कथित धार्मिक गुरु इस और आगे कदम बढ़ाने से परहेज करते रहे है,ऐसे में यह साफ है की सामाजिक बंधनों और रूढ़िवादी परम्पराओं के साथ चलकर हिंदुओं की समस्याओं का समाधान करना आसान नहीं है। अंतर धार्मिक विवाह को रोकने के लिए हिंदू किसी कानूनी पहल से ज्यादा सामाजिक क्रांति लाने और अंतर्जातीय विवाह पर सकारात्मक नजरिए से आगे  बढ़े तो इसके ज्यादा फलदायी परिणाम हो सकते है।  

brahmadeep alune

पुरुष के लिए स्त्री है वैसे ही ट्रांस वुमन के लिए भगवान ने ट्रांस मेन बनाया है

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