सांध्य प्रकाश
यदि नेहरु नहीं होते
डॉ.ब्रह्मदीप अलूने
27 मई 1964,दोपहर के ठीक दो बजे।लोकसभा में केबिनेट
मंत्री सी सुब्रमण्यम ने रुंधे गले से अचानक यह घोषणा कि की रोशनी चली गई है,हमारे
प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरु अब नहीं रहे।संसद में सन्नाटा छा गया।कई सांसद और मंत्री रोने
लगे।जैसे जैसे यह समाचार फैला,लोग रोते
हुए प्रधानमन्त्री निवास की और भागने लगे।लोगों में निराशा छा गई,बाज़ार
बंद हो गए।पूरे भारत में
मजदूर,किसान,महिलाएं,बच्चें ,आम नागरिक और सभी वर्गो में यह मायूसी और निराशा फ़ैल
गई।ऐसे लाखों लोग अपने प्रिय नेता के
अंतिम दर्शन करना चाहते थे।आधुनिक भारत के निर्माता
जवाहरलाल नेहरु गुलामी से बदहाल भारत को अपने 17 साल के कार्यकाल में आधुनिक और सशक्त
भारत की और मार्ग प्रशस्त करते हुए जब बिदा हुए तो उनकी अंतिम यात्रा में शामिल ढाई
लाख लोगों की भीड़ बिलख बिलख कर रो रही थी।
जून 1920 में प्रतापगढ़ के देहात में
नेहरु ने किसानों पर अत्याचार और अमानुषिक व्यवहार की करुण गाथा सुनी थी।उस समय से ही किसान के हित
और उनके सम्मान की रक्षा के लिए नेहरु कृतसंकल्पित रहे।उन्हें सामने उत्पीड़ित
किसानों का चित्र हमेशा होता था,इसीलिए स्वतंत्र भारत के इस स्वप्नदृष्टा ने
किसानों के जीवन में खुशियां भर दी।किसानों के प्रति उनका
सम्मान मरने से भी कम नहीं हुआ।उनकी अंतिम इच्छा के
अनुसार ही उनकी राख की मिट्टी को को खेतों
के ऊपर डाला गया।
जब जवाहरलाल नेहरू ने 3 सितंबर 1946 को अंतरिम सरकार में शामिल होने का फैसला किया तो उन्होंने आनंद
भवन को छोड़ कर अपनी सारी संपत्ति देश को दान कर दी।नेहरू को पैसे से कोई खास लगाव नहीं
था।उनके सचिव रहे एम ओ मथाई अपनी किताब रेमिनिसेंसेज़ ऑफ़ नेहरू एज
में लिखते हैं कि 1946 के शुरू में उनकी जेब में हमेशा 200 रुपए होते थे, लेकिन जल्द ही यह पैसे ख़त्म हो जाते
थे क्योंकि नेहरू यह रुपए पाकिस्तान से आए परेशान शरणार्थियों में बांट देते थे।
ख़त्म हो जाने पर वह और पैसे मांगते थे। इस सबसे परेशान हो कर मथाई ने उनकी
जेब में रुपए रखवाने ही बंद कर दिए।लेकिन नेहरू की भलमनसाहत इस पर भी नहीं रुकी,वह लोगों को देने के
लिए अपने सुरक्षा अधिकारी से पैसे उधार लेने लगे।
जहाँ तक सार्वजनिक
जीवन में ईमानदारी का सवाल है जवाहरलाल नेहरू का कोई सानी नहीं था।नेहरू
की बहन विजय लक्ष्मी पंडित के शौक बहुत ख़र्चीले थे।एक बार
वह शिमला के सर्किट हाउस में ठहरीं।वहाँ
रहने का बिल 2500
रुपए
आया।नेहरु को मालूम हुआ
तो उन्होंने अपनी बहन से कुछ नहीं कहा बल्कि वह पैसा किसी सरकारी मद से नहीं अपनी
तनख्वाह में से देने को कहा।उन्होंने
पंजाब सरकार को एक पत्र लिखते हुए कहा कि वह
एक मुश्त इतने पैसे नहीं दे सकते इसलिए वह पंजाब सरकार को पांच किश्तों में यह
राशि चुकाएंगे।नेहरू
ने अपने निजी बैंक खाते से लगातार पांच महीनों तक पंजाब सरकार के पक्ष में पांच सौ
रुपए के चेक काटे। नेहरू
के सुरक्षा अधिकारी रहे केएम रुस्तमजी अपनी किताब 'आई वाज़ नेहरूज़
शैडो' में
लिखते हैं,
"जब मैं उनके स्टाफ़ में आया तो वो 63 साल के
थे लेकिन 33
के लगते
थे।लिफ़्ट का इस्तेमाल
बिल्कुल नहीं करते थे, और तो और एक बार में दो सीढ़ियाँ चढ़ा करते थे।एक बार
डिब्रूगढ़ की यात्रा के दौरान मैंने देखा कि उनका सहायक हरि उनके फटे मौज़ों की
सिलाई कर रहा है। उन्हें
चीज़ों को बरबाद करना पसंद नहीं था।
वे विश्व बन्धुत्व के स्वप्न दृष्टा
थे,इसीलिए वे दुनिया में जहां कही भी जाते लोग उन्हें देखकर खड़े होकर ताली बजाने
लगते।वे बीसवी शताब्दी के लोकप्रिय नेताओं
में से एक थे और उनकी महानता तक लेनिन, जोसेफ स्टालीन या माओत्सेतुंग नहीं पहुँच पाये।महात्मा गांधी
के बाद वे इस देश के ऐसे सर्वमान्य नेता रहे जिन्होंने देश को दिशा दी।पंचवर्षीय योजनाओं के जरिए भारत का
औद्द्यौगिकीकरण किया गया और भारत को उत्पादक और सम्पन्न राष्ट्र बना दिया।नेहरु ने भांखडा और नागार्जुन जैसे बड़े
बड़े बांध बनवाएं जो सिंचाई और बिजली का विपुल साधन बने।आज कृषक को खाद,बीज,खेती के उपकरण,बिजली,नवीन
कृषि प्रक्रिया,तथा प्रचुर धन राशी जो उपलब्ध हुई है,वह देश के बिना
औद्द्यौगिकीकरण किए संभव नहीं हो सकती थी।अन्न में आज भारत आत्म निर्भर बना है और दुनिया की प्रमुख
लोकतांत्रिक शक्ति के रूप में जो पहचान है उसका श्रेय नेहरु को जाता है।
एक बार सऊदी अरब की यात्रा के दौरान वो उस महल के हर कमरे में जा
कर बत्तियाँ बुझाते रहे, जिसे ख़ासतौर से उनके लिए बनवाया गया
था।"उसी यात्रा के दौरान नेहरू को
रसूल-अस-सलाम कह कर पुकारा गया था जिसका अरबी में अर्थ होता है शाँति का संदेश
वाहक।लेकिन उर्दू में ये शब्द पैग़म्बर
मोहम्मद के लिए इस्तेमाल होता है। नहरू के लिए ये शब्द इस्तेमाल करने के लिए पाकिस्तान में शाह सऊद
की काफ़ी आलोचना भी हुई थी।गुटनिरपेक्षता,तटस्थता,शांति और
मानवीय विकास के लिए उनके प्रयासों को दुनिया भर में सराहा जाता है,उन्हें 11 बार नोबेल शांति अवॉर्ड के लिए नामित भी किया
गया था।
पंडित नेहरु ने
स्वतंत्र भारत के अपने पहले भाषण में कहा था कि "भविष्य हमें बुला रहा है।हमें
किधर जाना चाहिए और हमें क्या करना चाहिए,जिससे हम आम आदमी, किसानों
और कामगारों के लिए आज़ादी और अवसर ला सकें।हम
ग़रीबी,हम एक समृद्ध,लोकतान्त्रिक और प्रगतिशील देश बना सकें।हम ऐसी
सामाजिक,आर्थिक और राजनीतिक संस्थाओं को बना सकें जो हर आदमी-औरत के लिए जीवन की
परिपूर्णता और न्याय सुनिश्चित कर सके।"
भारत की खुशहाली और मजबूती की उनकी प्रतिबद्धता उनकी नीतियों में
परिलक्षित होती है।देश के विकास और सशक्तिकरण के लिए नेहरु की
कल्पना आज भी प्रतिबिम्बित होती है।लोकतांत्रिक
व्यवस्था,समाजवादी मॉडल, विकेंद्रीकरण,तटस्थ वैदेशिक नीति,धर्म-निरपेक्षता, सामाजिक सुधार और आर्थिक विकास उन्हीं की धरोहर
है।जवाहरलाल नेहरू गाँधी के उत्तराधिकारी थे तो भारत का भविष्य बनकर
उभरे भी।उन्होंने जर्जर अवस्था से निकालकर सशक्त और आधुनिक भारत बनाने का सपना
संजोया।उन्होंने पूँजीवाद को कठिन समय में अंगुली दिखाई और सोवियत माडल को अपनाने
का साहस दिखाया।नियोजित विकास के लिए पंचवर्षीय योजनाएं, हरित क्रांति, औद्योगीकीकरण और वैज्ञानिक प्रगति की नेहरू की जिद ने भारत को
विश्वभर में पहचान दी।स्वयं नेहरू के शब्दों में - ‘‘जब कभी मैं उदास और थकान अनुभव करता हूँ, मैं व्यक्तियों के बीच चला जाता हूँ और वहां से
ताजगी लेकर लौटता हूँ।‘‘ जन शक्ति को प्रेरणा मानने वाले नेहरू की विकास
की कल्पना राष्ट्र के लिए असीम ऊर्जा का संचय बनी।जहां नेहरु और उनकी शांति की नीतियां
दुनिया में भारत की पहचान बनी वहीं हमारे साथ स्वतंत्र हुआ पाकिस्तान राजनीतिक
सौदेबाजी,अव्यवस्थित लोकतंत्र,अति महत्वकांक्षी वैश्विक सैन्य गठबन्धनों, कट्टरता
और संकीर्णता में फंसकर नाकाम हो गया।