राष्ट्रीय
सहारा
चीनी जासूसी का वैश्विक संकट
वैज्ञानिक शोध पर आधारित तकनीक से जुड़ी खुफियां जानकारियों को चोरी से हासिल करने की चीन की कोशिशें वैश्विक तनाव को लगातार बढ़ा रही है। हाल ही में अमेरिका के आसमान में चीनी जासूसी गुब्बारे की दस्तक से उठा राजनयिक विवाद महज संयोग नहीं है। पिछले वर्ष चीन ने भारत के लिए अप्रत्याशित चुनौतियां पेश की थी जब अगस्त में हंबनटोटा में एक चीनी जासूसी जहाज़ युआन वांग के आने के कारण कारण भारत और श्रीलंका के बीच एक बड़ा राजनयिक विवाद पैदा हुआ था। युआन वांग उच्च तकनीक पर आधारित ऐसा आधुनिकतम जहाज़ है जिसे चीन ने मिसाइल परीक्षणों और सैटेलाइट की गतिविधियों की निगरानी के लिए डिज़ाइन किया है। उस समय चीन ने इस जहाज़ को अनुसंधान से संबंधित बताया था तो अब अमेरिकी आसमान में चक्कर लगाने वाले गुब्बारे को मौसम का अनुमान लगाने वाला ऐसा बलून बताया जो रास्ता भटक गया था।
लेकिन चीन की नियत पर सवाल होने लाजिमी है। अमेरिका और कनाडा के आसमान में घुमने वाला गुब्बारा कोई सामान्य गुब्बारा नहीं था। यह मोंटाना के आसमान में देखा गया था। मोंटाना कम आबादी वाला एक ऐसा इलाक़ा है,जो अमेरिका के तीन न्यूक्लियर मिसाइल क्षेत्रों में से एक है। ये मिसाइल फील्ड मैल्मस्ट्रोम एयरफोर्स बेस पर है। अमेरिका को विश्वास है कि चीन का ये जासूसी गुब्बारा इन संवेदनशील जगहों की जानकारी जुटाने के मकसद से उड़ रहा था। अमेरिका के उत्तरी कमांड के एक लड़ाकू विमान ने चीन के भेजे गए ऊंचाई से सर्विलांस करने वाले स्पाई बलून को सफलतापूर्वक दक्षिण कैरोलिना के पास समंदर में गिरा गिरा दिया। इस घटना से चीन और अमेरिका के बीच विवाद इतना बढ गया कि अमेरिका के विदेश मंत्री ने अपने चीन की प्रस्तावित यात्रा को रद्द कर दिया है।
दरअसल चीन अन्तर्राष्ट्रीय समझौतों और मापदन्डों को नजरअंदाज करके तथा दूसरे देशों की तकनीकों को अवैधानिक तरीकों से हासिल करके महाशक्तियों से आगे निकल जाना चाहता है। चीन की इन कोशिशों को लेकर अन्तर्राष्ट्रीय समुदाय अब सतर्क हो गया है। हाल ही में अमेरिका के सामरिक और शोध केन्द्रों पर काम करने वाले कुछ चीनी नगरिकों की गिरफ्तारी से कई रहस्य उजागर हुए है। चीन के एक नागरिक जी चाओचिन लगभग एक दशक पहले स्टूडेंट वीज़ा पर अमेरिका आए थे और उसके बाद वे अमेरिकी सेना के रिज़र्व ग्रुप में शामिल हो गए। इस दौरान वे चीन को ख़ुफ़िया जानकारियां भेजते रहे जो मुख्यतः तकनीक पर आधारित थी। जी चाओचिन की कोशिश थी कि वे सीआईए,एफ़बीआई और नासा जैसे उच्च संस्थान में बतौर सायबर सुरक्षा विशेषज्ञ के रूप में जुड़ना चाहते थे जिससे उनकी इन एजेंसियों के डेटाबेस तक पहुंच हो तथा इनमें वे डेटाबेस भी शामिल हैं जिनमें वैज्ञानिक शोध आदि से जुड़ी जानकारियां हों। इसके पहले भी अमेरिकी एविएशन और एयरोस्पेस कंपनियों के ट्रेड सीक्रेट चुराने के आरोप में एक चीनी नागरिक को पकड़ा गया था। ज़ेंग शियाओचिंग नाम का यह चीनी नागरिक जनरल इलेक्ट्रिक से जुड़ा हुआ था। जनरल इलेक्ट्रिक स्वास्थ्य,ऊर्जा और अंतरिक्ष के क्षेत्रों में काम करने वाली एक बहुराष्ट्रीय कंपनी है जो फ़्रिज से लेकर हवाई जहाज़ के इंजन तक का निर्माण करती है। ज़ेंग ने जो जानकारी कंपनी से चुराई,वो गैस और भाप से चलने वाली टर्बाइन बनाने की डिज़ाइन से जुड़ी हुई थी। इसमें टर्बाइन की ब्लेड और उनकी सील से जुड़ी सूचनाएं भी शामिल थी। यह माना गया कि अमरीकी कंपनी से चुराए गए इन तकनीकी राज़ों से चीन की सरकार,वहां के विश्वविद्यालयों और चीनी कंपनियों को फ़ायदा होना था।
अमेरिका की संघीय जांच एजेंसी ने चीन के इरादों की पुष्टि करते हुए साफ कहा है कि यह साम्यवादी देश बड़े शहरों से छोटे क़स्बों तक,फ़ॉर्च्यून 100 कंपनियों से लेकर स्टार्ट अप तक,हवाई उद्योग से लेकर आर्टिफ़िशियल इंटेलिजेंस और दवा उद्योग तक' में सेंधमारी करके तकनीकी राज़ चुराने में जुटा है। जिससे वह अपने औद्योगिक विकास को तेज करके मुख्य क्षेत्रों में प्रभुत्व हासिल कर सके। चीन ने दुनिया भर से तकनीक हासिल करने के लिए व्यापारिक समझौतों का सहारा लिया है। चीन ने विदेशी कंपनियों को अपने बाज़ार में कारोबार की इजाज़त देने के बदले में उनके साथ साझेदारियां की है और विदेशी कंपनियों से तकनीक हासिल करने में सफलता भी हासिल की है। यह भी दिलचस्प है कि 2015 में चीन और अमेरिका ने एक समझौता किया था,जिसके तहत दोनों देशों ने वादा किया था कि वो साइबर तकनीक की मदद से बौद्धिक संपदा की चोरी नहीं करेंगे। इनमें कारोबारी बढ़त देने वाली गोपनीय तकनीकी जानकारी और दूसरे व्यापारिक राज़ भी शामिल थे। हालांकि चीन समझौतों और नियमों को दरकिनार करने के लिए बदनाम रहा है।
चीन की तकनीक चुराने की कोशिशों से अमेरिका इतना आतंकित है कि वह दूसरे देशों से समझौते करके सीधे तौर पर सेमीकंडक्टर के अहम उद्योग में चीन को दूर रखने की कोशिशों में जुट गया है। अमेरिका व्यापारिक चुनौतियों के साथ ही चीन की तकनीक हासिल करने की अवैधानिक कोशिशों को अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए भी ख़तरा बताता है। अब अमेरिकी तकनीक या सॉफ़्टवेयर का इस्तेमाल करके चिप बनाने वाली कंपनियों को,चिप का निर्यात चीन को करने के लिए अमरीका से लाइसेंस लेना होगा। फिर चाहे वो कंपनियां अमरीका में चिप बनाती हों या फिर दुनिया के किसी भी दूसरे हिस्से में। अमेरिका में बसे चीनी नागरिकों को लेकर भी प्रशासन सतर्क है,इसलिए उसने अपने नागरिकों और ग्रीन कार्ड धारकों को कुछ ख़ास चीनी चिप कंपनियों के लिए काम करने पर भी रोक लगा दी है। यह भी विश्वास किया जाता है कि जापान,दक्षिण कोरिया,ताइवान और सिंगापुर जैसे देशों से व्यापारिक समझौतों के बूते चीन ने व्यापक तकनीकी राज हासिल किए है। खासकर कामगारों को मोटी रकम देकर उनसे खुफियां जानकारी हासिल करने की चीन की कई कोशिशें बेपर्दा भी हुई है। चीन के अधिकारी विदेशी तकनीक पर अपनी निर्भरता कम करने और फिर उससे आगे निकलने के लिए अंतरिक्ष और हवाई उद्योग पर ज्यादा काम कर रहे है और इसीलिए तकनीक की चोरी से हासिल करने के लिए मोटी रकम भी खर्च कर रहे है।
वहीं भारत दुनिया की अंतरिक्ष विज्ञान में बड़ा शक्ति है और ऐसा
लगता है कि चीन इस तकनीक से जुड़ी खुफियां जानकारियां हासिल करना चाहता है। भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए लॉन्च बेस
इंफ्रास्ट्रक्चर देने वाला सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र श्रीहरिकोटा में स्थित है जो
हंबनटोटा से करीब ग्यारह सौ किलोमीटर की दूरी पर है। हंबनटोटा में चीनी जासूसी जहाज़ युआन वांग 5 को
चीन अपना रिसर्च पोत बताता है जबकि चीन अपने इस श्रेणी के पोतों का इस्तेमाल उपग्रह,रॉकेट और अंतरमहाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल के प्रक्षेपण को ट्रैक करने के लिए करता है। यह देखने में आया है कि हिन्द महासागर में चीन के जासूसी पोत उस समय अक्सर अपनी गतिविधियों को बढ़ा लेते है जब भारत का कोई सामरिक या अंतरिक्ष परीक्षण उस क्षेत्र में प्रस्तावित होता है।
भारत और अमेरिका जैसे देश इसे एक स्पाई शिप मानते है जो दूसरे देशों की जासूसी करने के लिए तैनात किया जाता है। अब अमेरिका ने चीनी गुब्बारे को भी स्पाई बलून बताया है। बहरहाल चीन की तकनीक हासिल करने की आक्रामक कोशिशें दुनिया में सुरक्षा चिंताओं को बढ़ा रही है और यह नए शीत युद्द के संकेत है।
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