30
जनवरी-शहीद दिवस पर विशेष
बापू शांत है लेकिन जिन्ना अशांत क्यों है...
पाकिस्तान के संस्थापक जिन्ना तपेदिक जैसी घातक बीमारी से मरे तो
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जीवनपर्यन्त स्वस्थ रहे।
30 जनवरी 1948 को शरीर पर कई गोलियों से
अविचलित गांधी हे राम कहकर दुनिया से बिदा हुए।
जिन्ना की मौत के समय पाकिस्तान स्थित फ़्रांसिसी
दूतावास में कॉकटेल पार्टी हो रही थी।
उस पार्टी में लियाक़त अली ख़ान शामिल थे जो बाद में पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री बने। वहीं बापू की
चिता जब तक जलती रही तब तक भारत के पहले प्रधानमंत्री
जवाहरलाल नेहरु वहीं रहे। अंत्येष्टि स्थल से जाने वाले संभवतः वे अंतिम
शख्स थे।
बेनजीर
भुट्टों ने पाकिस्तान में मुश्किल स्थितियों से परेशान होकर एक बार कहा था कि
मैंने यह जिंदगी खुद नहीं चुनी,बल्कि ज़िन्दगी से मुझे चुना। पाकिस्तान के राजनेताओं की मुश्किलों का आलम जिन्ना के अंतिम
दिनों की फजीहत से समझा जा सकता है। जिन्ना की बहन फ़ातिमा ने अपनी किताब
माय ब्रदर में लिखा है कि अगस्त 1948 तक आते आते जिन्ना पर अचानक मायूसी छा गई। एक
दिन मेरी आंखों में ग़ौर से देखते हुए उन्होंने कहा फ़ाती,अब मुझे जिंदा रहने में कोई
दिलचस्पी नहीं। जितना जल्दी चला जाऊं उतना ही अच्छा है।
11 सितम्बर 1948 को जिन्ना जिंदगी के अंतिम
घंटों में उन्हें एम्बुलेंस भी उपलब्ध नहीं हुई।
पाकिस्तान के लोगों,राजनेताओं और अधिकारियों की बेपरवाही या बेरुखी का आलम यह था
कि पाकिस्तान के संस्थापक जिन्ना जब क्वेटा से कराची हवाई जहाज़ से आएं तो उन्हें
लेने एक भी उच्च स्तर का अधिकारी नहीं आया। बीमार जिन्ना की एम्बुलेंस की गाड़ी का पेट्रोल रास्ते में खत्म हो गया। किसी की यह जानने की कोई दिलचस्पी नहीं थी कि एयरपोर्ट
पर उतरने के बावजूद क़ायद-ए-आज़म गवर्नर जनरल हाऊस क्यों नहीं पहुंचे,उनका
क़ाफ़िला कहां है और उनकी तबीयत कैसी है। एयरपोर्ट से गवर्नर हाउस तक का 9 मील का रास्ता जो ज्यादा से ज्यादा 20 मिनट में तय
हो जाना चाहिए था लगभग 2 घंटे में तय हुआ। यानी दो घंटे क्वेटा से करांची तक और दो घंटे एयरपोर्ट से गवर्नर
जनरल हाऊस तक। पाकिस्तान का ख्वाब साकार करने वाले जिन्ना का
अंत बड़ा दर्दनाक था। वे अपने ही देश में इतने अपमान और बेरुखी के साथ दुनिया से रुखसत होंगे,शायद इसकी कल्पना
उन्होंने कभी नहीं की होगी। जिन्ना की अंतिम समय
की दुश्वारियों का जिक्र भारतीय ख़ुफ़िया एजेंसी रॉ के एक अधिकारी तिलक देवेशेर की
किताब पाकिस्तान एट द हेल्म में भी किया गया है।
महात्मा गांधी की मौत जिन्ना से कुछ महीनों पहले हो चूकी थी लेकिन
उनके प्रति देश और दुनिया के प्यार तथा सम्मान की कोई और मिसाल नहीं हो सकती। 30
जनवरी 1948 को बापू हमेशा की तरह सुबह साढ़े
तीन बजे उठे और उन्होंने सुबह की प्रार्थना में हिस्सा लिया। इसके बाद उन्होंने शहद और नींबू के रस से बना एक पेय पिया और
दोबारा सोने चले गए। जब
वो दोबारा उठे तो उन्होंने ब्रजकृष्ण से अपनी मालिश करवाई और सुबह आए अख़बार पढ़े। नाश्ते में उन्होंने उबली सब्ज़ियां,बकरी का
दूध,मूली,टमाटर और संतरे का जूस लिया।
दिनभर वे नेताओं के साथ मिलते रहे और सूत भी कातते
रहे। शाम 5 बजकर 15 मिनट पर वो
बिरला हाउस से निकलकर प्रार्थना सभा की ओर जाने लगे।
शाम 5 बज कर 17 मिनट पर बापू
को गोली मारी गई लेकिन उस समय भी गांधी के मुख पर कोई बैचेनी या परेशानी नहीं थी। उस दौरान भी उन्होंने शांत मन से अपने इष्ट देव
राम को याद किया।
बापू की शवयात्रा में
कम से कम 15 लाख लोगों ने भाग लिया। मशहूर फ़ोटोग्राफ़र मार्ग्रेट बर्के वाइट ने कहा कि वो धरती पर जमा
होने वाली सबसे बड़ी भीड़ को अपने कैमरे में कैद कर रही हैं। माउंटबेटन के निजी सचिव एलन कैंपबेल जॉन्सन ने अपनी किताब मिशन
विद माउंटबेटन में लिखा है कि अंग्रेज़ी राज को भारत से हटाने में सबसे बड़ी
भूमिका निभाने वाले महात्मा गांधी को उनकी मृत्यु पर भारत के लोगों से ऐसी श्रद्धांजलि
मिल रही थी जिसके बारे में कोई वायसराय कल्पना भी नहीं कर सकते थे।
लोगों के साथ सेना ने बापू को जो सम्मान दिया,वह स्वर्णिम इतिहास
में दर्ज है। अंत्येष्ठि स्थल से 250 मीटर
पहले डॉज गाड़ी का इंजन बंद कर दिया गया और थल सेना,वायुसेना और नौसेना के 250
जवान चार रस्सों की मदद से गाड़ी को खींच कर उस स्थान पर ले गए जहां
गांधी की चिता में आग लगाई जानी थी। आकाशवाणी के कमेंटेटर मेलविल डिमैलो ने लगातार सात घंटे तक महात्मा गांधी की शवयात्रा का आंखों देखा हाल
सुनाया। गांधी की अंत्येष्ठि में 15 मन चंदन की लकड़ी,4 मन
घी और 1 मन नारियल का इस्तेमाल किया गया। जैसे ही शाम के धुंधलके में गांधी की चिता से
लाल लपटें उठी वहां मौजूद लाखों लोग एक स्वर में कह उठे महात्मा गांधी अमर रहें। उस समय पाकिस्तान टाइम्स के संपादक फ़ैज़ अहमद
फ़ैज़ ने लिखा कि गांधी का जाना भारत के लोगों के साथ पाकिस्तान के लोगों के लिए
भी उतनी ही बुरी ख़बर है।
मज़ार-ए-क़ायद पाकिस्तान के संस्थापक मुहम्मद अली जिन्ना की
मजार है जो कराची में है। कराची गैंगवार और तस्करी के लिए दुनिया भर में कुख्यात है। मजार-ए-कायद जाने पर सुरक्षा का खतरा होता है। अन्य देशों के राष्ट्राध्यक्ष जिन्ना की मजार पर
फूल चढ़ाने कभी कभार ही जा पाते है और वे विवाद से बचने के लिए आमतौर पर वे इस
स्थान से दूर ही रहते है।
राजधानी दिल्ली के राजघाट में महात्मा गांधी की समाधि काले पत्थर से बनाई गई है।
जिस स्थान पर यह समाधि बनाई है वहीं महात्मा गांधी का अंतिम संस्कार किया गया था। इस
समाधि के साथ में ही एक ज्योति हमेशा जलती रहती है। जिसके प्रकाश से समूचा विश्व
आलौकित होता है। राजघाट एक बडे़ क्षेत्र में फैला है यहां दुनिया की कई बड़ी
हस्तियों ने पेड़ लगाए हैं। जिसमें क्वीन एलिजाबेथ,अमेरिकी राष्ट्रपति आइजनहावर और
वियतनाम के बड़े नेता हो-ची-मिन्ह जैसे कई नाम शामिल हैं। आज भी दुनिया से कोई राष्ट्राध्यक्ष भारत आएं तो वे सबसे पहले
राजघाट जाकर बापू को नमन करते है। यह स्थान मित्र देशों
के ही नहीं बल्कि दुश्मन देशों के राष्ट्राध्यक्षों के मन को भी शांत कर देता है
और इसी कारण भारत के महान मूल्यों,लोकतंत्र और जनता के प्रति
उनकी श्रद्धा और सम्मान बढ़ जाता है।
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