बापू शांत है लेकिन जिन्ना अशांत क्यों है...gandhi jinna

 

 

30 जनवरी-शहीद दिवस पर विशेष

              

                   बापू शांत है लेकिन जिन्ना अशांत क्यों है...


 

 

                                                       

 

पाकिस्तान के संस्थापक जिन्ना तपेदिक जैसी घातक बीमारी से मरे तो राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जीवनपर्यन्त स्वस्थ रहे30 जनवरी 1948 को शरीर पर कई गोलियों से अविचलित गांधी हे राम कहकर दुनिया से बिदा हुएजिन्ना की मौत के समय पाकिस्तान स्थित फ़्रांसिसी दूतावास में कॉकटेल पार्टी हो रही थीउस पार्टी में लियाक़त अली ख़ान शामिल थे जो बाद में  पाकिस्तान के पहले प्रधानमंत्री बने वहीं बापू की चिता जब तक जलती रही तब तक  भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु वहीं रहेअंत्येष्टि स्थल से जाने वाले संभवतः वे अंतिम शख्स थे

 

बेनजीर भुट्टों ने पाकिस्तान में मुश्किल स्थितियों से परेशान होकर एक बार कहा था कि मैंने यह जिंदगी खुद नहीं चुनी,बल्कि ज़िन्दगी से मुझे चुना पाकिस्तान के राजनेताओं की मुश्किलों का आलम जिन्ना के अंतिम दिनों की फजीहत से समझा जा सकता हैजिन्ना की बहन फ़ातिमा ने अपनी किताब माय ब्रदर में लिखा है कि अगस्त 1948 तक आते आते जिन्ना पर अचानक मायूसी छा गईएक दिन मेरी आंखों में ग़ौर से देखते हुए उन्होंने कहा फ़ाती,अब मुझे जिंदा रहने में कोई दिलचस्पी नहींजितना जल्दी चला जाऊं उतना ही अच्छा है

 

11 सितम्बर 1948 को जिन्ना जिंदगी के अंतिम घंटों में उन्हें एम्बुलेंस भी उपलब्ध नहीं हुई। पाकिस्तान के लोगों,राजनेताओं और अधिकारियों की बेपरवाही या बेरुखी का आलम यह था कि पाकिस्तान के संस्थापक जिन्ना जब क्वेटा से कराची हवाई जहाज़ से आएं तो उन्हें लेने एक भी उच्च स्तर का अधिकारी नहीं आया।  बीमार जिन्ना की एम्बुलेंस की गाड़ी का पेट्रोल रास्ते में खत्म हो गयाकिसी की यह जानने की कोई दिलचस्पी नहीं थी कि एयरपोर्ट पर उतरने के बावजूद क़ायद-ए-आज़म गवर्नर जनरल हाऊस क्यों नहीं पहुंचे,उनका क़ाफ़िला कहां है और उनकी तबीयत कैसी हैएयरपोर्ट से गवर्नर हाउस तक का 9 मील का रास्ता जो ज्यादा से ज्यादा 20 मिनट में तय हो जाना चाहिए था लगभग 2 घंटे में तय हुआयानी दो घंटे क्वेटा से करांची तक और दो घंटे एयरपोर्ट से गवर्नर जनरल हाऊस तक पाकिस्तान का ख्वाब साकार करने वाले जिन्ना का अंत बड़ा दर्दनाक था वे अपने ही देश में इतने अपमान और बेरुखी  के साथ दुनिया से रुखसत होंगे,शायद इसकी कल्पना उन्होंने कभी नहीं की होगी  जिन्ना की अंतिम समय की दुश्वारियों का जिक्र भारतीय ख़ुफ़िया एजेंसी रॉ के एक अधिकारी तिलक देवेशेर की किताब पाकिस्तान एट द हेल्म में भी किया गया है

 

महात्मा गांधी की मौत जिन्ना से कुछ महीनों पहले हो चूकी थी लेकिन उनके प्रति देश और दुनिया के प्यार तथा सम्मान की कोई और मिसाल नहीं हो सकती। 30 जनवरी 1948 को बापू हमेशा की तरह सुबह साढ़े तीन बजे उठे और उन्होंने सुबह की प्रार्थना में हिस्सा लियाइसके बाद उन्होंने शहद और नींबू के रस से बना एक पेय पिया और दोबारा सोने चले गएजब वो दोबारा उठे तो उन्होंने ब्रजकृष्ण से अपनी मालिश करवाई और सुबह आए अख़बार पढ़ेनाश्ते में उन्होंने उबली सब्ज़ियां,बकरी का दूध,मूली,टमाटर और संतरे का जूस लिया 

 

दिनभर वे नेताओं के साथ मिलते रहे और सूत भी कातते रहे  शाम 5 बजकर 15 मिनट पर वो बिरला हाउस से निकलकर प्रार्थना सभा की ओर जाने लगे। शाम  5 बज कर 17 मिनट पर बापू को गोली मारी गई लेकिन उस समय भी गांधी के मुख पर कोई बैचेनी या परेशानी नहीं थी उस दौरान भी उन्होंने शांत मन से अपने इष्ट देव राम को याद किया

 

बापू की शवयात्रा में कम से कम 15 लाख लोगों ने भाग लियामशहूर फ़ोटोग्राफ़र मार्ग्रेट बर्के वाइट ने कहा कि वो धरती पर जमा होने वाली सबसे बड़ी भीड़ को अपने कैमरे में कैद कर रही हैं माउंटबेटन के निजी सचिव एलन कैंपबेल जॉन्सन ने अपनी किताब मिशन विद माउंटबेटन में लिखा है कि अंग्रेज़ी राज को भारत से हटाने में सबसे बड़ी भूमिका निभाने वाले महात्मा गांधी को उनकी मृत्यु पर भारत के लोगों से ऐसी श्रद्धांजलि मिल रही थी जिसके बारे में कोई वायसराय कल्पना भी नहीं कर सकते थे

 

लोगों के साथ सेना ने बापू को जो सम्मान दिया,वह स्वर्णिम इतिहास में दर्ज है अंत्येष्ठि स्थल से 250 मीटर पहले डॉज गाड़ी का इंजन बंद कर दिया गया और थल सेना,वायुसेना और नौसेना के 250 जवान चार रस्सों की मदद से गाड़ी को खींच कर उस स्थान पर ले गए जहां गांधी की चिता में आग लगाई जानी थी आकाशवाणी के कमेंटेटर मेलविल डिमैलो ने लगातार सात घंटे तक  महात्मा गांधी की शवयात्रा का आंखों देखा हाल सुनायागांधी की अंत्येष्ठि में 15 मन चंदन की लकड़ी,4 मन घी और 1 मन नारियल का इस्तेमाल किया गयाजैसे ही शाम के धुंधलके में गांधी की चिता से लाल लपटें उठी वहां मौजूद लाखों लोग एक स्वर में कह उठे महात्मा गांधी अमर रहेंउस समय पाकिस्तान टाइम्स के संपादक फ़ैज़ अहमद फ़ैज़ ने लिखा कि गांधी का जाना भारत के लोगों के साथ पाकिस्तान के लोगों के लिए भी उतनी ही बुरी ख़बर है

 

 

मज़ार-ए-क़ायद पाकिस्तान के संस्थापक मुहम्मद अली जिन्ना की मजार है जो कराची में हैकराची गैंगवार और तस्करी के लिए दुनिया भर में कुख्यात हैमजार-ए-कायद जाने पर सुरक्षा का खतरा होता हैअन्य देशों के राष्ट्राध्यक्ष जिन्ना की मजार पर फूल चढ़ाने कभी कभार ही जा पाते है और वे विवाद से बचने के लिए आमतौर पर वे इस स्थान से दूर ही रहते है

 

राजधानी दिल्ली के राजघाट में महात्मा गांधी की समाधि काले पत्थर से बनाई गई है। जिस स्थान पर यह समाधि बनाई है वहीं महात्मा गांधी का अंतिम संस्कार किया गया था। इस समाधि के साथ में ही एक ज्योति हमेशा जलती रहती है। जिसके प्रकाश से समूचा विश्व आलौकित होता है। राजघाट एक बडे़ क्षेत्र में फैला है यहां दुनिया की कई बड़ी हस्तियों ने पेड़ लगाए हैं। जिसमें क्वीन एलिजाबेथ,अमेरिकी राष्ट्रपति आइजनहावर और वियतनाम के बड़े नेता हो-ची-मिन्ह जैसे कई नाम शामिल हैं। आज भी दुनिया से कोई राष्ट्राध्यक्ष भारत आएं तो वे सबसे पहले राजघाट जाकर बापू को नमन करते है। यह स्थान मित्र देशों के ही नहीं बल्कि दुश्मन देशों के राष्ट्राध्यक्षों के मन को भी शांत कर देता है और इसी कारण भारत के महान मूल्यों,लोकतंत्र और जनता के प्रति उनकी श्रद्धा और सम्मान बढ़ जाता है

 

 

यह गणतंत्र तो नहीं है...! republic india subah svere

 सुबह सवेरे


                             

                                                                        

जनता के अधिकारों की मांग के लिए सोलह साल तक अनशन पर रहने वाली मणिपुर की इरोम शर्मिला 2017 में हुए विधानसभा चुनावों में महज 90 वोट हासिल कर सकी थीउनसे ज्यादा वोट नोटा को मिलेइरोम ने पूर्वोत्तर के कुछ राज्यों में सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम के ख़िलाफ़ सोलह साल तक भूख हड़ताल की थीइरोम जनता के लिए स्थितियां बेहतर करना चाहती थी पर जनता ने उनकी त्याग और तपस्या को दरकिनार कर उस शख्स को वोट दिया जो राजनेता के तौर पर दौलत और शोहरत को हासिल कर चूका हैइस चुनाव में मुख्यमंत्री ओकराम इबोबी भारी मतों से जीते


 

 

लोकतंत्र की दो बुनियादी विशेषताओं को लागू किए बिना गणतंत्र नहीं हो सकतायह दो विशेषताएं है कि शासकों का चुनाव लोग करेंगे और लोगों को बुनियादी राजनैतिक आज़ादी होगी। भारत का गणतन्त्र इन दोनों विशेषताओं  की प्रासंगिकता को चुनौती दे रहा है। दरअसल भारत के चुनावों में राजनेता जनता जनार्दन को अहम बताते है लेकिन उनका पूरा ध्यान धन,बल,बूथ मैनेजमेंट और मीडिया के समर्थन पर टिका होता है। यदि इसे नकारात्मक अर्थ में ले तो लोकतंत्र का अर्थ सिर्फ राजनीतिक लड़ाई और सत्ता का खेल है,यहां नैतिकता की कोई जगह नहीं हैलोकतंत्र में चुनावी लड़ाई खर्चीली होती है इसलिए इसमें भ्रष्टाचार होता है। इरोम की चुनावी हार महज संयोग नहीं बल्कि प्रत्याशी की चुनाव लड़ने की कूबत की बदली स्वीकार्यता को इंगित करता है। जहां वोट के बदले नोट और अल्पकालीन आर्थिक फायदों का तंत्र जन सरोकारों के दीर्घकालीन फायदों को पीछे छोड़ने में सफल हो जाता है। यह तरीका पूंजीवादी ताकतों को राजनीतिक प्रश्रय की गारंटी भी देता है।

 


भारत की शासन व्यवस्था में पूंजीवादी शक्तियां हावी न हो सके,इसे लेकर महात्मा गांधी आज़ादी के आंदोलन में भी सतर्क थे। दक्षिण अफ्रीका से लौटने के बाद महात्मा गांधी काशी हिंदू विश्वविद्यालय के स्थापना समारोह में पहुंचे थे। इस कार्यक्रम में बीएचयू के संस्थापक मदन मोहन मालवीय,एनी बेसेंट तथा कई रियासतों के राजा वहां मौजूद थे। ठेठ  ग्रामीण वेशभूषा धोती,पगड़ी और लाठी में आए गांधीजी ने वहां पर मौजूद राजाओं के आभूषणों पर  कटाक्ष करते हुए कहा कि अब समझ में आया कि हमारा देश सोने की चिड़िया से गरीब कैसे हो गयाआप सभी को अपने स्वर्ण जड़ित आभूषणों को बेचकर देश की जनता की गरीबी दूर करनी चाहिए। गांधी की इस बात से नाराज होकर राजा महाराजा उस कार्यक्रम से उठकर चले गएलेकिन गांधी का सरोकार आम जनता से था और उन्हें सत्ता या पद का मोह भी नहीं थाइसीलिए गांधी लोक सरोकारों को लेकर स्पष्ट अपनी बात कह देते थे

 


आज़ादी के बाद गांधी के मूल्य जिंदा रखने के प्रयास करते लोगों ने स्कूलों,अस्पतालों और लोकहित के संस्थानों के लिए अपनी कीमती जमीनों का दान कर दियाऐसा देशभर में और कई गांवों,कस्बों तथा शहरों में किया गयाजमीन दान करने वालों में किसान और जमींदार भी थेइन लोगों के प्रति जनता में सम्मान होता था,जनता उन पर भरोसा करती थी और ऐसे ही लोग जनता के प्रतिनिधि भी होते थेलेकिन यह सिलसिला आज़ादी के 50 साल पार करते करते हांफने लगाउदारीकरण की आर्थिक नीति ने मूल्यों को बदला और जन सरोकारों को भी पिछले कुछ दशकों में नेताओं ने जमीन दान तो नहीं की लेकिन सरकारी और अन्य जमीनों पर कब्जें जरुर कर लिएइसके साथ ही नेताओं की सादगी और विद्वत्ता के किस्सें कहानियों में सिमट कर रह गएनेताओं और उनके सहयोगियों के यहां विवाह समारोह में चांदी की थाली में मेहमानों को खाना परोसा जाना इत्तेफाक़ नहीं बल्कि राजनीतिक व्यवस्था में दौलत को रुतबे से जोड़ने  की स्थिति को दर्शाता है


 

हैरानी इस बात की है कि ऐसे लोगों को राजनीतिक दलों में प्रश्रय मिलता है और आम जनता विकल्पहीन होकर  जनप्रतिनिधि के तौर पर उन्हें चुन भी लेती है2004 की लोकसभा में चुने गए 24फीसदी, 2009 में 30 फीसदी, 2014 में 34 फीसदी तथा 2019 की लोकसभा में 43 फीसदी सदस्य आपराधिक छवि वाले हैं। इस समय आम आदमी के मुकाबले 1400 गुना रुपया आपके सांसद की जेब में है। डाटा इंटेलिजेंस यूनिट की एक खास रपट के मुताबिक 2019 में चुने गए सांसदों की औसत आय आम जनता की औसत आय से करीब 1400 गुना ज़्यादा है याने हर वो रुपया जो आपकी जेब में है,उसके लिए आपके सांसद की जेब में 1400 रुपए हैं 13 राज्य थे जहां सांसदों की संपत्ति राज्य की प्रति व्यक्ति आय से 100-1000 गुना के बीच थी15 राज्य ऐसे थे जहां नेताओं की आय राज्य की प्रति व्यक्ति आय से 1000 गुना से भी ज़्यादा थी। यदि राजनीतिक तौर पर जनकल्याण की बात कहीं जाएं तो प्रत्येक राजनीतिक दल में धनबल को उच्च स्थान पर रखा जाता है। 17वीं लोकसभा के 542 सांसदों में से 475 सदस्य करोड़पति हैं।


 

हमें यह समझने की जरूरत है कि राजतंत्र या वंशानुगत शासन व्यवस्था से कही आगे गणतंत्र का अर्थ होता है,सामान्य भाषा में इसे जनता का तंत्र कहा जा सकता है। भारत के संदर्भ में जनता के तंत्र के लिए राजतंत्र की समाप्ति को आवश्यक नहीं माना गया था बल्कि प्रजा के सुख में ही राजा का सुख बताया गया है। 26 जनवरी 1950 आज़ाद भारत का एक विशेष दिन तो हो सकता है लेकिन गणतंत्र होने का गौरव तो भारत को सदियों पहले ही हासिल हो चूका था। पुराने गणतंत्र की खूबियां आधुनिक गणतंत्र से कहीं कहीं बेहतर नजर आती है।

 


एक लोकतांत्रिक सरकार संविधानिक कानूनों और नागरिक अधिकारों द्वारा खींची लक्ष्मण रेखाओं के भीतर ही काम करें,इसे लेकर आज़ाद भारत में विरोधाभास हो सकते है,प्राचीन भारत के राजतंत्र की गणतान्त्रिक परम्पराओं में यह संभव था। वैदिक काल और ऋग्वेद में ऐसे कई उदाहरण है जिससे साफ होता है की जनता की सलाह से शासन प्रशासन संचालित किया जाता था। महाभारत के शांति पर्व में भारत में गणराज्यों की विशेषताओं के बारे में विस्तृत वर्णन है। प्राचीन भारत में आर्यों के विभिन्न समूह जन कहे जाते थे। जनों के अन्तर्गत अनेक ग्राम होते थे। सामूहिक रूप से जन के सदस्य  विश थे। प्रत्येक जन का एक मुखिया होता था जो राजा कहा जाता था। राजा का पद वंशानुगत होता था,किन्तु राजा के अधिकार को जनता का अनुमोदन प्राप्त करना आवश्यक था। ऋग्वेद में विश द्वारा राजा के निर्वाचन के उल्लेख भी मिलते हैं। ऐसा प्रतीत होता है कि राज्य का उत्तराधिकारी राजा का ज्येष्ठ पुत्र होता था,किन्तु उसके अयोग्य होने की स्थिति में विश् या विद्वान जनता को राजा के निर्वाचन का अधिकार प्राप्त था। विदथ का अर्थ विद्वान से है और इसका प्रयोग ऋग्वेद में कई बार किया गया हैप्राचीन भारत में नीति,सैन्य मामलों और सामाजिक सरोकार से जुड़े महत्त्वपूर्ण मुद्दों पर बहस करने के लिये राजा के साथ विद्वानों की टोली होती थी


 

आज़ादी के बाद गणतंत्र के रूप में भारत की यात्रा बड़ी दिलचस्प रही है। जो सात दशक तक पहुंचते पहुंचते ही अंतर्द्वंदों और विरोधाभासों से बूरी तरह जकड़ चूकी है तथा विद्वानों की सलाहकार टोली पर आर्थिक और पूंजीवादी शक्तियां हावी हो चूकी है। सुशासन का सामान्य अर्थ है बेहतर तरीके से शासन। ऐसा शासन जिसमें गुणवत्ता हो और वह खुद में एक अच्छी मूल्य व्यवस्था को धारण करता हो। देश में अमीरों की बढ़ती दौलत और गरीबों की बढ़ती झोपडियां सुशासन और जनता के तंत्र का अक्स तो नहीं हो सकते। धर्म ग्रंथों में यह लिखा गया है कि जनता अयोध्या के राजा श्रीराम से सवाल कर सकती थी,लेकिन यह राम राज्य में ही संभव था

 

 

जी हां,हम किन्नर मतदाता है...! pushpa gidvani kinnar mahamndleshwer politics

 

पॉलिटिक्स




                                                                         

यह किन्नरों की सपनों की दुनिया के साकार होने जैसा है,जहां उनका नाम,उनकी पहचान और उनके अधिकारों को निर्वाचन आयोग ने वैधानिक मान्यता दी हैउन्हें अब पहचान पत्र के लिए दर दर भटकने की जरूरत नहीं पड़ेगी,उन्हें अब पहचान छुपाने की जरूरत भी नहीं पड़ेगी अब वे गर्व से कह सकते है कि हम भी इंसान है,जी हां,हम किन्नर है

 




किन्नरों को तीसरी दुनिया के नहीं,तीसरे लिंग वाले लोग अवश्य कहा जाता हैराजस्थान की सरकार ने ट्रांसजेंडर को मतदान से जोड़ने के लिए नया अभियान शुरू किया है जिसमें किन्नर महामंडलेश्वर पुष्पा माई के नाम से विख्यात जयपुर की पुष्पा गिडवानी को राजस्थान सरकार की ट्रांसजेंडर स्टेट इलेक्शन आइकॉन गया हैट्रांसजेंडर को जो मतदाता परिचय पत्र दिए जा रहे है उसमें माता पिता की जगह गुरु का नाम लिखा गया है इस साल राजस्थान में विधानसभा चुनाव होने वाले है और इसमें ट्रांसजेंडर समुदाय की शत प्रतिशत भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए राजस्थान के मुख्य निर्वाचन अधिकारी ने राज्य के समस्त जिला कलेक्टर को पत्र लिखकर यह कहा है कि तृतीय लिंग मतदाताओं की संख्या 70 हजार के लगभग या इससे अधिक हो सकती है अत: उनकी पहचान कर मतदाता सूची में उनका नाम जोड़ा जाएं। निर्वाचन आयोग ने ट्रांसजेंडर समुदाय की पहचान की कठिनाई को ध्यान में रखते हुए नवीन फॉर्म-6 जारी किया है जिसमें संरक्षक के रूप में गुरु का नाम लिखने पर सहमति प्रदान की गई है। राजस्थान के सभी जिलों में कैम्प लगाकर ट्रांसजेंडर का पंजीयन कराया जा रहा है और इसमें स्वयंसेवी संस्था नई भौर की मदद ली जा रही है।


 

पुष्पा माई की किन्नर सम्मान की लड़ाई

देखो देखो हिजड़ा जा रहा है ...! तोहमते ,लानते और अपमान का घूंट पीते पीते भी पुष्पा माई किन्नर समुदाय की बेहतरी के लिए काम करने को  दृढ़ प्रतिज्ञ हैपुष्पा कहती है कि मैं दोहरी जिंदगी से परेशान हो गई थी,क्योंकि अपनी पहचान छिपा कर मैंने एजूकेशन तो पूरी की लेकिन साल 2005 में मैंने  तय  कर लिया की अब और नहीं,मैं जैसी हूं वैसी ही दुनिया के सामने रहूंगी। पहली बार दुनिया के सामने खुलकर एक किन्नर के रुप में आई। कई एनजीओ के साथ काम किया उन्होंने  स्वयं की संस्था नई भोर की 2007 में शुरुआत की। पुष्पा माई ने किन्नर समुदाय के स्वास्थ्य पर भी काम किया। 2011 में सरकार के पहचान प्रोजेक्ट से जुड़ी औऱ खुलकर काम किया। नई भोर ने राजस्थान में लगातार बेहतर काम किये है


 

नई भौर ने एलजीबीटी प्राइड वॉक से बदल दी दुनिया

संस्थान नई भौर साल 2007 से राजस्थान में समलैंगिक और किन्नर समाज के अधिकारों की रक्षा के लिए निरंतर काम कर रहा हैनेशनल एड्स कंट्रोल सोसायटी से मिलकर नई भौर निरंतर स्वास्थ्य जागरूकता के लिए काम कर रहा हैइसके सकारात्मक परिणाम आए है और कुछ लोग अपनी झिझक छोडकर इस संस्था से जुड़ रहे हैजयपुर में साल 2015 से हर साल एलजीबीटी प्राइड वॉक आयोजित की जाती है जिसमें लेस्बियन, गे,बाईसेक्सुअल और ट्रांसजेंडर लोग अपनी एकता दिखाते हुए प्राइड वॉक करते है। यह आत्मविश्वास और जागरूकता का प्रतीक है।


 

किन्नर समाज के साथ ही समूचे ट्रांसजेंडर कल्याण के लिए प्रतिबद्द पुष्पा माई ने अपने समुदाय के अधिकारों के लिए लगातार प्रयास करते हुए  4 मई 2015 को  राजस्थान सरकार से ट्रांसजेंडर के मानव अधिकारों की रक्षा और उनके कल्याण के लिए एक बोर्ड बनाने की मांग रखी थीउनका प्रयास रंग लाया और 18 महीने के लगातार प्रयास के बाद अंततः सरकार ने इसे हरी झंडी दे दीराजस्थान में गठित बोर्ड ट्रांसजेंडर्स के स्वास्थ्य,शिक्षा और रोजगार के लिए काम करता हैराजस्थान सरकार ने उच्च शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश  आवेदन पत्रों में ट्रांसजेडर्स के लिए अलग कॉलम का प्रावधान किया है और उनके लिए सीटें भी आरक्षित की गई है।


वोटिंग बेमिसाल है,मैं अवश्य वोट देता हूँ

2023 के राष्ट्रीय मतदाता दिवस की थीम है,वोटिंग बेमिसाल है,मैं अवश्य वोट देता हूँ। यह गर्व अब किन्नर भी महसूस कर रहे है। रघुनाथपूरी जयपुर की रहने वाली शालू किन्नर का मतदाता परिचय पत्र उनकी  गुरु मनीषा किन्नर के नाम से बाकायदा जारी किया गया है। शालू को अब अपनी पहचान बताने में कोई शर्म महसूस नहीं होती। सिमरन और मुस्कान भी उन लोगों में शुमार है जो खुद को किन्नर बताते हुए कभी संकोच नहीं करते।


 

भारतीय लोकतंत्र में सभी लोगों की भागीदारी सुनिश्चित होनी चाहिए। किन्नरों ने इस भागीदारी के अधिकारों को पाने का आधा सफर तय कर लिया है लेकिन रोजगार का उनका संघर्ष बदस्तूर जारी है। पुष्पा माई किन्नर समुदाय का आत्मविश्वास बनकर उनकी बेहतरी के लिए लगातार प्रयत्नशील है।

 

 

हमें धर्म की जरूरत क्यों है hme dharm ki jturt kyo hai subah svere

 

    सुबह सवेरे   


                       
                                                                 

धर्म,आस्था,आध्यात्म मनुष्य के संस्कारों से विचारों में प्रवेश करता है और फिर व्यवहार में वह जीवनपर्यंत प्रतिबिम्बित होता रहता है। स्वामी विवेकानन्द ने धर्म के गूढ़ रहस्यों पर गहरी मीमांसा प्रस्तुत की है।   लेकिन इन सबके साथ स्वामी विवेकानन्द ने धर्म को आलौकिक समझने और कहने पर सवाल भी उठाएं है।    दरअसल  आलौकिकता मनुष्य की सीमाओं से परे है। इसे इस बात से समझा जा सकता है कि अब तक  जितने भी प्राचीन धर्म हुए है उनके बारे में यह दावा किया जाता है कि वे सब आलौकिक है अर्थात् उनका जन्म मानव मस्तिष्क से नहीं बल्कि उस स्रोत से हुआ है,जो उसके बाहर है।


 

स्वामी विवेकानन्द के भाषणों पर आधारित है एक किताब ज्ञान योग। इसमें स्वामी ने धर्म को लेकर अपनी दृष्टि को तर्क के आधार पर स्पष्ट किया है।  दुनिया की प्रमुख और प्राचीन सभ्यताओं में चीन,बेबीलोन,मिस्र,सिंधु घाटी और मेसोपोटामिया की सभ्यता को शामिल किया जाता हैकुछ साल पहले ब्रिटेन के वैज्ञानिकों के एक दल का शोध,प्रोसीडिंग्स ऑफ़ द रॉयल सोसाइटी में प्रकाशित हुआ था जिससे मिस्र की प्राचीन सभ्यता के काल के बारे में कुछ नए तथ्य सामने आए शोध से यह साफ हुआ कि करीब छत्तीस सैंतीस ईसा पूर्व में लोग नील नदी के किनारे बसने लगे थे और खेती शुरू हो चुकी थीयह भी दिलचस्प है कि एक और प्राचीन सभ्यता मेसोपोटामिया हज़ारों साल तक एक कृषि प्रधान समाज था उसके बाद ही वो एक आधुनिक राज्य के रूप में उभराचीनी,बेबीलोन या सिंधु घाटी की सभ्यता का विकास भी नदी के किनारे हुआ कुल मिलाकर दुनिया की प्राचीनतम सभ्यताओं का निर्माण नदी के किनारे हुआ


 

चीन एक साम्यवादी देश है,यहां हान समुदाय की आबादी सबसे ज्यादा हैचीन में लोग नास्तिक है या बुद्ध को मानने वालेप्राचीन सभ्यता में लोग जिस शक्ति की पूजा करते थे उसे वे लोग शंगति के नाम से पुकारते थेशंगति का अर्थ होता है स्वर्ग का देवताशंगति को स्वर्ग का पिता भी कहते थेचित्रकला के साथ साथ चीन के निवासी मूर्तिकला के क्षेत्र में भी अग्रणी थेचीन में मूर्तिकला का समुचित विकास हुआ थामूर्तियां,मिट्टी पत्थर तथा हाथी दांत की बनाई जाती थीमूर्तियां पशुओं,शिकार,रथ सवार इत्यादि विषयों से संबंधित होती थी


 

यदि भारत की सिंधु या हडप्पा सभ्यता की बात की जाएं तो चीनी सभ्यता से इसकी समानता मिल सकती हैहड़प्पावासी मूर्ति पूजक थेमोहनजोदड़ो की खुदाई से एक पशुपति शिव की मूर्ति मिली है,जो सिंधु सभ्यता में शिव पूजा को प्रमाणित करती है। यदि भारतीय आस्था की बात की जाएं तो शिव कैलाश पर्वत में रहते है और हम उसे स्वर्ग का द्वार समझते हैखुदाई में प्राप्त हुई मूर्तियों वक ताबीजों पर अंकित पशुओं के चित्रों से पता चलता है कि हड़प्पावासी पशुओं की भी पूजा करते थेसिंधु सभ्यता के निवासी पशु की पूजा करते थे और  यह पूजन देवताओं का वाहन मानकर किया जाता था

 


मेसोपोटामिया की सभ्यता का जन्म इराक की दजला एवं फरात नदियों के मध्य क्षेत्र में हुआ थाइस सभ्यता के दो प्रमुख देवताओं के नाम शमाश एवं अनु  थे मेसोपोटामिया की सभ्यता  का धार्मिक जीवन बहुत ही उच्च कोटि का था और इस समाज के लोगों का अनेक देवी देवताओं में विश्वास थामेसोपोटामिया की सभ्यता के प्रमुख देवता शमाश या सूर्य देवता,एनलिल या वायु देवता,नन्नार या  चंद्र देवता तथा अनु या आकाश देवता थेमेसोपोटामिया के लोग अपने देवी देवताओं को प्रसन्न करने के लिए पशुओं की बलि चढ़ाते थेमेसोपोटामिया सभ्यता के अंतर्गत प्रत्येक नगर में एक प्रधान मंदिर हुआ करता था,उस मंदिर का देवता नगर का संरक्षक माना जाता थाइस सभ्यता के लोग अंधविश्वासी होते थे इस सभ्यता के लोग भूत प्रेत,जादू टोना,ज्योतिष एवं भविष्यवाणियों पर विश्वास रखते थेइस सभ्यता में नगर के संरक्षक देवता के लिए नगर में किसी ऊंचे स्थान परंतु के बने चबूतरे पर मंदिर का निर्माण करवाया जाता था इस मंदिर को जिगुरत कहा जाता था मेसोपोटामिया में बसने वाली विभिन्न सभ्यताओं के लोग अपने-अपने देवता पर विश्वास रखते थेएक सामान्य पहलू यह था कि सभी धर्म बहुदेववादी थे अर्थात सभी धर्मों में एक से ज्यादा देवताओं को माना जाता थाइसका मतलब है कि वे विभिन्न प्रकार के देवताओं की पूजा करते थेभारत और चीन का समाज  मेसोपोटामिया के जीवन जीने के तरीकों से किसी भी तरीके से भिन्न नजर नहीं आता

 


बेबीलोनिया के लोग अरब के रेगिस्तान के घुमक्कड़ लोग थे और यह विश्व की प्राचीनतम सभ्यताओं में से एक थीयह सभ्यता बहुत ही उन्नत एवं वैज्ञानिक दृष्टिकोण से सक्षम थीइसी सभ्यता के कारण विश्व में ज्योतिष का प्रसार भी हुआ और ऐसा माना जाता है कि इस सभ्यता ने ही ग्रहों,नक्षत्रों आदि का नामकरण कियाइस सभ्यता के लोगों को मीनारें,गुंबदे,मस्जिदे आदि बनाने का ज्ञान प्राप्त था,उन्होंने यह ज्ञान पूरे विश्व को प्रदान किया  यह समानताएं सिंधु,चीनी और मेसोपोटामिया में भी दिखाई पड़ती है।


 

प्राचीन मिस्र,नील नदी के निचले हिस्से के किनारे केन्द्रित पूर्व उत्तरी अफ्रीका की एक प्राचीन सभ्यता थी,जो अब आधुनिक देश मिस्र हैमिस्रवासियों के प्रमुख देवता रा या सूर्य,ओसरिम या नील नदी तथा सिन या चन्द्रमा थे। उनके देवता प्राकृतिक शक्तियों के प्रतीक थे





सभ्यता के प्रारम्भिक काल में मिस्रवासी बहुदेववादी थे,किंतु साम्राज्यवादी युग में अखनाटन नामक फराओ ने एकेश्वरवाद की विचारधारा को महत्व दिया तथा सूर्य की उपासना आरम्भ की मिस्रवासियों का विश्वास था कि मृत्यु के बाद शव में आत्मा निवास करती हैअत: वे शव पर एक विशेष तेल का लेप करते थे। इससे सैकड़ों वर्षों तक शव सड़ता नहीं था। शवों की सुरक्षा के लिए समाधियां बनाई जाती थी जिन्हें वे लोग पिरामिड़ कहते थेपिरामिड़ों में रखे शवों को  ममी कहा जाता था

 

ये बहुत रोचक है की दुनिया की प्राचीनतम सभ्यताओं का अध्ययन किया जाएं तो उनमे ज्यादा अंतर नजर नहीं आताजहां तक धार्मिक मान्यताओं का सवाल है तो हजारों साल पहले के जनजीवन की तौर तरीकों को अपनाकर ही उसे आवश्यक मान लिया गया है


 

बेबीलोन और मेसोपोटामिया अब अरब के अंतर्गत आते है,जहां इस्लाम धर्म है। मिस्र एक अंतरमहाद्वीपीय देश है तथा अफ्रीका,भूमध्य क्षेत्र,मध्य पूर्व और इस्लामी दुनिया की यह एक प्रमुख शक्ति हैयहां ईसाई भी बहुतायत में रहते है चीनी सभ्यता का प्रसार चीन,कम्बोडिया से लेकर वियतनाम तक है और सिंधु घाटी की सभ्यता पूरे भारतीय महाद्वीप को जोड़ती हैहजारों सालों से विकास की प्रक्रिया के साथ सभ्यताओं में भिन्नता जरुर नजर आती है लेकिन इनकी मूल मान्यताओं में समानता समाप्त नहीं हो सकीयह रहन सहन से लेकर आस्थाओं में भी नजर आती है


 

जाहिर है धर्म का संबंध सभ्यताओं के विकास से ही रहा है और यह मानव मस्तिष्क से ही हजारों वर्षों से समृद्द होता रहाऐसे में धर्म को आलौकिकता से जोड़ना,कल्पनातीत तो हो सकता है लेकिन इसका ज्ञान और तर्क से कोई संबंध नहीं हैदुनियाभर में घूम कर विवेकानन्द ने सभी धर्मों के मूल को समझा और इस शाश्वत एकत्व को देखास्वामी विवेकानन्द धर्म को इसीलिए जरूरी बताते थे क्योंकि यह मनुष्य की उन्नति या विकास का वह नियम है जिससे सभ्यताएं समृद्ध और प्रतिबिम्बित होती हैइसीलिए वे कहते थे कि प्रत्येक धर्म को स्वतंत्रता और वैशिष्ट्य को बनाएं रखकर दूसरे धर्मों का भाव ग्रहण करते रहना चाहिए  अंततः विभिन्न धर्मों का यही सामीप्य मानवीय सभ्यताओं का आधार है तथा इससे ही प्रगति का मार्ग प्रशस्त होता है

brahmadeep alune

पुरुष के लिए स्त्री है वैसे ही ट्रांस वुमन के लिए भगवान ने ट्रांस मेन बनाया है

  #एनजीओ #ट्रांसजेंडर #किन्नर #valentines दिल्ली की शामें तो रंगीन होती ही है। कहते है #दिल्ली दिलवालों की है और जिंदगी की अनन्त संभावना...