मुक्त व्यापार समझौते की चुनौती,जनसत्ता britain bharat janstta

जनसत्ता

                         

उदारवादी पूंजीवादी देश ब्रिटेन की भारत के साथ सहयोग उच्च स्तर पर ले जाने  और पसंदीदा भागीदार बनने की कोशिशें अब साकार हो सकती हैऋषि सुनक के ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बनने से उम्मीदें मजबूत हुई थी और जी-20 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से उनकी मुलाकात के बाद इस बात की संभावनाएं बढ़ गई है कि निकट भविष्य में दोनों देशों के बीच मुक्त व्यापार समझौता अस्तित्व में आ जायेगादरअसल बाली में जी-20 सम्मेलन के दौरान ऋषि सुनक ने तीन हजार भारतीयों को वीजा देने की घोषणा कर अपने सकारात्मक इरादें जाहिर कर यह संदेश देने की कोशिश की की उनकी अर्थव्यवस्था को ब्रेक्ज़ीट के बाद मिलने वाले झटकों से उबारने के लिए भारत एक महत्वपूर्ण सहयोगी बनने जा रहा हैयूरोप से दूर अपने आर्थिक भविष्य को तलाशने की ब्रिटिश कोशिशों को 2010 में ही साफ करते हुए ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री डेविड केमरून ने कहा था कि भारत और ब्रिटेन के संबंध पसंदीदा भागीदारी वाले होने चाहिए इसके पहले 2005 में दोनों के बीच निवेश को प्रोत्साहित करने के लिए संयुक्त आर्थिक और व्यापारिक स्थापना जो चुकी थीलेकिन वीजा नियमों,भारतीय समुदाय पर होने वाले नस्लीय हमलों और कश्मीर को लेकर ब्रिटेन की राजनीतिक नीतियों में दोहरापन समस्याओं को बढ़ाता रहाभारत के आंतरिक मामलों पर भी लेबर पार्टी का दृष्टिकोण नकारात्मक रहा है। इन सबके साथ पिछले कुछ वर्षों में ब्रिटिश राजनीतिक घटनाक्रम और अस्थिरता भी दोनों देशों के बीच रिश्तों में गर्माहट न आने का एक प्रमुख कारण रही

 

अब परिस्थितियां बदली है तथा भारत और ब्रिटेन के सम्बन्ध पहले से अधिक मजबूत और प्रभावी बनने की और अग्रसर दिखाई दे रहे है ब्रिटेन और पश्चिमी यूरोपीय देशों की अर्थव्यवस्थाएं जहां सिकुड़ रही हैं वहीं भारत की अर्थव्यवस्था लगातार आगे बढ़ रही हैतमाम चुनौतियों के बावजूद भी भारत ने अपनी विकास दर की रफ़्तार को बनाए रखा हैब्रिटेन में आई आर्थिक मंदी और भारत का उसे अर्थव्यवस्था में पछाड़ कर आगे निकल जाने से दोनों देशों के बीच आर्थिक सम्बन्ध मजबूत होने की संभावनाओं को और बढ़ा दिया इस समय ब्रिटिश अर्थव्यवस्था अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है अमेरिकन डॉलर  के मुकाबले ब्रिटिश पाउंड की कीमत निचले स्तर पर है नए टैक्स प्लान से ब्रिटेन पर कर्ज बढ़ रहा है,जो पहले ही बहुत है बढती महंगाई से आम लोगों की मुश्किलें बढ़ गई हैबेरोजगारी तेजी से बढ़ी है तथा लोगों की आमदनी कम हुई है शेयर बाज़ार में लगातार गिरावट से देश की साख भी गिर रही है। यूरोपीय संघ में साझा हितों के चलते ब्रिटेन के नागरिक मंदी के शिकार नहीं हुए थे जिससे उनका उच्च रहन सहन भी प्रभावित नहीं हुआ था।

 

ब्रिटेन जब तक यूरोपीय संघ के 27 देशों के संगठन में शामिल था तब तक इन देशों के नागरिक ईयू के सभी सदस्य देशों में आवाजाही,रहने,काम करने और कारोबार के लिए स्वतंत्र रहे ईयू के सदस्य देशों के कारोबारी सीमाओं पर बिना किसी रोक-टोक और बिना किसी टैक्स के अपने सामान ख़रीद और बेच सकते हैंब्रिटेन ईयू से बाहर निकलने वाला पहला देश बना और 31 जनवरी 2020 को ब्रिटेन आधिकारिक तौर पर यूरोपीय संघ से अलग हो गया था। ईयू से अलग होने से हुए आर्थिक नुकसान की भरपाई के लिए ब्रिटेन भारत की और देख रहा है जो दुनिया का सबसे बड़ा बाज़ार है तथा निवेश के अवसर असीम हैं यह भी दिलचस्प है कि ब्रिटेन में बसने वाले अप्रवासियों में सबसे बड़ी तादाद भारतीयों की ही है जिनकी आबादी तकरीबन 16 लाख है भारतीय ब्रिटेन के कारोबार का अहम हिस्सा तो है ही,सांस्कृतिक,तकनीकी और राजनीतिक रूप से भी उनकी भागीदारी बेहद महत्वपूर्ण मानी जाती है ब्रिटेन में  भारतीयों का आना संयोग नहीं बल्कि राजनीतिक भी रहे हैभारत और ब्रिटेन के बीच 250 साल से भी अधिक पुराना संबंध हैदोनों ही देश सांस्कृतिक संस्थानों और अंग्रेज़ी से माध्यम से जुड़े हैं दोनों देशों के आपसी संबंधों को मज़बूत रखने में ब्रिटेन में रहने वाले प्रवासी भारतीयों की अहम भूमिका है ये प्रवासी भारतीय ब्रिटेन और भारत के बीच एक पुल का काम कर रहे हैं आज़ादी के पहले और बाद में कुछ समय तक भारत से लोगों को काम के लिए यहाँ बुलाया गया थाअफ़्रीकी देशों की आज़ादी के बाद  वहां से भारतीय ब्रिटेन आकर बसेवैश्वीकरण के दौर में बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने काम के लिए भारत से पेशेवर लोगों को ब्रिटेन लाना शुरू किया 

 

दूसरी और ब्रिटेन में भारत की भूमिका भी बेहद महत्वपूर्ण है। ब्रिटेन में विभिन्न स्तरों पर अनेक नई परियोजनाएं शुरू करने के मामले में भारत अग्रणी देशों में शुमार हैब्रिटेन की अर्थव्यवस्था में भारत की कंपनियों की अहम भूमिका हैभारतीयों की 800 से ज़्यादा कंपनियों ने ब्रिटेन में 1 लाख से ज़्यादा लोगों को रोज़गार दिया हैभारत के 21 हज़ार से ज़्यादा छात्र ब्रिटेन में पढ़ाई कर रहे हैं ब्रिटेन के लिए शिक्षा आय बढ़ाने का  बड़ा माध्यम है,लेकिन उसकी वीजा को लेकर कड़ी नीतियों से परेशान भारतीय छात्र अब अमरीका,ऑस्ट्रेलिया और जर्मनी में पढ़ाई या नौकरी के लिए जा रहे है 

 

भारत और ब्रिटेन के आर्थिक साझा हितों के साथ कई वैश्विक हित भी हैदोनों देश क्षेत्रीय स्तर पर अलगाव का सामना कर रहे हैं ब्रिटेन यूरोपीय संघ से बाहर हो गया है और भारत ने भी चीन-केंद्रित  क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी में शामिल होने से  इंकार कर दिया है इन चुनौतियों के बीच भारत और ब्रिटेन के लिये द्विपक्षीय संबंधों हेतु रोडमैप 2030 को लागू करने का एक अवसर है। भारत और ब्रिटेन के बीच एक मुक्त व्यापार समझौते से आयात और निर्यात प्रवाह में वृद्धि,निवेश प्रवाह में वृद्धि,संसाधनों के अधिक कुशल आवंटन के माध्यम से उत्पादकता में वृद्धि और अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्द्धा के लिये अधिक खुलेपन से आर्थिक विकास एवं समृद्धि में वृद्धि होने की उम्मीद है। इस समझौते से 2035 तक दोनों देशों के बीच सालाना कारोबार 28 अरब पाउंड तक बढ़ जाएगा. साल 2021 में दोनों देशों के बीच 24 अरब पाउंड का कारोबार हुआ थाभारत के साथ कारोबारी समझौता करना ब्रिटेन सरकार की सबसे महत्वाकांक्षी नीतियों में से एक है

 

पिछले दो दशकों में  ब्रिटेन और चीन ने उत्कृष्ट द्विपक्षीय संबंध साझा किए,इनमें से पहले दशक को वर्ष 2015 में चीन के साथ संबंधों का स्वर्णिम दशक घोषित किया गया था। लेकिन इस समय चीन और ब्रिटेन के संबंध अस्थिरता की और बढ़े है। खासकर ताइवान और वीगर मुसलमानों पर ब्रिटेन का रुख चीन विरोधी रहा है।  पिछले वर्ष चीन ने सात ब्रिटिश सांसदों पर यात्रा प्रतिबंध लगाए थे और उनकी संपत्ति ज़ब्त कर ली थी चीन का कहना था कि ये सांसद वीगर मुसलमानों के साथ बर्ताव को लेकर झूठ और दुष्प्रचार फैला रहे थे बाद में ब्रिटेन में चीनी राजदूत को ब्रिटिश संसद में एक कार्यक्रम में बोलने से रोक दिया गया था इस कार्यक्रम की मेजबानी में ब्रिटेन के कई दलों के सांसद शामिल थे जाहिर है चीन से नाराज ब्रिटेन से भारत की रक्षा सम्बन्ध भी मजबूत हो सकते है भारत हिंद-प्रशांत क्षेत्र में बाज़ार हिस्सेदारी और रक्षा दोनों ही  क्षेत्रों में  ब्रिटेन के लिये एक प्रमुख रणनीतिक भागीदार है  हिंद प्रशांत में ब्रिटेन  एक क्षेत्रीय शक्ति है,उसके पास ओमान,सिंगापुर,बहरीन,केन्या और ब्रिटिश हिंद महासागर क्षेत्र में नौसैनिक सुविधाएं हैं। चीन की समुद्र में आक्रामक नीति से निपटने के लिए भारत और ब्रिटेन के बीच रणनीतिक सहयोग देश की सामरिक सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण हो सकता है   

 

रक्षा क्षेत्र में भारत की आत्मनिर्भरता हासिल करने में भी ब्रिटेन से क़रीबी तालमेल बहुत उपयोगी हो सकता है तथा मेड इन इंडिया के तहत इस क्षेत्र में विदेशी निवेश की भारी गुंजाइश है भारत को चाहिए कि ब्रिटेन से वह जैव प्रौद्योगिकी में नई खोजों के क्षेत्र में सहयोग करे  इस क्षेत्र में ब्रिटेन काफी आगे हैभारत के सामने चुनौती है कि ब्रिटेन जैसे देशों को अंतर्राष्ट्रीय मामलों में अपनी नीति के निकट लाए भारत चाहता है कि ब्रिटेन संयुक्त राष्ट्र और दूसरे बहुराष्ट्रीय संस्थानों में भारत का साथ दे यहीं नहीं भारतीयों के लिए वीज़ा सुविधाएं आसान करने की भी अपेक्षा भारत करता रहा है भारत के व्यवसायी ब्रिटेन में रहकर ही यूरोप में कारोबार करते है भारत चाहता है कि भारतीयों के पास ब्रिटेन में काम करने और  वहां रहने के अधिक से अधिक अवसर हो ब्रिटेन के साथ किसी भी तरह के कारोबारी समझौते में भारत की प्राथमिकता भारतीय छात्रों और पेशेवरों के लिए वीज़ा नियमों में राहत हासिल करना रही है अगर दोनों देशों के बीच मुक्त व्यापार समझौता हो जाता है तो कपड़ा,चमड़ा, आभूषण,आईटी,फ़ार्मा और कृषि जैसे क्षेत्रों में भारत के निर्यात को काफ़ी बढ़ावा मिलने की उम्मीद है ब्रिटेन विश्व की  छठवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था,संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का एक स्थायी सदस्य,एक वैश्विक वित्तीय केंद्र,तकनीकी नवाचार का केंद्र और एक प्रमुख साइबर शक्ति है।

 

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारत को 2047 तक विकसित राष्ट्र बनाने की बात कहते रहे है। इसके लिए भारत को आर्थिक,सामाजिक और कूटनीतिक स्तर पर बहुत सशक्त होने की जरूरत है। भारत की अर्थव्यवस्था अभी भी आगे बढ़ रही हैअगर अगले चार-पांच सालों तक भी भारत की अर्थव्यवस्था बढ़ती रही तब भी प्रति व्यक्ति आय के पश्चिमी देशों के स्तर तक पहुंचने में अभी बहुत वक़्त लगेगा। ब्रिटेन से मजबूत सम्बन्धों का लाभ भारत को कई स्तरों पर मिल सकता है। मुक्त व्यापार समझौते से दोनों देशों के बीच वस्तुओं और सेवाओं के आयात और निर्यात में रुकावटों को कम करना होगा। इस समझौते के तहत् वस्तुओं और सेवाओं को अंतरराष्ट्रीय सीमाओं के पार ख़रीदा और बेचा जा सकता है,जिसके लिए बहुत कम सरकारी शुल्क,कोटा तथा सब्सिडी जैसे प्रावधान किए जाते हैंइस समझौते से व्यवसाय करने वाले दोनों देशों को फ़ायदा होता है। लेकिन इसमें रुकावटें भी है। ब्रिटेन की राजनीतिक अस्थिरता कब करवट लें ले,यह कहा नहीं जा सकता वहीं आत्मनिर्भर भारत अभियान से वैश्विक स्तर पर इस भ्रम में वृद्धि हुई है कि भारत तेज़ी से एक संरक्षणवादी बंद बाज़ार अर्थव्यवस्था में बदलता जा जा रहा है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि ब्रिटेन की मुक्त व्यापार समझौते की उच्च आकांक्षा और भारत में संरक्षणवादी बाज़ार व्यवस्था के भ्रम के बीच दोनों देश कैसे पसंदीदा भागीदार के रूप में आगे बढ़ेंगे।

 

 

सुकमा के आदिवासियों में महिला सम्मान बेमिसाल है, sukma mahilaye politics

 पॉलिटिक्स         



                                                    

नक्सलियों ने ग्राम सुराज अभियान की एक सभा पर हमला किया,अंगरक्षक का गला रेत दिया और फिर पूछा कलेक्टर कौन है...? एक शख्स  ने कहा,मैं हूँ कलेक्टर इसके बाद नक्सली उन्हें मोटर साइकिल पर बिठाकर साथ ले गए यह घटना 2012 की है जब सुकमा के कलेक्टर एलेक्स पॉल मेनॉन का तब अपहरण हो गया था जब वे जिला मुख्यालय से करीब 50 किलोमीटर दूर मांझीपाड़ा गांव में ग्राम सुराज कार्यक्रम में भाग ले रहे थेसुकमा जिला छत्तीसगढ़ के दक्षिणी भाग में उडिशा-आंध्र प्रदेश की सीमा से सटा हुआ दुर्गम जंगलों वाला इलाका है ये रायपुर से लगभग 450 किलोमीटर दूर दक्षिण में स्थित है  माओवादी आतंक से बूरी तरह से ग्रस्त इस इलाके में नक्सलियों के दुस्साहस की कई कथाएं है 2011 में सुकमा जिले से लगे उड़ीसा के मलकानगिरी जिले के कलेक्टर आरवी कृष्ण का भी अपहरण हुआ था वे दूरस्थ चित्रगोंडा क्षेत्र में एक पुलिया देखने गये थे और बाद में  उनका आंध्र प्रदेश की सीमा से लगते बडापाडा से नक्सलियों ने अपहरण कर लिया गया था। माओवादी केंद्रीय बलों को हटाए जाने और जेल में बंद अपने साथियों की रिहाई की मांग कर रहे थे


 

रेड कॉरिडोर के अंतर्गत आने वाले इस क्षेत्र को अतिसंवेदनशील माना जाता है लेकिन नक्सली आतंक से ग्रस्त इस इलाके की एक और सच्चाई महिला सम्मान है जिसकी कोई बराबरी नहीं हो सकती। सुकमा के घने जंगलों में कमर और शरीर के उपरी हिस्से पर सूती कपड़े का लुगड़ा बांधे अकेली आदिवासी महिलाओं को  महुआ बीनते या लकड़ी काटते आसानी से देखी जा सकती हैइन इलाकों में मुख्यतःगोंड,हल्बी या बैगा  महिलाएं आमतौर पर ऐसे ही वस्त्र पहनती है,जिन्हें स्थानीय भाषा में पाटा गंडा कहते हैगोंड का अर्थ तो वैसे भी पहाड़ माना जाता हैपिछड़ेपन,गरीबी और अशिक्षा के बाद भी इनके महिलाओं के प्रति आचरण पहाड़ की तरह ही  ऊंचे होते है महिलाएं न केवल घर का संचालन करती है बल्कि उनका मुखिया की तरह व्यवहार भी होता हैलड़की का रुतबा कुछ इस कदर होता है कि  गोंड़ जनजाति में विवाह के अवसर पर कहीं कहीं लड़की वाले बारात लेकर लड़के वाले के घर आते है। यहां पर विवाह का एक प्रकार लमसेना विवाह भी है,इस विवाह प्रथा में वर  अपने ससुराल में आ कर रहने लगता है। घने जंगलों में गुजर बसर करने वाले गोंडों का सामाजिक और सांस्कृतिक जीवन बेहद उत्कृष्ट है जहां महिलाओं की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण नजर आती है।

 


बस्तर में आदिवासी बाहुल्य है और यहां की संस्कृति में महिलाओं के प्रति गहरा सम्मान देखा जाता हैपुरुषों से ज्यादा महिलाएं काम करती हैघर,परिवार या समाज के विभिन्न उत्सवों में महिलाओं की भागीदारी,पुरुषों से कहीं ज्यादा होती हैबस्तर में हरियाली महोत्सव पर महिलाओं की सांस्कृतिक भागीदारी का बेहतरीन रूप उभर कर आता हैसावन मास में पहले इस उत्सव के साथ ही लोक पर्व,तीज-त्योहारों की बहार शुरू होती है। इस महोत्सव में किसान परिवार कृषि औजारों,अपने गाय-बैलों और ग्राम देवता की पूजा-अर्चना कर सुख-समृद्धि की कामना करते है। जगह-जगह गैंड़ी दौड़ का उत्सव मनाते है। इन उत्सवों में महिलाओं की भागीदारी हर स्तर पर नजर आती है। वे पूजा अर्चना से लेकर सांस्कृतिक नृत्यों और लोक गायन को आकर्षक तरीके से मनाती है।

 


तीज त्यौहार के साथ ही यहां विवाह के स्वरूप बेहद निराले है। बस्तर में घोटुल परम्परा महिलाओं की स्वतन्त्रता का प्रतीक है। बस्तर की ऐसी परंपरा है जिसमें आदिवासी युवक युवतियों को अपने जीवन साथी को चुनने की पूरी आजादी होती हैइसमें कुछ दिन तक लड़का और लड़की को एक दूसरे के साथ रहने की इजाजत दी जाती हैवे एक दूसरे को समझते है और समन्वय होने पर परिवार उनकी धूमधाम से विवाह कर देता हैघोटुल,गांव के किनारे बांस या  मिट्टी  की बनी झोंपड़ी होती है। घोटुल को सुन्दर बनाने के लिए उसकी दीवारों में रंगरोगन करके उस पर चित्रकारी भी की जाती है। कई बार घोटुल में दीवारों की जगह खुला मंडप होता हैदेश के कई हिस्सों में भ्रूण हत्या या खाप पंचायतों का खौफ लड़कियों की पसंद पर कहर बनकर टूटता है,वहीं बस्तर में महिला अस्मिता की सुरक्षा और स्वतन्त्रता प्रेरणादायक हैइन क्षेत्रों में भाई की मृत्यु हो जाने पर विधवा परित्यकता,पुर्नविवाह  की मान्यता है। विधवा भाभी देवर के लिए चूड़ी पहन सकती है। इससे साफ होता है की महिलाओं की सुरक्षा और सम्मान का आदिवासी समाज में किस कदर ध्यान रखा जाता हैआजकल आदिवासी महिलाएं बांस की राखी बनाकर भी आर्थिक तौर पर मजबूर हो रही है। यह इतनी करीने से बनाई जाती है कि दिखने में बहुत आकर्षक और मजबूत होती है।


दंतेवाडा और सुकमा को जोड़ने वाली कटेकल्याण और प्रतापगढ़ की पहाड़ियों के नीचे एक हमीरगढ़ गांव हैनक्सल प्रभावित इस अतिसंवेदनशील इलाके में कोयला भट्टी से एक पगडंडी से यहां प्रवेश किया जाता हैइस इलाके में घने जंगल है और एक नदी हैदर्भा डिवीजन से जुड़े नक्सली इस क्षेत्र में नक्सली वारदात को अंजाम देकर कांकेर वैली और मलकानगिरी में इस रास्ते से भागते है कटेकल्याण की पहाड़ियां बड़े व्यापक क्षेत्र में फैली हुई है और यह नक्सलियों के छुपने का सुरक्षित ठिकाना मानी जाती है इस क्षेत्र में सीआरपीएफ के जवान तलाशी अभियान चलाते तो रहते है लेकिन पहाड़ियों के ज्यादा अन्दर जाना बड़ा चुनौतीपूर्ण होता हैयहां आईइडी ब्लास्ट होने की भरपूर संभावना बनी रहती हैलुडकीराज यहीं से पहाड़ियों से सटा इलाका है इन घने जंगलों में महिलाओं को महुआ बीनते या ताड़ी लेकर बाज़ार जाते हुए देखा जाता हैइस क्षेत्र में गोंडी और हल्बी बोली जाती है तथा आदिवासी हिंदी को नहीं समझ पातेइन इलाकों में महिलाएं पारम्परिक वस्त्रों ने दिखाई देती है


छत्तीसगढ़ की जीवन रेखा  माने जाने वाला राष्ट्रीय राजमार्ग 30 नक्सल प्रभावित जगदलपुर से सुकमा होते हुए तेलंगाना को जोड़ता हैनक्सली हमलों के लिए कुख्यात दर्भा घाटी से नीचे उतरकर तोंग्पाल आता है,यहां से मलकानगिरी,उड़ीसा की पहाड़िया दिखाई देती हैमलकानगिरी और सुकमा नक्सली हमलों के केंद्र के रूप में देश भर में कुख्यात है। इस क्षेत्र में दूर दराज के इलाकों में बीज,फल या ताड़ी बेचते हुए महिलाएं ही मिलती है।


नक्सली हमलों में भी महिलाओं की भूमिका बेहद खतरनाक तरीके से सामने आती रही है। सुकमा और बस्तर के दूर दराज के इलाकों में अभी भी हर घर से एक बेटी को भेजने के लिए नक्सली दबाव बनाते है। इन आदिवासी इलाकों में लिंग भेद का कहीं नामोनिशान नहीं दिखाई देता। नक्सली केडर में महिलाओं को बड़े पद और दायित्व दिए जाते है। यह भी देखने में आया है कि माओवादी हमलों में बहुतायत महिलाओं की होती है। हालांकि नक्सलियों का सामना करने वाले बस्तर फाईटरस के दस्तें भी सुकमा के बस स्टेशन पर तैनात रहते है। नक्सलियों के खिलाफ सर्चिंग अभियान में भी उनकी भागीदारी बनी रहती है। कई मोर्चों पर वे सीआरपीएफ के साथ कंधा से कंधा मिलाकर लड़ती है और नक्सलियों को मार गिराती है।


दक्षिण बस्तर के सुकमा जिले के लेदा गांव में लिब्रू बघेल का टूटा फूटा स्मारक बना है। वे छत्तीसगढ़ की विशेष सशस्त्र बल के जवान थे। एक रोज जब वे घर लौटे तो नक्सलियों को इसकी भनक लग गई। नक्सलियों ने  लिब्रू बघेल पर दबाव बनाने की कोशिश की, की वह पुलिस की नौकरी छोड़कर नक्सलियों के साथ हो जाएँ। लिब्रू बघेल ने नक्सलियों को अपनी गोलियों से जवाब दिया और कुछ ही दिनों बाद वे शहीद हो गए। जवान भाई और बेटे की मौत भी इस परिवार को झुका नहीं सकी। अब  लिब्रू बघेल की बहन पुलिस की तैयारी कर रही है। जाहिर है बस्तर की महिलाओं का हौंसला कमाल का है जहां सम्मान और शौर्य की सामाजिक स्वीकार्यता बेमिसाल है।

 

 

फिर सैन्य शासन का अंदेशा pak imran khan janstta

 

    जनसत्ता                       

             




                                                                         

लोकतंत्र में सर्वोच्च सम्प्रभुता का संकट होना ही नहीं चाहिए,क्योंकि यह निर्विवाद रूप से जनता में निहित हैजिन देशों में जनता की सर्वोच्चता को नकारा जाता है वह सैन्य,अधिनायकवादी या फासीवादी तंत्र होता हैदरअसल पाकिस्तान एक राष्ट्र के तौर पर लोकतंत्र की मूल मान्यताओं से बहुत दूर नजर आता हैलोकतांत्रिक देशों में राजनीतिक यात्राओं को सत्ता प्राप्ति का साधन माना जाता है लेकिन पड़ोसी देश पाकिस्तान में ऐसा बिल्कुल भी नहीं हैपाकिस्तान में सत्ता के विरोध में जनता को लामबंद करने के लिए लांग मार्च की परम्परा बहुत पुरानी है हालांकि यह लोकतंत्र की मजबूती का कारण कभी नहीं बन पाएं। पाकिस्तान के राजनीतिक इतिहास में चुनी हुई लोकतांत्रिक सरकारों के बर्खास्त करने के लिए सेना ने विपक्षी दलों से मिलकर कई बार इन्हीं लांग मार्च को मजबूत किया,देश में अशांति के माहौल को बनने में मदद की और फिर सुरक्षा के नाम पर प्रधानमंत्री को अपदस्थ करके सैन्य सरकार की  स्थापना कर दी।


एक बार फिर पाकिस्तान उसी रास्ते पर आगे बढ़ रहा है। तहरीक-ए –इंसाफ के नेता इमरान खान के नेतृत्व में लांग मार्च का कारवां पाकिस्तान की राजधानी इस्लामाबाद में समाप्त होता उसके ठीक पहले इमरान खान पर हमला लोकतंत्र को खत्म करने की सुनियोजित कोशिश का हिस्सा दिखाई देता है इमरान खान को लांग मार्च में जिस प्रकार अभूतपूर्व समर्थन मिला है,वह न तो पाकिस्तान की सेना के लिए सुखद संकेत माना गया और न ही सत्तारूढ़ पार्टी के लिए  इमरान खान देश में तुरंत आम चुनाव चाहते है और यह स्थिति उनके राजनीतिक प्रतिद्वंदियों को स्वीकार नहीं है।

  


2018 में इमरान खान जिस सेना की शह पर देश के प्रधानमंत्री बने थे,वहीं सेना उनके राजनीतिक जीवन की सबसे बड़े प्रतिद्वंदी के रूप में सामने आ गई हैक्रिकेट के मैदान में आक्रामक तेवरों के लिए मशहूर रहे इमरान खान राजनीतिक मैदान को आक्रामकता से जीत लेना चाहते है,पर उनकी यह कोशिशें कामयाब होती दिख नहीं रही है इमरान खान अपने भाषणों में देश की विदेश और गृह नीति की स्वतन्त्रता की बात कह रहे है लेकिन सेना के प्रभाव वाले इस इस्लामिक देश में यह न तो सिद्दांततया संभव है और न ही व्यवहार में इसे  लागू किया जाना मुमकिन नजर आता हैइस साल रूस के द्वारा यूक्रेन पर हमले की शुरुआत में बतौर प्रधानमंत्री इमरान खान की रूस की यात्रा और पुतिन से मुलाकात पाकिस्तान की सैन्य रणनीति के उलट मानी गई। अमेरिकी प्रभाव से ग्रस्त इस देश में इमरान खान की रूस के करीबी  दिखने की कोशिश को सेना ने चुनौती की तरह लिया और उसने विपक्षी दलों से हाथ मिलाकर इमरान खान को प्रधानमंत्री पद छोड़ने के लिए मजबूर कर दिया।   


पाकिस्तान की भौगोलिक स्थिति अमेरिका के लिए एशिया में नजर रखने के लिए बहुत मुफीद मानी जाती हैवह पाकिस्तान में सैन्य उपस्थिति से मध्य पूर्व,हिन्द,दक्षिण चीन सागर और रूस पर नजर रखता रहा हैपाकिस्तान में कोई भी सरकार रहे,अमेरिका के पाकिस्तान की सेना से बेहतर सम्बन्ध रखे जाते हैपाकिस्तान की सेना के पास अधिकांश अत्याधुनिक हथियार अमेरिका के द्वारा ही प्रदान किये जाते है1979 में अफगानिस्तान में तत्कालीन सोवियत संघ के सैन्य हस्तक्षेप के बीच पाकिस्तान और अमेरिका के सैन्य और कूटनीतिक सम्बन्धों में अभूतपूर्व वृद्धि हुई थी। बाद में इसके व्यापक वैश्विक प्रभाव पड़ेअफगानिस्तान में मुजाहिदीन की सेना,तालिबान का जन्म और सोवियत संघ का विभाजन इन स्थितियों का ही परिणाम माना जाता है अमेरिका की शह पर पाकिस्तान में आतंकी केंद्र बनाएं और अफगानिस्तान से सोवियत संघ की सेना को बाहर निकालने के लिए जिहाद को राजनीतिक हथियार बनाया


अमेरिकी विरोध के बाद भी यूक्रेन पर रूस का हमला और फिर इमरान खान का रूस को समर्थन,उनकी अपरिपक्वता और पाकिस्तान की सैन्य हितों के विपरीत माना गया इसके बाद पाकिस्तान की राजनीति में  भारी उथल पुथल हुई और सत्ता उनके हाथ से जाती रहीदेश के नए प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ बनाएं गए और विदेश मंत्री बिलावल भुट्टों। सत्ता हाथ से खिसकते के बाद इमरान खान पिछलें कई महीनों से सत्तारूढ़ दल और सेना के खिलाफ हमलावर मूड में रहे है तथा रैलियों और जलसों में शहबाज़ शरीफ की सरकार को खरीद फरोख्त की सरकार बता रहे हैउन्हें अभूतपूर्व जनसमर्थन भी मिल रहा है लेकिन सेना और आईएसआई इमरान खान की बढती लोकप्रियता से आशंकित है


लगभग डेढ़ दशक पहले पाकिस्तान में बेनजीर भुट्टों ने भी कुछ ऐसा ही साहस दिखाने की कोशिश की थी जिसके परिणाम उनकी हत्या के रूप में सामने आया। 2007 में एक रैली के दौरान ही उन्हें गोली मार दी गई थी। इस घटना के दस साल बाद यानि 2017 में पाकिस्तान की एंटी टेररिज्म कोर्ट ने पाक की पूर्व प्रधानमंत्री बेनजीर भुट्टो हत्याकांड में पूर्व राष्ट्रपति और तानाशाह परवेज मुशर्रफ की संलिप्तता पर मुहर लगाते हुए उन्हें भगोड़ा करार दिया और उनकी संपत्ति जब्त करने के आदेश दिये थे


पाकिस्तान में राजनीतिक प्रतिद्वंदिता के बीच नेताओं को देश निकाला या चुनाव लड़ने से अयोग्य करार दिया जाना व्यवहार में रहा है। बेनजीर भुट्टों को भी यही झेलना पड़ा था।  देश निकाले के आठ साल बाद वापस लौटने वाली बेनजीर भुट्टों पाकिस्तानी लोकतंत्र का एक कामयाब चेहरा बन सकती थी2007 को जब उन्होंने पाकिस्तान की सरजमीं पर कदम रखा तो लगभग तीस लाख लोगों की भीड़ उनके स्वागत में उमड़ पड़ीइस बात से पाकिस्तान का सैन्य शासन बेहद डरा हुआ था  इसके बाद उनकी हत्या कर दी गई। इससे यह भी साफ हो गया की  पाकिस्तान की सेना देश में अपनी बादशाहत बरकरार रखने के लिए सर्वोच्च स्तर के लोकतान्त्रिक नेताओं का कत्लेआम करने से भी नहीं गुरेज करती 


गौरतलब है कि पाकिस्तान सेना ने इस मुल्क के अस्तित्व में आने के बाद आधे से ज्यादा समय से तानाशाही के जरिये सीधा राज किया है और वह  किसी भी कीमत पर देश की सत्ता को अपने शिकंजे में रखती हैयही नही सेना को देश  में लोकतंत्र के संचालन में बिलकुल भी दिलचस्पी नही है और वे उसे नापसंद ही करते है यही कारण है कि पाकिस्तान का राजनीतिक इतिहास में कोई भी प्रधानमंत्री अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर पाया जब भी किसी प्रधानमंत्री ने अपने लोक लुभावन कामों से जनता का दिल जीतने की कोशिश की,सेना को कभी रास नहीं आया और लोकतान्त्रिक तरीके से चुने गए अब तक के सभी  प्रधानमंत्रियों को पद से हाथ धोना पड़ा स्वयं बेनजीर भुट्टो ने इस बात को स्वीकार किया था कि प्रधानमंत्री रहते फ़ौज में सेवारत एक मेजर ने उन्हें बताया था  की उनकी  सरकार का तख्ता पलटने के लिए गुप्तचर सेना ने पूरी तरह अस्थिरीकरण का एक कार्यक्रम बनाया है। एक माह बाद एक अन्य फ़ौजी ने उन्हें जानकारी दी की फ़ौज सुप्रीम कोर्ट से एक सौदा करने जा रही है। एक संवैधानिक संकट खड़ा करने पर राष्ट्रपति उनकी सरकार को बर्खास्त कर देंगे और बदले में मुख्य न्यायाधीश को अंतरिम प्रधानमंत्री पद का वादा किया गया। इस प्रकार पाकिस्तान में लोकतंत्र को खत्म करने के लिए सेना न्यायपालिका के साथ मिलकर साजिशों को अंजाम दे देती है।


 

 

पाकिस्तान में राजनीतिक अस्थिरता और सेना के प्रभाव को अमेरिका का समर्थन मिलता रहा है अमेरिका ने पाकिस्तान की सैन्य तानाशाही को प्रश्रय देते हुए अय्यूब ख़ान,जनरल याह्या खान,जनरल ज़िया-उल-हक़ और जनरल परवेज मुशर्रफ को भरपूर समर्थन दियासेना ने अमेरिका की आर्थिक मदद को देश के विकास से ज्यादा सैन्य सुविधाओं के लिए खर्च किए पाकिस्तान के आर्थिक हितों और विभिन्न व्यवसायों में सैन्य अधिकारियों की बड़ी भागीदारी और निजी हित रहे है। पाकिस्तान की आम जनता महंगाई से भले ही त्रस्त हो लेकिन सैनिकों की सुविधाओं से कभी समझौता नहीं किया जा सकता। सरकारें सेना के दबाव में ही देश का आर्थिक बजट तय करती है।  देश में सेना और आईएसआई की आलोचना को अपराध माना जाता हैदुनिया भर में पाकिस्तान की छवि एक ऐसे देश की बन गई है जहां सेना के समर्थन के बिना कुछ भी नहीं हो सकता। इमरान खान इस स्थिति को जानते है और फिर भी सत्ता में लौटने के लिए विरोध को अपना हथियार बना रहे है। इन सबके बीच पाकिस्तान का लोकतंत्र,सेना और धार्मिक समूहों के संगठित हितों के जाल में इस कदर उलझा हुआ है कि उसका उन्मुक्त होकर कार्य करना नामुमकिन नजर आता है


पाकिस्तान में राजनीतिक पार्टियों को व्यवस्था में पूरी तरह से हावी न होने देने को लेकर सेना सतर्क रही हैयही कारण है कि कोई भी सरकार मुश्किल से ही अपना कार्यकाल पूरा कर पाती हैचुनी हुई सरकार को सत्ता से हटाने के लिए सेना विपक्षी दलों  का सहारा भी ले लेती है,देश में व्यापक विरोध प्रदर्शन होते है और सेना देश की आंतरिक शांति भंग होने का खतरा बताकर सत्तारूढ़ पार्टी की सरकार को अपदस्थ कर देती है


इमरान खान देश में व्यवस्थागत परिवर्तन चाहते है जिसमें देश की आंतरिक और विदेश नीति पर सरकार का नियन्त्रण हो।  वे पूर्व सरकारों के शीर्ष नेताओं की अकूत सम्पत्ति को लेकर भी हमलावर रहे है। इमरान खान पाकिस्तान को अमेरिका का सैन्य अड्डा बने रहने को लेकर खुला विरोध करते रहे है।  इमरान सार्वजनिक रैलियों में जिस प्रकार राजनीतिक दलों और सेना को आड़े हाथों ले रहे है,वह भी अभूतपूर्व है। वहीं इमरान खान यदि यह सोचते है कि जन समर्थन के बूतें वे देश में क्रांतिकारी परिवर्तन लाने में कामयाब हो जायेंगे तो सेना के प्रभाव के चलते यह मुमकिन नहीं दिखाई देता।


विद्रोही तेवर के चलते ही उन पर कई प्रतिबंध लाद दिए गए है जिससे वे देश के प्रधानमंत्री नहीं बन सके। इमरान खान की छवि अमेरिका विरोधी होने से उनका सत्ता के शीर्ष पर पहुंचना खासा मुश्किल है और सेना इसे पसंद भी नहीं करेगी। लांग मार्च में इमरान खान को देश में जिस प्रकार जनसमर्थन मिल रहा है,उससे इमरान खान की सत्ता में वापसी तय है। यह स्थिति न तो शरीफ परिवार को मंजूर  होगी,न ही भुट्टों की पीपुल्स पार्टी को और न ही सेना को।  इमरान खान पर जानलेवा हमलें के बाद पाकिस्तान में आंतरिक सुरक्षा का संकट फिर गहरा गया और ऐसे समय का ही इंतजार सेना को होता है।  बहरहाल  पाकिस्तान की यह राजनीतिक अस्थिरता सैन्य शासन का एक और अवसर लेकर आई है। 

हमारा #मध्यप्रदेश के जश्न से दूर,#बालाघाट के #नक्सल प्रभावित #लांजी क्षेत्र की हकीकत naksli lanji politics

     

                                                                                                        हैदराबाद के एक पॉश इलाके में बन रही नई नवेली बिल्डिंग के नीचे कुछ मजदूर रहते है जिसमें एक 25 साल के सुनील फुहारे भी है यहां सुनील अपनी पत्नी और 1 साल के बेटे के साथ रह रहे है हैदराबाद से करीब 7 सौ किलोमीटर दूर सुनील का गांव है सांवरी खुर्द जो मध्यप्रदेश के नक्सल प्रभावित बालाघाट जिले के लांजी तहसील के अंतर्गत आता हैसांवरी खुर्द की जनसंख्या करीब दो हजार है और यहीं एक मिट्टी के मकान में सुनील के बुजुर्ग माता पिता और उसका तीन साल का बेटा सुशांत रहता हैउसे दादी दादी की देखभाल के छोड़ा गया हैसुनील को इंतजार है की उसका नाम पीएम आवास योजना में आ जाएँ तो उसका भी घर बन जाएंबालाघाट की लांझी तहसील मध्यप्रदेश के नक्सली प्रभावित हैघने जंगलों में फैली इस तहसील में करीब 76 पंचायतें है और यहां की आम समस्या पलायन है


 

लांजी छत्तीसगढ़ और महाराष्ट्र के साथ मध्यप्रदेश की सीमा के करीब स्थित है। यह जिला मुख्यालय बालाघाट से लगभग 62 किमी दूर स्थित है। लांजी से लगे दुलापुर,इटोरा,खजरी,बिसोनी,जुनेवाली से लेकर सुदूर पड़ने वाले साले टेकरी गांव के अधिकांश घरों में बुजुर्ग दिखाई देते है। यहां रहने वाले युवा मजदूरी की तलाश में हैदराबाद चले जाते है। इन गरीब इलाकों में ठेकेदारों के दलाल खास तौर पर काम करते है। ये दलाल मजदूरों को गाड़ियों में भर कर ले जाते है और इन्हें दूसरे दलालों को सौंप देते है। मजदूरों के इन दलालों के आलिशान घर लांजी में दिखाई देते है जबकि मजदूरों की हालत जस की तस होती है।

 


कुछ दिनों पहले कुछ अधिकारी लांजी के दुलापुर इलाके के हल्दीटोला में पहुंचे। अधिकारी यह पता लगाना चाहते थे की कुछ परिवार पीएम आवास की  स्वीकृत राशि क्यों नहीं ले रहे है। वे यहां रहने वाले एक बुजूर्ग भददूलाल गाडेकर के यहाँ पहुंचे। मिट्टी के घर में रहने वाले बुजूर्ग से यह पूछा गया की उनका बेटा अजबलाल कहां है। पता चला की वह मजदूरी करने हैदराबाद गया है। साथ ही बुजूर्ग ने यह भी साफ कहा की वे मिट्टी का घर नहीं तोड़ सकते क्योंकि पहले उनका बेटा कुछ पैसा कमा कर लौटेगा,तब वे पक्का मकान बना पाएंगे। पीएम आवास के तीन किश्तों में मिलने वाले डेढ़ लाख से उनका पक्का घर बनना फ़िलहाल मुश्किल है।


लांजी  की सरकारी कॉलेज में करीब पंद्रह सौ छात्र छात्राएं पढ़ते है। लांजी के घोर नक्सल प्रभावित नेवरवाही,पुजारीटोला,,चिलकोना,पितकोना, खराड़ी,बगड़ी,कादला  से लेकर साले टेकरी से आने वाले युवा यहां पढने आते हैइस इलाके में गरीबी का असर महाविद्यालय में भी देखने को मिलता हैएडमिशन लेने के बाद अधिकांश विद्यार्थी कभी कभार ही कॉलेज आ पाते हैफीस चुकाना इनके लिए मुश्किल होता है,अत: प्राचार्य से विनती करते है की इनकी छात्रवृत्ति से फीस का शुल्क काट लिया जाएंप्राचार्य साहब को मजबूरी में यह मानना पड़ता हैइसके बाद भी कई विद्यार्थी हैदराबाद से लौट नहीं पाते और इसी कारण परीक्षा देने भी नहीं आ पाते। लांजी की सरकारी कॉलेज के सामने से ही साली टेकरी का रास्ता पड़ता है। दो तीन किलोमीटर दूर घना जंगल शुरू हो जाता है। यहां नदी और पहाड़ों के बीच से होकर करीब 50 किलोमीटर आगे चलना होता है। रास्ते में कई छोटे छोटे गांव पड़ते है जहां मिट्टी के खपरैल अधिकांश दिखते है। न रोजगार की व्यवस्था और न ही रोटी की जरूरत पूरा करने के संसाधन।


मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ की सीमा पर घुघरा चौकी है,वहीं महाराष्ट्र से लगने वाला सितापाली गांव भी है,जो गोंदिया को जिले को छूता है। महाराष्ट्र का नक्सली हमलों के लिए कुख्यात जिला गढ़चिरोली भी पास ही है। इस साल जून में बालाघाट से करीब 90 किमी दूर बहेला थाना क्षेत्र की ग्राम पंचायत पंद्री के ग्राम कंदला से करीब चार किमी दूर पुलिस ने तीन नक्सलियों को मार गिराया थामध्यप्रदेश के बालाघाट की लांजी तहसील में आने वाले क्षेत्र में मारे गए ये नक्सली कई राज्यों की पुलिस की हिट लिस्ट में शामिल थे और इन पर लाखों के इनाम थेतीनों नक्सलियों पर तीन राज्यों में 58 लाख रपये का इनाम घोषित था। इसमें बोटेझरी गढ़चिरोली महाराष्ट्र का 38 वर्षीय डिवीजन कमेटी सदस्य नागेश उर्फ राजू तुलावी था जिस पर मध्यप्रदेश में छह लाख,महाराष्ट्र में 16 लाख व छत्तीसगढ़ में आठ लाख का इनाम घोषित था। वहीं बस्तर का रहने वाला 23 वर्षीय दड़ेकसा दलम में एरिया कमेटी सदस्य मनोज भी शामिल था जिस पर मप्र में तीन लाख,महाराष्ट्र में छह लाख व छत्तीसगढ़ में पांच लाख का इनाम था। इसी तरह एरिया कमेटी सदस्य दक्षिण बस्तर सुकमा निवासी महिला नक्सली रामे भी मारी गई जिस पर मप्र में तीन लाख,महाराष्ट्र में छह लाख व छत्तीसगढ़ में पांच लाख का इनाम घोषित था।

 

बालाघाट के  पिछड़े इलाकों में महिला नक्सलियों की वीरता का बखान करने वाले पोस्टर अक्सर देखे जाते है। पुलिस मुठभेड़ में मारी गई जमुना इस क्षेत्र का चर्चित नाम है। इसी प्रकार कोरची की रहने वाली रीता,गढ़चिरोली की शोभा,कसानपुर की रानो,रशिमेता की संगीता,बोतेझरी की जानकी,बस्तर की सविल और चांदनी, कसनपुर की जिन्धू,बस्तर की शारदा,शांति,शर्मिला,सावत्री और सुनीता समेत कुछ और अन्य महिला नक्सली है और इनका डर इतना की नक्सली हमलों के कुख्यात और रेड कॉरिडोर का मध्य केंद्र बालाघाट में अजीब से ख़ामोशी रहती है।  मध्य प्रदेश,छतीसगढ़ और महाराष्ट्र से लगे बालाघाट और आसपास कई महिला नक्सली काम कर रही है। 10 जुलाई 2019  बालाघाट के जंगल के इलाके लांजी के नेबर वाही गांव में पुलिस के साथ एक मुठभेड़ में 22 साल की महिला नक्सली नंदे मारी गई थी। इसके पास से पुलिस को जो दस्तावेज मिले थे उसमे  पुरुष नक्सलियों के साथ महिला नक्सलियों के नाम भी थे। इन नक्सलियों की पहचान दलम से होती है और बालाघाट के इलाके में इनका संगठन एमएमसी के नाम से जाना जाता है। एम  का अर्थ मध्यप्रदेश,एम से महाराष्ट्र और सी से  छत्तीसगढ़ होता है। अभी बालाघाट इलाके में मलाजखंड दलम, टांडा दलम और दर्रे कसा दलम कार्य करते है

 

 रेड कॉरिडोर के अंतर्गत आने वाले इस इलाके की आर्थिक और भौगोलिक स्थिति नक्सल के लिए बहुत मुफीद है। नक्सली इन क्षेत्रों में अपनी गतिविधियों को बढ़ाने की योजना  बनाते है यह त्रिकोणीय जंक्शन उनकी मजबूती का आधार है

  

ऐसा भी नहीं है की इन इलाकों से नक्सलवाद समाप्त नहीं हो सकतालांजी के दूरस्थ इलाकों में बांस और जैव संसाधन पर आधारित उद्योग स्थापित करने से पलायन भी रुक सकता है और नक्सल गतिविधियों से लोगों को दूर रखने में मदद भी मिल सकती है इन इलाकों में जंगल,पिछड़ापन और गरीबी ठीक उसी तरह है जैसे छत्तीसगढ़ के बस्तर,बीजापुर,दंतेवाड़ा,कांकेर,नारायणपुर या सुकमा में आदिवासियों के हालात हैजाहिर है  बालाघाट के लांजी  के विकास और रोजगार  के बिना हमारे सशक्त मध्यप्रदेश की परिकल्पना अधूरी है

 

 

 

 

brahmadeep alune

पुरुष के लिए स्त्री है वैसे ही ट्रांस वुमन के लिए भगवान ने ट्रांस मेन बनाया है

  #एनजीओ #ट्रांसजेंडर #किन्नर #valentines दिल्ली की शामें तो रंगीन होती ही है। कहते है #दिल्ली दिलवालों की है और जिंदगी की अनन्त संभावना...