जनसत्ता
उदारवादी पूंजीवादी देश ब्रिटेन की भारत के साथ सहयोग उच्च
स्तर पर ले जाने और पसंदीदा भागीदार बनने
की कोशिशें अब साकार हो सकती है। ऋषि सुनक के ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बनने से उम्मीदें मजबूत
हुई थी और जी-20 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से उनकी मुलाकात के बाद इस बात की
संभावनाएं बढ़ गई है कि निकट भविष्य में दोनों देशों के बीच मुक्त व्यापार समझौता
अस्तित्व में आ जायेगा। दरअसल
बाली में जी-20 सम्मेलन के दौरान ऋषि सुनक ने तीन हजार भारतीयों को वीजा देने की
घोषणा कर अपने सकारात्मक इरादें जाहिर कर यह संदेश देने की कोशिश की की उनकी
अर्थव्यवस्था को ब्रेक्ज़ीट के बाद मिलने वाले झटकों से उबारने के लिए भारत एक
महत्वपूर्ण सहयोगी बनने जा रहा है। यूरोप से दूर अपने आर्थिक भविष्य को तलाशने की ब्रिटिश कोशिशों को 2010
में ही साफ करते हुए ब्रिटेन के तत्कालीन प्रधानमंत्री डेविड केमरून ने कहा था कि भारत
और ब्रिटेन के संबंध पसंदीदा भागीदारी वाले होने चाहिए। इसके पहले 2005 में दोनों के बीच निवेश
को प्रोत्साहित करने के लिए संयुक्त आर्थिक और व्यापारिक स्थापना जो चुकी थी।
लेकिन वीजा नियमों,भारतीय समुदाय
पर होने वाले नस्लीय हमलों और कश्मीर को लेकर ब्रिटेन की राजनीतिक नीतियों में
दोहरापन समस्याओं को बढ़ाता रहा। भारत के
आंतरिक मामलों पर भी लेबर पार्टी का दृष्टिकोण नकारात्मक रहा है। इन सबके साथ पिछले कुछ वर्षों में ब्रिटिश
राजनीतिक घटनाक्रम और अस्थिरता भी दोनों देशों के बीच रिश्तों में गर्माहट न आने
का एक प्रमुख कारण रही।
अब परिस्थितियां बदली है तथा भारत और ब्रिटेन के सम्बन्ध पहले
से अधिक मजबूत और प्रभावी बनने की और अग्रसर दिखाई दे रहे है। ब्रिटेन
और पश्चिमी यूरोपीय देशों की अर्थव्यवस्थाएं जहां सिकुड़ रही हैं वहीं भारत की
अर्थव्यवस्था लगातार आगे बढ़ रही है। तमाम
चुनौतियों के बावजूद भी भारत ने अपनी विकास दर की रफ़्तार को बनाए रखा है। ब्रिटेन में आई आर्थिक मंदी और भारत का
उसे अर्थव्यवस्था में पछाड़ कर आगे निकल जाने से दोनों देशों के बीच आर्थिक सम्बन्ध
मजबूत होने की संभावनाओं को और बढ़ा दिया। इस समय ब्रिटिश अर्थव्यवस्था अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही
है। अमेरिकन डॉलर के मुकाबले ब्रिटिश पाउंड की कीमत निचले स्तर पर
है। नए टैक्स प्लान से
ब्रिटेन पर कर्ज बढ़ रहा है,जो पहले ही बहुत है। बढती महंगाई से आम लोगों की मुश्किलें बढ़ गई है। बेरोजगारी तेजी से बढ़ी है तथा लोगों की
आमदनी कम हुई है। शेयर
बाज़ार में लगातार गिरावट से देश की साख भी गिर रही है। यूरोपीय संघ में
साझा हितों के चलते ब्रिटेन के नागरिक मंदी के शिकार नहीं हुए थे जिससे उनका उच्च
रहन सहन भी प्रभावित नहीं हुआ था।
ब्रिटेन जब तक यूरोपीय संघ के 27
देशों के संगठन में शामिल था तब तक इन देशों के नागरिक ईयू के सभी
सदस्य देशों में आवाजाही,रहने,काम करने और कारोबार के लिए स्वतंत्र रहे। ईयू के सदस्य देशों
के कारोबारी सीमाओं पर बिना किसी रोक-टोक और बिना किसी टैक्स के अपने सामान ख़रीद
और बेच सकते हैं। ब्रिटेन ईयू से बाहर निकलने
वाला पहला देश बना और 31 जनवरी 2020 को ब्रिटेन आधिकारिक तौर पर यूरोपीय संघ
से अलग हो गया था। ईयू से अलग होने से हुए आर्थिक नुकसान की
भरपाई के लिए ब्रिटेन भारत की और देख रहा है जो दुनिया का सबसे बड़ा बाज़ार है तथा निवेश के अवसर असीम हैं।
यह भी दिलचस्प है कि ब्रिटेन में बसने वाले अप्रवासियों में सबसे बड़ी तादाद
भारतीयों की ही है जिनकी आबादी तकरीबन 16 लाख है। भारतीय ब्रिटेन के
कारोबार का अहम हिस्सा तो है ही,सांस्कृतिक,तकनीकी और राजनीतिक रूप से भी उनकी
भागीदारी बेहद महत्वपूर्ण मानी जाती है। ब्रिटेन में भारतीयों का आना संयोग नहीं बल्कि राजनीतिक भी
रहे है। भारत और ब्रिटेन के बीच 250 साल से भी अधिक पुराना संबंध है। दोनों ही देश सांस्कृतिक संस्थानों और अंग्रेज़ी से माध्यम
से जुड़े हैं। दोनों देशों के आपसी संबंधों को
मज़बूत रखने में ब्रिटेन में रहने वाले प्रवासी भारतीयों की अहम भूमिका है। ये प्रवासी भारतीय ब्रिटेन और भारत के बीच एक पुल का काम
कर रहे हैं। आज़ादी के पहले और बाद में कुछ समय तक भारत से लोगों को काम के लिए यहाँ बुलाया
गया था। अफ़्रीकी देशों की
आज़ादी के बाद वहां से भारतीय ब्रिटेन आकर
बसे। वैश्वीकरण के दौर में
बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने काम के लिए भारत से पेशेवर लोगों को ब्रिटेन लाना शुरू
किया।
दूसरी और ब्रिटेन
में भारत की भूमिका भी बेहद महत्वपूर्ण है। ब्रिटेन में विभिन्न
स्तरों पर अनेक नई परियोजनाएं
शुरू करने के मामले में भारत अग्रणी देशों में शुमार है। ब्रिटेन की अर्थव्यवस्था में भारत की कंपनियों की अहम
भूमिका है। भारतीयों की 800
से ज़्यादा कंपनियों ने ब्रिटेन में 1 लाख से
ज़्यादा लोगों को रोज़गार दिया है। भारत
के 21 हज़ार से ज़्यादा छात्र ब्रिटेन में पढ़ाई कर रहे
हैं।
ब्रिटेन के
लिए शिक्षा आय बढ़ाने का बड़ा माध्यम है,लेकिन
उसकी वीजा को लेकर कड़ी नीतियों से परेशान भारतीय छात्र अब अमरीका,ऑस्ट्रेलिया और
जर्मनी में पढ़ाई या नौकरी के लिए जा रहे है।
भारत और ब्रिटेन के आर्थिक साझा
हितों के साथ कई वैश्विक हित भी है। दोनों देश क्षेत्रीय स्तर पर अलगाव का सामना कर रहे
हैं।
ब्रिटेन यूरोपीय संघ से बाहर हो गया है
और भारत ने भी चीन-केंद्रित क्षेत्रीय व्यापक आर्थिक साझेदारी में शामिल होने से इंकार कर दिया है। इन चुनौतियों के बीच भारत और ब्रिटेन
के लिये द्विपक्षीय संबंधों हेतु रोडमैप 2030 को लागू करने का एक अवसर है। भारत
और ब्रिटेन के बीच एक मुक्त व्यापार समझौते से आयात और निर्यात प्रवाह में वृद्धि,निवेश प्रवाह
में वृद्धि,संसाधनों के अधिक कुशल आवंटन के माध्यम से उत्पादकता में वृद्धि और अंतर्राष्ट्रीय
प्रतिस्पर्द्धा के लिये अधिक खुलेपन से आर्थिक विकास एवं समृद्धि में वृद्धि होने
की उम्मीद है। इस समझौते से 2035 तक दोनों
देशों के बीच सालाना कारोबार 28 अरब पाउंड तक बढ़ जाएगा. साल
2021 में दोनों देशों के बीच 24 अरब
पाउंड का कारोबार हुआ था। भारत के साथ कारोबारी समझौता करना ब्रिटेन सरकार की सबसे
महत्वाकांक्षी नीतियों में से एक है।
पिछले
दो दशकों में ब्रिटेन और चीन ने उत्कृष्ट
द्विपक्षीय संबंध साझा किए,इनमें से पहले दशक को वर्ष 2015
में चीन के साथ संबंधों का स्वर्णिम दशक घोषित किया गया था। लेकिन इस समय चीन और ब्रिटेन के
संबंध अस्थिरता की और बढ़े है। खासकर ताइवान और वीगर मुसलमानों पर
ब्रिटेन का रुख चीन विरोधी रहा है। पिछले वर्ष चीन ने सात ब्रिटिश सांसदों पर यात्रा प्रतिबंध लगाए थे और
उनकी संपत्ति ज़ब्त कर ली थी। चीन का कहना था कि ये सांसद वीगर
मुसलमानों के साथ बर्ताव को लेकर झूठ और दुष्प्रचार फैला रहे थे।
बाद में ब्रिटेन में चीनी राजदूत को ब्रिटिश
संसद में एक कार्यक्रम में बोलने से रोक दिया गया था। इस कार्यक्रम की मेजबानी में ब्रिटेन के कई दलों के सांसद
शामिल थे।
जाहिर है चीन से नाराज ब्रिटेन से भारत की रक्षा
सम्बन्ध भी मजबूत हो सकते है। भारत हिंद-प्रशांत क्षेत्र में बाज़ार हिस्सेदारी और रक्षा दोनों ही
क्षेत्रों में ब्रिटेन के लिये एक प्रमुख रणनीतिक भागीदार है।
हिंद प्रशांत में ब्रिटेन एक क्षेत्रीय शक्ति है,उसके पास ओमान,सिंगापुर,बहरीन,केन्या और ब्रिटिश हिंद
महासागर क्षेत्र में नौसैनिक सुविधाएं हैं। चीन की समुद्र में आक्रामक नीति से
निपटने के लिए भारत और ब्रिटेन के बीच रणनीतिक सहयोग देश की सामरिक सुरक्षा के लिए
महत्वपूर्ण हो सकता है।
रक्षा क्षेत्र में भारत की आत्मनिर्भरता हासिल करने
में भी ब्रिटेन से क़रीबी तालमेल बहुत उपयोगी हो सकता है तथा मेड इन इंडिया के तहत
इस क्षेत्र में विदेशी निवेश की भारी गुंजाइश है। भारत को चाहिए कि ब्रिटेन से वह जैव प्रौद्योगिकी में
नई खोजों के क्षेत्र में सहयोग करे। इस क्षेत्र में ब्रिटेन काफी आगे है। भारत
के सामने चुनौती है कि ब्रिटेन जैसे देशों को अंतर्राष्ट्रीय मामलों में अपनी नीति
के निकट लाए।
भारत चाहता है कि ब्रिटेन संयुक्त राष्ट्र और
दूसरे बहुराष्ट्रीय संस्थानों में भारत का साथ दे। यहीं नहीं भारतीयों
के लिए वीज़ा सुविधाएं आसान करने की भी अपेक्षा
भारत करता रहा है। भारत के व्यवसायी ब्रिटेन में
रहकर ही यूरोप में कारोबार करते है। भारत चाहता है कि भारतीयों के पास ब्रिटेन में काम करने और वहां रहने के अधिक से अधिक अवसर हो।
ब्रिटेन के साथ किसी भी तरह के कारोबारी समझौते में भारत की प्राथमिकता भारतीय
छात्रों और पेशेवरों के लिए वीज़ा नियमों में राहत हासिल करना रही है।
अगर दोनों देशों के बीच मुक्त व्यापार समझौता हो जाता है तो कपड़ा,चमड़ा, आभूषण,आईटी,फ़ार्मा
और कृषि जैसे क्षेत्रों में भारत के निर्यात को काफ़ी बढ़ावा मिलने की उम्मीद है।
ब्रिटेन विश्व की छठवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था,संयुक्त राष्ट्र
सुरक्षा परिषद का एक स्थायी सदस्य,एक वैश्विक वित्तीय केंद्र,तकनीकी नवाचार का
केंद्र और एक प्रमुख साइबर शक्ति है।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी भारत को 2047 तक विकसित राष्ट्र बनाने की बात कहते रहे
है। इसके लिए भारत को आर्थिक,सामाजिक और कूटनीतिक स्तर पर बहुत सशक्त
होने की जरूरत है। भारत की अर्थव्यवस्था अभी भी आगे
बढ़ रही है। अगर अगले चार-पांच सालों तक भी भारत की अर्थव्यवस्था बढ़ती रही तब
भी प्रति व्यक्ति आय के पश्चिमी देशों के स्तर तक पहुंचने में अभी बहुत वक़्त
लगेगा। ब्रिटेन से मजबूत सम्बन्धों का लाभ भारत को कई स्तरों पर मिल
सकता है। मुक्त व्यापार समझौते से दोनों देशों के बीच वस्तुओं और सेवाओं के
आयात और निर्यात में रुकावटों को कम करना होगा।
इस समझौते के तहत् वस्तुओं और सेवाओं को अंतरराष्ट्रीय
सीमाओं के पार ख़रीदा और बेचा जा सकता है,जिसके लिए बहुत कम सरकारी शुल्क,कोटा तथा
सब्सिडी जैसे प्रावधान किए जाते हैं। इस समझौते से व्यवसाय करने वाले दोनों देशों को फ़ायदा होता है। लेकिन इसमें रुकावटें भी है। ब्रिटेन की राजनीतिक अस्थिरता कब
करवट लें ले,यह कहा नहीं जा सकता वहीं आत्मनिर्भर
भारत अभियान से वैश्विक
स्तर पर इस भ्रम में वृद्धि हुई है कि भारत तेज़ी से एक संरक्षणवादी बंद बाज़ार
अर्थव्यवस्था में बदलता जा जा रहा है। ऐसे में यह देखना दिलचस्प होगा कि ब्रिटेन
की मुक्त व्यापार समझौते की उच्च आकांक्षा और भारत में संरक्षणवादी बाज़ार व्यवस्था
के भ्रम के बीच दोनों देश कैसे पसंदीदा भागीदार के रूप में आगे बढ़ेंगे।