जनसत्ता
नाटो की यूरोप और अमेरिकी महाद्वीप को संतुलित और नियंत्रित रखने की नीति चीन की आर्थिक रणनीति और रूस की सामरिक आक्रामकता के आगे बूरी तरह पस्त पड़ चुकी है। लातिन अमेरिका और कैरिबियाई देशों में चीन सहायता कूटनीति का एक आक्रामक अभियान चला रहा है जिसे वह लिबेरो अमेरिका या अमेरिका से आज़ादी के तौर पर प्रचारित करता है। ब्राज़ील,मेक्सिको और कोलंबिया चीन से आर्थिक साझेदारी को लेकर दीर्घयोजना को आगे बढ़ा है वहीं क्यूबा, निकारागुआ और वेनेज़ुएला जैसे देश अमेरिका को ठेंगा दिखाकर चीन से व्यापक आर्थिक समझौते को लेकर आगे बढ़ चूके है। चीन इन देशों के क्षेत्रीय संगठन सीईएलएसी के साथ अपने रिश्तों को उंचाई पर ले जा रहा है और यह अर्जेंटीना के नेतृत्व में हो रहा है।
लातिन अमेरिका और कैरिबियाई देश चीन की बेल्ट रोड योजना का अहम हिस्सा बन चुके है। वेनेज़ुएला और क्यूबा अमेरिका विरोध के चलते चीन के समर्थन में खड़े है। अल साल्वाडोर और होन्डुरास जैसे देशों में भी चीन अपना प्रभुत्व बढ़ाने की कोशिश कर रहा है। पश्चिम यूरोप में भी चीन तेजी से आगे बढ़ रहा है,चीन का नया सिल्क रोड पांच महाद्वीपों में फैला बुनियादी परियोजनाओं का एक महत्वाकांक्षी नेटवर्क है जिसके सहारे वह अमेरिकी महाद्वीप और नाटो के सहयोगी देशों के साथ आर्थिक साझेदारी को आगे बढ़ा रहा है।
चीन मध्य-पूर्वी यूरोपीय देशों के सदात व्यापक रणनीति के तौर पर काम कर रहा है उनमें अल्बानिया,बोस्निया एवं हर्जेगोविना,बुल्गारिया,क्रोएशिया,चेक गणराज्य,एस्टोनिया,ग्रीस,हंगरी,लात्विया,उत्तरी मेसिडोनिया,मॉन्टेनिग्रो, पोलैंड,रोमानिया,सर्बिया,स्लोवाकिया और स्लोवेनिया शामिल हैं। इसमें कई देश नाटो सैन्य संगठन का हिस्सा है जिसकी स्थापना ही साम्यवाद को रोकने के लिए हुई थी। यूरोप के चारो और से घेर लेने की नीति की तहत चीन बाल्कन देशों के साथ सहयोग को लेकर निरंतर आगे बढ़ रहा है। ये देश रणनीतिक रूप से भी बेहद महत्वपूर्ण है। अमेरिका चीन को एशिया प्रशांत क्षेत्र के लिए खतरनाक बताता है जबकि चीन पश्चिमी बाल्कन देशों के उन महत्वपूर्ण समुद्री मार्गों पर प्रभाव बढ़ा रहा है जो पश्चिमी यूरोप,उत्तरी अफ़्रीका और पश्चिम एशिया से क़रीब हैं। चीन आर्थिक समझौतों के साथ ही यूरोप के कई बंदरगाहों में रूचि दिखा रहा है। वह ग्रीस के सबसे महत्वपूर्ण बंदरगाह पिरेयस की व्यवस्थाओं का संचालन करता है,तुर्की के तीसरे बड़े पोर्ट कुम्पोर्ट पर भी चीन का ही नियंत्रण है। इसके साथ-साथ दक्षिण यूरोप के कई बंदरगाहों में चीन की भागीदारी है। पश्चिमी बाल्कन देशों में चीन का निवेश दोगुना हो गया है,इन देशों पर चीन का कर्ज बढ़ता जा रहा है और यह स्थिति अमेरिका और यूरोप को चिंता में डालने वाली है। यूरोपीय संघ के करीबी अल्बानिया,नॉर्थ मेसिडोनिया,मॉन्टिनेग्रो,सर्बिया,बोस्निया एवं हर्ज़ेगोविना चीन के कर्ज के जाल में फंसे हुए देश है। चीन लातिन अमेरिका,कैरिबियाई और बाल्कन देशों के साथ सांस्कृतिक सम्बन्धों को भी आगे बढ़ा रहा है। इन देशों से बड़ी संख्या में छात्र चीन के विश्वविद्यालयों में जा रहे हैं,सर्बिया और मॉन्टिनेग्रो में तो कई स्कूलों में कंफ्यूशियस क्लासरूम तक खोले गए हैं।
चीन के आर्थिक और सांस्कृतिक सहयोग का असर कूटनीतिक रूप से भी दिखने लगा है। अमेरिका वीगर मुसलमानों के अधिकारों को लेकर मुखर है वहीं बाल्कन के देश चीन की आलोचना के किसी भी प्रस्ताव में कोई दिलचस्पी नही दिखाना चाहते। बाल्कन प्रायद्वीप दक्षिण-पूर्वी यूरोप का एक बड़ा क्षेत्र है और यहां इस क्षेत्र में चीन की कूटनीतिक बढ़त रणनीतिक बढ़त नहीं बन जाएं,इसे लेकर अमेरिका और नाटो आशंकित है। बाल्कन दक्षिणी यूरोप का सबसे पूर्वी प्रायद्वीप है और यह तीन ओर से समुद्र से घिरा हुआ है। इसके पूर्व में काला सागर, ईजियन सागर,मरमरा सागर,दक्षिण में भूमध्यसागर,पश्चिम में इयोनियन सागर तथा एड्रियाटिक सागर हैं। चीन का इस क्षेत्र में बढ़ा रुतबा अमेरिका और नाटो पर रणनीतिक बढ़त लेता हुआ दिखाई देता है।
लातिन अमेरिका में रूस की नीति भी बेहद प्रभावशाली रही है। पुतिन ने 2000 के दशक की शुरुआत से ही इस क्षेत्र में सहयोग को आगे बढ़ाया है और यह चुनौतीपूर्ण है। ऐसा माना जाता है कि रूस और चीन ने मिलकर दुनिया में एक नया ब्लोंक बनाने की कोशिश की है और वे इसमें काफी हद तक सफल भी हो रहे है।
यूक्रेन को लेकर रूस की आक्रामकता और इस पर वैश्विक दबाव का काम न करना भी दुनिया के सबसे बड़े सैन्य संगठन नाटो की प्रासंगिकता पर सवाल खड़े कर रहा है। अन्तराष्ट्रीय राजनीति में हस्तक्षेप को एक तानाशाही दखलंदाजी माना जाता है जो एक राष्ट्र दूसरे राष्ट्र के मामलों को पलटने के लिए करता है। पूर्वी यूरोप के इस्टोनिया,लातविया,लिथुआनिया,पोलैंड और रोमानिया में अमेरिका के नेतृत्व में नाटो के सैनिक तैनात है। इसके साथ ही नाटो ने बाल्टिक देशों और पूर्वी यूरोप में हवाई निगरानी भी बढ़ाई है जिससे आकाश से भी रूस पर नजर रखी जा सके। यूक्रेन पर रूस के हमले के बाद यह साफ हो गया कि रूस पर दबाव बनाने की नाटो और अमेरिका की यह योजना कारगर नहीं हो सकी। यह स्थिति नाटो और अमेरिका को परेशान करने वाली है।
2008 में नाटो के बुखारेस्ट सम्मेलन में नाटो सहयोगियों ने सदस्यता हेतु यूक्रेन और जॉर्जिया की यूरो-अटलांटिक आकांक्षाओं का समर्थन किया था तथा इस बात पर सहमति व्यक्त जताई थी की ये देश नाटो के सदस्य बन जाएंगे। लेकिन रूस ने अमेरिका के पूर्व की ओर नाटो क्षेत्र के विस्तार के विकल्प को खारिज कर दिया और नाटो की असल चुनौती यही से बढ़ गई। दुनिया के सबसे बड़े सैन्य संगठन नाटो का एक प्रमुख लक्ष्य साम्यवादी सोवियत संघ के कूटनीतिक,राजनीतिक और सामरिक प्रभाव को सीमित करना था जिसमें उसने सफलता भी पाई। लेकिन पिछले दो दशक में रूस में पुतिन के प्रभाव तथा चीन की आक्रामक सहायता कूटनीति से वैश्विक परिदृश्य पूरी बदल गया है।
2008 में जॉर्जिया और यूक्रेन को अपने गठबंधन में शामिल करने के नाटो के इरादे की घोषणा के बाद रूस ने जॉर्जिया पर आक्रमण किया तथा उसके कई क्षेत्रों पर नियंत्रण कर लिया। इसके बाद 2014 में रूस ने यूक्रेन के क्रीमिया पर कब्ज़ा कर लिया। इस समय भी यूक्रेन रूस के हमलों के बाद तबाह होने की कगार पर है।
नाटो की हर किसी के लिए दरवाजे खुले रखने की नीति कमजोर हो चूकी है और वह यूक्रेन के मामलें में चाह कर भी कुछ न कर सका है। यूक्रेन नाटो में शामिल होने को लेकर एक तय समयसीमा और संभावना स्पष्ट करने की मांग करता रहा है। जबकि नाटो रूस के दबाव के आगे बेबस हो गया और अब तो यूक्रेन के राष्ट्रपति जेंलेंसकी भी यह साफ कह चूके है कि नाटो रूस से डर गया।
नाटो और अमेरिका के खिलाफ रूस और चीन का रणनीतिक सहयोग खुले रूप से उभर कर सामने आ रहा है। इस साल बीजिंग शीतकालीन ओलंपिक खेलों के आयोजन का अमेरिका ने राजनयिक बहिष्कार किया था। वहीं रूस और अमेरिकी विरोधी देशों ने इसे अवसर की तरह लिया। अर्जेंटीना और इक्वाडोर के राष्ट्रपतियों ने अमेरिका के कूटनीतिक बहिष्कार को नज़रअंदाज़ कर शीतकालीन ओलंपिक खेलों के उद्घाटन समारोह में हिस्सा लिया और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग से मुलाक़ात की। यूक्रेन पर रूस के हमलों की आशंकाओं के बीच बीजिंग शीतकालीन ओलंपिक खेलों के समापन हुआ। इसके बाद रूस ने यूक्रेन पर हमला कर दिया। ऐसा लगता है कि चीन यूक्रेन हमलें से अपने आयोजन के प्रभावित होने को लेकर आशंकित था और इसीलिए रूस ने इस आयोजन के खत्म होने का इंतजार किया।
यूक्रेन को लेकर अमेरिकी और नाटो की नीति का असर दुनिया के कई क्षेत्रों में रणनीतिक रूप से पड़ सकता है। नाटो और अमेरिका के विरोध को नजरअंदाज कर रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने पूर्वी यूक्रेन के पृथकतावादी विद्रोही इलाक़े दोनेत्स्क और लुहांस्क को स्वतंत्र राज्य की मान्यता दे दी। रूस आधिकारिक से रूप यहां दाख़िल हो गया और आश्चर्य नहीं इसके रूस में विलय की जल्द घोषणा कर दी जाएं। ऐसा भी नहीं है कि पुतिन यूक्रेन तक ही सीमित रहेंगे। हो सकता है पुतिन आगे चलकर पोलैंड,बुल्गारिया और हंगरी में भी यूक्रेन जैसी ही सैन्य कार्रवाई कर सकते है। एशिया के कई देश यूक्रेन संकट में रूस का विरोध करने से बचे है और यह स्थिति अमेरिका और नाटो को असहज करने वाली है। अफगानिस्तान में तालिबान का सत्ता में लौटना और नाटो सेनाओं द्वारा उसे अस्थिर छोड़ जाने से इस सैन्य संगठन की प्रतिष्ठा धूमिल हुई है।
लातिन अमेरिकी की ब्राज़ील,चिली,अर्जेंटीना जैसी कई बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में चीन पहले ही द्विपक्षीय व्यापार में अमेरिका से आगे बढ़ चुका है। पेरू,वेनेज़ुएला,कोलंबिया,इक्वाडोर जैसे देश चीन के प्रभाव में है। इन देशों का चीन से सहयोग बढने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। ऐसे में चीन का सैन्य खतरा अमेरिका और यूरोप के मुहाने पर होगा तथा रूस की भूमिका खतरनाक स्थिति पैदा कर सकती है। ताइवान को लेकर चीन की आक्रामक नीति को अभी तक अमेरिका रोकने में कामयाब रहा था लेकिन आने वाले समय में भी यह दबाव काम करें,इसकी संभावना कम हो गई है।
शक्ति संतुलन को लेकर कोई भी स्पष्ट विचार नहीं हो सकता क्योंकि प्रत्येक राष्ट्र केवल ऐसे संतुलन में विश्वास रखता है जो उसके पक्ष में हो और यहीं से दूसरे पक्ष में असंतुलन स्थापित हो जाता है। अभी तक नाटो और अमेरिका सैन्य संतुलन कायम करने के लिए दुनिया के किसी भी हिस्से पर सैन्य कार्रवाइयों को अंजाम देते रहे है। लेकिन यूक्रेन पर हमले के बाद रूस की परमाणु युद्द की धमकी के आगे नाटो बेबस नजर आया है। यूक्रेन में नाटो के रणनीतिक प्रतिकार से बचने की नीति से वैश्विक शक्ति संतुलन को लेकर असमंजस बढ़ गया है।
चीन
और रूस को रोकने के लिए नाटो और अमेरिका
के सामने आर्थिक और सामरिक मोर्चे पर कई चुनौतियां है। चीन का यूरोप और
अमेरिका महाद्वीप में आर्थिक रूप से बढ़ता प्रभाव कैसे कम किया जाएं इसे लेकर कोई
प्रभावी योजना नाटो के पास फ़िलहाल नहीं है,वहीं रूस के परमाणु हमलों से बचने का
यूरोप के पास कोई सुरक्षा कवच भी फ़िलहाल नहीं है। यह पहले से कहीं आक्रामक,नई
साम्यवादी,आर्थिक और सामरिक चुनौती है जिसका सामना करने का सामर्थ्य अमेरिका और नाटो
के पास फ़िलहाल तो नहीं है।