जनसत्ता
इतिहास को फिर से गढ़ने की महत्वाकांक्षाएं अक्सर विध्वंसक परिणामों से आशंकित रहती है। चीन और रूस जैसे देश अपने स्वर्णिम इतिहास को दोहराने की कोशिशों में भौगोलिक और सांस्कृतिक विखंडन को दरकिनार करना चाहते है जो असम्भव होकर अस्थिरता को बढ़ाता है। इसके बाद भी इन राष्ट्रों की शक्ति की अतिप्रबलता से सब कुछ हासिल करने की कोशिशें बदस्तूर जारी है और यह विश्व शांति के लिए बड़ी चुनौती बनता जा रहा है।
दरअसल पूर्वी यूरोप का यूक्रेन संकट करीब एक हजार साल पहले कीवयाई रूस की उस ऐतिहासिक पहचान से प्रभावित है,जिसे रुसी राष्ट्रपति पुतिन किसी भी स्थिति में बनाएं और बचाएं रखने के लिए दृढ संकल्पित नजर आते है। कीवयाई रूस मध्यकालीन यूरोप का एक राज्य था। आधुनिक रूस,बेलारूस और यूक्रेन राष्ट्र तीनों अपनी पहचान कीवयाई रूस राज्य से लेते हैं। अब यह राज्य अलग अलग है लेकिन जहां यूक्रेन रुसी पहचान से अलग होने को बेताब है वहीं रूस और बेलारूस साथ साथ खड़े नजर आते है। यूक्रेन पर दबाव बनाने के लिए रूस ने बेलारूस में अपने सैनिकों के साथ अत्याधुनिक और विध्वंसक हथियार जमा कर दिए है। रूस यूक्रेन को केवल एक अन्य देश के रूप में नहीं देखता है। उसका दृष्टिकोण यूक्रेन को बहुस्लाविक राष्ट्र मानता है। रूस सामरिक सुरक्षा के लिए भी यूक्रेन पर निर्भर रहा है और उसे कूटनीतिक और सैन्य रणनीति की धुरी के तौर पर देखता है। यूक्रेन रूस की पश्चिमी सीमा पर है,जब उस पर दूसरे विश्व युद्ध के दौरान पश्चिम से हमला हुआ था तब ये यूक्रेन का ही क्षेत्र था जहां से उसने अपनी रक्षा की थी। यूक्रेन की सीमा पश्चिम में यूरोपीय देशों और पूर्व में रूस के साथ लगती है।
पिछले तीन दशक में मध्य और
पूर्वी यूरोप की राजनैतिक स्थिति में बड़े बदलाव हुए है और इससे सामरिक
प्रतिद्वंदिता में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है। इस क्षेत्र में दुनिया की
बड़ी शक्तियों के बीच भू-राजनीतिक मुक़ाबला चरम पर है। यूक्रेन पश्चिमी देशों के साथ
अपने संबंधों को मज़बूत करने की लगातार कोशिश कर रहा है। 1991 में सोवियत संघ के बिखराव
के बाद यूक्रेन एक स्वतंत्र देश के रूप में उभरा था। यूक्रेन का भौगोलिक जुड़ाव यूरोप से है और
इसे सामरिक रूप से एक शक्तिशाली देश माना
जाता है। इसका एक कारण यह भी है कि
अविभाजित सोवियत संघ के अधिकांश आणविक केंद्र यूक्रेन में रहे थे अत: यह न केवल
रूस के लिए अहम बना रहा बल्कि यूरोपियन देशों की नजर भी इस पर बनी रही। 2002 में
जब युक्रेन ने नाटो में शामिल होने की आधिकारिक
प्रक्रिया शुरू करने का ऐलान किया तो पुतिन को यह नागवार गुजरा।
कुख्यात ख़ुफ़िया एजेंसी केजीबी का मानना है
कि पश्चिमी देशों के गोपनीय अभियानों के कारण
सोवियत संघ का विघटन हुआ था। पुतिन केजीबी के अधिकारी रहे है और उनके कार्यों में बदला और
पुराना गौरव लौटाने की चेष्टा अक्सर दिखाई देती है। उन्होंने यूक्रेन को
कमजोर करने के लिए उसके एक क्षेत्र क्रीमिया में अलगाव उत्पन्न करके 2014 में उसका
रूस में विलय कर दिया था। इसकी वैश्विक हलकों में कड़ी आलोचना हुई। इसके बाद रूस के ख़िलाफ़
प्रतिबंध लगाए गए थे और पश्चिम के साथ इसके अलगाव को और बल मिला था।
क्राइमियाई शहर सेवास्तोपोल का बंदरगाह प्रमुख
नौसैनिक अड्डा है और 1783 से काला सागर
बड़े पोतों का ठिकाना रहा है। सेवास्तोपोल में रूसी पोतों की मौजूदगी रूस और यूक्रेन में तनाव का
केंद्र है।
संयुक्त राष्ट्र संघ के चार्टर में अहस्तक्षेप
को अंतर्राष्ट्रीय विधि का आधार माना गया है लेकिन महाशक्तियों के हस्तक्षेप शक्ति
संतुलन का माध्यम रहा है। रुसी राष्ट्रपति पुतिन का प्रभुत्ववादी
व्यक्तित्व वैश्विक स्तर पर कूटनीतिक आशंकाओं को बढ़ाता रहा है। नाटो
और अमेरिका को स्वयं की शक्ति का आभास तो है लेकिन वे पुतिन के अप्रत्याशित और
अविश्वसनीय कदमों से विचलित रहे है। नाटो के विस्तार को लेकर रूस और अमेरिका के
बीच मतभेद होते रहे है,वहीं यूक्रेन का
विवाद पुतिन की साम्राज्यवादी महत्वाकांक्षाओं को प्रतिबिंबित करता है। यूक्रेन को लेकर रूस की आक्रामक
नीतियों में पुतिन की अधिकनायकवादी विचारधारा प्रभावी रही है,जिसके अनुसार रूस के पड़ोसियों की नीतियां रूस के हितों से अलग नहीं हो
सकती और जब भी कोई देश ऐसा करने की मंशा दर्शाता है,पुतिन आक्रामक
हो जाते है। इस समय रूस यूरोप से लगे अपने पड़ोसी यूक्रेन की सीमा पर रूस का पूरा
दबाव है और यह युद्द की पूर्व स्थितियों को दर्शा रहा है। रूस
का आरोप है कि नाटो यूक्रेन को लगातार हथियारों की आपूर्ति कर रहे हैं और अमेरिका
दोनों देशों के बीच के तनाव को भड़का रहा है। रूस चाहता है कि नाटो की
सेनाएं 1997 के पहले की
तरह सीमाओं पर लौट जाए तथा नाटो गठबंधन
पूर्व में अब अपनी सेना का और विस्तार न करे और पूर्वी यूरोप में अपनी सैन्य
गतिविधियां बंद कर दे। इसका मतलब ये होगा कि नेटो
को पोलैंड और बाल्टिक देशों एस्टोनिया,लातविया और लिथुआनिया से अपनी सेनाएं वापस
बुलानी होगी।
यूक्रेन को लेकर रूस का अविश्वास उसे किसी हद
तक ले जा सकता है। रूस
को यह लगता है कि यूक्रेन को नाटो का
समर्थन यूरोपियन देशों की बड़ी साजिश का हिस्सा है। रूस पर सामरिक दबाव
बनाने के लिए नाटो और अमेरिका के लिए यूक्रेन निर्णायक भूमिका में नजर आता है। नाटो
की सर्वोच्च प्राथमिकताओं में से एक समुद्री सुरक्षा है। जिसके लिये नाटो ने अटलांटिक
महासागर और हिन्द महासागर को केंद्र में रखा है,यहीं नहीं उसके लिए काला सागर सामरिक रूप से बहुत अहम है जो रूस और यूक्रेन से भी जुड़ा है। नाटो
जमीन,आसमान,स्पेस और साइबर चुनौतियों
से निपटने के लिए अपनी सेना को अत्याधुनिक बनाने की ओर अग्रसर है,इसमें उसकी सीधी प्रतिद्वंदिता रूस और चीन से है। काला
सागर उत्तर-पूर्व में रूस और यूक्रेन
तथा दक्षिण में तुर्की के बीच स्थित है।
वहीं यूक्रेन का आरोप है कि रूसी खुफिया एजेंसी
केजीबी यूक्रेन को तोड़ने के लिए वहां रह रहे रूसी मूल के लोगों को भड़काने की योजना
पर लगातार काम कर रही है। अमेरिका ने इसकी पुष्टि भी की है। इस समय जब यूक्रेन की
सीमा पर भारी तनाव है,उसका असर अमेरिका और रूस के
सम्बन्धों पर भी पड़ता दिखाई दे रहा है।
गौरतलब
है कि सोवियत संघ के विघटन के बाद रूस के नेतृत्व में सामूहिक सुरक्षा और सामूहिक
हितों के प्रति एक दूसरे पर निर्भरता बढ़ाने के लिए एक स्वतंत्र राष्ट्र संगठन
सीआईएस का गठन 8 दिसम्बर 1991 को किया गया था जिसे
मिंस्क समझौता कहा जाता है। सोवियत
संघ के विघटन के परिणामस्वरूप अस्तित्व में आये राज्यों की सीआईएस के अंतर्गत सामूहिक नीतियां बनाई गई। यह
संगठन मुख्य रूप से व्यापार,वित्त,कानून निर्माण,सुरक्षा तथा सदस्यों के मध्य समन्वय
स्थापित करने जैसे कार्य करता है। इस संगठन की
स्थापना में यूक्रेन का भी अहम योगदान माना जाता था। लेकिन रूस को लेकर यूक्रेन के हस्तक्षेप से अब स्थितियां बदल गई
है।
अमेरिकी राष्ट्रपति बाइडन ने रूस को चेतावनी दी है कि रूस ने यदि यूक्रेन पर हमला किया तो उस पर कड़े प्रतिबंधों का सामना करना पड़ेगा। कूटनीतिक रूप से यह माना जा रहा है कि रूस के लिए सबसे बड़ा आर्थिक झटका ये हो सकता है कि रूस के बैंकिंग सिस्टम को अंतरराष्ट्रीय स्विफ़्ट पेमेंट सिस्टम से काट दिया जाए।
वहीं यूक्रेन संकट में रूस के साथ चीन का आना नई
आर्थिक और सामरिक व्यवस्था की संभावनाओं को बढ़ा सकता है। यूक्रेन में संकट बढ़ने पर चीन अगर रूस का खुले
रूप से समर्थन करता है तो यूरोपियन यूनियन इसका विरोध कर सकता है। यूरोपियन यूनियन,चीन का दूसरा सबसे बड़ा
ट्रेडिंग पार्टनर है। यूक्रेन संकट के बढ़ने पर पश्चिम के देश रूस पर भी प्रतिबंध लगा सकते हैं,ऐसे में चीन,रूस
को बड़ी आर्थिक मदद दे सकता है। इस मदद में वैकल्पिक भुगतान व्यवस्था तैयार
करना,रूस के बैंकों और फ़र्म को लोन देना और रूस से तेल की ख़रीद जैसी चीज़ें चीन
कर सकता है। 1991 में सोवियत संघ के विघटन और वैश्वीकरण की नीति के बाद वैश्विक
परिस्थितियां बदलने के साथ चीन का आर्थिक दबदबा बढ़ा और उसे रूस पर बढ़त हासिल हो गई। इसी का प्रभाव है कि चीन का रूस से सीमा विवाद लगभग समाप्त हो
चूका है। 2004 में रूस और चीन के बीच हुए
समझौते में सेंट्रल एशिया के कई द्वीपों को रूस ने चीन को सौंप दिया था। इस समय चीन और रूस आर्थिक साझेदारी को लगातार बढ़ा रहे है,चीन रूस
से गैस और हथियार खरीद रहा है,वहीं चीन की कई कम्पनियां रूस में बड़े पैमाने पर
निर्माण में मदद कर रही है। दुनिया के सबसे बड़े
आर्थिक गलियारे ‘वन बेल्ट-वन रोड’ परियोजना को लेकर 2017 में चीन में द्वारा आयोजित शिखर सम्मेलन में रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर
पुतिन शामिल हुए थे। चीन रूस का बढ़ता
सहयोग अमेरिका और नाटो की चिंता को बढ़ा सकता है। चीन
रूस के मुकाबले कही बेहतर प्रतिद्वंदी बनकर अमेरिका के सामने आ रहा है और बाइडन
इससे निपटने के लिए मुख्य रूप से यूरोप की ओर देख रहे है। नाटो यूरोप और उत्तरी अमेरिका के
देशों के मध्य एक सैन्य गठबंधन है जिसका उद्देश्य साम्यवाद और रूस का प्रभाव कम
करना रहा है। अब चीन की बढती ताकत से साम्यवाद के मजबूत होने की आशंका नाटो को
परेशान कर रही है। अमेरिका
और चीन के बीच जारी ट्रेड वॉर पर भी रूस का रुख साम्यवाद को मजबूत करता नजर आया जो
वैश्विक तौर पर चीन रूस की भागीदारी को प्रतिबिम्बित करता है।
जाहिर है
यूक्रेन को लेकर जो युद्द की आशंकाएं गहरा रही है,उसका वैश्विक असर बेहद खतरनाक हो
सकता है। यह नए शीत युद्द के उभरने के स्पष्ट संकेत है जो पहले से ज्यादा
विनाशकारी हो सकते है। वैश्विक समुदाय को इस
संघर्ष को किसी भी हाल भी बढ़ने से रोकना होगा।
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