राष्ट्रीय
सहारा
युक्तिमूलक सौदेबाज़ी में कूटनीतिक दांवपेंचों का सहारा लेते हुए सारपूर्ण तथ्य प्राप्त करने की इच्छा रहती है और इसके पीछे शक्ति के प्रबल तत्व रहते है। भारत का पड़ोसी देश श्रीलंका चीन की युक्तिमूलक सौदेबाज़ी के कुचक्र में बूरी तरह फंस गया है। दक्षिण एशिया का यह सबसे खूबसूरत देश अपने पर्यटन बाज़ार और चाय के बूते कभी खुशहाल माना जाता था लेकिन राजपक्षे परिवार का चीन के प्रति अतिशय और अदूरदर्शी प्रेम कर्ज के जंजाल का कारण बन गया है। इस समय यहां पर महंगाई दर में 12 फीसदी से ज्यादा की अभूतपूर्व वृद्धि हो गई है। बढ़ते बजट घाटे के बीच श्रीलंका ने कम ब्याज दर बनाए रखने की कोशिश में ढेर सारी मुद्रा छापी है। रोजमर्रा की चीजों के भाव आसमान को छू रहे है। देश के पास विदेशी मुद्रा के भण्डार तेज़ी से ख़त्म भी हो रहे हैं। श्रीलंका के पास महज डेढ़ अरब डालर की विदेशी मुद्रा बची है जो तीन साल पहले करीब साढ़े सात डालर हुआ करती थी। श्रीलंका के केंद्रीय बैंक सेंट्रल बैंक ऑफ़ श्रीलंका ने अपने पास रखे आधे से अधिक गोल्ड रिज़र्व को बेच दिया है। लेकिन इन सबसे लोगों को कोई राहत मिलती दिखाई नहीं दे रही है।
अंतर्राष्ट्रीय रेटिंग संस्था फिच ने भी अपनी रेटिंग में श्रीलंका
को नीचे कर दिया है। इस प्रकार दक्षिण
एशियाई क्षेत्र में दूसरे देशों की तुलना में श्रीलंका सबसे बुरी आर्थिक स्थिति
में खड़ा हुआ है। श्रीलंका
के राष्ट्रपति गोटाबाया राजपक्षे देश में पहले ही आर्थिक आपातकाल की घोषणा कर चुके
हैं जिसमें सेना को खाद्यान्नों के वितरण के लिए विशेष अधिकार भी दिए गए हैं।
किसी गरीब देश के ढांचागत,संस्थागत और क्रमिक विकास को दरकिनार कर उसे तेजी से अमीर बनाने की राजपक्षे बंधुओं की राजनीतिक धून श्रीलंका के अस्तित्व पर प्रहार करने वाली साबित हुई है। राजनीतिक सत्ता का फायदा उठाकर और सिंहली राष्ट्रवाद को हवा देकर राजपक्षे बंधुओं ने चीन से ऐसे समझौते किए जो उसे उपनिवेश बनाने के लिए पर्याप्त थे। इस दौरान संविधानिक नियमों को भी नजरअंदाज कर दिया गया। दुबई और सिंगापूर की तर्ज पर अंतर्राष्ट्रीय व्यापार का केंद्र श्रीलंका को बनाने की चीनी पेशकश को आँख मूंदकर स्वीकार कर लिया गया। पिछले साल श्रीलंका की संसद ने पोर्ट सिटी इकोनॉमिक कमिशन बिल पारित किया था। यह बिल चीन की वित्तीय मदद से बनने वाले इलाकों को विशेष छूट देता है। विशेष आर्थिक ज़ोन विकसित करने और विदेशी निवेश को आकर्षित करने के नाम पर बनाये गए इन कानूनों को लेकर न तो विपक्षी दलों से बात की गई और न ही देश में आम राय कायम करने की कोशिश की गई। पोर्ट सिटी कोलंबो,श्रीलंका की व्यावसायिक राजधानी में 269 हेक्टेयर परिसर में फैली 1.4 अरब डॉलर की एक भूमि सुधार परियोजना है। इस परियोजना का निर्माण कार्य और फंडिंग चाइना हार्बर इंजीनियरिंग कंपनी कर रही है। इसमें से 116 हेक्टेयर की ज़मीन चीनी कंपनी को 99 साल के लिए लीज़ पर दी गई है।
श्रीलंका का कायापलट करने के नाम पर विकसित की जा रही इस परियोजना
को लेकर आलोचकों का कहना है कि पोर्ट सिटी का इस्तेमाल मनी लॉन्ड्रिंग और दूसरे
वित्तीय घपलों के लिए किया जाएगा। चीन पर हथियारों के अवैध कारोबार
के आरोप तो पहले ही लगते रहे है।
इसके पहले चीन के छोटे किसानों के हितों की अनदेखी करके सरकार जैविक खेती के चीन के व्यापारिक मॉडल में उलझ गई। सरकार ने अचानक ही रासायनिक खाद और कीटनाशकों पर प्रतिबंध लगा दिया,इससे कृषि समुदाय पर व्यापक रूप से असर पड़ा है और कृषि अर्थव्यवस्था चौपट हो गई है। श्रीलंकाई सरकार ने पिछले साल मई में ये फ़ैसला लिया था कि वो जैविक खाद से खेती करने वाला दुनिया का पहला देश बनेगा और अचानक ही सभी रासायनिक खाद के आयात को बंद करने के बाद यह ऑर्डर चीन को दिया था। इसके लिए जैविक खाद बनाने वाली चीन की कंपनी क़िंगदाओ सीविन बायोटेक ग्रुप से 49.7 मिलियन अमेरिकी डॉलर का भारी भरकम समझौता किया गया। चीन ने अपनी बेल्ट ऐंड रोड परियोजना के तहत श्रीलंका को अरबों डॉलर का कर्ज़ दिया है। इस समय श्रीलंका चीन के क़र्ज़ तले दबा हुआ है और यह अंदेशा है कि कर्ज न चूका पाने की स्थिति में श्रीलंका के अधिकांश क्षेत्रों का चीन अधिग्रहण कर सकता है।
अंतर्राष्ट्रीय राजनीति में महाशक्तियाँ आर्थिक सहायता के नाम पर पर पिछड़े,अतिपिछड़े,विकासशील और अल्प विकसित राष्ट्रों का दोहन करती रही है। इन नीतियों से एशिया और अफ्रीका के कई देश गृहयुद्द के शिकार हो गए। श्रीलंका कुछ सालों पहले ही तमिल समस्या को नियंत्रित करने में सफल हुआ था और अब यह देश दिवालिया होता है तो हिंसक संघर्ष में फिर से घिर सकता है। महंगाई बढ़ने से लोग परेशान है,इससे आम जनता में नाराजगी बढ़ती जा रही है। सरकार को राजस्व मिलना बंद हो सकता है। टैक्स देना लोग बंद कर सकते है और ऐसे में नए नोट छापने का कोई मतलब नहीं रह जाता है। सरकार लोगों से अपील कर रही है कि उनके पास विदेशी मुद्रा हो तो वे श्रीलंकाई मुद्रा के बदले उसे जमा करें। वहीं संकट गहरा रहा है कि लोग देश की मुद्रा स्वीकार करना बंद न कर दे क्योंकि हर मिनट उसका मूल्य गिरने की आशंका बढ़ती जा रही है।
श्रीलंका ने अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष से आर्थिक सहायता हासिल करने की काफी कोशिशें की। लेकिन आईएमएफ़ ने उसकी मांग को अनसुना कर दिया क्योंकि देश की मौजूदा सरकार एजेंसी के हिसाब से आर्थिक सुधार के एजेंडे पर अमल करने का इरादा नहीं रखती थी। अगले कुछ महीनों में सरकार और श्रीलंका के निजी सेक्टरों को क़रीब सात अरब डॉलर के क़र्ज़ का भुगतान करना है। जबकि श्रीलंका के केंद्रीय बैंक के अनुसार देश के पास कुल विदेशी मुद्रा ख़त्म होने की कगार पर पहुँच गया है।
इन सबके बीच यह देखने में आया है कि चीन के आर्थिक शक्ति के रूप में उभार के बाद दिवालिया होने की स्थिति में कोई भी देश अमेरिका परस्त एजेंसियां आईएमएफ़ और वर्ल्ड बैंक पर निर्भर नहीं हैं। चीन श्रीलंका को दिवालिया होने से बचाएं रखने की कीमत पर उसका अपने सामरिक और आर्थिक हितों के लिए भरपूर दोहन कर सकता है। इससे भारत की सुरक्षा चिंताओं में भारी इजाफा हो सकता है। हालांकि भारत ने श्रीलंका को संकट से उबारने के लिए उसकी आर्थिक मदद तो की है लेकिन चीन के मुकाबले यह बहुत कम है।
चीन
ने श्रीलंका में हम्बनटोटा पोर्ट का निर्माण कर हिंद महासागर में भारत की चुनौती
को बढ़ा चूका है।
श्रीलंका ने चीन को लीज़ पर समुद्र
में जो इलाक़ा सौंपा है वह भारत से महज़ 100 मील की दूरी पर है। चीन भारत को हिन्द महासागर में स्थित
पड़ोसी देशों के बन्दरगाहों का विकास कर चारो और से घेरना चाहता है। हिन्द महासागर में अपनी स्थिति मजबूत
रखने के लिए भारत को श्रीलंका से संबंध भी मधुर रखना है और तमिलों के अधिकारों की
रक्षा भी करना है। वहीं श्रीलंका में अस्थिरता भारत का संकट बढ़ा सकती है। फ़िलहाल
चीन म्यांमार की तर्ज पर श्रीलंका में भी राजनीतिक अस्थिरता कायम करने की और
अग्रसर है।
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