राष्ट्रीय सहारा
सामरिक
महत्वाकांक्षाएं अक्सर रणनीतिक होती है जबकि आर्थिक और राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं
में यथार्थवाद हावी होता है। यूक्रेन के वैश्विक संकट के बीच पाकिस्तान के
प्रधानमंत्री इमरान खान का रूस का सफर असमंजस बढ़ा गया। दरअसल दक्षिण एशिया का
भूराजनीतिक वातावरण पाकिस्तान की कुटिल नीतियों से बूरी तरह प्रभावित रहा है और
इससे अनिश्चिताओं में वृद्धि हुई है।
भारत रूस और पाकिस्तान के किसी भी प्रकार के सम्बन्धों को लेकर इतना सजग रहा है कि किसी पाकिस्तान के प्रधानमंत्री को रूस जाने के लिए 23 साल तक इंतजार करना पड़ा।यह भी बेहद दिलचस्प है कि यूक्रेन संकट पर भारत की बेहद सधी हुई प्रतिक्रिया रही और इसे रूस की और झूका हुआ देखा गया।इन सबके बीच बदलते वैश्विक परिदृश्य में भारत को रूस की भी जरूरत है और अमेरिका भी उसका बढ़ा सामरिक और आर्थिक साझेदार है।खासकर सीमा पर चीन की बढ़ती चुनौतियों के बीच भारत को रूस,अमेरिका और यूरोपियन देशों से मित्रतापूर्ण सम्बन्धों की समान जरूरत है,ऐसे में यूक्रेन संकट ने भारत की राजनैतिक चुनौतियां बढ़ा दी है।यूक्रेन को लेकर रूस और पश्चिम के देश आमने-सामने हैं। इस समय भारत के लिए चुप रहना मुश्किल है लेकिन राष्ट्रीय हितों की रक्षा के लिए रुको और देखों की नीति ही भारत के लिए अंतिम विकल्प नजर आती है।
दरअसल भारत अपनी कुल रक्षा ज़रूरतों का 70 फ़ीसदी हथियार रूस से आयात करता है,दुनिया के किसी भी दूसरे देश के साथ भारत का इतने विशाल स्तर पर सामरिक सहयोग नहीं है।1974 में भारत द्वारा किया गया परमाणु परीक्षण हो या युद्धपोत पनडुब्बी,आधुनिकतम टैंक,मिसाइल तकनीकी,स्पेस तकनीकी या पंचवर्षीय योजनाएं रुस ने एक अच्छे मित्र की तरह सदैव भारत के पक्ष में आवाज बुलन्द की है।सीमा पर चीन की आक्रामता को देखते हुए भारत को न केवल रूस की ज़रूरत है बल्कि अमेरिका और यूरोप की भी ज़रूरत है। सीमा पर चीनी आक्रामकता को लेकर अमेरिका भारत के समर्थन में बोलता रहा है। चीन को नियंत्रित करने के लिए भारत ने अमेरिका और अन्य देशों के साथ समुद्री सहयोग के जरिये क्वाड का हिस्सा बनकर बड़ा दांव खेला है।दूसरी तरफ़ यूरोप और अमेरिका भी भारत के अहम साझेदार हैं। भारत-चीन सीमा पर निगरानी रखने में भारतीय सेना को अमेरिकी एयरक्राफ़्ट से मदद मिलती है। सैनिकों के लिए विंटर क्लोथिंग भारत अमेरिका और यूरोप से ख़रीदता है। ऐसे में भारत न तो रूस को छोड़ सकता है और न ही पश्चिम को।
शक्ति संतुलन की व्यवस्था अस्थाई और अस्थिर होती है,वैश्विक राजनीति में शक्ति संतुलन को शांति और स्थिरता बनाये रखने का एक साधन माना जाता है। इसके लिए सबसे ज्यादा जरूरी है वैदेशिक नीति में आवश्यकता के अनुसार बदलाव करना और उसकी गतिशीलता को बनाये रखना। भारत की हिन्द महासागर को लेकर वर्तमान नीति शक्ति संतुलन पर आधारित है।हिन्द महासागर की सुरक्षा को लेकर भारत मुखर रहा है और उस पर चीन का प्रभाव उसे आशंकित भी करता रहा है।2007 में स्थापित क्वाड भारत, जापान,संयुक्त राज्य अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया का समूह है जो स्वतंत्र,खुले और समृद्ध’ हिंद-प्रशांत क्षेत्र को सुरक्षित करने की बात कहते रहे है। हालांकि इन चार देशों के साझा उद्देश्य को लेकर चीन के साथ रूस इसकी आलोचना करता रहा है।अमेरिका की नजर हिन्द प्रशांत क्षेत्र के रणनीतिक और आर्थिक महत्व पर भी है। इस क्षेत्र में चीन ने कई देशों को चुनौती देकर विवादों को बढ़ाया है। चीन वन बेल्ट वन रोड परियोजना को साकार कर दुनिया में अपना प्रभुत्व स्थापित करना चाहता है और उसके केंद्र में हिन्द प्रशांत क्षेत्र की अहम भागीदारी है। चीन पाकिस्तान की बढ़ती साझेदारी ने भी समस्याओं को बढ़ाया है। चीन पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट का प्रमुख भागीदार है। श्रीलंका का हंबनटोटा पोर्ट,बांग्लादेश का चिटगाँव पोर्ट,म्यांमार की सितवे परियोजना समेत मालद्वीप के कई निर्जन द्वीपों को चीनी कब्ज़े से भारत की सामरिक और समुद्री सुरक्षा की चुनौतियां बढ़ गई है। दक्षिण चीन सागर का इलाक़ा हिंद महासागर और प्रशांत महासागर के बीच है और चीन,ताइवान,वियतनाम,मलेशिया,इंडोनेशिया,ब्रुनेई और फिलीपींस से घिरा हुआ है। यहाँ आसियान के कई देशों के साथ चीन विवाद चलता रहता है। अभी तक चीन पर आर्थिक निर्भरता के चलते अधिकांश देश चीन को चुनौती देने में नाकामयाब रहे थे।अब क्वाड के बाद कई देश खुलकर चीन का विरोध करने लगे है और यह भारत की सामरिक सुरक्षा के लिए सकारात्मक सन्देश है।इन सबके बीच रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने पूर्वी यूक्रेन के पृथकतावादी विद्रोही इलाक़े को स्वतंत्र राज्य की मान्यता देकर संकट को बढ़ा दिया है।पूर्वी यूक्रेन में स्वघोषित पीपल्स रिपब्लिक ऑफ़ दोनेत्स्क और लुहांस्क रूस समर्थित विद्रोहियों का घर है,ये विद्रोही 2014 से ही यूक्रेन से लड़ रहे हैं।2014 में रूस ने यूक्रेन के क्राइमिया को अपने में मिला था तो भारत ने रूस के पक्ष में अपना समर्थन दिया था लेकिन अब स्थितियां बदल गई है।ताजा यूक्रेन संकट में क्वॉड में भारत एकमात्र देश है जो रूसी आक्रामकता की अनदेखी कर रहा है,लेकिन उसका रूस का खुलकर पक्ष लेना अमेरिका समेत यूरोपीय सहयोगियों को नाराज कर सकता है।
वहीं पश्चिम के देश रूस पर प्रतिबंध लगा रहे है और इसका फायदा चीन को मिल सकता है,ऐसी स्थिति में चीन-रूस की क़रीबी और बढ़ेगी। यह स्थिति पाकिस्तान और रूस की नजदीकियां बढने के लिए भी मुफीद हो सकती है।पाकिस्तान ऊर्जा की किल्लत से जूझ रहा है और रूस के लिए गैस बेचने का यह बढ़ा अवसर हो सकता है।पिछले कुछ वर्षों में रूस के साथ पाकिस्तान के सामरिक सम्बन्ध भी बढ़े है।2014 में राष्ट्रपति पुतिन ने पाकिस्तान से हथियारों को लेकर प्रतिबंध हटा लिया था।रूसी मिग-35M कॉम्बैट हेलिकॉप्टर को लेकर पाकिस्तान से एक समझौता भी हुआ था।2018 में रूस-पाकिस्तान सैन्य सहयोग समझौते के बाद पाकिस्तानी सेना के अधिकारियों को रूसी सेना ने ट्रेनिंग दीथी तथा दोनों देशों के बीच कई बार आतंकवाद विरोधी सैन्य अभ्यास भी हो चुका है।अफ़ग़ानिस्तान से अमेरिकी नेतृत्व वाला सैन्य गठबंधन वापस जाने से पाकिस्तान और रूस के बीच रक्षा सहयोग बढ़ा है और यह भारत की चिंता बढ़ाने वाला है।
दूसरी ओर यूक्रेन संकट बढ़ने से भारत में तेल की कीमतों में इजाफा हो सकता है और कोरोनाकाल से अर्थव्यवस्था को उबारने का संकट फ़िलहाल बढ़ सकता है।रूस पर पश्चिमी देशों के प्रतिबंध से भारत का वह अहम सैन्य सौदा प्रभावित होगा जिसे लेकर अभी तक अमेरिका खामोश रहा है।अमेरिका ने रूस से एस-400 मिसाइल सिस्टम ख़रीदने के लिए भारत के ख़िलाफ़ अभी तक कोई प्रतिबंध नहीं लगाया है,लेकिन अब अमेरिका इस पर विचार कर सकता है।एस-400 रूस का बेहद आधुनिक मिसाइल सिस्टम है।इसकी तुलना अमेरिका के बेहतरीन एयर डिफ़ेंस सिस्टम पैट्रिअट मिसाइल से होती है। यह सिस्टम मिलने से भारत को चीन और पाकिस्तान पर सामरिक बढ़त हासिल हो सकती है और इसकी वर्तमान में जरूरत भी है।
अंतर्राष्ट्रीय
राजनीति का यथार्थवादी सिद्धांत यह कहता है कि किसी सम्प्रभु राष्ट्र के लिए शक्ति,शक्ति संतुलन,राष्ट्रीय हित और राष्ट्रीय सुरक्षा
जैसी संकल्पनाएं महत्वपूर्ण है और राष्ट्र की सुरक्षा उसका स्वयं का दायित्व है।यूक्रेन-रूस
संकट भारत की विदेश नीति के लिए परीक्षा की घड़ी है।