जनसत्ता
आठवे दशक में प्रवेश कर चूका पाकिस्तान का निर्देशित जनतंत्र अब भारत के समतावादी लोकतंत्र की उपयोगिता और परिणामों को समझने को मजबूर हुआ है। पाकिस्तान की नई सुरक्षा नीति में पहली बार भू राजनैतिक और सामरिक नीति पर भू आर्थिक नीति को तरजीह देने की बात कहीं गई है। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान इस समय देश को दिवालिया होने से बचाने की कड़ी चुनौती से जूझ रहे है। उनकी चिंता नई सुरक्षा नीति में प्रतिबिम्बित हो रही है जिसमें यह कहा गया है कि सैन्य रूप से पाकिस्तान जितना भी मजबूत हो लेकिन अगर इसकी अर्थव्यवस्था मजबूत नहीं होगी तो ये अपनी आज़ादी और संप्रभुता की हिफाजत नहीं कर सकता है। उन्होंने स्पष्ट किया है कि नई सुरक्षा नीति का फोकस देश की अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने पर है और अब से विदेश नीति में भी आर्थिक कूटनीति को आगे बढ़ाने पर ध्यान दिया जाएगा।
दरअसल
पाकिस्तान ने नई सुरक्षा नीति के जरिए अपने देश की जनता और वैश्विक समुदाय को यह
संदेश देने की कोशिश की है वह एक ऐसे राष्ट्र के रूप में उभरने को तैयार है जहां
व्यापार और व्यवसाय के लिए बेहतर माहौल हो तथा प्रशासन भी इसी के अनुरूप हो। पाकिस्तान
इस समय गहरे आर्थिक संकट में फंसा हुआ है,कर्ज उस पर लगातार बढ़ रहा है। पड़ोसी
देशों से सम्बन्ध बेहद नाजुक है,वैश्विक आर्थिक प्रतिबंधों का वह सामना करने को
मजबूर है तथा 2023 में होने वाले आम चुनावों में इमरान खान के सामने सत्ता बचाएं
रखने की असल चुनौती भी है।
1947 में भारत से विभाजित होकर अस्तित्व में आये पाकिस्तान ने लगातार राजनीतिक अस्थिरता का सामना किया है। अजनतांत्रिक और तानाशाहों से अभिशिप्त इस दक्षिण एशियाई देश के लोग लगातार अपने सैन्य शासकों की सामरिक असुरक्षा की नीति के बहकावे में आते रहे। यहीं कारण है कि पाकिस्तान खस्ताहाल और कंगाल राष्ट्र बनकर अपने अस्तित्व के संकट से बुरी तरह जूझ रहा है। आज़ादी के बाद भारत की नीति समावेशी विकास और शांति पर आधारित रही वहीं पाकिस्तान 1950 के दशक में ही शीतकालीन सैन्य गुट सिएटों और सैंटो का सदस्य बनकर वैश्विक शक्तियों के सामरिक हितों का संवर्धन करने वाला माध्यम बन गया। पाकिस्तान का भारत विरोध का यह तात्कालिक तरीका वहां की जनता को पसंद आया और इसी कारण सैन्य शासकों की तख्तापलट की नीतियों को बढ़ावा मिला। इन सबमें विकास,आधुनिक शिक्षा,महिलाओं और अल्पसंख्यकों की सुरक्षा को दरकिनार किया जाता रहा जिसके दुष्परिणाम अब सामने आ रहे है। पाकिस्तान पर विदेशी क़र्ज़ अब तक के उच्चतम स्तर पर पहुँच गया है,नया क़र्ज़ लेकर देश पर क़र्ज़ का और बोझ डाला जा रहा है। पाकिस्तान फ़ेडरल बोर्ड ऑफ़ रेवेन्यू यानी एफ़बीआर के पूर्व चेयरमैन शब्बर ज़ैदी यह कह चूके है कि पाकिस्तान दिवालिया हो चुका है। देश पर घरेलू और विदेशी क़र्ज़ 50 हज़ार अरब रुपये से भी अधिक हो गया है। पाकिस्तान का विदेशी क़र्ज़ सवा अरब डॉलर को पार कर गया है जो देश के इतिहास में उच्चतम स्तर पर पहुंच गया है। क़र्ज़ के इस बोझ में आईएमएफ़,अंतरराष्ट्रीय वित्तीय संस्थानों,पेरिस क्लब और विदेशों से लिए गए क़र्ज़ों के साथ-साथ स्थानीय स्तर पर कमर्शियल बैंकों से लिया गया क़र्ज़ भी शामिल है।
धार्मिक और अतिवादी संगठन शासन प्रशासन पर पूरी तरह से हावी हो गए है और वे कानून के राज को अक्सर चुनौती देते नजर आते है। इसका एक प्रमुख कारण विभिन्न सरकारों की धार्मिक अतिवादी नीतियाँ भी रही है जिससे प्रशासन तंत्र भी प्रभावित हुआ है। मदरसों को आधुनिक शिक्षा से ज्यादा धार्मिक शिक्षा की और मोड़ दिया गया जिसके दीर्घकालीन परिणाम बेहद खतरनाक हुए है। दुनिया के कई भागों में होने वाले आतंकी हमलों के तार पाकिस्तान से जुड़ते रहे है। पाकिस्तान की सरकार और सेना पर आतंकियों को मदद देने के आरोप के चलते कई वैश्विक आर्थिक विकास वाली संस्थाओं ने पाकिस्तान को मदद देने से इंकार किया है। अलकायदा और तालिबान जैसे आतंकी संगठनों की मदद देने से अमेरिका नाराज है और उसने पाकिस्तान को दी जानी वाली अरबों डालर की सहायता को रोक दिया है। पाकिस्तान इस समय चीन के बेशुमार कर्ज के जाल में उलझा हुआ नजर आता है। चीन के उच्च दर ब्याज से कर्ज में पाकिस्तान डूबता जा रहा है। चीन पर पाकिस्तान की निर्भरता इतनी बढ़ गई है कि वह उसका आर्थिक निवेश बनने की कगार पर है। व्यापार और सामरिक दृष्टि से पाकिस्तान के सबसे महत्वपूर्ण ग्वादर बंदरगाह पर उसका अपना नियन्त्रण नहीं है और उस पर चीन का नियंत्रण हो गया है। ग्वादर में पैसे के निवेश की साझेदारी और उस पर नियंत्रण को लेकर चीन से पाकिस्तान का 40 सालों का समझौता है। चीन का इसके राजस्व पर 91 फ़ीसदी अधिकार होगा और ग्वादर अथॉरिटी पोर्ट को महज 9 फ़ीसदी मिलेगा। इस प्रकार अप्रत्यक्ष रूप से पाकिस्तान के पास 40 सालों तक ग्वादर पर नियंत्रण नहीं रहेगा। पाकिस्तान की अधिकांश परियोजनाएं चीन की आर्थिक सहायता से संचालित हो रही है और इसमें चीन का 80 फ़ीसदी हिस्सा है।
पाकिस्तान की नई सुरक्षा नीति में क्षेत्रीय स्तर पर सहयोग बढ़ाने की बात की गई है लेकिन उसका रास्ता बिल्कुल आसान नहीं है। भारत से सम्बन्ध ख़राब होने से वहां रोजमर्रा की जरूरतों के सामान में भारी वृद्धि हो गई है और इसका सीधा असर जनता पर पड़ रहा है। दोनों देशों के बीच व्यापार 2019 से बंद है। पुलवामा में चरमपंथी हमले के बाद भारत सरकार ने पाकिस्तान से मोस्ट फ़ेवर्ड नेशन का दर्ज छीन लिया था और वहाँ से आयात होने वाली चीज़ों पर कस्टम ड्यूटी 200 फ़ीसदी तक बढ़ा दी थी। इसके बाद पाकिस्तान ने भी भारत से आयात पर प्रतिबंध लगा दिया था।
पाकिस्तान में जहाँ कपड़ा उद्योग और चीनी का बाज़ार इससे प्रभावित हुआ है, वहीं भारत में इसके कारण सीमेंट उद्योग, छुहारे और सेंधा नमक के बाज़ार पर असर पड़ा। भारत दुनिया का एक बड़ा बाज़ार है और पाकिस्तान की भारत पर कपड़े और दवा उद्योग के कच्चे माल के लिए भारी निर्भरता रही है। पाकिस्तान का कपड़ा उद्योग बड़े औद्योगिक क्षेत्रों में से एक है और उसके कुल आयात में इसकी भागीदारी साठ फीसदी तक है। पाकिस्तान में कपास की ज़्यादा मांग है, क्योंकि कपास की कम घरेलू पैदावार के बीच कपड़ा निर्यात बढ़ चुका है। वहीं, दूसरे देशों की तुलना में भारत में चीनी के दाम बेहद कम हैं। पाकिस्तान ने जब भारत के साथ व्यापार प्रतिबंधित किया,उसके बाद उसने ब्राज़ील, चीन और थाइलैंड से चीनी आयात करना शुरू कर दिया। इसके कारण चीनी की सप्लाई कम हो गई और घरेलू बाज़ार में इसके दाम बढ़ गए।
पाकिस्तान ने अफगानिस्तान में अशांति और राजनीतिक अस्थिरता को बढ़ावा देकर खुद का संकट बढ़ा लिया है। अफगानिस्तान में स्थापित तालिबान सरकार को पाकिस्तान के अतिवादी संगठनों का भरपूर समर्थन हासिल है,इससे कट्टरपंथी मजबूत हुए है। अफगानिस्तान से आने वाले लाखों शरणार्थियों को बोझ उठाने के लिए पाकिस्तान मजबूर हुआ है। देश के बढ़ते आयात बिल और अफ़ग़ानिस्तान में डॉलर की कथित स्मगलिंग के कारण डॉलर की क़ीमत में तेज़ी से वृद्धि हुई है।
पाकिस्तान
में गरीबी का स्तर बहुत आगे बढ़ गया है ऐसे में अफगान से आने वाले लोग इस संकट को बढ़ा रहे है। पाकिस्तान और अफ़ग़ानिस्तान के बीच सीमा बेहद जटिल और लंबी
है। इसकी लगातार निगरानी करना एक मुश्किल काम
है इसलिए इस सीमा पर बाड़ लगाने की कोशिश की जा रही है जिससे गैर क़ानूनी तौर पर लोग सीमा पार नहीं कर सकेंगे। वहीं तालिबान इस बाड़ को तोड़कर पाकिस्तान की समस्याओं को
बढ़ा रहा है.,इन कंटीली तारों के लिए पाकिस्तान की सरकार अरबों रुपये ख़र्च कर चूकी
है।
पाकिस्तान के एक और अहम पड़ोसी देश ईरान से उसके सम्बन्ध भी खराब है। ईरान का आरोप है कि पाकिस्तान की धरती का इस्तेमाल ईरानी चरमपंथी करते हैं। दोनों देशों के बीच ये आरोप-प्रत्यारोप लंबे समय से चला आ रहा है।
पाकिस्तान
यदि आर्थिक कूटनीति पर काम करता है तो उसे भारत से होकर अफगानिस्तान और ईरान जाने
वाले मार्ग को उन्नत करना होगा। पाकिस्तान भारत की अफगानिस्तान में उपस्थिति और
ईरान से मजबूत सम्बन्धों का विरोध करता रहा है।
भारत ने तुर्कमेनिस्तान-अफगानिस्तान-पाकिस्तान-भारत के बीच तापी गैस पाइप लाइन परियोजना के जरिए प्राकृतिक गैस की खरीद और बिक्री समझौते पर हस्ताक्षर किए थे,इसे अमेरिका का भी समर्थन हासिल था। एक दशक बीत जाने के बाद भी यह योजना अंजाम तक नहीं पहुँच सकी है,इसका एक प्रमुख कारण पाकिस्तान की भारत के प्रति अस्थिर नीतियां रही है। तुर्कमेनिस्तान के पास विश्व के कुल प्राकृतिक गैस का चार प्रतिशत भंडार है। ये पाइपलाइन तुर्कमेनिस्तान के दौलताबाद गैस फील्ड से प्रारंभ होकर अफगानिस्तान के हेरात-कंधार से होते हुए पाकिस्तान के कोएटा और मुल्तान पहुंचेगी तथा गैस पाइपलाइन भारत-पाकिस्तान सीमा के फजिल्का में खत्म होगी। जाहिर है इसका लाभ भारत,पाकिस्तान और अफगानिस्तान के करोड़ों लोगों को मिल सकता है। वहीं पाकिस्तान के अतिवादी संगठन पाकिस्तान के रास्ते भारत को मिलने वाली मदद का विरोध करते रहे है,उन्हें रोक पाने की पाकिस्तान की सरकार को इच्छाशक्ति दिखाना होगी। चीन की वन बेल्ट वन रोड़ योजना का भारत विरोधी है और इस व्यापारिक मार्ग में भारत के जुड़ने की कोई संभावना नहीं है।
पाकिस्तान
ने नीतियों में बदलाव की बात तो की है लेकिन लोकतंत्र की अनिश्चिता और अस्थिरता से आर्थिक प्रगति एवं सामाजिक कल्याण को
बढ़ावा मिलना असम्भव है। इसके साथ ही समावेशी विकास के लिए प्रतिनिधित्व,उत्तरदायित्व,औचित्य और समता
की दृष्टि भी देश में अभी बहुत कुछ सामाजिक,वैधानिक और राजनीतिक सुधार की जरूरत है। इन सब चुनौतियों के बीच पाकिस्तान
की आर्थिक सहयोग बढ़ाने की नीति पर आगे बढना भारत के लिए निश्चित तौर पर लाभकारी हो सकता है। दोनों देशों
के बीच आर्थिक सम्बन्ध मजबूत करने के लिए पाकिस्तान की सरकार,सेना और आईएसआई को
आतंकवाद पर सख्ती से नकेल कसना होगा। यदि पाकिस्तान अपनी नई सुरक्षा नीति के
अनुरूप क्षेत्रीय देशों से अच्छे सम्बन्ध कायम करने की इच्छाशक्ति दिखाता है तो यह दक्षिण एशिया समेत
पूरी दुनिया के लिए शुभ संकेत होंगे।