खतरा बनती किम की मिसाइले जनसत्ता kim north koria

 

जनसत्ता


                     


क्रूज़ मिसाइलें कम ऊंचाई और धीमी रफ़्तार से अपने लक्ष्य की ओर जाती हैंये  मिसाइलें लक्ष्य की ओर जाते समय कई बार मुड़ सकती हैं और दिशा बदलते हुए कहीं से भी हमला कर सकती हैंउत्तर कोरिया की राष्ट्रीय और वैदेशिक नीति कई दशकों से क्रूज की तरह ही अप्रत्याशित और असहज करने वाली रही है,इसीलिए समूचा विश्व इस देश से आशंकित रहता हैउत्तर कोरिया एक बार फिर बैलेस्टिक और क्रूज़ मिसाइलों का परीक्षण कर अपने आक्रामक इरादों का इजहार कर रहा है। इसका  एक प्रमुख कारण चीन की कुटिल भूमिका भी है। वह बड़ी चालाकी से एशिया प्रशांत क्षेत्र के अपने विरोधियों को धमकाने के लिए उत्तर कोरिया का उपयोग करता रहा है। बीते कई वर्षों से उत्तर कोरिया के परमाणु और बैलेस्टिक मिसाइलों के निरंतर परीक्षण के बाद भी चीन ने उसे संयुक्तराष्ट्र के आर्थिक प्रतिबंधों से अप्रभावित और अमेरिका के किसी सैन्य आक्रमण से लगातार बचाएं रखा है। उत्तर कोरिया पर विध्वंसक हथियारों की तस्करी के कई मामलें सामने आ चूके है और यह जाल सीरिया से लेकर म्यांमार तक फैला हुआ है। अब तालिबान जैसे संगठन भी इस अवसर की प्रतीक्षा में है कि वे परमाणु हथियार और मिसाइल हासिल कर ले। जाहिर है दुनिया को आतंकवाद और अशांति से बचाने के लिए उत्तर कोरिया को नियंत्रित करना बेहद जरूरी है।



 

हाल ही में अमेरिका,ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया के बीच हुए ऑकस  समझौते का उत्तर कोरिया ने विरोध करते हुए इसे कोरियाई प्रायद्वीप में परमाणु हथियारों का जखीरा जमा करने वाला कदम बढ़ाया हैऑकस  समझौते के तहत अमेरिका,ऑस्ट्रेलिया को न्यूक्लियर पन्नडुबी की तकनीक मुहैया करवाएगा वास्तव में इस नए सुरक्षा समझौते को एशिया पैसेफ़िक क्षेत्र में चीन के प्रभाव से मुक़ाबला करने के लिए बनाया गया है। चीन ने इस समझौते को खतरनाक बताया था। ऐसा लगता है कि चीन बड़ी चालाकी से एशिया प्रशांत क्षेत्र के  अपने विरोधियों को धमकाने के लिए एक बार फिर उत्तर कोरिया को सामने कर रहा है। वास्तव में शक्ति संतुलन के सिद्धांत और उसके व्यवहारिक प्रयोग में भारी अंतर्विरोध पाया जाता है। संयुक्त राष्ट्र की स्थापना के बाद कुछ वर्षों तक यह महसूस किया गया था कि सामूहिक सुरक्षा के लिए सैन्य गठबंधनों की आपसी प्रतिद्वंदिता  को रोकने में मदद मिलेगी और शक्ति संतुलन का प्रभाव कम होगा।  लेकिन वैश्विक स्तर पर इस समय अव्यवस्था हावी है और कई राष्ट्र अराजकता और अशांति को बढ़ावा दे रहे है।


दरअसल दुनिया में विभिन्न राष्ट्रों के व्यवहारों को नियंत्रित करने के लिए किसी केन्द्रीय एजेंसी का अभाव न्याय,सुरक्षा एवम् शांति व्यवस्था की राह में संकट बन गया है। कोरियाई प्रायद्वीप में उत्तर कोरिया की बेलगाम आक्रामकता और अपेक्षाकृत शांत रहने वाले दक्षिण कोरिया का उसके जवाब में पनडुब्बी-प्रक्षेपित बैलिस्टिक मिसाइल के परीक्षण से आणविक युद्द का खतरा बढ़ गया है  इसका एक प्रमुख कारण यह भी है कि कोरियाई प्रायद्वीप में वैश्विक शक्तियाँ आपने सामने है और अमेरिकी पूंजीवाद का सामना चीन और रूस के साम्यवादी आक्रामकता से है। कोरिया को लेकर महाशक्तियां दूसरे विश्वयुद्ध के बाद से ही आमने सामने रही है। उत्तर कोरिया की साम्यवादी सरकार ने 1950 में जब दक्षिण कोरिया पर हमला किया था,तब उसे बचाने के लिए संयुक्त राष्ट्र सेना की कमान एक अमेरिकी जनरल मैक ऑर्थर के हाथों में थी। लेकिन तब भी उस युद्ध का निर्णायक समाधान इसलिए नहीं हो सका था,क्योंकि चीन के उत्तर कोरिया के साथ आने का अंदेशा था और आज भी हालात जस के तस है। इस घटना के बाद लगभग 7 दशकों से दक्षिण कोरिया के अमेरिका से गहरे आर्थिक और सामरिक संबंध है और अमेरिका उत्तर कोरिया  को लेकर बेहद आक्रामक नीति अपनाएं हुए है। वहीं उत्तर कोरिया में साम्यवादी सत्ता को मजबूत करके रूस और चीन अपने वैश्विक हितों का संवर्धन कर रहे है


इस प्रायद्वीप की समस्या के शांतिपूर्ण निपटारे  के लिए  पूंजीवाद और साम्यवाद  को मित्रता करनी होगी,और इसकी संभावना कहीं नजर नहीं आती सुरक्षा परिषद के प्रतिबंध उत्तर कोरिया को बैलिस्टिक मिसाइलों के परीक्षण से रोकता है लेकिन क्रूज़ मिसाइलों के परीक्षण का प्रतिबंध उस पर लागू नहीं होता हैइसके पहले  अंतर्राष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी ने भी यह आंकलन किया था कि उत्तर कोरिया परमाणु हथियारों के लिए प्लूटोनियम का उत्पादन कर रहा है। अब क्रूज़ मिसाइलों और फिर उसके बाद बैलिस्टिक मिसाइलों का परीक्षण दिखाता है कि उत्तर कोरिया ने अपने मिसाइल विकसित करने,टेस्ट करने और उसके मूल्यांकन के अभियान को दोबारा शुरू कर दिया हैउत्तर कोरिया जिन विध्वंसक हथियारों के निर्माण के संलग्न है उसमें नई अंतर-महाद्वीपीय बैलिस्टिक मिसाइल,परमाणु सक्षम बैलेस्टिक मिसाइल और पनडुब्बी-लॉन्च बैलिस्टिक मिसाइल शामिल है


उत्तर कोरिया के तानाशाह किम जोंग की सामरिक नीति भय और सौदेबाजी से प्रेरित रही है। 1990 के दशक में एनपीटी पर सहमति जताने वाला उत्तर कोरिया करीब डेढ़ दशक बाद ही इस संधि से हट गया था।  किम जोंग हथियारों के निर्माण को राष्ट्रीय सुरक्षा आत्म-निर्भरता से जोड़ते है लेकिन उनके इरादें आशंकित करते रहे है समस्या यह भी है कि तमाम वैश्विक प्रतिबंधों के बाद भी उत्तर कोरिया को काबू में नहीं किया जा सका हैनवम्बर 2017 में प्योंगयांग ने अंतरमहाद्वीपीय बैलेस्टिक मिसाइल का परीक्षण कर दुनिया को ठेंगा दिखाने की कोशिश की थी,जिसके जवाब में संयुक्तराष्ट्र की सुरक्षा परिषद ने उत्तर कोरिया की पेट्रोलियम पदार्थों की आपूर्ति पर कड़े  प्रतिबन्ध लगाये थे। इन प्रतिबंधों में खास तौर पर पेट्रोलियम पदार्थो को शामिल किया गया है। उत्तर कोरिया अधिकांश पेट्रोलियम पदार्थों का इस्तेमाल अपने अवैध परमाणु और बैलेस्टिक मिसाइल कार्यक्रम को पूरा करने के लिए करता है।


कोरियाई प्रायद्वीप में समुद्र के रास्ते तस्करी करने की भौगोलिक संभावनाएं उत्तर कोरिया के लिए मुफीद भी हैइसके पश्चिम में पीला सागर है,पूर्वी चीन सागर दक्षिण में है और जापान सागर इसके पूर्व में हैअंतर्राष्ट्रीय नजरों से बचकर समुद्री रास्तों से ही उत्तर कोरिया के हितों की पूर्ति हो जाये इसके लिए उसने अपने द्वीपों को ही विकसित कर लिया हैइस समय  उत्तरी कोरिया समुद्र के अंदर रहस्यमय कृत्रिम द्वीप बना रहा है जिसका इस्तेमाल वह  सैन्य योजनाओं के लिए करेगाइन मानव-निर्मित द्वीपों का निर्माण येलो सी में कराया जा रहा हैउत्तर कोरिया अपने समुद्री द्वीपों का उपयोग परमाणु और मिसाइल परीक्षण के लिए भी करता रहा है


दुनिया के सामने उत्तर कोरिया द्वारा हथियारों का अवैध व्यापार करना बड़ी चुनौती बन गया है। यदि इसे सख्ती से रोका नहीं गया तो वह समय दूर नहीं जब आतंकियों के पास ऐसी हायपरसोनिक क्रूज मिसाइलों का भंडार होगा जो ध्वनि से पांच गुना तेज रफ्तार से उड़कर किसी दूरस्थ देश में कोहराम मचा देंगी। फ़िलहाल उसकी अर्थव्यवस्था चीन और रूस की सहायता से समुद्र में होने वाली तस्करी से चल रही है। उत्तर कोरिया पर यूएन के आर्थिक प्रतिबंधों के बाद भी चीन और रूस उसक साथ व्यापारिक संबंध बनाए हुए हैं। ये साम्यवादी देश अमेरिकी को चुनौती देने के उत्तर कोरिया को रोजमर्रा की जरूरतों का सामान मुहैय्या कराते हैं साथ ही उसे परमाणु ईंधन और हथियार बनाने के लिए धन, साधन और तकनीक भी देते रहे है


दक्षिण कोरिया की 1953 से अमरीका के साथ रक्षा संधि है और दक्षिण कोरिया में हजारों अमरीकी सैनिक और युद्धपोत नियमित रूप से वहां तैनात रहते हैंमिसाइलों से लैस यूएसएस मिशीगन विमानवाहक युद्धपोत कार्ल विंसन भी वहां खतरे से निपटने के लिए तैयार हैवही चीन और उत्तर कोरिया के बीच 1961 से पारस्परिक सहायता और सहयोग के रक्षा संधि हैं। अमेरिका और चीन दोनों एक  दूसरे के कड़े प्रतिद्वंदी है। चीन पर निगाहें रखने के लिए अमेरिका  के लिए दक्षिण कोरिया सामरिक रूप से मुफीद ठिकाना है,वहीं अमेरिका और जापान को धमकाने के साथ  समुद्र में अपना प्रभुत्व कायम रखने के लिए चीन को उत्तर कोरिया की जरूरत है।


इस क्षेत्र में शांति की उम्मीदें 2018 में दिखाई पड़ी थी  उस समय उत्तर कोरिया के नेता किम जोंग-उन दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति मून जे-इन से मुलाक़ात करने के लिए दक्षिण कोरिया पहुंच गए थे 1953 में कोरियाई युद्ध के बाद ये पहला मौक़ा था जब किसी उत्तर कोरियाई नेता ने दक्षिण कोरियाई ज़मीन पर पैर रखा थाइस मौके पर उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया ने संयुक्त घोषणापत्र पर हस्ताक्षर करके पूरे कोरियाई प्रायद्वीप को परमाणु हथियारों से आज़ाद करने के साझा मक़सद पर सहमति जताई थी। हालांकि यह उत्तर कोरिया का आर्थिक प्रतिबंधों को कम करके देश की अर्थव्यवस्था को बेहतर करने का प्रयास था। यह देखा गया है कि उत्तर कोरिया आवश्यकता अनुसार शांति के करार करने और उसे तोड़ने का माहिर खिलाडी है। इस साल मई में  अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने कहा था कि वह उत्तर कोरियाई शासक किम जोंग-उन से मुलाक़ात करने के लिए तैयार हैं लेकिन दोनों के बीच उत्तर कोरिया के परमाणु कार्यक्रम को लेकर चर्चा होनी चाहिए हालांकि उन्होंने ये भी कहा कि परमाणु कार्यक्रम छोड़ने के लिए उत्तर कोरिया को मनाना मुश्किल काम होगा जाहिर है बाइडन यह जानते है कि उत्तर कोरिया चीन की दबावकारी और आक्रामक वैश्विक नीतियों में भागीदार हैबाइडन से पहले अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने किम जोंग-उन के साथ तीन बार मुलाक़ात की थी जिसका कोई नतीजा नहीं निकला था।


अमेरिका तथा दक्षिण कोरिया के सामरिक संबंध बहुत गहरे है,दक्षिण कोरिया अमेरिकी हथियारों का बड़ा खरीददार भी है। जबकि उत्तर कोरिया की अर्थव्यवस्था और सामरिक क्षमता पर चीन का कब्जा है। उत्तर कोरिया अपनी जीडीपी का बड़ा हिस्सा सेना पर खर्च करता हैयह जीडीपी के 25 फ़ीसदी को सैन्य शक्ति बढ़ाने के लिए इस्तेमाल करता है। रूस और चीन के लिए उत्तर कोरिया हथियारों का बड़ा बाज़ार है। कोरियाई प्रायद्वीप में उत्तर कोरिया के विध्वंसक हथियारों के परीक्षण का जवाब दक्षिण कोरिया से भी आक्रामक तरीके से मिलने से युद्द की आशंकाओं को बल मिला है,ऐसे में एशिया प्रशांत क्षेत्र की सुरक्षा को लेकर नया संकट गहरा गया है। बाइडन चीन को लेकर सख्त है और उनकी यही नीति उत्तर कोरिया को लेकर भी देखने को मिल सकती है। विश्व शांति के लिए यह चुनौतीपूर्ण समय है

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brahmadeep alune

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