क्रिकेट पर मजहबी तमाशा,दबंग दुनिया cricket pak india

दबंग दुनिया

                         

                                                                            


क्रिकेट के विश्वकप में पाकिस्तान की भारत पर विजय के बाद पाकिस्तान के गृहमंत्री शेख़ रशीद ने इसे इस्लाम की विजय के तौर पर निरुपित किया है। इसके पहले 2007 में टी-20 विश्व कप फ़ाइनल में भारत से हारने के बाद पाकिस्तान के तत्कालीन कप्तान शोएब मलिक ने मुस्लिम दुनिया से माफ़ी मांगी थी।


दरअसल पाकिस्तान असहिष्णुता,अनिश्चितताओं और असुरक्षा से ग्रस्त देश है जो धर्म को हथियार की तरह उपयोग करता है,जिससे उन्माद पैदा किया जा सके। यह देखने में आया है कि मोहाजिर अपनी पहचान के संकट से अक्सर जूझते है और उन्हें अपनी निष्ठा साबित करने के लिए बार बार कोशिशें कारण पड़ती है। इस्लामिक दुनिया में पाकिस्तान की स्थिति कुछ ऐसी ही है जो किसी भी कीमत पर अपनी धार्मिक पहचान को आगे रखकर विशुद्ध इस्लामिक होने का प्रमाण पेश करता रहा है। यह विडम्बना ही है कि अरब देशों में भारतीय उपमहाद्वीप के मुसलमान इस्लामिक शुद्धता के आधार पर अक्सर गैर बराबरी से जूझते है। इन देशों में अरब शेखों का अमानवीय व्यवहार कई बार विचलित कर देता है।   पाकिस्तान के जन्मदाता जिन्ना को इसका एहसास था। भारत के विभाजन के कुछ समय पहले जिन्ना ने पैन इस्लामिक सम्मेलन में शिरकत की थी। जहाँ पर मिस्र और फिलीस्तीन के नेताओं से बातचीत में उन्होंने कहा था कि,मध्य पूर्व के लिए हिन्दू साम्राज्य बड़ा खतरा है और पाकिस्तान बनने के बाद वह नस्ल या रंग का ख्याल किए बिना सभी इस्लामिक राष्ट्रों का सहयोग करेगा। जिन्ना ने मिस्र के साथ अटल धार्मिक और आध्यत्मिक रिश्तों का हवाला दिया जबकि मध्य पूर्व के लिए हिन्दू साम्राज्य को बड़ा खतरा बताया। जाहिर है जिन्ना भारत को हिन्दू देश कहकर सुदूरवर्ती इस्लामिक देशों का समर्थन जुटाने की कोशिश कर रहे थे। यही नहीं वे अपनी सांस्कृतिक  जड़ों को भी नकार रहे थे।


जिन्ना ने पाकिस्तान को अरब देशों की सभ्यता से जोड़ने का जो प्रयास किया था,वहां के हुक्मरानों ने  इस नीति पर चलकर पाकिस्तान की वास्तविक पहचान को धुल धूसरित कर दिया। पाकिस्तान के कारनामों को समूचे इस्लामिक जगत से जोड़ने की धुन ऐसी की पाकिस्तान ने अपने परमाणु बम को इस्लामिक परमाणु बम के तौर पर प्रचारित किया। पाकिस्तान की हिमाकतों के इसके नतीजे इतने घातक हुआ कि इस देश का आतंकवाद ही इस्लामिक आतंकवाद बन गया।


वास्तव में सियासत का उन्माद सहिष्णु समाज को कट्टरता के कलेवर में ढालकर कभी भी हाहाकार मचा सकता है। जिन्ना इस खेल के माहिर खिलाड़ी रहे और उन्होंने अपने अल्पकालीन सियासी हितों के लिए पाकिस्तान को गैर इस्लामिक लोगों के लिए कब्रिस्तान बना दिया। पाकिस्तान के इस्लामीकरण के जूनून में यह देश अल्पसंख्यकों के लिए नर्क बन गया। किसी देश के  मूल निवासियों पर अत्याचार का ऐसा अंत:हीन सिलसिला और कहीं इतिहास में नहीं है की जब दुनिया की आबादी में  50 गुना की वृद्धि हो वहीं हिन्दुओं की आबादी 75 सालों में  घटकर 1  प्रतिशत तक आ जाये। इससे अलग भारत की तस्वीर नजर आती है। भारत में मुसलमानों की आबादी पाकिस्तान से कहीं ज्यादा है और वह अब बढ़कर 21 करोड़ के करीब पहुंच गई है।  यहां मुस्लिमों को ठीक वैसे ही अधिकार प्राप्त है जैसे अन्य किसी आम भारतीय नागरिक को। वे देश के सर्वोच्च पदों से लेकर देश के नीति निर्माता बने हुए है।


पाकिस्तान बनने के बाद उसे अपनी अलग पहचान स्थापित करने की जल्दबाजी थी। पाकिस्तान हुकुमरानों ने इसके लिए आसान और आत्मघाती रास्ता चुना, उनके लिए पाकिस्तानी वह है जो हिन्दुस्तानी नहीं है। हिन्दुस्तानी पहचान को मिटाने की कोशिश करने का मतलब था,अपनी सभ्यता,संस्कृति,जीवन जीने के तरीकों,अपने इतिहास और अपनी बेशकीमती परम्पराओं को मिटाना। जिन्ना तो बहुत जल्दी अलविदा कह गए लेकिन उनकी अलग पहचान की थ्योरी ने वहां की फौज ने इस प्रकार उभारा की पाकिस्तान एक धर्म का कट्टपंथी मुल्क बन कर रह गया और अब वह अपने अस्तित्व  बचाने को बुरी तरह जूझ रहा है।


अब पाकिस्तान में इस्लामिक कट्टरपंथी है,आतंकवाद है,आर्थिक कंगाली है,लोकतांत्रिक नाकामी है और सैन्य तानाशाही है। तमाम नाकामियों और बर्बादी के बाद भी वहां के हुक्मरानों की भारत से अपनी अलग पहचान बनाने की आत्मघाती नीतियां बदस्तूर जारी है।


यह भी बेहद दिलचस्प है की जिन्ना का कोई भी नजदीकी वंशज अब पाकिस्तान में नहीं है। बदहाल पाकिस्तान में जिन्ना की कब्र की ख़ामोशी सब कुछ बयाँ करती है। जिन्ना काश यह समझ गए होते की अपनी हिन्दुस्तानी पहचान को नकारने का मतलब अपनी हस्ती मिटा देना है। अफ़सोस वहां के नेता पाकिस्तान की बदहाली से सबक न लेकर उसे अब भी इस्लाम का मसीहा बनाना चाहते है। जबकि इस्लामिक कांफ्रेंस में ही पाकिस्तान को इस्लामिक देशों का समर्थन मुश्किल से ही हासिल हो पाता है। इन सबके बीच पाकिस्तान जिहाद की फैक्र्टी बन गया है जिसका विरोध तालिबान के कब्ज़े के बाद भी अफगानिस्तान में खूब हो रहा है। शेख़ रशीद ने यहाँ तक कह दिया कि दुनिया के मुसलमान समेत हिन्दुस्तान के मुसलमानों के जज़्बात भी पाकिस्तान के साथ हैं। उनका यह बयाँ अन्य देशों में रहने वाले मुसलमानों के लिए कितना घातक हो सकता है,इससे वे बेपरवाह नजर आते है।


पंडित जवाहरलाल नेहरु ने जिन्ना की धर्म पर आधारित  नये राष्ट्र की परिकल्पना पर कहा था कि आधुनिक युग में कोई राष्ट्र धर्म के आधार पर कैसे बन सकता है,यह विचार ही मध्ययुगीन है। बहरहाल पाकिस्तान के मध्ययुगीन विचार बदस्तूर जारी है और वह खेल की पवित्र प्रतिद्वंदिता को धर्मयुद्द से जोड़कर सभ्यताओं के टकराव की कोशिशों को बढ़ावा दे रहा है।

 

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brahmadeep alune

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