जनसत्ता
परिवर्तन और परम्परा का निर्णायक संघर्ष अब राष्ट्रीय राजनीति की प्रमुख चुनौती बन गया है। इससे सबसे ज्यादा प्रभावित क्षेत्रों में दक्षिण एशिया का बहुजातीय और बहुसांस्कृतिक समाज है जो सदियों से एक दूसरे के साथ समन्वय स्थापित कर आगे बढ़ता रहा है लेकिन कट्टरपंथी ताकतों के प्रभाव से अब इस पर भी संकट गहराने लगा है।
दरअसल भारत की भौगोलिक परिस्थितियों की प्रतिकूलताओं ने देश की आंतरिक और बाह्य सुरक्षा के लिए नित नई चुनौतियां प्रस्तुत की है। किसी देश के शक्ति और सामर्थ्य में वहां के नागरिकों,संस्कृति और भूगोल का गहरा योगदान होता है। भारत ने जहां बहुसंस्कृतिवाद को अपनाया और उसे पोषित किया है वहीं पड़ोसी देशों के धार्मिक और संस्कृतिवाद ने इस समूचे क्षेत्र की समस्याओं को बढ़ाया है। भारत के पड़ोसी देश बंगलादेश के सबसे बड़े धार्मिक अल्पसंख्यक हिन्दु है और उनकी आबादी करीब पौने दो करोड़ है। यह देश की कुल आबादी की 9 फीसदी के आसपास है। बंगलादेश में नव दुर्गा का त्यौहार जोर शोर से मनाया जाता है। पिछले कुछ सालों में शेख हसीना की सरकार ने देश में धार्मिक सद्भाव को बढ़ावा देने और देश की धर्मनिरपेक्ष छवि को मजबूत करने के लिए इनकी संख्या में अभूतपूर्व वृद्धि की है। हाल ही में नवदुर्गा के उत्सव को देश के कट्टरपंथियों ने न केवल बाधित किया पर देश के कई इलाकों में हिन्दुओं और उनके मंदिरों को निशाना बनाया गया। यह इतना सुनियोजितपूर्ण था कि पुलिस भी इन पर काबू नहीं कर सकी और हमलावर हिंसक और तोड़फोड़ की घटनाओं को व्यापक रूप से अंजाम देने में सफल रहे।
इन सबके बीच बंगलादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने धार्मिक हिंसा को रोकने और जिम्मेदारों पर कड़ी कार्रवाई का भरोसा तो दिया लेकिन अप्रत्याशित रूप से भारत को नसीहत भी दे डाली की वहां कोई ऐसी घटनाएं नहीं होनी चाहिए जिससे बंगलादेश में रहने वाले हिंदू प्रभावित हो। शेख हसीना की पार्टी अवामी लीग को समावेशी विचारों के लिए पहचाना जाता है और प्रधानमंत्री स्वयं बंगलादेश की उत्पत्ति में भारत के योगदान की प्रशंसा करती रही है। लेकिन दुर्गा पूजा पर उनकी नियन्त्रण और संतुलन की भाषा वहां रहने वाले हिन्दू अल्पसंख्यकों की चिंता बढ़ाने वाली है।
बंगलादेश का नौआखाली इलाका धार्मिक हिंसा से सबसे ज्यादा
प्रभावित हुआ है,यह वहीं क्षेत्र है जहां आज़ादी के समय भीषण सांप्रदायिक संघर्ष
हुए थे और महात्मा गांधी ने प्रभावितों के बीच जाकर इसे रोकने में सफलता हासिल की
थी। इस समय भी हिन्दुओं के लिए हालात वहां बहुत
खराब है लेकिन सरकार के नुमाइंदों की नजर 2023 में होने वाले आम चुनावों पर है।
जाहिर है अवामी लीग कट्टरपंथी ताकतों के आगे बेबस महसूस कर रही है और यह बंगलादेश
की अस्थिरता को बढ़ावा दे सकता है। दुर्गा पूजा पर देश भर में हुए हमलों में भारत
विरोधी नारे लगाएं गए,यह भारत के लिए भी सुरक्षा चुनौती को बढ़ा सकता है। भारत और बंगलादेश
के बीच करीब 4 हजार किलोमीटर से ज्यादा की सीमा रेखा है और यह मुख्यतः
असम,त्रिपुरा,पश्चिम बंगाल,मेघालय और मिजोरम को छूती है। बांग्लादेश और भारत सीमा के बीच पूर्वोत्तर की भौगोलिक परिस्थितियां घुसपैठ
के अनुकूल है और इसका फायदा उठाकर पाकिस्तान की खुफियां एजेंसी आईएसआई पूर्वोत्तर
के रास्ते भारत में आतंकवादियों को भेजती रही,इसमें घुसपैठ,तस्करी,मदरसों का जाल
और नकली मुद्रा का अवैध कारोबार शामिल है। भारत और बंगलादेश के बीच नदी के पानी के बंटवारे को लेकर तो
तनाव होता ही रहा है,अब हिन्दुओं पर
सुनियोजित हमलों में कट्टरपंथी ताकतों के प्रभाव से धार्मिक सद्भाव को बनाएं रखने
की चुनौतियां भी बढ़ गई है।
डेढ़ दशक पहले भारत के गृह मंत्रालय ने एक दस्तावेज तैयार किया था,जिसका शीर्षक था पाकिस्तान के वैकल्पिक परोक्ष युद्द का आधार। इसमें पाकिस्तान द्वारा अपनों विध्वंसात्मक गतिविधियों को तेज करने के लिए चलाए गए नए ऑपरेशन के बारे में उल्लेख था। इस दस्तावेज में खासतौर पर बताया गया था कि पाकिस्तान अपने भारत विरोधी अभियानों के लिए बंगलादेश को एक नए आधार के रूप में विकसित कर रहा है। दस्तावेज में इस बात का भी खुलासा था कि पाकिस्तान ने लगभग 200 आतंकवादी प्रशिक्षण कैम्पों को पहले ही अपने यहां से हटाकर बंगलादेश में व्यवस्थित करवा चुका है।
1971 में पाकिस्तान से अलग होकर अस्तित्व में आया बंगलादेश अव्यवस्थाओं से लम्बे समय तक जूझता रहा। बांग्लादेश के संस्थापक मुजीबुर्रहमान की कट्टरपंथियों ने 1975 में हत्या कर दी थी। इन चुनौतियों के बीच बंगलादेश ने उदारवाद,महिलाओं और अल्पसंख्यकों के विकास को बढ़ावा देकर उल्लेखनीय सफलताएं भी अर्जित की है। बंगलादेश के मोहम्मद यूनुस और ग्रामीण बैंक को सामाजिक और लोकतांत्रिक विकास में योगदान’के लिए 2006 में नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।
वहीं आध्यात्मिकता और राष्ट्रीय सांस्कृतिक पहचान का संकट बंगलादेश में बहुत बढ़ा है। वहां हिंदू रहना चाहते है लेकिन उनकी सुरक्षा चिंताओं को जनसंख्या असंतुलन से समझा जा सकता है। 1971 में बंगलादेश के जन्म के समय हिन्दुओं की आबादी 20 फीसदी से भी ज्यादा थी जो अब घटकर महज नौ फीसदी तक सिमट गए है। इसके प्रमुख कारणों में इस्लामिक कट्टरतावाद को माना जाता है। पिछलें कुछ दशकों से बंगलादेश में इस्लाम के कट्टरपंथी वहाबी रूप का चलन जोर शोर से बढ़ रहा है,जो जिहादी आतंकवाद को बढ़ावा देता है। बंगलादेश के कौमी मदरसे जो एल लाख से ऊपर है वह सरकार के नियन्त्रण से बाहर है और यह मदरसों को मुख्य रूप से पाकिस्तान और सऊदी अरब से वित्तीय मदद मिलती रही है। इसमें ईशनिंदा को आधार बनाकर कट्टरपंथी तत्व अल्पसंख्यकों के खिलाफ दुष्प्रचार करते रहे है। इसमें बंगलादेश का एक प्रतिबंधित राजनीतिक दल जमात-ए-इस्लामी प्रमुख है। जमात-ए-इस्लामी को देश की सबसे बड़ी इस्लामी राजनीतिक पार्टी माना जाता है। 1971 में होने वाली स्वतंत्रता युद्ध में इस दल ने पाकिस्तान का समर्थन किया था। बाद में यह बंगलादेश के इस्लामिकरण के प्रयास में जुटकर एक सक्रिय दल के रूप में उभरी। जमात-ए-इस्लामी वही संगठन है जिसने तालिबान द्वारा अफगानिस्तान पर कब्जा किए जाने के बाद बंगलादेश बनेगा अफगानिस्तान जैसे नारे गढ़े हैं। जमात-ए-इस्लामी इस्लाम के कट्टर और रुढ़िवादी रूप को बंगलादेश में लाना चाहता है। इसी कड़ी में इस तरह के नारे गढ़कर यह संगठन युवाओं को कट्टरपंथी बना रहा है।
ईशनिंदा के आधार पर पाकिस्तान में जिस प्रकार अल्पसंख्यकों को निशाना बनाया जाता है,उसी तर्ज पर बंगलादेश में भी साजिश को अंजाम दिया जा रहा है। कुस साल पहले पाकिस्तान की सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस आसिफ़ सईद खोसा ने आसिया बीबी केस की सुनवाई करते हुए कहा था कि पैग़ंबर मोहम्मद या क़ुरान का अपमान करने की सज़ा मौत या उम्र क़ैद है,लेकिन इस जुर्म का ग़लत और झूठा इल्ज़ाम अकसर लगाया जाता है। सुप्रीमकोर्ट के जस्टिस के इस कथन के बाद पाकिस्तान की मस्जिदों से इमामों और कट्टरपंथियों ने आम लोगों से व्यापक विरोध करने की अपील कर देश की कानून व्यवस्था को ठप्प कर दिया था। कराची,इस्लामाबाद,फैसलाबाद,रावलपिंडी जैसे बड़े शहरों में व्यापक विरोध प्रदर्शन किए गए,रोड़ जाम कर दिए गए और सरकारी सम्पत्ति को भारी नुकसान पहुँचाने की कुचेष्टा की गई। अब बंगलादेश में भी ऐसे ही दृश्य देखे जा सकते है।
बंगलादेश में राजनीति शेख़ हसीना और ख़ालिदा
ज़िया के इर्द-गिर्द ही घूमती है। ख़ालिदा ज़िया को जहां कट्टरपंथी ताकतों का
समर्थक माना जाता है वहीं शेख हसीना उदार और भारत समर्थक मानी जाती है। राजनीतिक अस्थिरता से लगातार जूझने वाले बंगलादेश के लिए
शेख हसीना का करीब 13 साल का शासन अल्पसंख्यकों समेत सभी नागरिकों के लिए वरदान
साबित हुआ है। दुनिया भर के कई देशों में
पिछले एक दशक से दक्षिणपंथी सरकारें अति राष्ट्रवाद को बढ़ावा देकर धार्मिक भेदभाव
को बढ़ावा दे रही है वहीं शेख हसीना
के कार्यकाल में धर्म निरपेक्ष मूल्यों को लेकर बंगलादेश लगातार आगे बढ़ रहा है। बंगलादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना ने ढाका में स्थित प्रसिद्द
ढाकेश्वरी मंदिर को करीब 50 करोड़ टका की कीमत की जमीन देने की घोषणा कर यह
संदेश भी दिया था की तरक्की और स्थायित्व के लिए सभी का सर्वांगीण विकास होना
चाहिए।
प्रधानमंत्री के अनुसार समानता,सौहाद्रता
और परस्पर धार्मिक सद्भाव से ही उनका देश मजबूत हो रहा है और सफलता की ओर बढ़ रहा
है। इस्लामिक राष्ट्र होने के
बाद भी बंगलादेश में हिन्दूओं का भरोसा जीतने के लगातार
सरकार के प्रयास खूब सराहे गए है।
शेख हसीना को रोकने के लिए खालिदा जिया की बीएनपी जमात-ए-इस्लामी को लगातार समर्थन दे रही है। करीब डेढ़ दशक पहले बीएनपी सरकार के दौरान इस्लामिक कट्टरपंथियों को मदद मिल रही थी। जब से आवामी लीग की सरकार आई है,वह उन्हें दबाने की कोशिश कर रही है और इसमें कुछ क़ामयाबी भी मिली है। बीएनपी की जमात और इस्लामिक कट्टरपंथियों से पुरानी क़रीबी है। आम तौर पर बंगलादेश में हिंदुओं को आवामी लीग गठबंधन का समर्थक बताया जाता है और इसी कारण आम चुनावों में हिन्दुओं को निशाना बनाया जाता है।
इस समय बंगलादेश में हिन्दू डरे हुए है और पुलिस का कहना है कि जिन मंदिरों पर हमला हुआ है,पुलिस उन सबसे मामला दर्ज कराने को कह रही है। लेकिन बहुत से मंदिरों के पदाधिकारी मामला दर्ज कराने को तैयार नहीं हैं। वहीं अल्पसंख्यकों का भरोसा पुलिस पर बिल्कुल नहीं है,उनका कहना है कि समय पर पुलिस की मदद न मिल पाने से ही कट्टरपंथी हिंसक घटनाओं को अंजाम देने में सफल रहे।
बहरहाल
बंगलादेश को अपनी उदार छवि को कायम रखते हुए आगे बढना चाहिए। अफगानिस्तान में
तालिबान के उभार का प्रभाव न केवल बंगलादेश को बल्कि दक्षिण एशिया के अन्य देशों
के लिए संकट बढ़ा रहा है। अंतर्राष्ट्रीय नैतिकता की संकल्पना का
महत्वपूर्ण पहलू है राष्ट्रीय हितों की पारस्परिकता। राष्ट्रों को अपने हितों में समायोजन या
तालमेल पैदा करने के उपाय तलाश करने चाहिए,राष्ट्रीय हितों का मेल अस्तित्व रक्षा
की सबसे बड़ी गारंटी है। बंगलादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना को भारत की और
देखने के स्थान पर महात्मा गांधी की
इस सीख को भी ध्यान रखना चाहिए कि एक राष्ट्र के हित का मानव जाति के वृहत्तर हित
के साथ मेल बिठाया जा सकता है।
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