पॉलिटिक्स
1971 का युद्द पाकिस्तान बुरी तरह हार चूका था और उसके दो टुकड़े करने में सिख सैन्य अधिकारियों की बड़ी भूमिका थी। भारतीय सेना में सिखों के वर्चस्व,प्रभाव और अग्रणी भूमिका से पाकिस्तान के प्रधान मंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो इतने आतंकित हुए कि उन्होंने शातिराना दांव खेलते हुए एक पृथकतावादी सिख जगजीत सिंह चौहान के सामने खालिस्तान बनाने में मदद करने का प्रस्ताव रखा था। अलग खालिस्तान राष्ट्र की स्थापना की मांग करने वाले अलगाववादी नेता जगजीत सिंह चौहान खालिस्तान आंदोलन की शुरूआत करने वालों में शामिल थे। चौहान ने 1980 के दशक में अलग खालिस्तानी राष्ट्र की घोषणा कर दी थी जब पंजाब में चरमपंथ अपने शीर्ष पर था। वे 1980 के दशक के मध्य में भारत से ब्रिटेन चले गए थे और बाद में चौहान ने लंदन से खालिस्तान राष्ट्र के करेंसी नोट जारी करके सनसनी फैला दी थी।
खालिस्तानियों से आम सिख का सरोकार नहीं
मीरी-पीरी या नी राजकाज और धार्मिक नेतृत्व। खालिस्तानी चाहते हैं कि ये दोनों काम गुरुद्वारे ही करें। जबकि आम सिख इससे इत्तेफाक नहीं रखते उनके लिए गुरुद्वारे श्रद्धा,भक्ति और आस्था का प्रतीक है तथा वे मानते है कि राजनीति के लिए धार्मिक स्थल का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। इस साल 6 जून को ऑपरेशन ब्लू स्टार के 37 वें साल पूरे होने के मौके पर अकाल तख़्त साहिब में खालिस्तानियों ने हमेशा कि तरह प्रदर्शन किए,इस दौरान उन्होंने खालिस्तान समर्थक बैनर थामकर खालिस्तान हमारा अधिकार जैसे नारे लगाएं। दरअसल भारत में तकरीबन तीन करोड़ आबादी सिखों की है और देश के लिए सर्वस्व न्यौछावर करने की उनकी त्याग और बलिदान की परंपरा का कोई मुक़ाबला नहीं किया जा सकता। सिख मूलत: पंजाब में रहते है और पंजाब की सीमा पाकिस्तान से लगी हुई है। भारत से आमने सामने की लड़ाई में बुरी तरह मात खाने वाले पाकिस्तान ने भारत से लड़ने के लिए मनौवैज्ञानिक युद्द का सहारा लिया और 70 के दशक में जनरल जिया-उल-हक ने आपरेशन जिब्राल्टर की शुरुआत की जिसके अंतर्गत भारत के विभिन्न क्षेत्रों में अलगाववाद को भड़काने की कोशिशें की गई। खालिस्तान का मुद्दा उनके लिए केंद्र में था और पाकिस्तान के हुक्मरान इसके लिए अवसर ढूंढ रहे थे।
ऑपरेशन ब्लू स्टार की कमान सिख सैन्य अधिकारियों के हाथ में थी
6 जून 1984 को भारतीय सैन्य बलों के द्वारा स्वर्ण मंदिर से
आतंकियों को बाहर निकलने के लिए की गई कार्रवाई को 'ऑपरेशन ब्लू स्टार'
के नाम से जाना जाता है। यह भी कम ही लोग
जानते होंगे कि ऑपरेशन ब्लू स्टार का नेत़ृत्व करने वाले तीन मुख्य सैन्य
अधिकारियों में से दो सिख थे। ये थे पश्चिमी कमान के चीफ़ ऑफ़ स्टाफ़ लेफ़्टिनेंट
जनरल रंजीत सिंह दयाल और दूसरे नवीं इनफ़ेंट्री डिवीज़न और स्वर्ण मंदिर में घुसने
वाली सेना के कमांडर मेजर जनरल कुलदीप सिंह बरार। इन दोनों ने ही पश्चिमी कमान के
प्रमुख जनरल सुंदर जी के साथ मिल कर ऑपरेशन ब्लू स्टार की योजना बनाई थी जिससे भिंडरावाला के नेतृत्व में स्वर्ण मंदिर के अंदर घुसे आतंकियों को इस महान पवित्र स्थल से
बाहर खदेड़ा जा सके। जरनैल सिंह भिंडरावाला के नेतृत्व में चरमपंथी सिखों के लिए एक अलग राज्य
खालिस्तान की मांग कर रहे थे। इस अभियान में भिंडरावाला मारा गया था। मेजर जनरल
केएस बरार का कहना था कि उनकी जानकारी के मुताबिक भिंडरावाला के नेतृत्व में कुछ ही दिनों में
ख़ालिस्तान की घोषणा होना जा रही थी और उसे रोकने के लिए ऑपरेशन को जल्द से जल्द
अंजाम देना ज़रूरी था। जनरल बरार
1971 के भारत
पाकिस्तान युद्ध के भी हीरो थे। 16 दिसंबर 1971 को ढाका में प्रवेश करने वाले वह पहले भारतीय
सैनिकों में से एक थे। इस युद्ध में असाधारण वीरता दिखाने के लिए उन्हें भारत का
तीसरा सबसे बड़ा वीरता पुरस्कार वीर चक्र दिया गया था।
ब्रिटेन
को बनाया भारत विरोध का केंद्र
पाकिस्तानी प्रभाव से दिग्भ्रमित खालिस्तान के चरमपंथी दुनियाभर में सिख होमलैंड के पक्ष में प्रदर्शन करते रहे है। कनाडा में काम करने वाली पृथकतावादी ताकतें ऐसे प्रयास कर रही है कि वे कनाडा में ख़ालिस्तान समर्थन सुनिश्चित करने के लिए स्वतंत्र पंजाब के पक्ष में एक जनमत संग्रह कराएं। अगस्त महीने में दुनिया भर में बसने वाला भारतीय समुदाय अपना स्वतंत्रता दिवस उत्साहपूर्ण तरीके से मनाता है और इस दौरान कई कार्यक्रम भी आयोजित किए जाते है। खालिस्तानी समर्थक इस मौके पर भारत विरोध का झंडा बुलंद करते है,लंदन में भी जनमत संग्रह के लिए प्रदर्शन किए जा चुके है । खालिस्तान समर्थको ने इसके पहले 2020 के लिए खालिस्तान के पक्ष में जनमत संग्रह को लेकर एक रैली भी निकाली थी जिसमें भारत विरोधी नारे लगाए गए थे। लंदन में करीब 60 फीसदी विदेशी मूल के है और इन्हें पाकिस्तान गुमराह करता रहा है।
खालिस्तान
की मांग का प्रमुख केंद्र बना कनाडा
उत्तरी अमेरिकी देश कनाडा पृथकतावादी सिख होमलैंड खालिस्तान के समर्थकों के लिए महफूज ठिकाना रहा है। यह देश विदेशी अल्पसंख्यकों की पहली पसंद है और इसे सिखों का दूसरा घर भी कहा जाता है। भारत के बाद सबसे बड़ी सिख आबादी कनाडा में ही बसती है। खालिस्तानी आतंकवादी गुट बब्बर खालसा इंटरनेशनल यानि बीकेआई सिख अलगाव को बढ़ावा देने के लिए पूरी दुनिया में प्रभावशील है। इस आतंकी गुट का कनाडा पर गहरा प्रभाव है और वे इस देश में राजनीतिक तौर पर भी ताकतवर माने जाते है। यहीं नहीं अपने रसूख का इस्तेमाल कर बीकेआई खालिस्तान का समर्थन देने वाली ताकतें को यहां से संचालित भी करती है। कनाडा अटलांटिक महासागर से प्रशांत महासागर और उत्तर में आर्कटिक महासागर तक फैला हुआ है,यह क्षेत्रफल की दृष्टि से विश्व का दूसरा सबसे बड़ा देश है। महाशक्ति अमेरिका के साथ अन्तर्राष्ट्रीय सीमा विश्व की सबसे बड़ी सीमा रेखा है। बब्बर खालसा इंटरनेशनल को कनिष्क विमान विस्फोट के लिए जिम्मेदार माना जाता है। इसमें भारत के करीब 329 लोग मारे गए थे। यह आतंकी संगठन हर साल बैसाखी जैसे मौकों पर आयोजित समारोहों में सिख चरमपंथियों को शहीद का दर्जा देकर उन्माद फैलाता है यहीं नहीं सार्वजनिक समारोह में खालिस्तान के नारे लगाकर भारत विरोधी कार्यों को अंजाम दिया जाता है।
पाकिस्तान
की कुख्यात आईएसआई का खूनी प्लान k-2
पाकिस्तान खालिस्तान को जिन्दा रखने के लिए अपनी जमीन का बेजा इस्तेमाल करने से कभी परहेज नहीं करता। वह विदेशों में रहने वाले खालिस्तानी समर्थकों को भारत विरोध के लिए उकसाने की नीति पर चलता रहा है। लाहौर में सिख अतिवादी संगठन बब्बर खालसा इंटरनेशनल का सरगना वधवा सिंह बब्बर लम्बे समय तक पाकिस्तान की खुफियां एजेंसी आईएसआई की सरपरस्ती में रहा था। इस दौरान उसने लश्कर –ए –तैयबा के साथ मिलकर सिख आतंकवाद को फिर से जिंदा करने की कोशिशें भी की। पाकिस्तान में सिख अतिवादियों को जेहादी भाई कहा जाता है और उन्हें तमाम सुख सुविधाओं के साथ पाक सेना के अधिकारियों,आईएसआई और कुख्यात आतंकी संगठन के आकाओं से मिलने की खुली छुट भी मिली होती है। दूसरी और यह तथ्य किसी से छुपे नहीं है की पंजाब के शिरोमणि अकाली दल जैसे राजनीतिक दल पृथकतावादियों को राजनीतिक समर्थन देते रहे है। अकाली दल पंजाब की स्वायतता के हिमायती रहे है और उनकी भूमिका भी संदिग्ध रही है। पाकिस्तान की इंटर सर्विसेज इंटेलिजेंस सिख आतंकवादी संगठनों में फिर से जान डालने के लिए कनाडा,अमेरिका समेत दुनियाभर में बसे सिखों को भड़काने का कोई भी मौका नहीं छोड़ती। आईएस आई खालिस्तानी अलगाववादी और कश्मीर के आतंकवादियों को एक जुट करने की योजना पर लगातार काम कर रही है।
ननकाना
साहिब पर पाकिस्तान की कुटिल नजर
पाकिस्तान ने खालिस्तान
के लिए ननकाना साहिब में भी लगातार मुहिम चलाई है। दुनियाभर के सिख वहां गुरु नानक
देव की जयंती पर जुटते हैं। पाक सिखों को ननकाना साहिब में आने के लिए न केवल उच्च
कोटि की सुरक्षा देता है बल्कि वहां खालिस्तान के समर्थन में पोस्टर भी लगाता रहा
है। आईएसआई खालिस्तान के नाम पर सिख युवाओं को भडकाकर स्लीपर सेल बनाने को आमादा
है। इसके लिए वह स्वर्ण मंदिर से बाहर निकालने के लिए की गई कार्रवाई और सिख विरोधी दंगों के नाम पर विष वमन करती है। इन्टरनेट
पर सिख आतंकवादियों की शहादत जैसा महिमामंडन और एनजीओ द्वारा पैसा भेजकर आईएसआई
खालिस्तान के दानव को पुनः जीवित करना चाहती है।
असल
में खालिस्तान की मांग को उभार कर पाकिस्तान लगातार भारत में अलगाववादी ताकतों को
मजबूत करने की कोशिशें करता रहा है। वहीं पाकिस्तान इसलिए सफल नहीं हो पाया
क्योंकि खालिस्तान के दानव को समाप्त करने
में सिख सैन्य और पुलिस अधिकारियों के साथ पंजाब की बहुसंख्यक सिख आबादी का बड़ा
योगदान रहा है।
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