पॉलिटिक्सवाला पोस्ट
दिल्ली के डॉ.अनस मुजाहिद की उम्र महज 26 साल थी। उनकी अभी शादी भी नहीं हुई थी। पिछले साल से लगातार डॉ.अनस कोविड से प्रभावितों का इलाज कर रहे थे, किंतु वे भी दुर्भाग्य से इसके शिकार हो गए और उनकी मृत्यु हो गई। इस महामारी कि विभीषिका में भारत के विभिन्न इलाकों में काम करने वाले कई डॉक्टर्स की सेवाएं अभिभूत कर देती है,उनका जीवन हर दिन चुनौतियों से घिरा हुआ है। किसी ने दरवाजे के बाहर खड़े होकर अपनी बेटी का जन्मदिन मनाया तो कई डॉक्टर्स कई महीनों से अस्पताल से अपने घर ही नहीं लौटे है। दिल्ली के ही एक ख्यात डॉक्टर अपनी कार में खड़े होकर माईक से यह अपील करते हुए अक्सर दिखते है कि,लोग बेहद आवश्यक होने पर ही घर से बाहर निकलें और यदि उन्हें खांसी बुखार के लक्षण हो तो बिना परेशान हुए कैसा इलाज करें। ऐसे कई डॉक्टर्स है जो कोविड से प्रभावित लोगों कि लगातार बड़ी संख्या में मौत से दुखी होकर फूट फूट कर रोएं भी होंगे।
यह वह जानलेवा और कठिन दौर है जब लोग अपने घरों में कैद है और पड़ोसी के यहां जाने के भी महीनों बीत चूके होंगे। अपने पड़ोस और परिजनों के गुजर जाने के बाद भी कोविड के डर से लोग अंत्येष्टि में भी शामिल नहीं हो रहे है। उस समय हजारों डॉक्टर अपनी जान को जोखिम में डालकर पूरी मुस्तैदी से कोविड मरीजों के बीच है और ऐसा करते हुए भारत समेत दुनिया में हजारों डॉक्टर्स की मौत हो गई है। ऐसे समय में एलोपैथिक चिकित्सा पद्धति और आधुनिक डॉक्टर्स को निशाना बनाने की कोई भी कोशिश किसी भी सभ्य समाज में स्वीकार्य नहीं की जा सकती। फिर चाहे वह योगगुरु बाबा रामदेव ही क्यों न हो।
दरअसल बाबा रामदेव का समूचा जीवन दर्शन भारतीय जीवन पद्धति कि श्रेष्ठता के प्रदर्शन से आगे बढ़कर व्यवसायिक और भौतिकवादी अभिलाषाओं की ओर तत्पर नजर आता है और यह उनके व्यक्तित्व और कार्यों से प्रतिबिंबित भी होता है। कुछ दिनों पहले बाबा रामदेव ने कहा था कि एलोपैथिक दवाएँ खाने से लाखों लोगों की मौत हुई है। उन्होंने एलोपैथी को 'स्टुपिड और दिवालिया साइंस' भी कहा था। कोरोना महामारी में जब लोग ऑक्सीज़न कि तलाश में दर दर भटक रहे थे और देशभर में हजारों लोगों कि ऑक्सीज़न कि कमी से मौत हो रही थी,उस समय बाबा रामदेव का यह बयान बेहद शर्मनाक था कि,ऑक्सीजन की कोई कमी नहीं है,वातावरण में भरपूर ऑक्सीजन है लेकिन लोग बेवजह सिलेंडर ढूँढ रहे हैं। एलोपैथिक चिकित्सा पद्धति को अक्सर निशाना बनाने वाले रामदेव पर यह भी आरोप है कि उन्होंने एक अभ्यास शिविर में जनता के सामने कहा था की आधुनिक चिकित्सा का अभ्यास करने वाले डॉक्टर बीमारियों के प्रचारक हैं और मरीज़ों की बीमारियों को भुना रहे हैं। बाबा रामदेव के इस प्रकार के विचारों में उनकी व्यवसायिक प्रतिबद्धताएं ज्यादा दिखाई देती है।
गौरतलब है कि बाबा रामदेव ने योग गुरु की पहचान से आगे बढ़ते हुए 2006 में पतंजलि आयुर्वेद के नाम से एक कंपनी शुरू की थी जो डेढ़ दशक बाद भारत की प्राकृतिक और हर्बल की एक बड़ी कंपनी के तौर पर पहचान बना चूकी है,इसका टर्नओवर दस हजार करोड़ के करीब पहुँच गया है। भारत के हर्बल बाज़ार पर उनकी कंपनी ने अपनी अच्छी पकड़ बनाई है और उनका सपना इसे दुनिया की सबसे बड़ी आयुर्वेद कंपनी बनाने का है। ब्रिटेन समेत कई देशों में उनकी कंपनी का कारोबार है। बाबा रामदेव किसी व्यवसायी कि तरह ही आगे बढ़े तो इसमें कोई परेशानी नहीं है लेकिन वे अपने व्यवसाय को आगे बढ़ाने के लिए कभी धर्म की आढ़ लेते है,कभी भारतीय सभ्यता का हवाला देते है तो कभी कभी उग्र राष्ट्रवाद को उभार कर खुद को नायक कि तरह प्रस्तुत करने की कोशिशें भी करते है। इन सब में वे योग की पूर्णता और पवित्रता को भूला बैठे है। वास्तव में योगगुरु की ही उनकी असल पहचान रही है।
दूसरी तरफ एलोपैथी या आधुनिक चिकित्सा पद्धति ने अपने अनुसंधानों,तकनीक और प्रयोगों से उल्लेखनीय सफलताएं अर्जित की है तथा फौरी राहत देने के लिए यह दुनियाभर के करोड़ों लोगों का विश्वास अर्जित कर चूकी है। खासकर महामारी और गंभीर बीमारियों का इलाज कर मानव जाति का अस्तित्व बचाने में एलोपैथी की भूमिका अतुलनीय है। शल्य चिकित्सा पद्धति में इसका कोई जवाब नहीं है। जहां तक बाबा रामदेव के हर्बल उत्पादों की बात की जाएं तो उनकी गुणवत्ता पर सवाल उठते रहे है और नेपाल में तो कई दवाओं पर प्रतिबंध भी लगाया जा चूका है। ऐसा विश्वास किया जाता है की हर्बल और प्राकृतिक उत्पादों की शुद्धता सदैव बरकरार रहना चाहिए,लेकिन बाबा रामदेव की कंपनी अपनी विश्वसनीयता को असंदिग्ध रखने में सफल नहीं हुई है।
योग सूत्र
के प्रणेता महर्षि पतंजलि ने योग को समाधि से जोड़ते हुए कहा था कि यह ऐसी स्थिति है जिसमें बाहरी
चेतना विलुप्त हो जाती है। महर्षि पतंजलि को अपने आदर्श के रूप में
प्रस्तुत कर करोड़ों भारतीयों का ध्यान आकर्षित करते बाबा रामदेव के आचरण और
व्यवहार में अधीरता और अनंत भौतिक अभिलाषाएं प्रकट होती है। वे अक्सर भारतीय दर्शन,धर्म ग्रन्थों और आदर्शों
कि बात तो करते है जबकि स्वयं उपनिषद कि उस नसीहत को
भूला बैठे है जिसके अनुसार योग कि उच्च अवस्था प्राप्त करने के लिए संयमित वाणी,संयमित शरीर और संयमित मस्तिष्क की आवश्यकता होती है। योग और
आयुर्वेद को हमारी सभ्यता और संस्कृति में महत्वपूर्ण स्थान हासिल है। इस उपचार
पद्धति कि स्वीकार्यता भी बहुत है लेकिन बाबा रामदेव ने अन्य उपचार पद्धतियों को
व्यवसायिक दृष्टिकोण से निशाना बनाकर आयुर्वेद की सार्वभौमिक मान्यताओं और मूल्यों
को बड़ी क्षति पहुंचाई है। उनका अपने व्यवसाय को बढ़ाने के लिए लोगों को भ्रमित करने
जैसे कृत्य कोरोना जैसी महामारी के रोकथाम में बड़ी रुकावट बन सकते है। अत: इन्हें
हर हाल में रोका जाना चाहिए।