दबंग दुनिया
अमेरिका ने वैक्सीन के निर्यात पर तब तक रोक जारी रखी है,जब तक पूरे देश में टीकाकरण पूरा ना हो जाए। लेकिन भारत की नीति इससे कहीं अलग थी। भारत ने वैक्सीन कूटनीति को दृष्टिगत रखते हुए अपने देश में आयु-सीमा तय करके टीकाकरण योजना शुरू की। जो पहले दौर में 60 से ज्यादा और दूसरे दौर में 45 साल से ज्यादा उम्र के लोगों को वैक्सीन लगाने को लेकर थी।
भारत ने घाना,फ़िजी और भूटान जैसे देशों को तो वैक्सीन भेजी,साथ ही सऊदी अरब,ब्रिटेन और कनाडा जैसे अमीर देशों को भी वैक्सीन निर्यात की गई। भारत में सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया कंपनी द्वारा निर्मित कोविशील्ड वैक्सीन की पांच लाख डोज वाली पहली खेप कनाडा पहुंचाई गई। भारत ने ब्राजील को कोरोना वैक्सीन की 20 लाख खुराक भेजी। इसी प्रकार कोविशील्ड की 1.417 करोड़ खुराक भूटान,मालदीव, बांगलादेश,नेपाल,म्यामांर ओर सेशेल्स में पहुंचाई गई। भारत ने भूटान को कोविशील्ड टीके की एक लाख पचास हजार खुराक और मालदीव को एक लाख खुराकें भेजी जबकि बांग्लादेश को कोविड-19 टीकों की 20 लाख से अधिक खुराक और नेपाल को 10 लाख खुराक भेजी गई।
इस समय आंकड़ों को लेकर यह दावा किया गया कि दुनिया में सबसे ज्यादा संख्या में भारत में लोगों का टीकाकरण किया गया जिसे मोटे तौर पर 10 करोड़ बताया गया। लेकिन आबादी के हिसाब से यह कितना कम था,इसे इन आंकड़ों को देखकर समझा जा सकता है। जब भारत में यह दावा किया जा रहा था तब भारत में आबादी के हिसाब से यह बेहद कम थी और इसकी पहुँच साढ़े पाँच फीसदी लोगों तक हुई। वहीं,ब्रिटेन में लगभग पचास फीसदी और अमेरिका में तैतीस फीसदी आबादी को टीका लगाया जा चुका था। कोरोना के कहर कि पहली लहर को झेलने वाला ब्राज़ील भी भारत से आगे रहा और उसने 10 फीसदी लोगों को टीका लगा दिया। भारत का पड़ोसी देश भूटान,जिसने भारत से वैक्सीन निर्यात की है। वहाँ साठ फीसदी से ज्यादा लोगों का टीकाकरण हो चुका है।
चीन में कोरोना फैलने के बाद पिछले साल जनवरी में विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे लेकर चेतावनी दी थी,इसके बाद भी फरवरी के महीने में अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के भारत दौरे पर अहमदाबाद में नमस्ते ट्रंप कार्यक्रम का आयोजन किया गया था,जिसमें एक लाख से अधिक लोग शामिल हुए थे। भारत ऐसे आयोजनों से दूर नहीं हुआ और इस साल पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव आयोजित किए गए जिसमें करीब अठारह करोड़ मतदाताओं ने भाग लिया। यह आगामी समय में और संकट बढ़ाएगा,इसकी आशंका बढ़ गई है।
वहीं कोरोना से निपटने कि योजनाओं को ले तो अमेरिका के पास ऐस्ट्राज़ेनेका की 300 लाख डोज़ बिना इस्तेमाल हुई रखी हुई है, जो संकट में काम आ सकती है। भारत में कोरोना के बढ़ते मामले और इससे उत्पन्न भीषण संकट के बीच बड़ी समस्या यह सामने आई की अमेरिका ने वैक्सीन और दवाओं से जुड़े कच्चे माल के आयात पर रोक लगा रखी थी। भारत ने जब इसे हटाने की बात कहीं तो अमेरिका ने पहले तो इसे हटाने से इंकार कर दिया और फिर व्हाइट हाउस की प्रवक्ता जेन साकी ने कहा कि,अमेरिका पहले अपने नागरिकों की ज़रूरतें पूरी करेगा। हालांकि बाद में अमेरिकी प्रशासन ने हाल ही में भारत को मदद देने का भरोसा दिलाया, यह कब मिलेगी,यह साफ नहीं है।
कोरोना से निपटने की बेहतर कार्ययोजना कभी भारत में नजर ही नहीं और वैश्विक खतरों को नजर अंदाज करके इसे हर्ड इम्यूनिटी वाला देश बार बार बताया गया। पिछले साल कोरोना संक्रमण फैलने के खतरों के बीच ऑक्सीज़न की कमी की समस्या सामने आई थी। बाद में भारत ने दूसरी लहर को लेकर कोई भी तैयारी करने पर ज़ोर नहीं दिया। भारत कोरोना महामारी से सबसे ज्यादा 3 प्रभावित देशों में शामिल था। बिजनेस टुडे के मुताबिक अप्रैल 2020 से जनवरी 2021 के दौऱान भारत ने 9301 मीट्रिक टन ऑक्सीजन का निर्यात किया जिससे उसे 8.9 करोड़ रुपये की कमाई हुई। इसकी तुलना में भारत ने वित्त वर्ष 2019-20 में कुल 4514 मीट्रिक टन ऑक्सीजन का निर्यात किया था जिससे 5.5 करोड़ रुपये की कमाई हुई थी। भारत ने वित्त वर्ष 2020-21 के पहले 10 महीनों में पूरे वित्त वर्ष 2019-20 की तुलना में दोगुना ऑक्सीजन का निर्यात किया। डिपार्टमेंट ऑफ कॉमर्स के आंकड़ों में यह खुलासा हुआ है। कोरोना के संकट में भारत कि यह नीति हैरान और परेशान करने वाली है।
इस समय देश में ऑक्सीजन की कमी से हजारों लोग मर चुके है और यह समस्या बदस्तूर जारी है। हालत यह है कि दिल्ली और कुछ दूसरे राज्यों के पास अपने ऑक्सीजन प्लांट नहीं हैं। सप्लाई के लिए वे दूसरे राज्यों पर निर्भर हैं। ऑक्सीजन कि कमी से मरते लोगों कि बड़ी संख्या से संतप्त सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से एक राष्ट्रीय कोविड योजना बनाने को कहा है जिससे ऑक्सीजन सप्लाई की कमी दूर की जा सके। देश के कई राज्यों में अस्पतालों के बाहर बोर्ड टांग दिये गए जिसमें अस्पताल में ऑक्सीजन उपलब्ध न होने का हवाला दिया गया है। कोविड से निपटने में इस समय रेमडेसिविर इंजेक्शन को बेहद मददगार माना जा रहा है और इसकी काला बाजारी भी बड़े पैमाने पर सामने आई है। भारत में सात कंपनियाँ मायलेन,हेट्रो हेल्थ केयर,जुबलियंट,सिप्ला,डॉक्टर रेड्डी लैब,सन फ़ार्मा और ज़ाइडस कैडिला रेमडेसिविर का उत्पादन करती हैं। कोरोना की दूसरी लहर को लेकर भारत में तैयारियों और चेतावनियों का अभाव इस कदर रहा कि रेमडेसिविर का प्रोडक्शन तीन महीने रोक दिया गया था,इसका कारण बीते दिसंबर से लेकर इस साल फ़रवरी तक रेमडेसिविर की कम या लगभग न के बराबर माँग को बताया गया। तीन महीने तक न के बराबर प्रोडक्शन होना इस दवा की आपूर्ति में कमी के पीछे बड़ा कारण बन गया।
इस समय देश कोरोना की विपदा से बूरी तरह जूझ
रहा है और इसकी जद में कम उम्र के वे लोग भी आ गए है,जिन्हें वैक्सीन लग जाने से
वे ज़िंदा बच सकते थे। जाहिर है देश के नेतृत्व को यह समझने की जरूरत है कि किसी राष्ट्र के कितने भी ऊंचे आदर्श और कितनी ही उदार
अभिलाषाएं हो,वह अपनी
विदेश नीति को राष्ट्रीय हित के अतिरिक्त किसी अन्य धारणा पर आधारित नहीं कर सकता।
अंतत: राष्ट्रीय चरित्र और राष्ट्रीय शक्ति का सार तो राष्ट्र के लोगों की सुरक्षा
में ही निहितहोना चाहिए,फिर वह राष्ट्रीय स्वार्थ या
अव्यवहारिक आदर्शवाद के रूप में ही क्यों न हो। अमेरिका से यह सीखने की जरूरत है।