धर्म,राजनीति और अर्थशास्त्र से आशंकित बापू का भारत,religion,politics,gandhi

 हम समवेत      

                            

यदि हम धर्म,राजनीति और अर्थशास्त्र से “मैं और मेरा” निकाल सकें तो हम शीघ्र ही स्वतंत्र हो जायेंगे और पृथ्वी पर स्वर्ग उतार सकेंगे,महात्मा गांधी के ये शब्द सदा प्रासंगिक नजर आते है बापू की विचारधारा ही सर्वसमावेशी थी,इसलिए उनकी आस्था और मान्यताएं कभी नहीं डिगी अब किसान आंदोलन को ही लीजिये,किसानों की समस्याओं में “मैं और मेरा” अस्तित्व और अस्मिता से जुड़ा मुद्दा है,यह अर्थशास्त्र पूंजीपतियों से भी जुड़ता है इसलिए किसानों की आशंकाएं निर्मूल भी नहीं है। किसानों के साथ ही अन्य हित समूह भी अपने आर्थिक फायदों के लिए “मैं और मेरा”  का उद्देश्य पूरा करने के लिए कृत संकल्पित नजर आ रहे है। शीर्ष सत्ताधारियों की “मैं और मेरा” की नीति उनकी राजनीतिक सत्ता के लिए संजीवनी होती है,सत्ता साधन सम्पन्न भी होती है अत: उसके लिए अपना लक्ष्य पाना अन्यों की अपेक्षा आसान होता है रही सही कसर धर्म पूरी कर देता है जिसे राजनीतिक भ्रमजाल में उलझाकर इतना उद्देलित कर दिया जाता है की उसका प्रतीकात्मक असर लाल किले से होकर किसान आंदोलन जैसे न जाने कितने जन आंदोलनों को बेहाल और अपंग कर सकता है  इन सब कवायदों में देश को स्वर्ग बनाने के लिए धर्म,राजनीति और अर्थशास्त्र को निकालने की महात्मा गांधी की सीख वैसे ही नजरअंदाज कर दी जाती है,जैसे इस देश में बापू और उनकी मान्यताओं को नजरअंदाज करने की परम्परा कायम कर दी गई है  

देश की राजधानी में गांधी की अहिंसा,स्वराज और सुशासन को तार तार होते सभी ने देखा। इसमें उन सभी की भागीदारी किसी न किसी रूप में दिखी जो इस देश में रहते है,जीते है,उपभोग करते है,भागीदारी और नेतृत्व करते है और व्यवस्था के संचालन का भार उठाएं रहते है। भारत के लोकतंत्र को देखने की गांधी की दृष्टि बेहद सेवाभावी रही,वे इसे लोक कल्याण से जोड़ कर देखते थे वे खांटी खादीधारी और ग्रामीण की तरह सोचते थे की जनता की सेवा करना हम सबका कर्तव्य है अत: इसके लिए किसी पद या दायित्व की जरूरत नहीं है बिना सत्तारूढ़ हुए भी जनता पर अधिकार हो सकता है और जनता में सर्वमान्य भी हो सकते हैमहात्मा गांधी यही सिखाते है और भारत के नेताओं से ऐसी ही अपेक्षा किया करते थेराज्य के नीति निदेशक तत्वों में गांधीवाद की झलक दिखाई भी देती है लेकिन संविधान समिति के सदस्यों में इसे लेकर भी गहरा मतभेद रहा बहस,तर्क और असहमति लोकतंत्र को मजबूत रखने वाले तीन महत्वपूर्ण स्तंभ हैभारत का संविधान कैसा हो इस पर खूब बहस हुई,तर्क भी रखे गए और अंततः संविधान बन गयालेकिन असहमति अभी भी खत्म न हुईखासकर ग्राम स्वराज को लेकर संविधान समिति के विद्वान् सदस्य एक दूसरे के सामने थेकुछ लोगों ने ग्राम परिषद के आधार पर पुनर्जीवित पंचायती राज प्रणाली और गांधीवादी संविधान की वकालत की जिसमें गांव राजनीति और प्रशासन का केंद्र बिंदु होता वहीं डॉ. आंबेडकर गांवों में  ऊंची जातियों के प्रभुत्व को लेकर आशंकित थे अत: उन्होंने ग्राम स्वराज की अवधारणा को मजबूत भारत के लिए चुनौती और संकट बताया जब संविधान लागू हुआ तो उदार और वृहत संविधानिक प्रावधानों के बाद भी देश के महान स्वतंत्रता सेनानी महावीर त्यागी ने इसकी तीखी आलोचना करते हुए कहा की इस संविधान में कुछ भी गांधीवादी नहीं हैनिडर और जाने माने स्वतंत्रता सेनानी के हनुमंतियाँ ने तो यह तक कह दिया की,उनके जैसे स्वतंत्रता सेनानियों ने वीणा और सितार के संगीत की कामना की थी,लेकिन बदले में उन्हें अंग्रेजी बैंड मिला


भारत में संसदीय लोकतांत्रिक प्रणाली अपनाई गई है और ब्रिटेन की तर्ज पर ही फर्स्ट पास्ट द पोस्ट अर्थात् सर्वाधिक मतप्राप्त व्यक्ति की विजय की चुनाव प्रणाली और केबिनेट प्रणाली को अपनाया गया महात्मा गांधी बहुमत के शासन से उभरने वाले अधिनायकवादी नेतृत्व के प्रति आशंकित थे,और वे इसीलिए दलविहीन लोकतांत्रिक प्रक्रिया चाहते थे। अब लोकतंत्र में सत्य और अहिंसा न तो नीतियों में है,न सत्ता इस ओर प्रतिबद्द है और न ही जनता ऐसी प्रतिबद्धता दिखाती है। गांधी इसे लेकर सदा आशंकित रहे लेकिन उन्होंने कभी समझौता भी नहीं किया। वे कहते थे की जिस प्रकार मैं किसी अंधे आदमी को सुंदर दृश्यों का आनंद लेने के लिए प्रेरित नहीं कर सकता,उसी प्रकार कायर को अहिंसा का पाठ नहीं पढ़ा सकताअहिंसा तो वीरता की चरम सीमा है

खादी के तिरंगे झंडे को स्वयं महात्मा गांधी ने चुना था केसरिया,हरे और सफ़ेद रंग के बीच में चरखा रखा हुआ था जो भारत की आत्मनिर्भरता और अहिंसा का प्रतीक था आज़ादी के समय कुछ लोगों के द्वारा चरखे को गांधी का खिलौना कहकर इसे हटाने पर जोर दिया गया और अंततः इसे हटा भी दिया गया   इसकी जगह अशोक चक्र को रखा गया,यह चक्र सम्राट अशोक के विजेता सैनिकों का युद्द चिन्ह था  इस प्रकार सख्ती तथा साहस के प्रतीक दो शेरों के बीच शक्ति तथा सत्ता का प्रतीक अशोक का धर्म चक्र नये भारत का प्रतीक बन गया गांधी को जब इस बात का पता चला तो इस प्रकार के संदेश को लेकर उदास हुए

किसान गदर में भी हाथों में तिरंगा ही था,गणतन्त्र दिवस होने से ऐसे सैकड़ों नन्हे हाथ होंगे जिन्होंने तिरंगा थाम रखा होगा। इन सबके बीच वीरता का प्रदर्शन भी हुआ जो किसानों के कुछ समूहों और सुरक्षाबलों के द्वारा हुआ।  इन सबमें भारत की आत्मा, सत्य,अहिंसा,सुशासन और लोककल्याण लहूलुहान हुआ। गांधी की हत्या भी कुछ ऐसे ही हुई थी और उसे सही ठहराने के प्रयास भारत भूमि पर हर दिन किये जाते है। वे हमारे बीच नहीं है लेकिन उन्हें भूलाने की हर कोशिश आत्मघाती नजर आती है। अंततः बापू ने ही तो कहा था कि,मैं अपने देश या अपने धर्म के उद्धार के लिए सत्य और अहिंसा की नीति की बलि नहीं दूंगा,वैसे इनकी बलि देकर देश या धर्म का उद्धार नहीं किया जा सकता

राष्ट्र को वैसा ही रहने दीजिये,जैसा वह है। gandhi-bhart

 

  प्रजातंत्र

                                                             


 खादी के तिरंगे झंडे को स्वयं महात्मा गांधी ने चुना था  केसरिया,हरे और सफ़ेद रंग के बीच में चरखा रखा हुआ था जो भारत की आत्मनिर्भरता और अहिंसा का प्रतीक था  कई दशकों तक जन आंदोलनों में यह भारत की अस्मिता और आज़ादी का प्रतीक बना रहा


  लेकिन आज़ादी के समय कुछ लोगों के द्वारा चरखे को गांधी का खिलौना कहकर इसे हटाने पर जोर दिया गया और अंततः इसे हटा भी दिया गया   इसकी जगह अशोक चक्र को रखा गया,यह चक्र सम्राट अशोक के विजेता सैनिकों का युद्द चिन्ह था  इस प्रकार सख्ती तथा साहस के प्रतीक दो शेरों के बीच शक्ति तथा सत्ता का प्रतीक अशोक का धर्म चक्र नये भारत का प्रतीक बन गया  गांधी को जब इस बात का पता चला तो उन्होंने साफ कहा, यह डिज़ाइन कितना ही कलात्मक क्यों हो,मैं कभी ऐसे झंडे को सलामी नहीं दूंगा जिसके पीछे इस प्रकार का संदेश हो 

लेकिन इन घटनाओं से महात्मा गांधी विचलित भी नहीं हुए.उनके लिए राष्ट्र का मतलब कोई झंडा,धर्म,संप्रदाय,मूर्ति,नारे या भावनाओं का उभार कभी नहीं था गांधी का राष्ट्र सभ्यता और सांस्कृतिक एकता से बनता था।  वे इस देश को इतना जानते थे की शायद ही कोई ऐसा जन नेता इस राष्ट्र में जन्मा होगा    महात्मा गांधी भलीभांति समझते थे की इस देश के लिए क्या मुफीद हो सकता है और क्या नहीं उसके अनुसार ही वे चलते थे  इस बात से बेखबर की उनके फैसले को कोई किस तरह ले रहा है  जनता का भी उन पर खूब भरोसा होता था  यह भरोसा उस दौर में था जब संचार के कोई साधन नहीं थे   लेकिन गांधी की आवाज आकाशवाणी की तरह देश के कोने कोने तक पहुंच जाती थी  उस समय देश के कोने भी अपनी अलहदा पहचान लिए होते थे  पख्तून तो तब भारत का ही हिस्सा था  सरहदी इलाकों में रहने वाले पठानों से अंग्रेज ताउम्र लड़ते रहे  वहीं लड़ाकू पठान गांधी के सामने नतमस्तक थे   खान अब्दुल गफ्फार खान का लाल कुर्ती आंदोलन गांधी पर भरोसे का ही तो प्रतीक था  भगतसिंह जब जेल में थे तो वे अंतिम समय में गांधी को ही पढ़ रहे थे  भगत सिंह की चिट्ठियों को पढ़ लीजिये उन्होंने भी कहा की देश को आज़ादी गांधी के रास्ते ही मिलेगी

मोहम्मद अली जिन्ना को महात्मा गांधी से गहरी नफरत थी,यह बात गांधी जानते थे लेकिन वे कभी शायद ही जिन्ना से विचलित हुए हो  जिन्ना को यही तो चिढ थी की वे गांधी को कभी विचलित कर सके   अपनी पीड़ा को जिन्ना ने स्वीकार भी किया   देश के विभाजन की घोषणा के बाद जब वे कराची के हवाई अड्डे पर उतरे तो अपनी बहन से मुखातिब होते हुए बोले,अल्लाह का शुक्र है की हमें पाकिस्तान मिल गया,जिसकी अपनी जिंदगी में मैंने कभी कल्पना नहीं की थी

दरअसल जिन्ना पाकिस्तान बनने को लेकर इसलिए आश्वस्त नहीं थे क्योंकि वे गांधी के प्रभाव से डरते थे  उनका डरना लाजिमी भी था   गांधी का राष्ट्र सभी की साझी संस्कृति से बनता था जो जिन्ना की मूल मान्यता के ही खिलाफ था मोहनदास करमचन्द गांधी से महात्मा गांधी तक के सफर में बापू दृढ निश्चयी होते चले गए भारत माता की तस्वीर को लेकर तो आप सबने सुना ही होगाफ़टी साड़ी में लिपटी एक आकृति को भारत माता का प्रतिरूप बताते हुए कहा था की उन्होंने तो ऐसी ही भारत माता देखी है  यकीनन यह साहस गांधी का हो सकता था जो भारत की वास्तविकता को स्वीकार करने का साहस रखते थे और आम जनता इसीलिए तो उन पर अटूट विश्वास करती थी  

1920 में खिलाफत आंदोलन की अध्यक्षता करने जब बापू ने स्वीकार किया तो यह सबके लिए अप्रत्याशित था  सबके मन में एक ही सवाल था की मुसलमानों के आंदोलन से बापू का क्या वास्ता,लेकिन इसका जवाब गांधी ही दे सकते थे  पर गांधी ने शब्दों से कभी किसी का जवाब कहां दिया  वे तो बस छोटे छोटे रास्ते पार करना चाहते थे उनकी नजर में आज़ादी से ज्यादा महत्वपूर्ण भारत की गरीबी,बेरोजगारी,अशिक्षा,सामाजिक और आर्थिक असमानता का खाई को पाटना और साम्प्रदायिक एकता को बनाएं रखना था   गांधी ने कभी  ऊंचे लक्ष्यों की बात ही नहीं की  एक बार गांधी  गुजरात में एक स्थान पर आये तो वल्लभ भाई पटेल के दोस्त उनसे मिलने को बहुत उत्सुक हो गये  इस पर वल्लभ भाई ने कहा की गांधी में क्या है, अभी वह बोलेगा की गेंहू के  दाने से और क्या निकाल सकते है और आज़ादी हमें इससे कैसे मिलेगी   लेकिन जब वल्लभभाई ने गांधी के कामों को देखा तो वे भी उनके मुरीद हो गए 

नौआखली में गांधी पागलों की तरह बेखौफ घूम रहे थे  उन्हें वहां भी मरने से डर नही लग रहा था  उनके इस साहस को अंग्रेज भी  जानते थे इसलिए अंग्रेजों ने पुलिस और सेना से ज्यादा गांधी पर भरोसा किया और इसके परिणाम भी सामने आये  15 अगस्त 1947 को पंजाब समेत कई सरहदी इलाके दंगों से जल रहा था तब बंगाल में हिन्दू मुसलमान मिलकर तिरंगा फहरा रहे थे 

जार्ज बर्नाड शा ने कहा की गांधी का तरीका बराबर सही बना रहा   जबकि लोगों को दूर की चीजों में दिलचस्पी नहीं होती,उनकी खास नजर वक्ती फ़ायदे पर होती है  गांधी खिलाफत आंदोलन में क्यों गए थे,इसका जवाब आगे मिल ही गया  मुस्लिम लीग जिस आधार पर पाकिस्तान को मुसलमानों के लिए अलग देश के रूप में मांग रही थी,वह एक मध्ययुगीन विचार था  गांधी ने मुस्लिम लीग की इस धारणा को ही ध्वस्त कर दिया की मुसलमानों का वजूद हिंदुस्तान से अलग है  गांधी जानते थे की मुसलमान तो भारत के हर गांव में बसते है अत: मुसलमानों की किसी भी समस्या को हिंदुस्तान से अलग करके नहीं देखा जा सकता   गांधी का ही यह विश्वास था की जितने लोग मुस्लिम लीग के साथ नहीं थे उससे ज्यादा मुसलमान गांधी के साथ थे  गांधी लोकतांत्रिक अधिकारों के बड़े समर्थक थे लेकिन उन्होंने कभी किसी का विरोध नहीं किया  उन्होंने साफ कहा की वे राजाओं के विरोधी नहीं है और ही रियासतों को जबरदस्ती मिलाने के पक्षधर है  यह वहां की जनता को तय करने दीजिये  गांधी के इन्हीं विचारों के कारण आज़ादी का आंदोलन अपनी गति से चलता रहा और उससे देश के सभी भागों के लोग जुड़ते चले गये  गांधी का कभी किसी राजा ने भी विरोध नहीं किया,यहां तक की उन हरिसिंह ने भी नहीं जो कश्मीर को अपनी जागीर समझते थे

भारत की विविधता को समझने और उसके अनुसार चलने की गांधी की दृष्टि बेहद वृहत थी और यह वृहत भारत के बने रहने का कारण भी बना। भारत में बहुत सारें धर्म,संप्रदाय और जातियां रहती है। इन सबकी मूल मान्यताएं भी अलग अलग हो सकती है लेकिन इन सबमें आपको गांधी मिल ही जायेंगे। गांधी का भारत की जनता पर इतना अटूट विश्वास था की उन्होंने कभी किसी को अपने राष्ट्र के लिए अप्रासंगिक समझा ही नहीं। गांधी भारत के हर नागरिक में संभावनाएं ढूंढते रहे।  किसानों से कहा की आप जैसे है वैसे ही रहे,आप अपने खेतों में खूब काम करते रहे। गांधी स्वयं गांव में जाकर रहने लगे और उन्होंने ग्राम वासियों से कहा की असल भारत तो गांवों में ही रहता है।  वे आदिवासियों के बीच गए तो पर्यावरण के लिए आदिवासियों की प्रतिबद्धता के वे कायल हो गए। आज़ादी मिलने से ठीक पहले महात्मा गांधी कश्मीर गए तो वहां की जनता भी इससे अभिभूत हो गई। गांधी अपने आश्रम में तमाम विरोधों को दरकिनार कर समरसता का महत्व समझाने और इसे अपनाने का संदेश देने में कामयाब रहे।

गांधी के जीवन और कार्यों पर नजर दौड़ाइयें,उन्होंने भारत के बने रहने के लिए अपनी दृष्टि को सदैव सम रखा,चाहे उनका कितना ही विरोध हुआ हो या कितनी भी विपरीत परिस्थितियां क्यों न बनी हो। गांधी बार बार यह संदेश देते  है की राष्ट्र वैसा नहीं बन सकता जैसा हम चाहते है,बल्कि राष्ट्र को वैसा ही रहने दीजिये,जैसा वह है। यहां के लोगों को पता है की उन्हें  कैसे बनना है। लोगों के बीच रहिये और कार्य करते रहिये। यदि यह कार्य समाज और देश के हित में है तो जनता अवश्य  उस रास्ते पर चल पड़ेगी। गांधी बुनियादी शिक्षा के पक्षधर थे लेकिन अंग्रेजी शिक्षा के घोर विरोधी नहीं थे। गांधी गुलामी के विरोधी थे लेकिन अंग्रेजों से उन्होंने कभी नफरत नहीं की। गांधी को अपनी भारतीय संस्कृति पर गर्व था लेकिन उन्होंने कभी किसी अन्य संस्कृति का विरोध नहीं किया। गांधी बस जीवन भर चलते रहे और अनंत अपेक्षाएं उनके साथ एक एक कर जुड़ती चली गई। ब्रिटेन के विश्वविख्यात लेखक राबर्ट पेन ने महात्मा गांधी,लाइफ एंड डेथ लिखी थी। उन्होंने गांधी के जीवन को बहुत नजदीक से देखा था,पेन ने गांधी के जीवन संदेश को इस प्रकार बताया,“त्याग के बिना देश भक्ति नहीं हो सकती क्योंकि जहां स्वार्थ ग्रहण की भावना आई,वहां मनुष्य ऊपर चढ़ ही नहीं सकता।” महात्मा गांधी कहते भी थे की,यदि तुमने अपना कर्तव्य नहीं निभाया तो मरने के बाद भी मैं तुम्हें सजा दूंगा।

brahmadeep alune

पुरुष के लिए स्त्री है वैसे ही ट्रांस वुमन के लिए भगवान ने ट्रांस मेन बनाया है

  #एनजीओ #ट्रांसजेंडर #किन्नर #valentines दिल्ली की शामें तो रंगीन होती ही है। कहते है #दिल्ली दिलवालों की है और जिंदगी की अनन्त संभावना...