लव जिहाद के सामाजिक पहलू को कैसे नजर अंदाज करें,LOVE ZIHAD

सुबह सवेरे http://epaper.subahsavere.news/c/56708941 जब तक आप सामाजिक स्वतंत्रता हासिल नहीं कर लेते तब तक आपको कानून चाहे जो भी स्वतंत्रता देता है , वह आपके किसी काम की नहीं है । भारत के संविधान निर्माता के ये विचार भारतीय समाज की गहराई तक जड़ें जमा चूकी असमानता की सामाजिक चुनौती को वैधानिक न्याय की अवधारणा के सामने लाकर खड़ा कर देता है। दरअसल आज़ादी के आठवें दशक में मजबूती से आगे बढ़ता भारत आबाद तो है लेकिन सामाजिक परिवर्तन को लेकर उसकी संकुचित दृष्टि बदस्तूर जारी है। आर्थिक और सामाजिक असमानता से हम उबर नहीं पाये है। हमारे कड़े संवैधानिक प्रावधानों के बाद भी भारत का पारम्परिक और सामाजिक ढांचा मजबूत है और बदलने को बिल्कुल तैयार नहीं है। आधुनिक दुनिया का नेतृत्व का सपना देखने वाले भारत की सामाजिक सच्चाई स्त्री स्वतंत्र्य और विवाह की गुंजाइशों को सीमित करके उसे स्वीकारने को मजबूर करने की रही है। खास कर हिंदू धर्म को मानने वाले लोगों के समाचार पत्रों में छपने वाले वैवाहिक विज्ञापनों में वह असमान सोच साफ नजर आती है जिसका विरोध आर्य समाज से लेकर