सुबह सवेरे
कूटनीतिज्ञों का
अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में बड़ा महत्व रहा है। कुशल तथा सक्रिय कूटनीति,एक देश की शक्ति को किस
प्रकार घटा-बढ़ा सकती है इसका स्पष्ट उदाहरण संयुक्तराष्ट्र की आमसभा की बैठक में
देखने को मिला। तुर्की के
राष्ट्रपति रेचेप तैय्यप अर्दोआन ने इसराइल पर
फ़लस्तीनियों के साथ अत्याचार का आरोप लगाया तो अर्दोआन के उस भाषण के बीच संयुक्त
राष्ट्र में इसराइल के राजदूत गिलाड इर्दान बाहर चले गए। उन्होंने
अर्दोआन के भाषण का न केवल बहिष्कार किया बल्कि उन पर यहूदी विरोधी होने का आरोप लगाते
हुए उन्हें झूठा भी बताया। इसी भाषण में तुर्की के राष्ट्रपति ने कश्मीर को लेकर
पाकिस्तान के काले प्रचार को बढ़ावा देते हुए भारत की कड़ी आलोचना भी की। लेकिन इसका
जवाब भारत के द्वारा उच्च राजनयिक स्तर पर न देते हुए संयुक्त राष्ट्र में भारत के
प्रतिनिधि टीएस त्रिमूर्ति ने दिया,उन्होंने इसे भारत के आंतरिक मामले में तुर्की
का हस्तक्षेप बताया और भारत का विरोध यही पर समाप्त हो गया। इसके पहले पिछले साल भी संयुक्तराष्ट्र की
महासभा में अर्दोआन ने भारत की कश्मीर को लेकर आलोचना की थी। तब
भी इसका जवाब भारतीय विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता
रवीश कुमार ने दिया था,उन्होंने तुर्की के रवैया पर खेद जताते हुए भारत के विरोध
को यही तक सीमित रखा था।
दरअसल कूटनीति
का लक्ष्य राष्ट्रीय हितों का अन्तर्राष्ट्रीय हितों से समायोजन है। पाकिस्तान से दोस्ती के कारण तुर्की के लगातार
भारत विरोधी रुख को देखते हुए रेचेप
तैय्यप अर्दोआन का भारत की आलोचना करना बिल्कुल भी अप्रत्याशित नहीं था लेकिन यह
भी देखा गया है कि भारतीय कूटनीति लगातार यह साबित करने में नाकामयाब हो रही है कि
वह वैश्विक मंचों पर भारत विरोध को अपने सामर्थ्य से रोक सकती है। इसके
साथ ही यह लगातार महसूस किया जा रहा है कि वैश्विक मंचों पर यदि कोई राष्ट्र भारत
की संप्रभुता को चुनौती देता है तो उसकी उच्च स्तर पर कूटनीतिक विरोध से गुरेज भी
किया जाता है।
दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र,सबसे बड़े
धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र और मुस्लिम जनसंख्या के लिहाज से दुनिया में अहम स्थान रखने
वाले भारत की ग्रीस,फ़्रांस और सऊदी अरब जैसे तुर्की के प्रतिद्वंदी देशों से गहरी
मित्रता रही है। मध्य पूर्व की अशांति में
तुर्की का भी योगदान रहा है और वह हजारों कुर्द मुसलमानों का नरसंहार करता रहा है। पश्चिम एशिया की मुस्लिम लड़ाकू जनजाति कुर्द अपनी बहादुरी और दिलेरी के लिए
दुनिया भर में विख्यात है। इसका प्रभाव सीरिया के उत्तरी इलाकों के साथ ही तुर्की,इराक और ईरान तक है। तुर्की से कुर्दों का विरोध पारंपरिक माना जाता है और कुर्द तुर्की को अपने
दुश्मन की तरह देखते है। तुर्की
के दक्षिण-पूर्व,सीरिया
के उत्तर-पूर्व और ईरान तथा इराक के पश्चिमी इलाकों में लगभग डेढ़ करोड़
कुर्द लोग रहते हैं। ये तुर्की में अपनी स्वायत्तता के लिए लड़ रहे हैं तो सीरिया और इराक़ में
अपनी अहम भूमिका के लिए संघर्ष कर रहे हैं। ये इस्लामिक स्टेट का भी प्रतिरोध कर
रहे हैं। कुर्दों के प्रति अमेरिका की उदारता और
असद के प्रति रूस प्रेम के चलते मध्य पूर्व में कुर्दिस्तान की बरसों पुरानी मांग
के पूरी होने की परिस्थितियाँ मजबूत दिखाई पड़ रही है,यह स्थिति तुर्की के लिए
असहनीय है।
भारत संयुक्तराष्ट्र की आमसभा में अलग
कुर्द देश का समर्थन करके एक अलग देश की मांग को वैश्विक समर्थन दे सकता था,जिससे
तुर्क समेत पूरी दुनिया में यह सन्देश जा सकता था की भारत अपने राष्ट्रीय हितों की
रक्षा के लिए अपनी परम्परागत नीति को त्यागकर आक्रामक निर्णय भी ले सकता है। कूटनीति वह कला है, जो राष्ट्रीय शक्ति के विभिन्न तत्वों का सामूहिक दृष्टि से इस प्रकार प्रयोग
करती है कि तत्कालीन अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थितियों में राष्ट्रीय हित को अधिकाधिक
लाभ हो। भारत ने तुर्की पर दबाव बनाने के लिए ऐसी कोई रणनीति नहीं अपनाई,यदि भारत
ऐसा करता तो निश्चित तौर पर रेचेप तैय्यप अर्दोआन अपने देश में ही आलोचना का कारण बन
जाते है और उन्हें विपक्षी दलों द्वारा यह कहकर निशाना बनाने की संभावना बनती की
वे दूसरे देशों के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करके तुर्की की कुर्द समस्या को
विश्व में प्रचारित करवा रहे है।
यदि चीन और भारत के तनाव की बात करे तो
संयुक्तराष्ट्र में चीन की कोरोना और साम्राज्यवादी नीति की आलोचना कर यह संदेश
दिया जा सकता था की ड्रैगन का वैश्विक मंच पर विरोध करने का साहस भारत में है और
इससे भारत को वैश्विक शक्ति बनने में मदद मिलती। लेकिन भारत ने यहां पर भी बेहद नपे तुले शब्दों का
प्रयोग किया। वहीं अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रम्प ने कोरोना
वायरस के संक्रमण के लिए चीन को ज़िम्मेदार ठहराते हुए चीन को इस महामारी के लिए
ज़िम्मेदार ठहराये जाने की मांग की। अमरीकी राष्ट्रपति ने कहा,हमने एक अदृश्य दुश्मन,चाइना
वायरस के ख़िलाफ़ एक बड़ी लड़ाई छेड़ रखी है,जिसने 188 देशों में अनगिनत लोगों
की ज़िंदगी छीन ली है। हमें उस देश को जवाबदेह
ठहराना चाहिए,जिसने इस प्लेग को दुनियाभर में फैलाया- और वो
है चीन।”
कश्मीर को लेकर पाकिस्तान के साथ ही चीन
का रुख भारत के लिए बेहद असहज रहा है लेकिन वैश्विक मंचों पर भारत के वन चायना
पालिसी को चुनौती देने से गुरेज ही किया है। भारत की सीमा से लगते शिनजियांग प्रांत
में वीगर मुसलमानों पर चीन की सरकार के द्वारा अत्याचार के खिलाफ दुनिया भर में
उठती रही है। चीन भारत की संप्रभुता की अक्सर चुनौती
देता रहा है लेकिन भारत ने चीन द्वारा आयातित कोरोना समेत वीगर मुसलमानों को लेकर
कोई कभी बात नहीं की। वहीं ट्रम्प कोरोना,व्यापार,तकनीक,हांगकांग और शिनजियांग में मुस्लिमों की
कथित प्रताड़ना को लेकर चीन की सार्वजनिक आलोचना कर चुके हैं।
महान कूटनीतिज्ञ मॉरगेन्थाऊ
ने कहा है की एक कुशल राजनय जो शान्ति संरक्षण के लिए तत्पर है उसका अन्तिम कार्य
है कि वह अपने ध्येयों की प्राप्ति के लिए उपयुक्त साधनों को चुने। भारत के द्वारा
संयुक्तराष्ट्र की आमसभा में तुर्की की कुर्दों के खिलाफ नरसंहार की नीति और
शिनजियांग प्रांत में वीगर मुसलमानों के अत्याचार के खिलाफ आवाज बुलंद करके यह
संदेश तो दिया ही जा सकता था की भारत के आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करने वाले
देशों के प्रति भारत का रुख दोस्ताना नहीं हो सकता।