इस देश के सर्वमान्य इष्ट पुरुष राम है,अनादिकाल से भारत का जनमानस
राम को अपना पूर्वज,निर्माणकर्ता,पालनहार और मार्गदर्शक मानता रहा है। राम नाम का प्रभाव हमारी आदिम संस्कृति पर
इतना गहरा रहा है कि आदिवासी इलाकों के घटाटोप जंगल और घुप्प अंधेरे में राम राम
से अभिवादन करने पर इसे स्नेह और मित्रता का प्रतीक मानकर डकैत भी लूटने का मन बदल
देते है।
राम के चरित्र की उच्चता में राजधर्म सदैव लोककल्याणकारी और परोपकारी
नजर आता है और यह भावना भारतीय मूल्यों और आदर्शों में भी परिलक्षित होती रही।
राजा हरिश्चंद्र का राज पाट छोड़कर जंगल में
जाना हो या भीष्म का कर्तव्यपथ में शपथ लेकर आजीवन विवाह न करने की घोषणा में
रामराज्य के आदर्शों की उद्घोषणा होती है। भारतीय संस्कृति और सभ्यता के घट घट में राम
बसे है और यहां का जनमानस यह बखूबी जानता है कि
राम की अभिलाषा में लोक कल्याण है और उनका उद्देश्य मानवता की रक्षा करना
रहा। रामायणकालीन कैकयी को भी यह
एहसास जल्दी ही हो गया था कि राजसुख की
भावना राम में दूर दूर नहीं थी।
राम के चरित्र में भी यह देखने को मिला जब
उन्होंने सोने की जीती हुई लंका बेहद सहजता से विभीषण को सौंप दी थी।
राम
के चरित्र की उच्चता और मानवीय श्रेष्ठता
अब भले ही किताबों में हो लेकिन वे हर दौर
और हर समय मानव समाज को मार्ग दिखलाती है। सदाचार से भटकते लंका नरेश और अपने भाई रावण को समझाने का
सारा प्रयास निष्फल हो जाता है तो विभीषण भगवान श्री राम की शरण में जाते है।
धर्म के मार्ग पर चलने वाले विभीषण रावण से अपनी स्थिति स्पष्ट करते हुए कहते है कि तुम्हारी सभा पर
काल का वास है, मैं अब प्रभु श्री राम की शरण लूंगा। इसके बाद विभीषण लंका छोड़ देते है।
चलते-चलते विभीषण प्रभु श्री राम के
बारे में ही सोचते हैं कि जिनकी चरण पादुकाओं तक को भरत ने अपने मन से लगाया हुआ
हैं आज उनके दर्शन पाने का मौका मिलेगा। विभीषण मन ही मन ये
विचार करते हुए चल रहे थे कि वानरों की नजर उन पर पड़ी उन्होंनें तुरंत वानरराज
सुग्रीव को सूचना दी, सुग्रीव
ने प्रभु श्री राम को बताया की रावण के भाई विभीषण हमारी ओर आ रहे हैं।
प्रभु श्री राम ने सुग्रीव की राय
जानी तो उन्होंने बताया की ये इच्छानुसार रुप धारण कर सकते हैं जरुर इसमें इनकी
कोई माया होगी। ये जरुर
हमारा भेद लेने के लिये आये होंगे इसलिये इन्हें बंदी बना लिया जाना चाहिये।
लेकिन प्रभु श्री राम ने कहा मेरा
धर्म तो शरण में आये हुए के भय को दूर करना है। प्रभु के मुख से ये वचन सुनकर हनुमान को भी बहुत खुशी मिली।
श्री राम आगे कहते हैं जब मनुष्य का
मन निर्मल हो, कपट से दूर हो तभी वह उनके सामने आ सकता है अन्यथा उनके दर्शन नहीं
कर सकता। विभीषण ज्यों-ज्यों प्रभु के निकट आते त्यों
त्यों उनमें प्रभु श्री राम के प्रति भक्ति और प्रेम की भावना बलवती होती जाती है।
भगवान राम विभीषण की अंतरात्मा की उच्चता और शुद्धता को जानते
थे। वे
विभीषण को गले लगाते है और रावण का सर्वनाश भी करते है। भारतीय जनमानस का
जीवन दर्शन राम के बिना पूरा नहीं हो सकता,उसका जन्म मरण राम की आस्था में ही
केंद्रित है। भारत भूमि पर जन्म लेने वाले जनमानस के लिए राजा तो एक मात्र राम ही
है,राम नाम के बिना तो अंतिम शांति भी नहीं मिल सकती।
भारत के
जनमानस पर राम की झलक देश के विभिन्न राज्यों में होने वाली राम लीला में हर काल
में देखी जाती है और इससे मुगलकाल भी अछूता नहीं रहा। कई क्षेत्रों में रामलीला के पात्रों की वेशभूषा में मुगलकाल की
झलक दिखती है। हनुमान और अन्य वानरों के घाघरे राजस्थान और
गुजरात से जोड़ते है। रामलीला में राक्षसों की रूप सज्जा में केरल
शैली दिखती है,पारसी नाटकों का प्रभाव में इसमें दिख जाता है।
इस प्रकार रामलीला में भारत के साथ दुनिया की विभिन्न संस्कृतियों के जीवंत दर्शन
होते है। रामलीला
के कागज तथा बांस से बने रावण,मेघनाथ,जटायु,सुरसा,पर्वत,चारों फाटक,शेष नाग आदि की
बनावट और कारीगरी में अनेक सभ्यताओं और संस्कृतियों का सुंदर समन्वय है और मोहर्रम
के ताजियों की सजावट से भी इसकी साम्यता
गहरे संदेश देती है।
बहरहाल मानवीय सम्बन्धों के आदर्श रूप राम
युगों युगों से भारतीय संस्कृति की विशेषताओं को अभिव्यक्त करते रहे है,जनमानस को आनन्द और शांति प्रदान करते रहे है।
भारत का हर नागरिक इस राष्ट्र की संस्कृति और
सभ्यता पर राम के प्रभाव को भलीभांति जानता है और उस परम सत्ता को स्वीकार भी करता
है।
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