जनसत्ता
साम्यवादी
चीन का अपने देश की राष्ट्रीय सीमा का कोई स्पष्ट मानचित्र नहीं है। वह संयुक्तराष्ट्र में भरोसा नहीं रखता और इस
देश की कम्युनिस्ट पार्टी उग्र राष्ट्रवाद की
नीति से पोषित होकर प्राचीन चीनी सभ्यता,उसके राजवंश और इतिहास के आधार पर वृहत
चीन साम्राज्य स्थापित करने की संकल्पना के साथ संचालित है। पड़ोसी देशों की संप्रभुता और
समुद्र की स्वायत्ता को चुनौती देने की चीन की यह विस्तारवादी नीति अंतर्राष्ट्रीय
शांति को लगातार खतरे में डाल रही है। द्वितीय विश्व युद्द के बाद संयुक्तराष्ट्र की स्थापना उपनिवेशवाद और
साम्राज्यवाद को खत्म करने तथा विश्व शांति की स्थापना के लिए की गई थी। संयुक्तराष्ट्र
में पांच महाशक्तियों के साथ सुरक्षा परिषद का गठन
इसीलिए किया गया था जिससे विश्व में सामूहिक सुरक्षा की भावना को बढ़ावा मिले। इसके साथ ही ऐसे
राष्ट्रों के खिलाफ निरोधात्मक और दंडात्मक कार्रवाई भी की जा सके जो अपनी तानाशाही
और आक्रामक प्रवृत्ति से अंतर्राष्ट्रीय शांति को
भंग करते है तथा अपनी विस्तारवादी नीति से छोटे और
शांतिप्रिय राष्ट्रों की अखंडता को समाप्त करना चाहते है।
चीन
सुरक्षा परिषद का अहम सदस्य है और इसके बाद भी वह अपने वैश्विक दायित्व के
प्रतिकूल व्यवहार कर संयुक्तराष्ट्र की शांतिपूर्ण सह अस्तित्व की भावना को लगातार
चुनौती दे रहा है। संयुक्तराष्ट्र पर चीन
आर्थिक और राजनीतिक रूप से हावी है अत: चीन को प्रतिसंतुलित करने के लिए अब दुनिया
के कई देश लामबंद हो रहे है, इस समय अमेरिका भी
एशिया की क्षेत्रीय ताकतों के बूते चीन की सामरिक घेराबंदी करने के लिए प्रयासरत
है।
अमेरिकी
विदेश नीति में एशिया प्रशांत क्षेत्र को बेहद महत्वपूर्ण माना गया है,चीन के उभार को रोकने के लिए कूटनीति और सामरिक रूप से अमेरिका एशिया के
कई इलाकों में अपनी सैन्य क्षमता को बढ़ा रहा है। ओबामा काल में अमेरिका की एशिया
केंद्रित नीति में जापान,दक्षिण कोरिया,थाईलैंड,फिलीपींस और ऑस्ट्रेलिया
के सहयोग से चीन को चुनौती देने की प्रारंभिक नीति पर काम किया गया था। ओबामा ने एशिया में अपने
विश्वसनीय सहयोगी देशों के साथ ही उन देशों को जोड़ने की नीति पर भी काम किया जो
चीन की विस्तारवादी नीति और अवैधानिक दावों से परेशान है। इन देशों में भारत समेत इंडोनेशिया,
ताइवान,मलेशिया,म्यांमार,ताजीकिस्तान,किर्गिस्तान,कजाकिस्तान,लाओ
स और वियतनाम जैसे देश शामिल है। इनमें कुछ देश दक्षिण चीन सागर पर चीन के अवैध दावों को चुनौती देना
चाहते है और कुछ देश चीन की भौगोलिक सीमाओं के विस्तार के लिए सैन्य दबाव और
अतिक्रमण की घटनाओं से क्षुब्ध है। कजाकिस्तान,कम्बोडिया और दक्षिण कोरिया की सम्प्रभुता को चुनौती
देते हुए चीन इन्हें ऐतिहासिक रूप से अपना बताता है,नेपाल और भारत के कई इलाकों पर तथा दक्षिण चीनी समुद्र पर भी चीन का इसी
प्रकार का दावा है।
दक्षिणी चीन सागर,प्रशांत महासागर और हिंद महासागर
के बीच स्थित समुदी मार्ग से व्यापार का बेहद महत्वपूर्ण इलाक़ा है। इंडोनेशिया और वियतनाम के बीच पड़ने वाला समंदर
का ये हिस्सा,क़रीब 35 लाख
वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है। दुनिया के कुल समुद्री व्यापार का 20 फ़ीसदी हिस्सा यहां से गुज़रता है। सात देशों से घिरे दक्षिणी
चीन सागर को लेकर चीन और अन्य देशों के बीच गहरा तनाव रहा है और कई बार युद्द जैसी स्थितियां भी निर्मित
हुई है। फिलीपींस के पास स्कारबरो शोल एक छोटा सा द्वीप है,जिसका अपना
रणनीतिक महत्व है।
चीन से यह 500 किलोमीटर दूर है लेकिन इसके बाद भी साल 2012
में चीन ने अपना लड़ाकू जहाज़ भेजकर उस पर कब्जा कर लिया था। इसे लेकर फिलीपींस से चीन की कई महीने तक तनातनी रही और हालात जंग जैसे बन
गए थे।
यह विवाद अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय में गया और फैसला जब फिलीपींस के पक्ष में हुआ तो
चीन ने उसे मानने से इंकार कर संयुक्तराष्ट्र के नियमों की अनदेखी कर दी। दक्षिण चीन सागर के
मलक्का जल संधि और ताइवान जल संधि के मध्य लगभग 200 छोटे छोटे द्वीप है,जिनमें पारासेल और स्प्रेटले
द्वीप प्रमुख है जिसका बेहद सामरिक महत्व है। जापान के तेल आयात का 75 फीसदी
भाग इस क्षेत्र से होकर गुजरता है। तेल और प्राकृतिक गैस से भरपूर इस इलाके पर चीन
और फिलीपींस दोनों दावा करते है। अमेरिका फिलीपींस के दावे का समर्थन करता है जबकि पारसेल्स पर चीन
का नियन्त्रण है। जिस पर ताइवान और
वियतनाम भी अपना दावा जा चूके है। इसी क्षेत्र में वूडी द्वीप में चीन ने हवाई पट्टी का निर्माण किया
है। इस इलाके में चीन को
लेकर भारी तनाव है और इसका असर दुनिया में हथियारों की खरीददारी पर भी पड़ा है। पिछले कुछ वर्षों में दुनिया के दस सबसे बड़े भारी हथियार खरीदने वाले देशों में से
अग्रणी 6 एशिया और पैसेफिक इलाके के देश हैं। जिसमें चीन,ऑस्ट्रेलिया,भारत,पाकिस्तान,दक्षिण कोरिया और वियतनाम शामिल है। यदि पाकिस्तान को छोड़ दे तो बाकी देशों ऑस्ट्रेलिया, भारत, दक्षिण कोरिया और वियतनाम से चीन का दक्षिण
चीन सागर पर आधिपत्य को लेकर विवाद है। चीन के दक्षिण
में वियतनाम,लाओस तथा म्यांमार है तथा वियतनाम के साथ उसका युद्ध भी हो चुका है। चीन के मुताबिक वियतनाम पर भी उसका हक
है,चीन इसका आधार 14 वी सदी में मिंग
राजवंश के यहाँ स्थापित शासन को बताता है। भारत और वियतनाम के बीच दक्षिण चीन सागर
में प्राकृतिक गैस उत्खनन को लेकर समझौता हुआ था और इसका चीन ने विरोध भी किया था। पिछले साल पेंटागन ने
मलेशिया, इंडोनेशिया,फिलीपींस और
वियतनाम को 34 स्कैन ईगल ड्रोन बेचने की घोषणा कर यह साफ
कर दिया था कि 4.7 करोड़
डॉलर का यह सौदा ड्रोन खुफिया जानकारी जुटाने में मददगार बनेगा जिससे दक्षिण चीन
सागर पर चीन की बढ़ती दखलंदाजी को दबावपूर्वक रोका जा सके।
पूर्वी
चीन सागर में शेंकाकू आइलैंड को लेकर चीन और जापान के बीच विवाद है,चीन ने इस आइलैंड में साल 2012 से अपने जहाज
और विमान भेजना शुरू किया और तब से ही जापान और चीन के
बीच विवाद बढ़ गया है। चीन का कहना है कि वह इसी का द्वीप है जिसे
जापान ने उससे 1895 के युद्द में चीन लिया था। चीन जापान विवाद के बीच अमेरिका जापान को खुला और मुखर समर्थन दे रहा है,जापान और अमेरिका के बीच साल 2004
में प्रक्षेपात्र रक्षा प्रणाली के संबंध में समझौता भी हुआ था। जापान की नई रक्षा नीति में दक्षिणी द्वीपों को प्राथमिकता देते हुए
वहां सैनिकों की संख्या में भारी बढ़ोत्तरी
की गई है,यह दक्षिणी द्वीप चीन के निकट है। जापान
अब चीन को बड़े खतरे की तरह देख रहा है और इसका प्रभाव उसकी सामरिक नीति पर भी देखा
जा सकता है। अमेरिका के द्वारा जापान को भारत तथा ऑस्ट्रेलिया के साथ बेहतर
संबंध रखने को प्रेरित किया जा रहा है जिससे चीन को नियंत्रित किया जा सके। इसके
सामरिक प्रभाव भी देखे जा रहे है। इस वर्ष के अंत में भारतीय
नौसेना,ऑस्ट्रेलियाई,अमरीकी और जापानी
नौसेना के साथ मिलकर बंगाल की खाड़ी में अभ्यास करेगी। 2007 से
ही इन देशों के बीच समुद्री सामरिक सहयोग बढ़ाया गया है और इस पर चीन नकारात्मक
प्रतिक्रिया देता रहा है।
हिन्द महासागर में समुद्री संचार मार्गों पर इंडोनेशिया का प्रभाव है। मलक्का,सुंडा, और लौम्बोक संधि
इंडोनेशिया के निकट है तथा इन्ही मार्गों से होकर चीन और जापान के लिए जाने वाले
समुद्री जहाज गुजरते है। इंडोनेशिया के गश्ती जहाज़ों ने चीन के एक जहाज़ को पकड़ लिया
था जिसके बाद चीन ने बड़े जंगी जहाज़
इलाक़े में भेजकर इंडोनेशिया पर दबाव बनाया था और आख़िर में इंडोनेशिया को चीन के
जहाज़ को छोड़ना पड़ा था। इस साल की शुरुआत
में चीन और मलेशिया के जहाजों को लेकर भी दोनों देशों के बीच एक महीने तक स्टैंड
ऑफ़ रहा था तथा अमरीका,ऑस्ट्रेलिया और जापान ने
अंतरराष्ट्रीय समुद्री कानून के तहत चीन को चेतावनी भी दी थी।
एशिया में चीन जमीन और समुद्र में लगातार आक्रामक नीतियां अपनाएं हुए है
उसके बाद यह संभावना बढ़ गई है की जिस प्रकार अमेरिका ने रूस को घेरने के लिए नाटो
का विस्तार कर रूस के पड़ोसी देशों के साथ सुरक्षा संधि की थी उसी तर्ज पर चीन को
घेरने की नीति अपनाई जा सकती है। भारत,ऑस्ट्रेलिया,जापान और अमेरिका लगातार एशिया प्रशांत
के समुद्र में अपनी शक्ति बढ़ा रहे है,अमेरिका
के नेतृत्व में दि क्वाड्रिलैटरल सिक्युरिटी डायलॉग या क्वॉड की रणनीति पर काम
किया जा रहा है। हाल ही में इसमें
न्यूज़ीलैंड, दक्षिण कोरिया और वियतनाम को जोड़कर इसे क्वॉड प्लस
नाम दिया गया है। अमरीका के आधुनिक
युद्धपोत चीन के सामने तैनात है। यूएसएस निमित्स के कमांडर रियर एडमिरल जेम्स
कर्क ने दक्षिण चीन सागर में अमेरिका और चीन के जहाजों के आमने सामने आने की बात
भी स्वीकारी है।
चीन के उत्तर पूर्व में उत्तर कोरिया है तथा पूर्व में जापान है। कोरियाई प्रायद्वीप में चीन और उत्तर कोरिया को नियंत्रित करने के
लिए अमेरिका सैन्य कार्रवाई के लिए तैयार है। दक्षिण कोरिया की 1953 से अमरीका के साथ रक्षा संधि है और
दक्षिण कोरिया में अठ्ठाइस हजार से ज्यादा अमरीकी सैनिक और युद्धपोत नियमित रूप से
वहां तैनात रहते हैं। मिसाइलों से लैस यूएसएस मिशीगन
विमानवाहक युद्धपोत कार्ल विंसन भी वहां खतरे से निपटने के लिए तैयार है।
चीन के दक्षिण में वियतनाम,लाओस तथा म्यांमार है तथा दक्षिण पश्चिम में नेपाल,भूटान तथा भारत है। इन सभी देशों से चीन का विवाद है,वियतनाम ने पिछलें कुछ सालों में हथियारों की संख्या में भारी इजाफा करके चीन को जवाब देने की तैयारी की है वहीं भारत गलवान के बाद ज्यादा मुखरता से सामने आया है। चीन के पश्चिम में ताजीकिस्तान तथा किर्गिस्तान है वहीं उत्तर पश्चिम में कजाकिस्तान है। ये सभी देश अमेरिका के सामरिक सहयोगी है और चीन से इनका सीमाई विवाद बना हुआ है।
चीन के उत्तर में मंगोलिया है जिस पर चीन अपना अधिकार बताता रहा है,वहीं चीन के दक्षिण पूर्व में हांगकांग,ताइवान और मकाऊ है। हांगकांग को लेकर चीन पूरी दुनिया के निशाने पर है तथा ताइवान चीन के खिलाफ कोई भी कदम उठाने से गुरेज नहीं करता। अमेरिका से हथियार खरीदने की ताइवान की नीति चीन का प्रतिरोध कर रही है। चीन के दक्षिण पूर्व में इंडोनेशिया और ऑस्ट्रेलिया भी चीन के खिलाफ है,वहीं आसियान के देश में चीन की चुनौती को देख रहे है।
आने वाले समय
में इस बात की भरपूर संभावना है कि चीन की जमीनी सीमा से लगे अधिकांश देश और दक्षिण
चीन सागर से लगे सभी देश अमेरिका,जापान तथा ऑस्ट्रेलिया के साथ मिलकर सामूहिक रूप
से किसी स्पष्ट सामरिक रणनीति के तहत् काम कर सकते है। चीन से सीमाई विवादों में उलझे देश यह समझ गये है कि द्विपक्षीय
सम्बन्धों और वार्ताओं से चीन को नियंत्रित नहीं किया जा सकता,सामूहिक सुरक्षा की
नीति पर चलकर और चीन की सामरिक घेराबंदी
करने से ही चीन की विस्तारवादी नीति को
रोका जा सकता है।