सुबह सवेरे
इन सबके
बीच शुक्र है की इस लोकतांत्रिक देश में अटल बिहारी वाजपेयी जैसे राजनेता भी हुए
है जिनका चरित्र शुचिता की उस कड़ी साधना को छूता है जहां से समाज और राष्ट्र
निर्माण की ज्योति प्रज्वलित होती है। 1971 में सांसद रहते अटलजी ग्वालियर
आये तो साईकिल उठाई और घूमने निकल पड़े। इस दौरान वे अपने रिश्तेदारों और कई
दोस्तों से मिले.मार्ग में महारानी विजयाराजे सिंधिया की नजर अटलजी पर पड़ी तो वे तुरंत
कार से उतरीं और बोली खबर कर देते,मैं गाड़ी की व्यवस्था कर देती.तब अटलजी ने कहा,यह
तो ग्वालियर है,अपना घर।
अपने राजनीतिक जीवन में अनेक सोपान चढ़ने वाले इस महान राजनीतिज्ञ को पक्ष विपक्ष ही नहीं दुश्मन देश के राजनेता भी सराहते रहे। मोदी के सत्ता में आने पर आशंकाओं को लेकर परवेज मुशर्रफ ने कहा था कि भाजपा हो या कांग्रेस पार्टियों का कोई मसला नहीं होता। अटल बिहारी वाजपेयी भी भाजपा से थे। वह बेहतरीन इंसान थे। भारत-पाक मसलों को सुलझाने के लिए ज्यादा संजीदा थे।1957 से संसद का सफ़र तय करने वाले अटलजी लगभग चार दशक विपक्ष में और उसके बाद देश के सर्वाधिक समय तक प्रधानमंत्री रहने वाले प्रथम गैर कांग्रेसी रहे। लेकिन उन्होनें देश की प्रगति के लिए कदम मिलाकर चलना होगा के विचार को सर्वोपरी रखा। उनकी ओजस्विता और गाम्भीर्य
से अभिभूत पंडित जवाहरलाल नेहरु ने एक दिन उनके भारत के प्रधानमंत्री बनने की
घोषणा की थी। वाजपेयी दल की नही दिलों की राजनीति करते थे ,उन पर देश
का भरोसा इतना की विपक्ष के नेता होने के बावजूद प्रधानमंत्री नरसिम्हाराव ने
उन्हें देश का पक्ष रखने के लिए जिनेवा भेजा था। देश में
साम्प्रदायिक राजनीति की खिलाफत करने वाले इस महान राजनेता को जब विरोधियों ने साम्प्रदायिकता के
दुष्प्रचार में घसीटने की कोशिश की,उस दौर में इसका करार जवाब जनता जनार्दन ने
दिया था। 1996 के लोक सभा चुनाव के दौरान लखनऊ की सैकड़ों मुस्लिम महिलाओं ने उनकी सफलता
के लिए उनकी दाहिनी भुजा पर इमाम-जामिन अर्थात पवित्र ताबीज बांधा था। भारत
में साम्प्रदायिक विद्वेष के बहुसंख्यकों पर प्रभाव को लेकर उन्होनें संसद में
बेबाकी से सर्वधर्म समभाव को हिन्दू धर्म की जन्म घूंटी बताते हुए कहा था की इस
देश में ईश्वर को मानने वाले भी है और ईश्वर को नकारने वाले भी है ,यहाँ किसी को
सूली पर नही चढ़ाया गया। किसी को पत्थर मारकर दुनिया से नही
उठाया गया,ये सहिष्णुता इस देश की मिट्टी में है। ये अनेकान्तवाद का देश है,और भारत
कभी मजहबी राष्ट्र नहीं हो सकता।
इसके
बाद जनता के समर्थन से अटलजी एक बार फिर प्रधानमंत्री बने और उन्होंने सामाजिक
न्याय स्थापित करने की अवधारणा के अनुरूप उल्लेखनीय कार्य करते हुए विश्व
की सबसे बड़ी खाद्य सुरक्षा योजना अंत्योदय अन्न योजना,किसान क्रेडिट कार्ड योजना,पूरे
देश को आपस में जोड़ने की स्वर्णिम चतुर्भुज योजना और ग्रामीण बस्ती को पक्की तथा बारह
मासी सड़कों से जोड़ने की प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना शुरू कर भारत के बेहतर
भविष्य की संभावनाएं जगाई।
राजनीति के इस दौर में अटलजी के साथ सुशासन भी नदारद है। आधुनिक चमकदमक और भौतिकवाद की परछाई में चलने वाले नेताओं की बेतहाशा बढती हुई सम्पत्ति सुशासन को गर्भ में ही खत्म कर देने के लिए हर पल आतुर नजर आती है। अटलजी का चरित्र उनका आईना है वहीं अब राजनीति और इससे जुड़े नेताओं के लिए चरित्र और विचारधारा उपयोग की जाने वाली वस्तु की तरह है जिसे किसी भी ढांचे में ढाल कर उपयोग कर लिया जाता है। अटलजी के साथ सुशासन इसलिए जुड़ा है क्योंकि उनके व्यक्तित्व और कार्यो में वह प्रतिबिम्बित होता रहा। जाहिर है इस महान राजनेता की राजनीतिक और वैचारिक धरोहर को दरकिनार कर सुशासन की इमारत तैयार नहीं की जा सकती। बहरहाल सुशासन के लिए राजनेताओं के राजनीतिक जीवन में उच्चता और शुचिता चाहिए,जो अब ढूंढने पर भी नहीं मिलती।