मृदुभाषी
कला,साहित्य,संस्कृति,सर्वधर्म
समभाव तथा और अतुल्य भौगोलिक और प्राकृतिक संपदा से सम्पन्न मध्यप्रदेश
आत्मनिर्भरता के रास्ते पर चल पड़ा है। सरकार की पहली प्राथमिकता कौशल विकास और लोगों की आत्मनिर्भरता है
तथा इस दिशा में प्रयास भी प्रारम्भ कर दिए गए है। भारत के हृदय प्रदेश में आत्मनिर्भरता की
संभावनाएं भी अनंत है जिसे बेहतर योजनाओं और सकारात्मक प्रयासों से साकार किया भी
जा सकता है। उत्तर में
विन्ध्याचल और दक्षिण में सतपुड़ा पर्वतमाला से घिरा और माँ नर्मदा के तट पर बसा होशंगाबाद प्राकृतिक संपदा से परिपूर्ण है। देश के प्रमुख मार्गों को जोड़ने
वाला इटारसी जंक्शन यही है,अत: आवागमन को लेकर कोई समस्या नहीं है। पचमढ़ी.मड़ई जैसे प्राकृतिक
क्षेत्र वन संपदा और औषधीय भंडार से परिपूर्ण हैं। यहां के आदिवासी गरीब है और वनौषधियों
व वनोपजों को संग्रह व विक्रय कर जीवन यापन करते रहे हैं। इसके संग्रहण,परिषोधन व निर्यात से सैंकड़ों लोगों
को आत्मनिर्भर बनाया जा सकता है।
कौशल विकास,स्वास्थ्य और पर्यटन से जोड़कर हजारों लोगों को रोजगार मिल सकता है।
राजधानी
भोपाल अपनी खूबसूरती के लिए दुनिया भर में पहचानी जाती है। भोपाल जिले में बांस बहुतायत से होते हैं। भोपाल
में वर्षों से चिक के पर्दों का चलन था,वर्तमान में पुनः इसका उपयोग लोगों ने करना
शुरू किया है,इस कारोबार को पुनः स्थापित करना चाहिए। भोपाल में मोती के पर्स
बनाने का व्यवसाय बहुत पुराना है इस कला में दक्ष कर लघु उद्योग की इकाइयां बनाई
जा सकती है। लघु उद्योग
निगम से जोड़कर रोजगार विकसित किया जा सकता है। भोपाल में कई फिल्मों की शूटिंग हो
चुकी है,इसके सौंदर्य को संवर्धित कर पर्यटन के क्षेत्र में विकसित करना चाहिए
जिससे कई लोगों को मजदूरों को रोजगार मिल सकता है। भोपाल से लगा रायसेन जिला है। यूनेस्को
की विश्व धरोहर स्थल सांची यहीं स्थित है,यहां भीमबेटका रॉक शेल्टर एक अन्य
यूनेस्को विश्व धरोहर स्थल भी है लेकिन पर्यटन केंद्र के रूप में उभारने की कोशिशों
की जरूरत यहां महसूस होती है।राजगढ़ जिले
की मिट्टी एवं जलवायु उपरोक्त प्रकार की खेती के लिए बहुत उपयुक्त हे। सीहोर जिले
का गेहूं उत्कृष्ट क्वालिटी का है,पूरे भारत वर्ष में इसकी महत्ता है और मांग भी
है। इस उत्पाद को विदेषों में भी निर्यात किया जाता है। उत्पादित गेहूं की
ग्रेडिंग की जा सकती है, गेहूं
के आटे से संबंधित अनेक वस्तुएं बनाई जा
सकती हैं। इससे बनने वाले उत्पादों दलिया,
बिस्किट,
ब्रेड
आदि की छोटी-छोटी सूक्ष्म इकाइयां खोली जा
सकती हैं जिससे स्थानीय मांगों को न केवल पूरा किया जा सके बल्कि रोजगार के अवसर
भी बढ़ सकते है। विदिशा कृषि के क्षेत्र में उन्नत जिला है। यहां उत्तम किस्म का
गेहूं,सोयाबीन और धान प्रचुर मात्रा में है। लेकिन यहां तेल निकालने की इकाइयों को
बढ़ाने की जरूरत है। छोटी इकाईयो को तहसील
स्तर पर लगाकर रोजगार के अवसर बढ़ा सकते है। कुशाल,अकुशल दोनो ही प्रकार के लोगों लोगों
को इसका लाभ मिलेगा। विदिशा जिला ऐतिहासिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है। यह हिन्दू,
जैन
एवं बौद्ध धर्म का प्राचीनतम केन्द्र रहा है। अत: इसके पर्यटन केन्द्रों को विकसित
करने से स्थानीय व्यक्तियों के लिए रोजगार के व्यापक अवसर उपलब्ध करवाये जा सकते
है।

ग्वालियर को पर्यटन केंद्र के रूप में उभारने की जरूरत है,जिससे
हजारों लोगों को रोजगार मिल सकता है। यहां स्थित किले और झाँसी की रानी की
समाधि को लोग दूर दूर से देखने आते है लेकिन यहां पर्यटन व्यवस्थाओं के अभाव में
पर्यटन व्यवसाय नही बन सका है। श्योपुर में कूनों,
सीप,
कुवारीं,
चम्बल
एवं पार्वती जैसी नदियां है। यहां पशुपालन और मत्स्य पालन को बढ़ावा देने की जरूरत
है।
आदिवासी
बाहुल्य आलीराजपुर और झाबुआ जिला प्राकृतिक संसाधनों से भरपूर है। यहां पर्याप्त मात्रा में वनपोज पाया जाता
है। वनों से प्राप्त होने वाली विभिन्न
वस्तुऐं रोजगार मूलक है। तेंदूपता, लाख,
गोद,
जलाऊ-लकड़ी,मौसमी
फल टेमरू, चारोली,जामून
विभिन्न प्रकार की जड़ी-बुटीयां भी पायी जाती है। जिले में बहुतायत में ताड़ के पेड़
से प्राप्त ताड़ी रोजगार का प्रमुख साधन बन सकता है। यह स्वास्थ्य वर्धक माना जाता
है तथा पथरी जैसी जानलेवा बीमारी को खत्म कर देता है। यहां महुआ का उत्पादन होता है।
महुआ से एल्कोहल बनाई जाती है तथा इससे बड़े स्तर पर व्यापार किया जा सकता है।
वर्तमान में वैष्विक महामारी कोविड-19 के बचाव हेतु सेनिटायजर जब जिले में समय पर
उपलब्ध नहीं हुआ तो आदिवासी महिलाओं ने महुआ को वाष्पन विधी द्वारा एल्कोहल बनाकर
सेनीटायजर बनाने में प्रयोग किया। इस प्रयोग को जिला प्रशासन एवं स्वास्थ विभाग ने
जांच कर अनुमति दी । दूसरा महुआ के फूल के बाद फल लगता है,उसे
क्षेत्रीय भाषा में डोली कहते है। इसका प्रयोग तेल निकालने व व्यवसायिक रूप में
किया जाता है। जिले में प्राकृतिक संसाधन और वन संपदा भरपूर है लेकिन इसके बाद भी
यहां गरीबी है। इस इलाके में वन संपदा के समुचित उपयोग से हजारों रोजगार बढ़ सकते
है और आदिवासियों का पलायन भी रूक सकता है।धार जिले
में बाग में विश्वप्रसिद्व बाग प्रिन्ट का कार्य किया जाता हैं। इस कार्य में लगे
लोगों को केन्द्र सरकार द्वारा पुरस्कृत किया जा चुका हैं। बाग प्रिन्ट में फूल व पत्तियों के रंग का
निर्माण कर बेड-शीट, साड़ियों
आदि पर प्रिन्ट का कार्य किया जाता हैं। लागत की अधिकता एवं मशीनों से प्रतियोगिता
के कारण यह कला कई समस्याओं का आज कल सामना कर रही हैं। इस क्षेत्र में मिर्च,
कपास
व सोयाबीन प्रचुल मात्रा में उत्पन्न होता हैं। इन फसलों पर आधारित लघु एवं कटीर
उद्योगो की स्थापना को प्रात्साहित कर क्षेत्र के विकास की गति बढाई जा सकती हैं। माण्डवगढ में लाखों पर्यटक आते है लेकिन इसका
लाभ यहां के स्थानीय गरीब आदिवासियों को नही मिल पा रहा है। यहां गरीबी और
बेरोजगारी बदस्तूर जारी है। यह जिला तेन्दूपत्ता के संग्रहण का बहुत बडा केन्द्र
हैं। तेन्दू के वृक्षों के रख रखाव, पुनः
रोपण तथा नये वृक्षों का रोपण करके अच्छी क्वालिटी का तेन्दू पत्ता प्राप्त किया
जा सकता हैं। इसी तरह घावडे के गोंद, चारोली
एवं औषद्यीय वनस्पति के उपार्जन के केन्द्र भी बनाये जा सकते हैं।

खंडवा जिले में आत्मनिर्भरता की अपार संभावनाएं है। यहां इंदिरा सागर बांध के बैक वाटर से जिले
में नहरों के माध्यम से यदि पानी उपलब्ध कराया जाए तो कृषि से जुड़े हजारों परिवार
न केवल आत्मनिर्भर होंगे साथ ही जिले से मजदूरों का पलायन और ग्रामीण क्षेत्रों
में बेरोजगारी की समस्या भी दूर होगी। सिंगाजी विद्युत ताप गृह से निकलने वाली राखड़ आसपास के सैकड़ों
एकड़ की जमीन को बंजर बना रही है और फसलों को बरबाद कर रही है। यदि यहां राखड़ से ईट बनाने की एक बड़ी
सरकारी इकाई स्थापित हो तो न केवल उड़ने वाली राख की समस्या से किसानों को निजात
मिलेगी साथ ही हजारों की संख्या में क्षेत्र के नौजवानों को रोजगार भी प्राप्त
होगा। इंदिरा
सागर बांध के कारण वर्ष भर निचले इलाकों में बैक वाटर भरा रहता है अतः मत्स्य पालन
उद्योग, मत्स्य प्रसंस्करण इकाइयां, शीत ग्रह, वेयरहाउस
की संभावनाएं भी यहां अत्यधिक बढ़ गई है। इस हेतु प्रशिक्षण
कार्यक्रम चलाकर बेरोजगारों को इनके लिए प्रशिक्षित कर स्वरोजगार हेतु प्रेरित
किया जा सकता है।

मण्डला
जिले में उपलब्ध वनोपजों तेंदूपत्ता एवं
तेंदूफल ,महुआ फूल एवं फल आम फल, अमचूर, गुठली,रस, अश्व गंधा मषरुम,पेहरी इत्यादि
प्रमुख वनोपज है जो मण्डला जिले के वनो
में बहुतायत में सुलभ है। यद्यपि इनका संग्रहण अत्यधिक श्रमसाध्य होता है। अतः ऐसी
कोई तकनीक विकसित नहीं हो पायी है कि आदिवासी के अलावा कोई दूसरा वर्ग वनोपज का
संग्रह कर सके। यह कार्य आदिवासी ही कर सकते है। इसलिए उनके कौशल को परखकर
दक्षतानुरुप प्रतिफल मिलना चाहिए तथा उसका समुचित मूल्य मिलना चाहिए। यदि निमाड़
क्षेत्र को देखे तो यहां फव्वारा पद्धति से खेती को बढ़ावा देने के लिए प्रशिक्षण
की जरूरत है इसके साथ ही कपास की खेती को
ज्यादा प्रोत्साहित करने की भी आवश्यकता है।

नरसिंहपुर
जिले में वन लगभग 26 फीसदी है। यहां मिश्रित वन,कटीली झाड़ियों वाले वन,पतझड़
वाले वन पाये जाते हैं। सतपुड़ा एवं विंध्याचल की पहाड़ियों पर सागौन,
साल,
बांस,
साज
तथा समतल स्थानों पर महुआ, आम,खैर,अचार,करोंदा,
हर्र,बहेड़ा
और आम के वृक्ष पाये जाते हैं। वनों से आंवला,चिरौंजी,हर्र,बहेड़ा
गोंद एवं जड़ी बूटियां प्राप्त होती हैं। अत: यहां वन्य संपदा से मिलने वाले रोजगार
के अनंत संभावनाएं है और इसके लिए छोटी छोटी इकाइयां स्थापित की जा सकती है। नरसिंहपुर
जिले में स्टोन, डोलोमाईट,
फायर
क्ले, चूने
का पत्थर आदि बहुतायत में पाया जाता है। इसके अतिरिक्त ग्राम गोटीटोरिया के पास की
चट्टानों से इमारती पत्थर निकाला जाता है। फायर क्ले मुख्यतः कन्हारपानी,बचई,हींगपानी
व हिरणपुर की पहाड़ियों से मिलता है। जिले की पहाड़ियों से मुरम,गिट्टी
प्राप्त की जाती हैं तथा नदियों से रेत एवं चूने के पत्थर से सीमेंट के पाईप बनाये
जाते हैं। चीचली में तांबे में जस्ता मिलाकर पीतल के वर्तन बनाये जाते हैं। इस
प्रकार यह जिला मध्य प्रदेश का खनिज और वन्य संसाधन केंद्र के रूप में प्रमुखता से
उभर सकता है।

महाकाल की
नगरी उज्जैन प्राचीनतम और पवित्र नगरी है। यहां लाखों लोग भगवान महाकाल के दर्शन
करने आते है।उज्जैन से डेढ़ सौ किलोमीटर दूर मंदसौर में भगवान पशुपतिनाथ का मन्दिर
है। उज्जैन और इंदौर से लगे दो सौ किलोमीटर का क्षेत्र धार्मिक पर्यटन के लिए बहुत
महत्वपूर्ण है। इस क्षेत्र में कई प्राचीन मंदिर है और गाइड का प्रशिक्षण देकर
हजारों युवाओं को रोजगार मिल सकता है। यहीं नहीं कर्मकांड के आने वाली वस्तुओं को
बनाने के लिए लघु उद्योग भी स्थापित किये जा सकते है। यहां आवागमन साधन भी भरपूर
है। मालवा का मौसम बहुत सुहाना माना जाता है। यहां धार्मिक पर्यटन होने से यात्री
रुकना भी पसंद करते है। लेकिन इसे लेकर कोई प्रभावी योजना अभी तक नहीं बन सकी है।
समूचे मालवा क्षेत्र को धार्मिक कारिडोर के रूप में उभारने की योजना पर काम करने
की जरूरत है। यह उज्जैन-इंदौर-मांडू-महेश्वर तथा
इंदौर-उज्जैन-मंदसौर,इंदौर-उज्जैन-बगुलामुखी हो सकता है। मौसम और पर्यटन की दृष्टि
से यह कारिडोर मध्यप्रदेश की वैश्विक पहचान बन सकता है।

जाहिर
है मध्यप्रदेश के विभिन्न क्षेत्रों को उनकी स्थानीय खूबियों,भौगोलिक संरचना,धार्मिक
पहचान और वन्य संपदा को ध्यान में रखकर उभारने और विकास करने की जरूरत है,यहीं से खुशहाल
और आत्मनिर्भर प्रदेश के मार्ग खुल सकते है।