जनसत्ता
दुर्गम हिमालयीन क्षेत्र में स्पष्ट सीमा रेखा का प्रश्न उठाकर वास्तविक नियंत्रण रेखा के अस्तित्व को ख़ारिज करने की चीनी रणनीति कई दशक पुरानी है। एलएसी पर यथास्थिति बनाएं रखने को लेकर भारत के कूटनीतिक नजरिए से अलग चीन की सैन्य रणनीति रही है। 1962 के बाद भारत और चीन में युद्ध भले ही नहीं हुआ हो लेकिन चीन की सैन्य महत्वकांक्षाओं में कोई कमी नहीं आई। चीन ने उच्च स्तर पर भारत से राजनयिक और आर्थिक सम्बन्धों को मजबूत करने में दिलचस्पी दिखाई वहीं हिमालयी की दुर्गम वादियों में सड़के,रेल,हवाई पट्टियों का निर्माण,सैन्य बंकर और आधारभूत ढांचे को मजबूत कर भारत की सामरिक चुनौतियों को बढ़ा दिया। हाल ही में अमेरिकी सेना के पैसिफिक कमांडिंग जनरल चार्ल्स ए फ़्लिन ने लद्दाख में चीनी गतिविधि पर जो चिंता जाहिर की है,उसे ख़ारिज इसलिए नहीं किया जा सकता क्योंकि पूर्वी लद्दाख में चीन का सैन्य व्यवहार बेहद असामान्य रहा है। पिछलें दो तीन वर्षों में लद्दाख में भारत के रक्षामंत्री की मौजूदगी तथा सेना अध्यक्ष का दुर्गम सैन्य स्थलों पर निरीक्षण करना महज संयोग नहीं है। चीन की इस क्षेत्र में बढ़ती गतिविधियों को भारत ने अब राजनयिक और सैन्य स्तर पर स्वीकार भी किया है।
हिमालयीन क्षेत्र में भारत का केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख सामरिक रूप से बेहद महत्वपूर्ण है,जहां से भारत के परम्परागत शत्रु चीन और पाकिस्तान पर नजर रखी जाती है। लद्दाख उत्तर में काराकोरम पर्वत और दक्षिण में हिमालय पर्वत के बीच में है। भारत लद्दाख की उस जमीन को वापस प्राप्त करने के लिए प्रतिबद्धता जताता रहा है जो इस समय चीन और पाकिस्तान के कब्जें में है। लद्दाख के अन्तर्गत पाक अधिकृत गिलगित बलतिस्तान,चीन अधिकृत अक्साई चीन और शक्सगम घाटी का क्षेत्र शामिल है। 1963 में पाकिस्तान ने एक समझौते के तहत् 5180 वर्ग किलोमीटर का शक्सगम घाटी क्षेत्र चीन को उपहार में दिया था यह लद्दाख का ही हिस्सा है।
सामरिक दृष्टि से अहम होने के कारण पूर्वी लद्दाख से सटी अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर चीन अपनी सैन्य गतिविधियों को अप्रत्याशित विस्तार कर भारत और चीन के बीच हुए शांति बनाएं रखने के समझौतों की लगातार अनदेखी कर रहा है। 1962 के भारत चीन के बाद लंबे समय तक शांत रहा यह क्षेत्र अब सैन्यीकरण की ओर तेजी से बढ़ा है। चीन वास्तविक नियन्त्रण रेखा या एलएसी को विवादित मानता रहा है और उसने पूर्वी लद्दाख और अन्य इलाकों में बड़ी संख्या में सैनिकों और हथियारों के साथ मोर्चाबंदी की है। इसी के कारण गलवान घाटी,पैंगोंग त्सो और गोगरा-हॉट स्प्रिंग्स जैसे इलाकों में दोनों देशों की सेनाएं कई बार आमने-सामने आ गईं है और युद्द जैसे हालात अभी भी बने हुए है।
भारत ने भी इन इलाकों युद्द जैसी तैयारियों के लिए सेना की संख्या में अच्छा खासा इजाफा किया है जिससे सेना को अग्रिम मोर्चों पर तेजी से मदद मिल सके। इसके लिए पुल,हवाई पट्टियों तथा रोड़ का निर्माण करने में तेजी दिखाई है। भारत का पूर्वी लद्दाख में सैन्यीकरण की जरूरत को चीन की असामान्य गतिविधियों ने पुख्ता किया है। चीनी सेना पीपुल्स लिबरेशन आर्मी की पश्चिमी कमांड का मुख्यालय तिब्बत में स्थित है। चीनी सेना की यही कमांड भारत के लद्दाख से लेकर अरुणाचल प्रदेश तक फैले वास्तविक नियन्त्रण रेखा पर तैनात हैं। पिछले कुछ वर्षों में इस कमांड के उच्च सैन्य अधिकारी को बदलने में चीन के केंद्रीय सैन्य आयोग ने अभूतपूर्व तेजी दिखाई है। पिछले साल चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने बिना किसी पूर्व घोषणा के तिब्बत की यात्रा करके सबको हैरान कर दिया था। इस यात्रा के दौरान वे न्यिंग्ची रेलवे स्टेशन गए थे। ये इलाका सामरिक रूप से बहुत महत्वपूर्ण है,क्योंकि यहां से कुछ दूर पर ही अरुणाचल प्रदेश की सीमा लगती है। जिनपिंग चीन के पहले बड़े नेता हैं जिन्होंने कई दशकों के दौरान भारत और चीन की सीमा के पास बसे इस शहर का दौरा किया था।
चीन इस समय प्राथमिकता से अपने पूर्वी और पश्चिमी इलाकों को आपस में बेहतर तरीक़े से जोड़ने के लिए वृहद योजनाएं बना रहा है। चीन नेपाल से सम्बन्ध और मजबूत करने के लिए लहासा न्यिंग्ची-रेलमार्ग महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। लहासा से न्यिंग्ची रेलमार्ग सिचुवान-तिब्बत रेल खंड का सामरिक रूप से अतिमहत्वपूर्ण हिस्सा माना जाता है। भारत की सीमा से लगती हुई ये रेल योजना एक हजार सात सौ चालीस किलोमीटर की है। जाहिर है भारत से लगी सीमा के इलाकों में चीन जिस तरह आधारभूत सुविधाएं विकसित कर रहा है,वह सामरिक रूप से चुनौतीपूर्ण है।
पिछले साल जून में भारत के विदेशमंत्री एस.जयशंकर ने क़तर इकनॉमिक फोरम में यह साफ कहा था कि चीन के साथ वास्तविक नियंत्रण रेखा पर तनाव में दो सबसे अहम मुद्दे हैं। पहला सीमा पर सेना की लगातार आमने-सामने तैनाती और दूसरा चीन बड़ी संख्या में सेना की तैनाती नहीं करने के लिखित वादे पर कायम रहेगा या नहीं। इससे साफ होता है कि भारत और चीन के बीच अविश्वास की खाई बहुत बढ़ गई है। दरअसल भारत का चीन की सैन्य गतिविधियों को लेकर यह अविश्वास उस यथास्थिति को बदलने की चीन की कोशिशों से बढ़ा है जिसने दोनों देशों के बीच तनाव को लगातार बढ़ाया है।
चीन ने पश्चिमी थियेटर कमांड में आधारभूत ढांचे को बहुत मजबूत किया
है जो भारत को सतर्क करने वाले और समस्या बढ़ाने वाले है। इन क्षेत्रों में शांति की कोशिशें भी बेहतर परिणाम देती हुई नहीं दिख रही
है। फरवरी 2021 में दोनों देशों ने पैंगोंग त्सो के उत्तरी और
दक्षिणी किनारे पर चरणबद्ध और समन्वित तरीके से तनाव को कम करने की घोषणा की थी लेकिन ऐसा जमीन पर होता हुआ बिल्कुल भी नहीं दिखाई देता। गोगरा और हॉट स्प्रिंग्स,डेमचोक
और डेपसांग जैसे इलाकों को लेकर चल रहा विवाद जारी है और इसका समाधान करने के लिए
कई स्तर की बातचीत बेनतीजा रही है। चीन पूर्वी लद्दाख से सटे इलाकों में में दूसरा पुल बना रहा है,इस पुल से चीन के सैनिकों को लद्दाख में जल्दी पहुँचने
में मदद मिलेगी। भारत से लगी सीमा पर चीन रोड के अलावा रहने के लिए घर भी बना
रहा है।
अमेरिकी साइबर सिक्योरिटी फर्म की उस रिपोर्ट को भी भारत ने स्वीकार किया है जिसमें चीन के हैकर्स ने सितंबर 2021 में लद्दाख के पास बिजली वितरण केंद्रों पर कम से कम दो बार हमले की कोशिश की थी। ये सेंटर्स लद्दाख में भारत-चीन की सीमा के पास हैं। इन सेंटर्स पर ग्रिड कंट्रोल और बिजली वितरण का काम होता है। चीन की पीपल्स लिबरेशन आर्मी के शिन्जियांग मिलिट्री कमान ने टाइप 15 श्रेणी के लाइट टैंक,हाउविटज़र,दूर तक मारक क्षमता रखने वाले रॉकेट लाँचर और एयर डिफेंस सिस्टम को,भारत से लगी सीमा पर तैनात करना किया है और इससे चीन के आक्रामक इरादों का पता चलता है।
चीन अमेरिका के बीच व्यापारिक और सामरिक स्तर पर वैश्विक
प्रतिद्वंदिता चल रही है,उसमें भारत से मजबूत सम्बन्धों को लेकर अमेरिका अपनी राय
जाहिर करता रहा है। इन सबके बीच अमेरिका के इस दावें में दम नजर आता है कि भारत से चीन वार्ता भले ही
करें पर उसका वास्तविक नियंत्रण सीमा पर जिस तरह
का व्यवहार रहा है वो चिंताजनक है और इससे सबको चिंतित होना चाहिए।
भारत के थलसेना अध्यक्ष जनरल मनोज पांडे ने साफ कहा है कि भारत और चीन कजे बीच सबसे
महत्वपूर्ण चुनौती अप्रैल-मई 2020 से चली आ रही सीमाओं की स्थितियों का समाधान करना और यहां अप्रैल 2020 से पहले की यथास्थिति को बहाल करना है। गौरतलब है कि 1 मई 2020 को दोनों देशों
के सौनिकों के बीच पूर्वी लद्दाख के पैगोन्ग त्सो झील के नॉर्थ बैंक में झड़प हुई
थी। इस झड़प में दोनों ही पक्षों के दर्जनों सैनिक
घायल हो गए थे। इसके बाद 15
जून 2020 को गलवान घाटी में एक बार फिर दोनों
देशों के सैनिकों के बीच झड़प हुई। इसमें दोनों तरफ के कई सैनिकों की मौत हुई थी। पैंगोंग
झील सामरिक,ऐतिहासिक और राष्ट्रीय सम्मान की दृष्टि से भारत के लिए अति महत्वपूर्ण
मानी जाती है।
1962 तक भारतीय सेना पैंगोंग झील
में फिंगर 8 तक गश्त किया करती थी। भारत चीन युद्द के बाद सेना की गश्त इस इलाके में अनियमित हो गई और यहीं से
सुरक्षा का बड़ा संकट खड़ा हो गया। इस समय भारत की सेना फिंगर 4 तक गश्त के लिए जाती है। यहां चीन की सेना का भारी दबाव बना हुआ है। पैंगोंग से सटी पर्वतमालाओं के बीच एक फिंगर से दूसरे की दूरी
सामान्यतया 2 से 3 किलोमीटर होती है,हालांकि यह इससे कम या ज्यादा भी हो सकती है।
रणनीतिक तौर पर भी इस झील का
काफ़ी महत्व है,क्योंकि ये झील चुशूल घाटी के रास्ते में आती है। चीन इस रास्ते का इस्तेमाल पर हमले के
लिए कर सकता है। 1962 के युद्ध के दौरान यही इसी
जगह से चीन ने भारत पर आक्रमण की शुरुआत की थी। गालवन घाटी लद्दाख़ और अक्साई चीन के बीच भारत-चीन सीमा के
नज़दीक स्थित है। यहां पर वास्तविक
नियंत्रण रेखा अक्साई चीन को भारत से अलग करती है। ये घाटी चीन के दक्षिणी शिनजियांग और भारत के लद्दाख़ तक फैली है। भारत
चीन के साथ तकरीबन साढ़े तीन हजार किलोमीटर लंबी सीमा रेखा
साझा करता है,चीन
इस रेखा को तकरीबन दो हजार किलोमीटर की
बताता है और भारत के कई इलाकों पर अवैधानिक दावा जताता रहता है।
बदलती वैश्विक परिस्थितियों में चीन का सीमा पर व्यवहार बेहद आक्रामक रहा
हो गया है। भारत पाकिस्तान से लगती नियंत्रण रेखा पर सैन्य गतिविधियों और घुसपैठ
का सामना कई दशकों से करता रहा है और अब यह स्थिति चीन से लगने वाली वास्तविक
नियन्त्रण रेखा पर भी बन गई है। भौगोलिक परिस्थितियों के कारण भारत का रूस जैसे
देश से अलग होकर अमेरिका के साथ पूर्ण सामरिक
साझेदार बन जाना आसान तो नहीं है लेकिन भारत की चीन से मिलने वाली सुरक्षा
चुनौतियों में अमेरिका की उपयोगिता को नजरअंदाज भी नहीं किया जा सकता। चीन की
सैन्य और साम्राज्यवादी रणनीतिक महत्वाकांक्षाएं हिन्द प्रशांत क्षेत्र में
वैश्विक सुरक्षा संकट बढ़ा रही है,ऐसे में भारत के यथार्थवादी हित अमेरिका के साथ
ज्यादा सुरक्षित दिखाई पड़ते है।